यह लेख अनुच्छेद 40 (Article 40) का यथारूप संकलन है। आप इसका हिन्दी और इंग्लिश दोनों अनुवाद पढ़ सकते हैं। आप इसे अच्छी तरह से समझ सके इसीलिए इसकी व्याख्या भी नीचे दी गई है आप उसे जरूर पढ़ें। इसकी व्याख्या इंग्लिश में भी उपलब्ध है, इसके लिए आप नीचे दिए गए लिंक का प्रयोग करें;
अपील - Bell आइकॉन पर क्लिक करके हमारे नोटिफ़िकेशन सर्विस को Allow कर दें ताकि आपको हरेक नए लेख की सूचना आसानी से प्राप्त हो जाए। साथ ही हमारे सोशल मीडिया हैंडल से जुड़ जाएँ और नवीनतम विचार-विमर्श का हिस्सा बनें;

📌 Join YouTube | 📌 Join FB Group |
📌 Join Telegram | 📌 Like FB Page |
📌 Join FB Group
📌 Join Telegram
📌 Like FB Page
अगर टेलीग्राम लिंक काम न करे तो सीधे टेलीग्राम पर जाaकर सर्च करे – @upscandpcsofficial
📜 अनुच्छेद 40 (Article 40)
40. ग्राम पंचायतों का संगठन — राज्य ग्राम पंचायतों का संगठन करने के लिए कदम उठाएगा और उनको ऐसी शक्तियाँ और प्राधिकार प्रदान करेगा जो उन्हे स्वायत्त शासन की इकाइयां के रूप में काया करने योग्य बनाने के लिए आवश्यक हों। |
40. Organisation of village panchayats.—The State shall take steps to organise village panchayats and endow them with such powers and authority as may be necessary to enable them to function as units of self-government. |
🔍 Article 40 Explanation in Hindi
राज्य के नीति निदेशक तत्व (Directive Principles of State Policy/DPSP) का शाब्दिक अर्थ है – राज्य के नीति को निर्देशित करने वाले तत्व।
जब संविधान बनाया गया था उस समय लोगों को लोकतांत्रिक राज्य में शासन करने का और देशहीत में कानून बनाने का कोई तजुर्बा नहीं था। खासकर के राज्यों के लिए जो कि एक लंबे औपनिवेशिक काल के बाद शासन संभालने वाले थे।
जैसा कि हम जानते है कि हमारे देश में राजनेताओं के लिए पढ़ा-लिखा होना कोई अनिवार्य नहीं है। ऐसे में मार्गदर्शक आवश्यक हो जाता है ताकि नीति निर्माताओं को हमेशा ज्ञात होता रहे कि किस तरफ जाना है।
◾ ऐसा नहीं था कि DPSP कोई नया विचार था बल्कि आयरलैंड में तो ये काम भी कर रहा था और हमने इसे वहीं से लिया।
◾ राज्य के नीति निदेशक सिद्धांत (DPSP) नागरिकों के कल्याण और विकास के लिए कानूनों और नीतियों को बनाने के लिए दिशानिर्देश हैं। ये भारतीय संविधान के भाग IV में शामिल हैं।
◾ ये सिद्धांत गैर-प्रवर्तनीय (non enforceable) हैं, जिसका अर्थ है कि ये अदालतों द्वारा लागू नहीं हैं, हालांकि इसे देश के शासन में मौलिक माना जाता है और कानून और नीतियां बनाते समय सरकार द्वारा ध्यान में रखा जाना चाहिए।
कुल मिलाकर नीति-निदेशक तत्व लोकतांत्रिक और संवैधानिक विकास के वे तत्व है जिसका उद्देश्य लोक-कल्याणकारी राज्य की स्थापना करना है।
DPSP का वर्गीकरण — नीचे आप निदेशक तत्वों का वर्गीकरण देख सकते हैं। इससे आपको यह समझने में आसानी होगी कि जो अनुच्छेद आप पढ़ रहें है वे किसलिए DPSP में शामिल की गई है और किन उद्देश्यों को लक्षित करने के लिए की गई है।
सिद्धांत (Principles) | संबंधित अनुच्छेद (Related Articles) |
---|---|
समाजवादी (Socialistic) | ⚫ अनुच्छेद 38 ⚫ अनुच्छेद 39 ⚫ अनुच्छेद 39क ⚫ अनुच्छेद 41 ⚫ अनुच्छेद 42 ⚫ अनुच्छेद 43 ⚫ अनुच्छेद 43 क ⚫ अनुच्छेद 47 |
गांधीवादी (Gandhian) | ⚫ अनुच्छेद 40 ⚫ अनुच्छेद 43 ⚫ अनुच्छेद 43ख ⚫ अनुच्छेद 46 ⚫ अनुच्छेद 48 |
उदार बौद्धिक (Liberal intellectual) | ⚫ अनुच्छेद 44 ⚫ अनुच्छेद 45 ⚫ अनुच्छेद 48 ⚫ अनुच्छेद 48A ⚫ अनुच्छेद 49 ⚫ अनुच्छेद 50 ⚫ अनुच्छेद 51 |
इसके अलावा निदेशक तत्वों को निम्नलिखित समूहों में भी बांट कर देखा जा सकता है;
कल्याणकारी राज्य (Welfare State) — इस समूह के नीति निदेशक तत्वों में अनुच्छेद 38 (1 एवं 2), अनुच्छेद 39 (ख एवं ग), अनुच्छेद 39क, अनुच्छेद 41, अनुच्छेद 42, अनुच्छेद 43, अनुच्छेद 43क एवं अनुच्छेद 47 को रखा जाता है।
प्रतिष्ठा एवं अवसर की समानता (Equality of Dignity & Opportunity) — इस समूह के नीति निदेशक तत्वों में अनुच्छेद 40, 41, 44, 45, 46, 47 48 एवं 50 को रखा जाता है।
व्यक्ति के अधिकार (individual’s rights) — इस समूह के नीति निदेशक तत्वों में अनुच्छेद 39क, 41, 42, 43 45 एवं 47 को रखा जाता है।
संविधान के भाग 4 के अंतर्गत अनुच्छेद 36 से लेकर अनुच्छेद 51 तक आता है। इस लेख में हम अनुच्छेद 40 को समझने वाले हैं;
| अनुच्छेद 40 – ग्राम पंचायतों का संगठन
पंचायती राज स्थानीय स्व-शासन (local self government) की एक व्यवस्था है। भारत में स्थानीय स्व-शासन की संकल्पना कोई नई नहीं है। वैदिक काल से लेकर ब्रिटिश काल तक ग्रामीण समुदायों ने इस व्यवस्था को जीवंत बनाए रखा।
इस समय काल में कई साम्राज्य बने और ध्वस्त हुए, लेकिन इन ग्रामीण समुदायों ने अपने पंचायती अस्तित्व एवं भावना को सदैव कायम रखा। लेकिन जब आजाद भारत का संविधान लागू हुआ तब पंचायती राज व्यवस्था लागू नहीं हो पाया।
इसीलिए इसे राज्य के नीति निदेशक तत्व के अंतर्गत रख दिया गया। हालांकि इसे लागू करने का प्रयास संविधान लागू होने के कुछ वर्ष बाद ही शुरू हो गया।
इसीलिए इसे राज्य के नीति निदेशक तत्व के अंतर्गत रख दिया गया। हालांकि इसे लागू करने का प्रयास संविधान लागू होने के कुछ वर्ष बाद ही शुरू हो गया। लेकिन यह पूरी तरह से साल 1993 में लागू हो पाया।
⚫ ग्रामीण विकास को गति देने के लिए और इसमें लोगों की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए 1952 में सामुदायिक विकास कार्यक्रम की शुरुआत की गई। इस कार्यक्रम के सहयोग के लिए 1953 में राष्ट्रीय विस्तार सेवा की शुरुआत की गई।
जनवरी 1957 में भारत सरकार ने इसी सामुदायिक विकास कार्यक्रम 1952 तथा राष्ट्रीय विस्तार सेवा 1953 द्वारा किए कार्यों की जांच और उनके बेहतर ढंग से कार्य करने के लिए उपाय सुझाने के लिए एक समिति का गठन किया।
इस समिति के अध्यक्ष बलवंत राय मेहता थे। समिति ने नवम्बर 1957 को अपनी रिपोर्ट सौंपी और लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण की योजना की सिफ़ारिश की जो की अंतिम रूप से पंचायती राज के रूप में जाना गया।
समिति ने तीन स्तरीय पंचायती राज पद्धति की स्थापना करने की सिफ़ारिश की – गाँव स्तर पर ग्राम पंचायत, ब्लॉक स्तर पर पंचायत समिति और जिला स्तर पर जिला परिषद।
समिति की इन सिफ़ारिशों को राष्ट्रीय विकास परिषद द्वारा जनवरी, 1958 में स्वीकार किया गया। लेकिन परिषद ने कोई एक निश्चित फ़ारमैट तैयार नहीं किया और इसे राज्यों पर छोड़ दिया कि वे जिस तरह से इसे चाहे लागू करें।
◾राजस्थान देश का पहला राज्य था, जहां पंचायती राज की स्थापना हुई। इस योजना का उद्घाटन 2 अक्तूबर 1959 को राजस्थान के नागौर जिले में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू द्वारा किया गया।
⚫ दिसम्बर 1977 में, जनता पार्टी की सरकार ने अशोक मेहता की अध्यक्षता में पंचायती राज संस्थाओं पर एक समिति का गठन किया। इसने अगस्त 1978 में अपनी सौंपी और देश में पतनोन्मुख पंचायती राज को पुनर्जीवित और मजबूत करने हेतु 132 सिफ़ारिशें की।
इन्होने त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था को द्विस्तरीय पद्धति में बदलने की सिफ़ारिश की। जिला स्तर पर जिला परिषद, और उससे नीचे मण्डल पंचायत (जिसमें 15 हज़ार से 20 हज़ार जनसंख्या वाले गाँव के समूह होने चाहिए)। यह कभी लागू नहीं हो पाया।
⚫ 1986 में राजीव गांधी सरकार ने लोकतंत्र व विकास के लिए पंचायती राज संस्थाओं का पुनरुद्धार पर एक अवधारणा पत्र तैयार करने के लिए एक समिति का गठन एल. एम. सिंघवी की अध्यक्षता में किया।
इन्होने सबसे मुख्य बात पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक रूप से मान्यता देने की करी क्योंकि इसे अब तक संवैधानिक मान्यता नहीं मिला हुआ था। इसने पंचायती राज विकास के नियमित स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव करने के संवैधानिक उपबंध बनाने की सलाह भी दी।
राजीव गांधी सरकार: राजीव गांधी सरकार ने पंचायती राज संस्थाओं के संवैधानिकरण और उन्हे ज्यादा शक्तिशाली और व्यापक बनाने हेतु जुलाई 1989 में 64वां संविधान संशोधन विधेयक लोकसभा में पेश किया।
हालांकि अगस्त 1989 में लोकसभा ने यह विधेयक पारित किया, किन्तु राज्यसभा द्वारा इसे पारित नहीं किया गया। इस विधेयक का विपक्ष द्वारा जोरदार विरोध किया गया क्योंकि इसके द्वारा संघीय व्यवस्था में केंद्र को मजबूत बनाने का प्रावधान था।
वी.पी.सिंह सरकार: नवम्बर 1989 में वी पी सिंह के प्रधानमंत्रित्व में राष्ट्रीय मोर्चा सरकार ने कार्यालय संभाला और वी पी सिंह की अध्यक्षता में राज्यों के मुख्यमंत्रियों का 2 दिन का सम्मेलन हुआ।
सम्मेलन में एक नए संविधान संशोधन विधेयक को पेश करने के प्रस्ताव को मंजूरी दी गई। परिणामस्वरूप सितंबर 1990 में लोकसभा में एक संविधान संशोधन विधेयक प्रस्तुत किया गया। लेकिन सरकार के गिरने के साथ ही यह विधेयक भी समाप्त हो गया।
नरसिम्हा राव सरकार: नरसिम्हा राव के प्रधानमंत्रित्व में काँग्रेस सरकार ने एक बार फिर पंचायती राज के संवैधानिकरण के मामले पर विचार किया।
इसने प्रारम्भ के विवादास्पद प्रावधानों को हटाकर नया प्रस्ताव रखा और सितंबर 1991 को लोकसभा में एक संविधान संशोधन विधेयक प्रस्तुत किया। अंततः यह विधेयक 73वें संविधान संशोधन अधिनियम 1992 के रूप में पारित हुआ और 24 अप्रैल 1993 को प्रभाव में आया।
आज भारत में पंचायती राज (Panchayati raj) की जो व्यवस्था है वो इसी अधिनियम ”73वां संविधान संशोधन अधिनियम 1992” के तहत है।
पंचायती राज व्यवस्था और स्थानीय स्व-शासन पर चार खंडों में लेख उपलब्ध है विशेष जानकारी के लिए आप उसे जरूर पढ़ें;
◾ पंचायती राज का इतिहास | Eng. |
◾ पंचायती राज : स्वतंत्रता के बाद | Eng |
◾ नगर निगम, नगरपालिका | Eng |
◾ शहरी स्थानीय स्व-शासन के प्रकार | Eng |
कुल मिलाकर,
◾ पंचायती राज व्यवस्था भारत में स्थानीय स्वशासन की एक प्रणाली है। यह देश के ग्रामीण क्षेत्रों में प्रशासन की विकेंद्रीकृत प्रणाली प्रदान करने के लिए स्थापित किया गया।
◾ यह प्रणाली पंचायतों, या ग्राम सभाओं की पारंपरिक प्रणाली पर आधारित है, जो सदियों से भारत में मौजूद है। पंचायती राज व्यवस्था के तहत, स्थानीय सरकार का आयोजन गाँव, मध्यवर्ती (ब्लॉक या तालुका) और जिला स्तरों पर किया जाता है।
◾ इस व्यवस्था का उद्देश्य ग्रामीण समुदायों को सशक्त बनाना और उन्हें अपने स्वयं के मामलों पर अधिक नियंत्रण देना है।
◾ पंचायतें निर्वाचित निकाय हैं, और उनके सदस्य उन गाँवों के निवासियों द्वारा चुने जाते हैं जिनकी वे सेवा करते हैं।
◾ पंचायतें विभिन्न प्रकार के कार्यों के लिए जिम्मेदार हैं, जिनमें स्थानीय बुनियादी ढांचे का रखरखाव, बुनियादी सेवाओं का प्रावधान और ग्रामीण विकास को बढ़ावा देना शामिल है।
तो कुल मिलाकर यही है अनुच्छेद 40 (Article 40), उम्मीद है आपको समझ में आया होगा। दूसरे अनुच्छेदों को समझने के लिए नीचे दिए गए लिंक का इस्तेमाल कर सकते हैं।
राज्य ग्राम पंचायतों का संगठन करने के लिए कदम उठाएगा और उनको ऐसी शक्तियाँ और प्राधिकार प्रदान करेगा जो उन्हे स्वायत्त शासन की इकाइयां के रूप में काया करने योग्य बनाने के लिए आवश्यक हों।
विस्तार से समझने के लिए लेख पढ़ें;
| Related Article
Hindi Articles | English Articles |
---|---|
⚫ अनुच्छेद 39 ⚫ अनुच्छेद 41 | ⚫ Article 39 ⚫ Article 41 |
⚫ भारतीय संविधान ⚫ संसद की बेसिक्स ⚫ मौलिक अधिकार बेसिक्स ⚫ भारत की न्यायिक व्यवस्था ⚫ भारत की कार्यपालिका | ⚫ Constitution ⚫ Basics of Parliament ⚫ Fundamental Rights ⚫ Judiciary in India ⚫ Executive in India |
अस्वीकरण – यहाँ प्रस्तुत अनुच्छेद और उसकी व्याख्या, मूल संविधान (नवीनतम संस्करण), संविधान पर डी डी बसु की व्याख्या (मुख्य रूप से), एनसाइक्लोपीडिया, संबंधित मूल अधिनियम और संविधान के विभिन्न ज्ञाताओं (जिनके लेख समाचार पत्रों, पत्रिकाओं एवं इंटरनेट पर ऑडियो-विजुअल्स के रूप में उपलब्ध है) पर आधारित है। हमने बस इसे रोचक और आसानी से समझने योग्य बनाने का प्रयास किया है। |