यह लेख अनुच्छेद 142 (Article 142) का यथारूप संकलन है। आप इसका हिन्दी और इंग्लिश दोनों अनुवाद पढ़ सकते हैं। आप इसे अच्छी तरह से समझ सके इसीलिए इसकी व्याख्या भी नीचे दी गई है आप उसे जरूर पढ़ें।

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Article 142


📜 अनुच्छेद 142 (Article 142) – Original

केंद्रीय न्यायपालिका
142. उच्चतम न्यायालय की डिक्रियों और आदेशों का प्रवर्तन और प्रकटीकरण आदि के बारे में आदेश — (1) उच्चतम न्यायालय अपनी अधिकारिता का प्रयोग करते हए ऐसी डिक्री पारित कर या ऐसा आदेश कर सकेगा जो उसके समक्ष लंबित किसी वाद या विषय में पूर्ण न्याय करने के लिए आवश्यक हो और इस प्रकार पारित डिक्री या किया गया आदेश भारत के राज्यक्षेत्र में सर्वत्र ऐसी रीति से, जो संसद द्वारा बनाई गई किसी विधि द्वारा या उसके अधीन विहित की जाए, और जब तक इस निमित्त इस प्रकार उपबंध नहीं किया जाता है तब तक, ऐसी रीति से जो राष्ट्रपति आदेश1 द्वारा विहित करे, प्रवर्तनीय होगा।

(2) संसद द्वारा इस निमित्त बनाई गई किसी विधि के उपबंधों के अधीन रहते हए, उच्चतम न्यायालय को भारत के संपूर्ण राज्यक्षेत्र के बारे में किसी व्यक्ति को हाजिर कराने के, किन्ही दस्तावेजों के प्रकटीकरण या पेश कराने के अथवा अपने किसी अवमान का अन्वेषण करने या दंड देने के प्रयोजन के लिए कोई आदेश करने की समस्त और प्रत्येक शक्ति होगी।
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1. उच्चतम न्यायालय (डिक्री और आदेश) प्रवतर्न आदेश, 1954 (सं.आ.47) देखिए।
अनुच्छेद 142

THE UNION JUDICIARY
142. Enforcement of decrees and orders of Supreme Court and orders as to discovery, etc.— (1) The Supreme Court in the exercise of its jurisdiction may pass such decree or make such order as is necessary for doing complete justice in any cause or matter pending before it, and any decree so passed or order so made shall be enforceable throughout the territory of India in such manner as may be prescribed by or under any law made by Parliament and, until provision in that behalf is so made, in such manner as the President may by order1 prescribe.

(2) Subject to the provisions of any law made in this behalf by Parliament, the Supreme Court shall, as respects the whole of the territory of India, have all and every power to make any order for the purpose of securing the attendance of any person, the discovery or production of any documents, or the investigation or punishment of any contempt of itself.
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1. See the Supreme Court (Decrees and Orders) Enforcement Order, 1954 (C.O. 47).
Article 142

🔍 Article 142 Explanation in Hindi

अनुच्छेद 52 से लेकर 151 तक भारतीय संविधान के भाग 5 के तहत आता है। भाग 5 को 5 अध्यायों में बांटा गया है। इसी का चौथा अध्याय है – संघ की न्यायपालिका (The Union Judiciary)

संसद के इस अध्याय के तहत अनुच्छेद 124 से लेकर अनुच्छेद 147 तक आते हैं। इस लेख में हम अनुच्छेद 142 (Article 142) को समझने वाले हैं;

न्याय (Justice) एक जटिल और बहुआयामी अवधारणा है जो व्यक्तियों के साथ निष्पक्ष व्यवहार और न्यायपूर्ण समाज के रखरखाव को संदर्भित करता है।

न्याय लोकतंत्र का एक आधारभूत स्तंभ है क्योंकि यह व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा करता है, कानून के शासन को बनाए रखता है, संघर्ष के समाधान की सुविधा देता है और निष्पक्षता और समानता को बढ़ावा देता है। यह लोकतांत्रिक संस्थानों को मजबूत करता है और समाज की समग्र भलाई और स्थिरता में योगदान देता है।

भारत में इसे सुनिश्चित करने के लिए संविधान द्वारा एकीकृत न्यायिक व्यवस्था (Integrated Judiciary System) की शुरुआत की गई है। इस व्यवस्था में उच्चतम न्यायालय सबसे शीर्ष पर आता है, उसके बाद राज्यों उच्च न्यायालय आता है और फिर उसके बाद जिलों का अधीनस्थ न्यायालय

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संविधान का भाग 5, अध्याय IV संघीय न्यायालय यानि कि उच्चतम न्यायालय की बात करता है। अनुच्छेद 142 उच्चतम न्यायालय की डिक्रियों और आदेशों का प्रवर्तन और प्रकटीकरण आदि के बारे में आदेश (Enforcement of decrees and orders of Supreme Court and orders as to discovery, etc) के बारे में है।

सुप्रीम कोर्ट की ये एक बहुत ही महत्वपूर्ण शक्ति है। इस अनुच्छेद के दो खंड है। आइये समझें;

अनुच्छेद 142(1) कहता है उच्चतम न्यायालय अपनी अधिकारिता का प्रयोग करते हए ऐसी डिक्री पारित कर या ऐसा आदेश कर सकेगा जो उसके समक्ष लंबित किसी वाद या विषय में पूर्ण न्याय करने के लिए आवश्यक हो और इस प्रकार पारित डिक्री या किया गया आदेश भारत के राज्यक्षेत्र में सर्वत्र ऐसी रीति से, जो संसद द्वारा बनाई गई किसी विधि द्वारा या उसके अधीन विहित की जाए, और जब तक इस निमित्त इस प्रकार उपबंध नहीं किया जाता है तब तक, ऐसी रीति से जो राष्ट्रपति आदेश द्वारा विहित करे, प्रवर्तनीय होगा।

इसे ऐसे समझिए –

न्याय का तकाजा यही है कि वो पूर्ण (Complete) हो। उच्चतम न्यायालय के समक्ष कई बार ऐसी परिस्थिति आती है जब वो पूर्ण न्याय (Complete Justice) करना चाहता है लेकिन उपलब्ध कानूनों से यह संभव नहीं हो पता है। तो ऐसी स्थिति में उच्चतम न्यायालय इस अनुच्छेद के तहत ऐसा आदेश दे सकता है जिससे कि पूर्ण न्याय संभव हो सके।

इन आदेशों का दो तरीकों से प्रवर्तन (Enforce) कराया जा सकता है;

(पहली बात) इस प्रकार के आदेशों को, संसद द्वारा बनाई गई किसी विधि द्वारा या उसके अधीन तय की गई रीति (method) से भारत के राज्यक्षेत्र में प्रवर्तन कराया जा सकता है।

(दूसरी बात) जब तक संसद द्वारा इस तरह की कोई विधि नहीं बना दी जाती तब तक वो आदेश उस रीति (मेथड) से प्रवर्तनीय (Enforceable) होगा जो कि राष्ट्रपति द्वारा तय किया जाएगा।

कुल मिलाकर कहने का अर्थ यह है कि अनुच्छेद 142 सर्वोच्च न्यायालय को पक्षकारों के बीच “पूर्ण न्याय (Complete Justice)” करने के लिए एक अद्वितीय शक्ति प्रदान करता है। जब कभी कानून या क़ानून प्रदत उपाय काम नहीं करता है तो उन स्थितियों में, न्यायालय विवाद को समाप्त करने के लिए मामलों के तथ्यों के अनुकूल, अपने आदेश को विस्तार कर सकता है।

अनुच्छेद 142(2) के तहत कहा गया है कि संसद द्वारा इस निमित्त बनाई गई किसी विधि के उपबंधों के अधीन रहते हए, उच्चतम न्यायालय को भारत के संपूर्ण राज्यक्षेत्र के बारे में किसी व्यक्ति को हाजिर कराने के, किन्ही दस्तावेजों के प्रकटीकरण या पेश कराने के अथवा अपने किसी अवमान का अन्वेषण करने या दंड देने के प्रयोजन के लिए कोई आदेश करने की समस्त और प्रत्येक शक्ति होगी।

इसे इस तरह से समझिए –

जब अनुच्छेद 142(1) के तहत सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए आदेश के अनुसरण में संसद द्वारा विधि बना दी जाती है तो उस विधि के उपबंधों के अधीन रहते हुए उच्चतम न्यायालय को कुछ विशेष शक्तियाँ दी गई है। ये शक्तियाँ कुछ इस प्रकार है;

(पहला) भारत के किसी भी हिस्से से किसी व्यक्ति को हाजिर कराने की शक्ति;

(दूसरा) किन्ही दस्तावेजों की प्रकटीकरण (Discovery) या पेश कराने की शक्ति;

(तीसरा) अपने अवमान (Contempt) का अन्वेषण (Investigation) करने की शक्ति; और

(चौथा) अपने अवमान के लिए दंड के प्रयोजन के लिए कोई आदेश देने की शक्ति।

⚫ ⚫ विस्तार से समझेंContempt of Court (न्यायालय की अवमानना)

Q. पूर्ण न्याय का सिद्धांत (Principle of Complete Justice) क्या है?

पूर्ण न्याय का सिद्धांत इस धारणा को संदर्भित करता है कि न्याय व्यापक होना चाहिए, विभिन्न आयामों को शामिल करना चाहिए और कानूनी मामलों में न्यायसंगत परिणाम सुनिश्चित करना चाहिए। यह जोर देता है कि न्याय की खोज को प्रक्रियात्मक निष्पक्षता से परे जाना चाहिए और ठोस पहलुओं, नैतिक मूल्यों और समाज पर समग्र प्रभाव पर विचार करना चाहिए।

पूर्ण न्याय के सिद्धांत में कई प्रमुख तत्व शामिल हैं:

निष्पक्षता और समानता (Fairness and Equality): पूर्ण न्याय के लिए सभी व्यक्तियों के साथ कानून के समक्ष उचित और समान व्यवहार करने की आवश्यकता होती है, भले ही उनकी सामाजिक स्थिति, धन या शक्ति कुछ भी हो। यह सुनिश्चित करता है कि कानूनी कार्यवाही में किसी के साथ अन्याय या भेदभाव नहीं किया जाता है। विस्तार से समझने के लिए समानता का अधिकार पढ़ें;

व्यापक दृष्टिकोण (Comprehensive Approach): पूर्ण न्याय का सिद्धांत कानूनी मामलों के लिए एक समग्र दृष्टिकोण की मांग करता है। यह न्यायसंगत और व्यापक निर्णय पर पहुंचने के लिए सभी प्रासंगिक पहलुओं, सबूतों और तर्कों पर विचार करने की आवश्यकता को स्वीकार करता है।

उपचारात्मक उपाय (Remedial Measures): पूर्ण न्याय में किसी भी अन्याय या गलत को संबोधित करना और सुधारना शामिल है। यह दंड से परे जाता है और पीड़ितों के लिए मुआवजा, क्षतिपूर्ति और पुनर्वास सहित उचित उपाय प्रदान करना चाहता है।

सामाजिक समानता (Social Equity): पूर्ण न्याय का सिद्धांत प्रणालीगत असमानताओं को दूर करने और सामाजिक समानता को बढ़ावा देने के महत्व को स्वीकार करता है। यह भेदभाव को खत्म करने, समावेशिता को बढ़ावा देने और अधिक न्यायपूर्ण समाज बनाने का प्रयास करता है।

हितों का संतुलन (Balancing Interests): पूर्ण न्याय के लिए प्रतिस्पर्धी हितों और मूल्यों के बीच संतुलन बनाना आवश्यक है। यह शामिल सभी पक्षों के अधिकारों और हितों पर विचार करता है और एक ऐसा समाधान खोजने का प्रयास करता है जो सभी के लिए उचित और समान हो।

जनहित (Public Interest): पूर्ण न्याय का सिद्धांत व्यापक जनहित और कानूनी निर्णयों के सामाजिक प्रभाव को ध्यान में रखता है। इसका उद्देश्य समग्र रूप से समाज के कल्याण और भलाई को बढ़ावा देना है, यह सुनिश्चित करना कि कानूनी परिणाम आम भलाई की सेवा करते हैं।

पूर्ण न्याय का सिद्धांत एक महत्वाकांक्षी आदर्श है जो कानूनी व्यवस्था और न्याय के प्रशासन का मार्गदर्शन करता है। हर मामले में पूर्ण न्याय प्राप्त करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है, लेकिन यह सिद्धांत निष्पक्षता, समानता और मौलिक अधिकारों और मूल्यों की प्राप्ति के लिए लगातार प्रयास करने के लिए एक आधार प्रदान करता है।

Q. सुप्रीम कोर्ट द्वारा अनुच्छेद 142 की शक्तियों के प्रयोग की सीमा क्या है?

Article 142 के तहत शक्तियां प्रकृति में व्यापक हैं, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने समय के साथ अपने निर्णयों के माध्यम से इसके दायरे और सीमा को परिभाषित किया है।

जैसे कि Prem Chand Garg v. Excise Commissioner, U.P. (1962) मामले में, बहुमत की राय से अनुच्छेद 142(1) के तहत न्यायालय की शक्तियों के प्रयोग के लिए रूपरेखा का सीमांकन यह कहकर किया कि पूर्ण न्याय करने का आदेश न केवल मौलिक अधिकारों के अनुरूप होना चाहिए बल्कि यह प्रासंगिक वैधानिक कानूनों के मूल प्रावधानों के साथ संगत भी होना चाहिए

इसी तरह से, सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन बनाम भारत संघ (1991) मामले में अदालत ने फैसला सुनाया कि अनुच्छेद 142 केवल पूरक प्रकृति का है और यह किसी भी मूल कानून को प्रतिस्थापित नहीं कर सकता है या कुछ ऐसा नया नहीं बना सकता है जो कभी अस्तित्व में ही नहीं था।

कुछ महत्वपूर्ण मामले जहां अनुच्छेद 142 लागू किया गया था:

बाबरी मस्जिद मामला: अनुच्छेद 142 का उपयोग राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामले में किया गया था और विवादित भूमि को केंद्र सरकार द्वारा गठित एक ट्रस्ट को सौंपने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

भोपाल गैस त्रासदी: सर्वोच्च न्यायालय ने यूनियन कार्बाइड बनाम केंद्र सरकार मामले में अपनी पूर्ण शक्तियों का प्रयोग किया और घातक भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों को मुआवजा प्रदान करने के लिए हस्तक्षेप किया।

हाईवे पर शराब बिक्री पर रोक मामला: सुप्रीम कोर्ट ने 2016 में आर्टिकल 142 के तहत हाईवे के बाहरी किनारे के 500 मीटर के दायरे में शराब बेचने को गैरकानूनी करार दिया था. शराब पीकर वाहन चलाने से होने वाले हादसों से बचने के लिए यह फैसला किया गया है।

अनुच्छेद 142 की आलोचना (Criticism of Article 142):

संविधान ने अनुच्छेद 142 के प्रावधानों को “पूर्ण न्याय” के लिए जरूरी बताया है। लेकिन फिर भी इस प्रावधान को कई आधारों पर आलोचना की जाती है।

मनमानी और स्पष्ट: अनुच्छेद 142 के तहत उच्चतम न्यायालय को प्राप्त शक्तियां बहुत ही व्यापक है। और इसी आधार पर इसकी आलोचना की जाती है कि ये व्यापक विवेकाधिकार मनमानी और अस्पष्ट हैं।

पूर्ण न्याय शब्द के लिए मानक परिभाषा की अनुपस्थिति: “पूर्ण न्याय” शब्द के लिए मानक परिभाषा की अनुपस्थिति के कारण इसकी संभावना बन जाती है कि न्यायालय इसका दुरुपयोग कर सकता है। क्योंकि ऐसे में “पूर्ण न्याय” को परिभाषित करना एक व्यक्तिपरक अभ्यास बन जाता है और अलग-अलग मामलों में इसकी अलग-अलग व्याख्याएं की जा सकती है।

हालांकि 1998 में, ‘सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन बनाम यूनियन ऑफ इंडिया’ में शीर्ष अदालत ने कहा कि अनुच्छेद 142 के तहत शक्तियां प्रकृति में पूरक हैं और इसका उपयोग किसी मूल कानून को बदलने या ओवरराइड करने के लिए नहीं किया जा सकता है’।

न्यायपालिका को जवाबदेह न ठहराया जाना: अनुच्छेद 142 के तहत शक्तियों की एक और आलोचना यह है कि विधायिका और कार्यपालिका के विपरीत, न्यायपालिका को उसके कार्यों के लिए जवाबदेह नहीं ठहराया जा सकता है।

हालांकि शक्तियों के पृथक्करण सिद्धांत (Separation of Power) के आधार पर यह व्यवस्था की गई है कि न्यायपालिका को कानून बनाने के क्षेत्र में काम नहीं करना चाहिए क्योंकि यह न्यायिक अतिक्रमण (Judicial Overreach) की संभावना को आमंत्रित करेगा। नीचे वाले उदाहरण को आप देख सकते हैं;

न्यायिक अतिक्रमण (Judicial Overreach) के मामले:

हाल के वर्षों में, सर्वोच्च न्यायालय के कई निर्णय हुए हैं जिनमें यह उन क्षेत्रों में प्रवेश कर रहा है जो लंबे समय से न्यायपालिका के लिए ‘शक्तियों के पृथक्करण’ के सिद्धांत के कारण वर्जित थे, जो संविधान की मूल संरचना का हिस्सा है।

ऐसा ही एक उदाहरण है: राष्ट्रीय और राज्य राजमार्गों के किनारे शराब की बिक्री पर प्रतिबंध: जबकि केंद्र सरकार की अधिसूचना ने केवल राष्ट्रीय राजमार्गों के किनारे शराब की दुकानों पर प्रतिबंध लगा दिया था, सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 142 लागू करके 500 मीटर की दूरी पर प्रतिबंध लगा दिया था।

इसके अतिरिक्त, और किसी भी राज्य सरकार द्वारा समान अधिसूचना के अभाव में, अदालत ने राज्य के राजमार्गों (SH) पर भी प्रतिबंध लगा दिया।

इस तरह के फैसलों ने अनुच्छेद 142 को लागू करने के लिए अदालत में निहित विवेकाधिकार के बारे में अनिश्चितता पैदा की है। और यह अनुच्छेद इन्ही सब कारणों से आलोचना का पात्र बना है।

समापन टिप्पणी (Closing Remarks):

जैसा कि हमने ऊपर समझ जब भी कार्यपालिका या विधायिका लोगों के अधिकारों की रक्षा करने और संवैधानिक आदर्शों को बनाए रखने में विफल होती है, न्यायपालिका के पास एक विकल्प आ जाता है कि वह अनुच्छेद 142 के तहत अपनी शक्तियों का उपयोग करें।

संवैधानिक रक्षक के रूप में, अनुच्छेद 142 उच्चतम न्यायालय को वैधानिक अंतराल को भरने की क्षमता देता है। साथ ही यह सरकार की अन्य शाखाओं के लिए जाँच और संतुलन की एक प्रणाली भी स्थापित करता है।

कई उदाहरणों से यह स्पष्ट होता है कि अनुच्छेद 142 कितना महत्वपूर्ण है जैसे कि सुप्रीम कोर्ट ने विशाखा बनाम राजस्थान राज्य के मामले में काम पर यौन उत्पीड़न से एक महिला की सुरक्षा के लिए मानदंड स्थापित किए। इसी तरह से ओल्गा टेलिस के मामले में, निर्वाह के अधिकार को जीवन के अधिकार का एक अभिन्न पहलू माना गया था।

लेकिन बात सिर्फ इतनी नहीं है इस विवेकाधीन बेहिसाब शक्ति ने एक असपष्टता और मनमानेपन की स्थिति पैदा की है। जैसे कि, एक फैसले में, सर्वोच्च न्यायालय ने विकल्प प्रदान किए बिना दिल्ली के विशिष्ट वर्गों में ई-रिक्शा को गैरकानूनी घोषित कर दिया।

कुल मिलाकर न्यायपालिका को चाहिए कि वे कार्यपालिका में हस्तक्षेप करने से बचे या Judicial Overreach से बचे। लेकिन साथ ही कई ऐसे मामले भी सामने आते हैं जब न्यायपालिका के अधिकार क्षेत्र होने के बावजूद अपने दायित्वों से बचती हैं, जिससे अन्याय होता है, तो न्यायपालिका को Judicial Under-reach से भी बचना चाहिए।

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तो यही है अनुच्छेद 142 (Article 142), उम्मीद है आपको समझ में आया होगा। दूसरे अनुच्छेदों को समझने के लिए नीचे दिए गए लिंक का इस्तेमाल कर सकते हैं।

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FAQ. अनुच्छेद 142 (Article 142) क्या है?

अनुच्छेद 142 उच्चतम न्यायालय की डिक्रियों और आदेशों का प्रवर्तन और प्रकटीकरण आदि के बारे में आदेश (Enforcement of decrees and orders of Supreme Court and orders as to discovery, etc) के बारे में है।
विस्तार से समझने के लिए लेख पढ़ें;

अस्वीकरण – यहाँ प्रस्तुत अनुच्छेद और उसकी व्याख्या, मूल संविधान (उपलब्ध संस्करण), संविधान पर डी डी बसु की व्याख्या (मुख्य रूप से), प्रमुख पुस्तकें (एम. लक्ष्मीकान्त, सुभाष कश्यप, प्रमोद अग्रवाल इत्यादि) एनसाइक्लोपीडिया, संबंधित मूल अधिनियम और संविधान के विभिन्न ज्ञाताओं (जिनके लेख समाचार पत्रों, पत्रिकाओं एवं इंटरनेट पर ऑडियो-विजुअल्स के रूप में उपलब्ध है) पर आधारित है। हमने बस इसे रोचक और आसानी से समझने योग्य बनाने का प्रयास किया है।
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