यह लेख Article 231 (अनुच्छेद 231) का यथारूप संकलन है। आप इस मूल अनुच्छेद का हिन्दी और इंग्लिश दोनों संस्करण पढ़ सकते हैं। आप इसे अच्छी तरह से समझ सके इसीलिए इसकी व्याख्या भी नीचे दी गई है आप उसे जरूर पढ़ें, और MCQs भी सॉल्व करें।
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📜 अनुच्छेद 231 (Article 231) – Original
भाग 6 “राज्य” [अध्याय 5 — राज्य का विधान मंडल] [राज्यों के उच्च न्यायालय] |
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231. दो या अधिक राज्यों के लिए एक ही उच्च न्यायालय की स्थापना— (1) इस अध्याय के पूर उपबंधों में किसी बात के भी, संसद, विधि द्वारा, दो या अधिक राज्यों के लिए अथवा दो या अधिक राज्यों और किसी संघ राज्यक्षेत्र के लिए एक ही उच्च न्यायालय स्थापित कर सकेगी। (2) किसी ऐसे उच्च न्यायालय के संबंध में,— 1[(क) * * * * (ख) अधीनस्थ न्यायालयों के लिए किन्ही नियमों, प्ररुपों या सारणियों के संबंध में, अनुच्छेद 227 में राज्यपाल के प्रति निर्देश का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वह उस राज्य के राज्यपाल के प्रति निर्देश हैं जिसमें वे अधीनस्थ न्यायालय स्थित हैं ; और (ग) अनुच्छेद 219 और अनुच्छेद 229 में राज्य के प्रति निर्देशों का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वे उस राज्य के प्रति निर्देश हैं, जिसमें उस उच्च न्यायालय का मुख्य स्थान है। परंतु यदि ऐसा मुख्य स्थान किसी संघ राज्यक्षेत्र में है तो अनुच्छेद 219 और अनुच्छेद 229 में राज्य के राज्यपाल, लोक सेवा आयोग, विधान-मंडल और संचित निधि के प्रति निर्देशों का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वे क्रमश: राष्ट्रपति, संघ लोक सेवा आयोग, संसद् और भारत की संचित निधि के प्रति निर्देश हैं।] ============ 1. संविधान (निन्यानवेवां संशोधन) अधिनियम, 2014 की धारा 10 द्वारा (13-4-2015 से) खंड (क) का लोप किया गया। यह संशोधन सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स ऑन रिकॉर्ड एसोसिएशन बनाम भारत संघ AIR 2016 AC 117 वाले मामले में उच्चतम न्यायालय के तारीख 16-10-2015 के आदेश द्वारा अभिखंडित कर दिया गया है। संशोधन के पूर्व खंड (क) निम्नानुसार था:- “(क) अनुच्छेद 217 में उस राज्य के राज्यपाल के प्रति निर्देश का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वह उस सभी राज्यों के राज्यपालों के प्रति निर्देश है जिनके संबंध में वह उच्च न्यायालय अधिकारिता का प्रयोग करता है।” |
Part VI “State” [CHAPTER V — The State Legislature] [The High Courts in the States] |
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231. Establishment of a common High Court for two or more States— (1) Notwithstanding anything contained in the preceding provisions of this Chapter, Parliament may by law establish a common High Court for two or more States or for two or more States and a Union territory. (2) In relation to any such High Court,— 1[(a)* * * * * (b) the reference in article 227 to the Governor shall, in relation to any rules, forms or tables for subordinate courts, be construed as a reference to the Governor of the State in which the subordinate courts are situate; and (c) the references in articles 219 and 229 to the State shall be construed as a reference to the State in which the High Court has its principal seat: Provided that if such principal seat is in a Union territory, the references in articles 219 and 229 to the Governor, Public Service Commission, Legislature and Consolidated Fund of the State shall be construed respectively as references to the President, Union Public Service Commission, Parliament and Consolidated Fund of India.] ======================= 1.Cl. (a) was omitted by the Constitution (Ninety-ninth Amendment) Act, 2014, s. 10 (w.e.f. 13-4-2015). This amendment has been struck down by the Supreme Court vide its order the 16-10-2015 in the Supreme Court Advocates-on-Record Association and Another Vs. Union of India reported AIR 2016 SC 117. Before amendment, subclause (a) was as under:— “(a) the reference in article 217 to the Governor of the State shall be construed as reference to the Governors of all the States in relation to which the High Court exercises jurisdiction”. |
🔍 Article 231 Explanation in Hindi
भारतीय संविधान का भाग 6, अनुच्छेद 152 से लेकर अनुच्छेद 237 तक कुल 6 अध्यायों (Chapters) में विस्तारित है (जिसे कि आप नीचे टेबल में देख सकते हैं)।
Chapters | Title | Articles |
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I | साधारण (General) | Article 152 |
II | कार्यपालिका (The Executive) | Article 153 – 167 |
III | राज्य का विधान मंडल (The State Legislature) | Article 168 – 212 |
IV | राज्यपाल की विधायी शक्ति (Legislative Power of the Governor) | Article 213 |
V | राज्यों के उच्च न्यायालय (The High Courts in the States) | Article 214 – 232 |
VI | अधीनस्थ न्यायालय (Subordinate Courts) | Article 233 – 237 |
जैसा कि आप ऊपर देख सकते हैं, इस भाग के अध्याय 5 का नाम है “राज्यों के उच्च न्यायालय (The High Courts in the States)” और इसका विस्तार अनुच्छेद 214 से लेकर 232 तक है। इस लेख में हम अनुच्छेद 231 को समझने वाले हैं;
⚫ अनुच्छेद 227 – भारतीय संविधान |
| अनुच्छेद 231 – दो या अधिक राज्यों के लिए एक ही उच्च न्यायालय की स्थापना (Establishment of a common High Court for two or more States)
न्याय (Justice) लोकतंत्र का एक आधारभूत स्तंभ है क्योंकि यह व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा करता है, कानून के शासन को बनाए रखता है, संघर्ष के समाधान की सुविधा देता है और निष्पक्षता और समानता को बढ़ावा देता है। यह लोकतांत्रिक संस्थानों को मजबूत करता है और समाज की समग्र भलाई और स्थिरता में योगदान देता है।
भारत में इसे सुनिश्चित करने के लिए संविधान द्वारा एकीकृत न्यायिक व्यवस्था (Integrated Judiciary System) की शुरुआत की गई है। इस व्यवस्था में उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) सबसे शीर्ष पर आता है, उसके बाद राज्यों उच्च न्यायालय (High Court) आता है और फिर उसके बाद जिलों का अधीनस्थ न्यायालय (Subordinate Court)।
संविधान का भाग 6, अध्याय V, राज्यों के उच्च न्यायालय की बात करता है। अनुच्छेद 231 के तहत दो या अधिक राज्यों के लिए एक ही उच्च न्यायालय की स्थापना का प्रावधान है।
अनुच्छेद 231 के तहत कहा गया है कि इस अध्याय के पूर उपबंधों में किसी बात के भी, संसद, विधि द्वारा, दो या अधिक राज्यों के लिए अथवा दो या अधिक राज्यों किसी संघ राज्यक्षेत्र के लिए एक ही उच्च न्यायालय स्थापित कर सकेगी।
संविधान का भाग 6, अध्याय V में किसी बात के होते हुए भी संसद, विधि द्वारा, दो या अधिक राज्यों के लिए अथवा दो या अधिक राज्यों और किसी संघ राज्यक्षेत्र के लिए एक ही उच्च न्यायालय स्थापित कर सकेगी।
इसे आप इस चार्ट के माध्यम से समझ सकते हैं कि किस तरह से दो या अधिक राज्यों के लिए या फिर दो या अधिक राज्यों एवं UT के लिए एक ही उच्च न्यायालय का गठन किया गया है;
नाम | स्थापना वर्ष | न्यायक्षेत्र |
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केरल | 1958 | केरल और लक्षद्वीप |
जम्मू एवं कश्मीर | 1928 | जम्मू एवं कश्मीर और लद्दाख |
पंजाब एवं हरियाणा | 1875 | पंजाब, हरियाणा एवं चंडीगढ़ |
बंबई | 1862 | महाराष्ट्र, गोवा, दादरा और नागर हवेली |
कलकत्ता | 1862 | पश्चिम बंगाल तथा अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह |
मद्रास | 1982 | तमिलनाडुऔर पुडुचेरी |
अनुच्छेद 231 के खंड (2) के तहत दो बातें बताई गई है;
पहली बात) किसी ऐसे उच्च न्यायालय के संबंध में, अधीनस्थ न्यायालयों के लिए किन्ही नियमों, प्ररुपों या सारणियों के संबंध में, अनुच्छेद 227 में राज्यपाल के प्रति निर्देश का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वह उस राज्य के राज्यपाल के प्रति निर्देश हैं जिसमें वे अधीनस्थ न्यायालय स्थित हैं;
दूसरी बात) अनुच्छेद 219 और अनुच्छेद 229 में राज्य के प्रति निर्देशों का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वे उस राज्य के प्रति निर्देश हैं, जिसमें उस उच्च न्यायालय का मुख्य स्थान है।
परंतु यदि ऐसा मुख्य स्थान किसी संघ राज्यक्षेत्र में है तो अनुच्छेद 219 और अनुच्छेद 229 में राज्य के राज्यपाल, लोक सेवा आयोग, विधान-मंडल और संचित निधि के प्रति निर्देशों का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वे क्रमश: राष्ट्रपति, संघ लोक सेवा आयोग, संसद् और भारत की संचित निधि के प्रति निर्देश हैं।
Concept : –
जब एक से अधिक राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों के लिए एक ही उच्च न्यायालय की स्थापना की जाती है तो कई संवैधानिक विसंगतियां पैदा होती है क्योंकि संविधान के भाग 6 के अध्याय 5 के तहत उच्च न्यायालय के बारे में जो भी बताया गया है वो आमतौर पर उसी राज्य के संदर्भ में बताया गया है जिस राज्य में वो उच्च न्यायालय है या फिर जो उसका क्षेत्राधिकार है।
लेकिन जब दो या अधिक राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों के लिए एक ही उच्च न्यायालय का गठन किया जाता है तो ये दो राज्यपाल या उपराज्यपाल की स्थिति हो सकती है, अलग-अलग राज्यों के अपने अधीनस्थ न्यायालय हो सकते हैं ऐसे में इस सब को कैसे सुलझाया जाएगा?
अनुच्छेद 231 के खंड (2) में जो पहली बात है वो यही कहती है कि अगर दो राज्यों व केंद्रशासित प्रदेशों के लिए एक ही उच्च न्यायालय है तो ऐसे उच्च न्यायालय के अंतर्गत जो अधीनस्थ न्यायालय है उसके लिए जो नियम (Rules), प्ररूप (Forms) या सारणियां (Tables) बनाने की शक्ति अनुच्छेद 227 के तहत उच्च न्यायालय को प्राप्त है उसमें जो राज्यपाल के प्रति निर्देश दिया गया है उसका मतलब उस राज्य के राज्यपाल के प्रति निर्देश हैं जिसमें वे अधीनस्थ न्यायालय स्थित हैं;
आपको पता होगा कि अनुच्छेद 227 के तहत यह बताई गई है कि उच्च न्यायालय के पास अपने क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र के भीतर सभी अधीनस्थ न्यायालयों (subordinate courts) और न्यायाधिकरणों (tribunals) के कामकाज की निगरानी और हस्तक्षेप करने का अधिकार होता है। लेकिन इसके लिए राज्यपाल के पूर्व अनुमोदन की अपेक्षा होती है।
तो मान लीजिये अगर दो राज्य है पंजाब और हरियाणा। और हरियाणा के अधीनस्थ न्यायालय के संबंध में अगर उच्च न्यायालय कोई हस्तक्षेप करता है तो हरियाणा के राज्यपाल से पूर्व अनुमोदन की अपेक्षा होगी, क्योंकि अधीनस्थ न्यायालय हरियाणा में स्थित है।
दूसरी बात जो इसमें कही गई है वो ये है कि अनुच्छेद 219 और अनुच्छेद 229 में राज्य के प्रति निर्देशों का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वे उस राज्य के प्रति निर्देश हैं, जिसमें उस उच्च न्यायालय का मुख्य स्थान है।
आपको पता होगा कि अनुच्छेद 219 के तहत उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों द्वारा ली जाने वाली शपथ का वर्णन है। इसी तरह से अनुच्छेद 229 के तहत उच्च न्यायालय के अधिकारियों और सेवकों की सेवा की शर्तें बताई गई है। इन दोनों अनुच्छेदों में राज्य के प्रति जो निर्देश है वो उस राज्य के प्रति निर्देश हैं, जिसमें उस उच्च न्यायालय का मुख्य स्थान है।
हालांकि यहां यह याद रखिए कि यदि ऐसा मुख्य स्थान (जिस जगह पर उच्च न्यायालय स्थापित है) किसी संघ राज्यक्षेत्र (UT) में है तो अनुच्छेद 219 और अनुच्छेद 229 में राज्य के राज्यपाल, लोक सेवा आयोग, विधान-मंडल और संचित निधि के प्रति निर्देशों का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वे क्रमश: राष्ट्रपति, संघ लोक सेवा आयोग, संसद् और भारत की संचित निधि के प्रति निर्देश हैं।
तो यही है Article 231, उम्मीद है आपको समझ में आया होगा। दूसरे अनुच्छेदों को समझने के लिए नीचे दिए गए लिंक का इस्तेमाल कर सकते हैं।
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अस्वीकरण – यहाँ प्रस्तुत अनुच्छेद और उसकी व्याख्या, मूल संविधान (उपलब्ध संस्करण), संविधान पर डी डी बसु की व्याख्या (मुख्य रूप से), प्रमुख पुस्तकें (एम. लक्ष्मीकान्त, सुभाष कश्यप, विद्युत चक्रवर्ती, प्रमोद अग्रवाल इत्यादि) एनसाइक्लोपीडिया, संबंधित मूल अधिनियम और संविधान के विभिन्न ज्ञाताओं (जिनके लेख समाचार पत्रों, पत्रिकाओं एवं इंटरनेट पर ऑडियो-विजुअल्स के रूप में उपलब्ध है) पर आधारित है। हमने बस इसे रोचक और आसानी से समझने योग्य बनाने का प्रयास किया है। |