राष्ट्रपति एवं राज्यपाल की क्षमादान की शक्ति: आपने कोई बहुत बड़ी गलती कर दी और न्यायालय ने उसके लिए मृत्युदंड दे दिया है तो अब एक ही इंसान इस दुनिया में है जो जायज़ तरीके से आपको बचा सकता है, वो है राष्ट्रपति। इसी तरह से क्षमा करने की कई शक्तियाँ राज्यपाल के पास भी है।
इस लेख में हम राष्ट्रपति एवं राज्यपाल की क्षमादान की शक्ति (Pardoning Power of President and Governor) पर सरल और सहज चर्चा करेंगे, एवं इसके विभिन्न महत्वपूर्ण पहलुओं को समझने का प्रयास करेंगे।
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¦ क्षमादान की परंपरा एवं शक्ति (The Tradition and Power of Forgiveness):
क्षमा करने का उद्देश्य किसी दोषसिद्ध व्यक्ति को दुबारा एक ज़िंदगी देना या फिर से मुख्य धारा में लौटाना होता है। राजा-महाराजाओं के दौर में यह व्यवस्था काफी महत्वपूर्ण था। सजा प्राप्त व्यक्तियों के लिए यह एक अंतिम आस की तरह होता था।
ब्रिटिश राज के दौरान भी इसका इस्तेमाल होता रहा है, भारत सरकार अधिनियम, 1935 में इसका जिक्र मिलता है। आजादी के बाद भारतीय संविधान ने क्षमादान की यही शक्ति राष्ट्रपति और राज्यपाल को दी।
◾ क्षमादान किसी भी सभ्य समाज के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह कई लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद कर सकती है, जिनमें शामिल हैं:
पुनर्वास (Rehabilitation): क्षमा अपराधियों के पुनर्वास और उन्हें समाज में फिर से शामिल करने में मदद कर सकती है। जब किसी व्यक्ति को माफ़ कर दिया जाता है, तो उसे अनिवार्य रूप से दोबारा शुरुआत करने का दूसरा मौका दिया जाता है। इससे उन्हें अपना जीवन बदलने और समाज के उत्पादक सदस्य बनने में मदद मिल सकती है।
न्याय (Justice): क्षमा उन मामलों में न्याय प्राप्त करने में मदद कर सकती है जहां मूल फैसला अनुचित या अन्यायपूर्ण था। उदाहरण के लिए, किसी व्यक्ति को किसी अपराध के लिए गलत तरीके से दोषी ठहराया गया हो सकता है या बहुत कठोर सजा सुनाई गई हो। क्षमा न्याय की इन गड़बड़ियों को ठीक करने में मदद कर सकती है।
दया (Mercy): दया के कार्य के रूप में क्षमा प्रदान की जा सकती है, विशेषकर ऐसे मामलों में जहां अपराध गंभीर नहीं था या जहां व्यक्ति पहले ही काफी कष्ट झेल चुका हो। पीड़ित के परिवार के प्रति दया दिखाने के लिए भी माफ़ी दी जा सकती है।
सार्वजनिक सुरक्षा (Public safety): क्षमा उन मामलों में दी जा सकती है जहां व्यक्ति अब सार्वजनिक सुरक्षा के लिए खतरा नहीं है। उदाहरण के लिए, एक व्यक्ति जिसका पुनर्वास किया गया है और जिसने कई वर्षों में कोई अपराध नहीं किया है, उसे क्षमा किया जा सकता है।
◾ इन्ही सब कारणों को ध्यान में रखकर अनुच्छेद 72 के तहत राष्ट्रपति को क्षमादान की शक्ति दी गई और अनुच्छेद 161 के तहत राज्यपाल को।
◾ राष्ट्रपति की क्षमादान की शक्ति का विस्तार पूरे भारत में होता है जबकि राज्यपाल का क्षेत्राधिकार राज्यों तक सीमित होता है।
हालांकि याद रखिए कि क्षमादान का उद्देश्य न केवल किसी व्यक्ति को दंड या अपराध के दंडात्मक परिणामों से मुक्त करना है बल्कि नागरिक अयोग्यताओं से भी मुक्त करना है।
उदाहरण के लिए, दोषसिद्धि के बाद अगर किसी ने अपनी नौकरी या पद खोया है तो उसे भी लौटाया जाता है, ताकि व्यक्ति को उसी स्थिति में रखा जा सके जैसे कि उसने कभी भी अपराध ही नहीं हो।
◾ राष्ट्रपति और राज्यपाल की क्षमादान की शक्तियों में अंतर होता है, क्या होता है इसे आगे समझाया गया है। दोनों पर अलग से लेख भी उपलब्ध है जिसे आप चाहे तो पढ़ सकते हैं;
⚫ अनुच्छेद 161 – राज्यपाल की क्षमादान की शक्ति |
⚫ अनुच्छेद 72 – राष्ट्रपति की क्षमादान की शक्ति |
¦ राष्ट्रपति की क्षमादान करने की शक्ति (President’s pardoning power):

अनुच्छेद 72(1) के तहत राष्ट्रपति को किसी अपराध के लिए दोषसिद्ध व्यक्ति के दंडादेश (Sentence) को निलंबित, माफ या परिवर्तित कर सकने की शक्ति दी गई है। राष्ट्रपति इस प्रकार के निर्णय लेने को स्वतंत्र होता है।
संविधान के अनुच्छेद 72(1) में राष्ट्रपति को उन व्यक्तियों को क्षमा करने की शक्ति प्रदान की गयी है, जो निम्नलिखित मामलों में किसी अपराध के लिए दोषी करार दिये गए हैं:-
1. संघीय विधि के विरुद्ध किसी अपराध में दिये गए दंड में,
2. सैन्य न्यायालय द्वारा दिये गए दंड में, और:
3. यदि दंड का स्वरूप मृत्युदंड हो।
राष्ट्रपति की क्षमादान शक्ति न्यायपालिका से स्वतंत्र है। वह एक कार्यकारी शक्ति है परंतु राष्ट्रपति इस शक्ति का प्रयोग करने के लिए किसी न्यायालय की तरह पेश नहीं आता।
राष्ट्रपति को यह शक्ति देने का मुख्यतः दो कारण है: –
1. विधि के प्र्योग में होने वाली न्यायिक गलती को सुधारने के लिए,
2. यदि राष्ट्रपति दंड का स्वरूप अधिक कड़ा समझता है तो उसका बचाव प्रदान करने के लिए।
Q. अनुच्छेद 72 के तहत राष्ट्रपति क्षमादान के संदर्भ में क्या-क्या कर सकता है?
अनुच्छेद 72(1) के तहत राष्ट्रपति अपराधी सिद्ध हो चुके किसी व्यक्ति के दंड को क्षमा, उसका प्रविलंबन, विराम या परिहार कर सकता है अथवा दंड के उस आदेश का निलंबन, परिहार या लघुकरण कर सकता है। आइये समझते हैं;-
1. क्षमा (Pardon) — इसमें दंड और बंदीकरण (imprisonment) दोनों को हटा दिया जाता है तथा दोषी को सभी दंड (Punishment), दंडदेशों (Penalties) और निर्रहता (Disqualification) से पूर्णत: मुक्त कर दिया जाता है।
कुल मिलाकर कहने का अर्थ यह है कि राष्ट्रपति, किसी दोषी की दोषसिद्धि (Conviction) और सजा (Punishment) दोनों को माफ कर सकता है। यहाँ तक कि राष्ट्रपति कोर्ट-मार्शल द्वारा दोषी ठहराए गए व्यक्ति को या मौत की सजा प्राप्त व्यक्ति को भी माफ कर सकता है।
2. प्रविलंबन (Reprieve) — इसका अर्थ है किसी दंड विशेषकर मृत्यु दंड पर अस्थायी रोक लगाना या टाल देना। इसका उद्देश्य, दोषी व्यक्ति को क्षमा याचना अथवा दंड के स्वरूप परिवर्तन की याचना के लिए समय देना है।
दूसरे शब्दों में कहें तो राष्ट्रपति किसी दोषी को अस्थायी अवधि के लिए सजा से मुक्त कर सकता है।
3. विराम (Respite) — इसका आशय “राहत” देने से है। यह राहत सजा देने में देरी करके दी जा सकती है। हालांकि याद रखिए कि सजा की प्रकृति में कोई बदलाव नहीं किया जाता है।
दूसरे शब्दों में कहें तो इसका अर्थ है किसी दोषी को मूल रूप में दी गयी सजा को किन्ही विशेष परिस्थिति में Postpone करना या घटा देना, जैसे – शारीरिक अपंगता अथवा महिलाओं को गर्भावस्था की अवधि के कारण।
4. परिहार (Remissions) — परिहार का मतलब है, दंड के प्रकृति में परिवर्तन किए बिना उसकी अवधि कम करना। उदाहरण के लिए दो वर्ष के कठोर कारावास को एक वर्ष के कठोर कारावास में परिहार करना। यानि कि अगर कारावास की प्रकृति कठोर है तो वो कठोर ही रहता है।
5. लघुकरण (Commute) — इसका अर्थ है कि दंड के स्वरूप को बदलकर कम करना। या सज़ा के एक रूप को दूसरे रूप से प्रतिस्थापित कर देना।
उदाहरण के लिए, कठोर कारावास को साधारण कारावास में बदला जा सकता है। मृत्युदण्ड का लघुकरण कर कठोर कारावास में परिवर्तित करना।
¦ राष्ट्रपति की क्षमायाचना से जुड़ी याद रखने योग्य बातें
1. अनुच्छेद 72 के तहत राष्ट्रपति को प्राप्त क्षमादान की शक्ति इस अनुच्छेद के अधीन एक कार्यपालक शक्ति है और उसका प्रयोग केंद्र सरकार की सलाह पर किया जाएगा।
2. क्षमा की याचना करने वाले को राष्ट्रपति के समक्ष मौखिक सुनवाई का कोई अधिकार नहीं है।
3. न्यायालय इस अनुच्छेद के अधीन राष्ट्रपति की शक्ति के विस्तार पर विचार कर सकता है किन्तु राष्ट्रपति के डिसिजन के क्वालिटी पर विचार नहीं कर सकता। राष्ट्रपति का निर्णय न्यायालय के निर्णय से भिन्न हो सकता है।
◾ अनुच्छेद 72(2) के तहत यह व्यवस्था किया गया है कि खंड (1) के उपखंड (क) की कोई बात संघ के सशस्त्र बलों के किसी आफिसर की सेना न्यायालय द्वारा पारित दंडादेश के निलंबन, परिहार या लघुकरण की विधि द्वारा प्रदत्त शक्ति पर प्रभाव नहीं डालेगी। यानि कि सैन्य न्यायालय भी निलंबन, परिहार या लघुकरण कर सकती है।
◾ अनुच्छेद 72(3) (3) के तहत यह व्यवस्था किया गया है कि खंड (1) के उपखंड (ग) की कोई बात उस समय लागू किसी विधि के अधीन किसी राज्य के राज्यपाल द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले मृत्यु दंडादेश के निलंबन, परिहार या लघुकरण की शक्ति पर प्रभाव नहीं डालेगी।
कहने का अर्थ है कि राज्यपाल भी राज्य विधि के तहत किसी अपराध मे सजा प्राप्त व्यक्ति को क्षमादान कर सकता है या दंड को स्थगित कर सकता है।
लेकिन याद रखिए कि राज्यपाल मृत्युदंड की सजा को माफ नहीं कर सकता, चाहे किसी को राज्य विधि के तहत मौत की सजा मिली भी हो। उस व्यक्ति को राज्यपाल की बजाए राष्ट्रपति से क्षमा याचना करनी होगी। लेकिन राज्यपाल इसे स्थगित कर सकता है। या पुनर्विचार के लिय कह सकता है।
इसके अलावा राज्यपाल को कोर्ट मार्शल (सैन्य अदालत) के तहत सजा प्राप्त व्यक्ति की सजा माफ करने की कोई शक्ति प्राप्त नहीं है।
Q. क्षमादान या दया याचिका पर विचार करने के लिए राष्ट्रपति किन बातों का ध्यान रखना होता है?
हालांकि राष्ट्रपति द्वारा इस शक्ति का प्रयोग दुर्लभतम मामलों में ही किया जाता है, फिर भी राष्ट्रपति कुछ बातों का ध्यान रखना होता है।
क्षमादान की शक्ति का प्रयोग राष्ट्रपति द्वारा किसी अपराध के दोषी व्यक्तियों पर किया जा सकता है, न कि विचाराधीन (Undertrial) व्यक्तियों पर।
- व्यक्ति को दोषी ठहराए जाने के बाद क्षमादान दिया जा सकता है।
- उच्च न्यायालय में अपील के लंबित रहने के दौरान क्षमा प्रदान की जा सकती है, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय में अपील के लंबित रहने के दौरान सजा को निलंबित नहीं किया जा सकता है।
आमतौर पर राष्ट्रपति दया याचिका पर विचार करते समय विभिन्न कारकों को ध्यान में रखता है (या उसे रखना चाहिए), जैसे:
- कैदी की उम्र
- कारावास की अवधि और शेष अवधि
- कैदी का स्वास्थ्य
- समाज के हित
- जेल रिकॉर्ड
- अपराध की गंभीरता
कुछ ऐसे मामले भी हैं जो कि राष्ट्रपति की क्षमादान की शक्तियों को विस्तार देता है;
Powers | Cases |
---|---|
राष्ट्रपति के पास संविधान के तहत आपराधिक मामले के रिकॉर्ड पर साक्ष्य की जांच करने और न्यायालय से भिन्न परिणाम तक पहुंचने का अधिकार है, लेकिन यह अदालत के रिकॉर्ड में संशोधन, संशोधन या प्रतिस्थापन नहीं करता है। | Kehar Singh And Anr. Etc vs Union Of India And Anr on 16 December, 1988 |
न्यायालय ने माना कि, उपयुक्त मामलों में, राष्ट्रपति के पास अदालत द्वारा जारी किसी भी सजा को छोटी सजा में बदलने का अधिकार है। अदालतों ने आम तौर पर इस विचार को बरकरार रखा है कि किसी व्यक्ति को आवश्यकता से अधिक समय तक जेल में रखना न केवल उसके लिए भयानक है, बल्कि पैसे की बर्बादी और समुदाय को नुकसान भी है। | Kuljit Singh Alias Ranga vs Lt. Governor Of Delhi & Ors on 20 January, 1982 |
यह एक सुस्थापित सिद्धांत है कि क्षमादान शक्तियों के प्रयोग की सीमित न्यायिक समीक्षा सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के लिए उपलब्ध है। राष्ट्रपति या राज्यपाल द्वारा क्षमादान दिए जाने को निम्नलिखित आधारों पर चुनौती दी जा सकती है: ◾ यह आदेश बिना दिमाग लगाए पारित कर दिया गया है। ◾ आदेश दुर्भावनापूर्ण है। ◾ यह आदेश अप्रासंगिक या पूरी तरह से अप्रासंगिक विचारों पर पारित किया गया है। ◾ प्रासंगिक सामग्री को विचार से बाहर रखा गया है। | Epuru Sudhakar & Anr vs Govt. Of A.P. & Ors on 11 October, 2006 |
⚫ अनुच्छेद 71 ⚫ अनुच्छेद 73 |
¦ राज्यपाल की क्षमादान की शक्ति (Pardoning Power of the Governor):
जहां भारतीय संविधान का अनुच्छेद 72 राष्ट्रपति के लिए क्षमादान की व्यवस्था करता है वहीं अनुच्छेद 161 राज्यपाल के लिए क्षमादान की व्यवस्था करता है।
हालाँकि, राज्यपाल के पास ऐसी शक्ति का प्रयोग करने का अधिकार केवल तभी होता है जब विचाराधीन अपराध उस कानून से संबंधित हो जिस तक राज्य की कार्यकारी शक्ति का विस्तार होता है।
उदाहरण के लिए, राज्यपाल के पास भारतीय दंड संहिता की धारा 489ए-डी के तहत किए गए अपराध के लिए सजा को माफ करने, निलंबित करने या कम करने की शक्ति नहीं है, क्योंकि यह “मुद्रा और बैंक” से संबंधित है। और “मुद्रा और बैंक” केंद्रीय विषय है।
राष्ट्रपति की तरह राज्यपाल को भी क्षमादान की शक्ति प्राप्त है, और राज्य के अपने दायरे में रहकर वो भी निम्नलिखित चीज़ें कर सकता है;
1. क्षमा (Pardon) — इसमें दंड और बंदीकरण (imprisonment) दोनों को हटा दिया जाता है तथा दोषी को सभी दंड (Punishment), दंडदेशों (Penalties) और निर्रहता (Disqualification) से पूर्णत: मुक्त कर दिया जाता है।
कुल मिलाकर कहने का अर्थ यह है कि राज्यपाल, किसी दोषी की दोषसिद्धि और सजा दोनों को माफ कर सकता है। हालांकि राज्यपाल कोर्ट-मार्शल द्वारा दोषी ठहराए गए व्यक्ति को या मौत की सजा प्राप्त व्यक्ति को माफ नहीं कर सकता है।
2. प्रविलंबन (Reprieve) — इसका अर्थ है किसी दंड विशेषकर मृत्यु दंड पर अस्थायी रोक लगाना या टाल देना। इसका उद्देश्य, दोषी व्यक्ति को क्षमा याचना अथवा दंड के स्वरूप परिवर्तन की याचना के लिए समय देना है।
दूसरे शब्दों में कहें तो राज्यपाल किसी दोषी को अस्थायी अवधि के लिए सजा से मुक्त कर सकता है।
3. विराम (Respite) — इसका आशय “राहत” देने से है। यह राहत सजा देने में देरी करके दी जा सकती है। हालांकि याद रखिए कि सजा की प्रकृति में कोई बदलाव नहीं किया जाता है।
दूसरे शब्दों में कहें तो इसका अर्थ है किसी दोषी को मूल रूप में दी गयी सजा को किन्ही विशेष परिस्थिति में Postpone करना या कम करना, जैसे – शारीरिक अपंगता अथवा महिलाओं को गर्भावस्था की अवधि के कारण।
4. परिहार (Remissions) — परिहार का मतलब है, दंड के प्रकृति में परिवर्तन किए बिना उसकी अवधि कम करना। उदाहरण के लिए दो वर्ष के कठोर कारावास को एक वर्ष के कठोर कारावास में परिहार करना। यानि कि अगर कारावास की प्रकृति कठोर है तो वो कठोर ही रहता है।
5. लघुकरण (Commute) — इसका अर्थ है कि दंड के स्वरूप को बदलकर कम करना। उदाहरण के लिए, मृत्युदण्ड का लघुकरण कर कठोर कारावास में परिवर्तित करना। कहने का अर्थ है कि राज्यपाल मौत की सजा को माफ तो नहीं कर सकता है लेकिन उसका लघुकरण जरूर कर सकता है। साथ ही विराम (Respite) या प्रविलंबन (Reprieve) भी कर सकता है।
कुछ ऐसे मामले भी हैं जो कि राज्यपाल की क्षमादान की शक्तियों को विस्तार देता है;
Powers | Cases |
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राज्यपाल राजनीतिक या गैर-राजनीतिक अपराधों के आरोप में दोषी ठहराए गए या विचाराधीन कैदियों को माफी या सामान्य क्षमा प्रदान कर सकता है। | Maddela Yerra Channugadu vs Unknown on 11 February, 1954 |
राज्यपाल, सजा सुनाने वाले अदालत के फैसले के बावजूद ऐसी सज़ा माफ कर सकता है जिससे अभियुक्त को सज़ा भुगतने से छूट मिल जाए। | Hukam Singh vs The State Of Punjab And Ors. on 12 November, 1974 |
राज्यपाल किसी सजा के निष्पादन को अस्थायी अवधि के लिए स्थगित कर सकता है। | K.M. Nanavati vs The State Of Bombay on 5 September, 1960 |
¦ राष्ट्रपति और राज्यपाल की क्षमादान शक्तियों की तुलना (Comparison of the pardoning powers of the President and the Governor):
1. राष्ट्रपति केन्द्रीय विधि के विरुद्ध किसी अपराध के लिए दोष सिद्ध ठहराए गए किसी व्यक्ति के दंड को क्षमा, उसक प्रतिलंबन, विराम अथवा दंडादेश का निलंबन, परिहार या लघुकरण कर सकता है। |
राज्यपाल राज्य विधि के तहत किसी अपराध मे सजा प्राप्त व्यक्ति को वह क्षमादान कर सकता है या दंड को स्थगित कर सकता है। |
2. राष्ट्रपति सजा-ए मौत को क्षमा कर सकता है, कम कर सकता है या स्थगित कर सकता है या बदल सकता है। एकमात्र उसे ही यह अधिकार है कि वह मृत्युदंड की सजा को माफ कर दे। |
राज्यपाल मृत्युदंड की सजा को माफ नहीं कर सकता, चाहे किसी को राज्य विधि के तहत मौत की सजा मिली भी हो। उस व्यक्ति को राज्यपाल की बजाए राष्ट्रपति से क्षमा याचना करनी होगी। लेकिन राज्यपाल इसे स्थगित कर सकता है। या पुनर्विचार के लिय कह सकता है। |
3. राष्ट्रपति कोर्ट मार्शल (सैन्य अदालत) के तहत सजा प्राप्त व्यक्ति की सजा माफ कर सकता है, कम कर सकता है या बदल सकता है। |
राज्यपाल को कोर्ट मार्शल (सैन्य अदालत) के तहत सजा प्राप्त व्यक्ति की सजा माफ करने की कोई शक्ति प्राप्त नहीं है। |
4. राष्ट्रपति को क्षमादान की शक्ति अनुच्छेद 72 से मिलती है। |
वहीं राज्यपाल को क्षमादान की शक्ति अनुच्छेद 161 से मिलती है। |
Important FAQs
Q. भारत में अगर राष्ट्रपति किसी मौत की सज़ा को माफ़ कर देता है तो क्या राष्ट्रपति के उस फैसले को कोई चुनौती दे सकता है? क्या वह मामला सुप्रीम कोर्ट में दोबारा खोला जा सकता है?
उत्तर: हालाँकि राष्ट्रपति की क्षमादान शक्ति न्यायिक समीक्षा के अधीन है। फिर भी राष्ट्रपति के निर्णय को कोई भी चुनौती नहीं दे सकता है, क्योंकि राष्ट्रपति यह बताने के लिए बाध्य नहीं है कि उनका निर्णय किस आधार पर लिया गया।
हालांकि यदि यह पाया जाता है कि राष्ट्रपति ने अपनी क्षमादान शक्ति का मनमाने ढंग से या अनुचित तरीके से उपयोग किया है तो मामले को सर्वोच्च न्यायालय में फिर से खोला जा सकता है।
Q. भारत के राष्ट्रपति की क्षमादान शक्ति, न्यायिक शक्ति है या कार्यकारी शक्ति?
उत्तर: राष्ट्रपति की क्षमादान शक्ति एक कार्यकारी शक्ति (Executive Power) है क्योंकि यह संविधान के अनुच्छेद 72 में निहित है और यह अनुच्छेद संविधान के भाग V के अंतर्गत निहित है: जिसका शीर्षक कार्यपालिका है। साथ ही, राष्ट्रपति संघ का कार्यकारी प्रमुख होता है, इसलिए यह क्षमा करने की शक्ति कार्यकारी शक्ति है।
Q. क्या अनुच्छेद 72 के तहत भारत के राष्ट्रपति की शक्ति एक विवेकाधीन शक्ति (discretionary power) है या क्या उन्हें मंत्रिपरिषद द्वारा दी गई सलाह के अनुसार कार्य करने की आवश्यकता है?
उत्तर: राष्ट्रपति अपनी क्षमादान शक्ति का प्रयोग अपनी इच्छानुसार नहीं कर सकता। उन्हें गृह मंत्री और मंत्रिपरिषद द्वारा दी गई सलाह को अवश्य ध्यान में रखना होता है।
क्षमा करने की शक्ति कार्यपालिका द्वारा राष्ट्रपति को दी गई सलाह पर निर्भर करती है, जिसे अनुच्छेद 74(1) के प्रावधानों के अधीन ऐसी सलाह के अनुसार कार्य करना चाहिए।
Q. क्षमादान की पूरी प्रक्रिया क्या है, यह कैसे मिलती है?
यह प्रक्रिया संविधान के अनुच्छेद 72 के तहत राष्ट्रपति के पास दया याचिका दायर करने से शुरू होती है। ऐसी याचिका को फिर केंद्र सरकार के गृह मंत्रालय के पास विचार के लिए भेजा जाता है।
उपरोक्त याचिका पर गृह मंत्रालय द्वारा संबंधित राज्य सरकार के परामर्श से चर्चा की जाती है। परामर्श के बाद, गृह मंत्री द्वारा सिफारिशें की जाती हैं और फिर, याचिका राष्ट्रपति को वापस भेज दी जाती है।
Pardoning Power of President and Governor Practice Quiz UPSC
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References,
Original Constitution (Article 72 and 161)
M. Laxmikant (Executive)
https://prepp.in/news/e-492-pardoning-powers-of-president-indian-polity-upsc-notes
https://blog.ipleaders.in/article-72-of-the-indian-constitution/
https://www.livelaw.in/tags/article-72
https://blog.ipleaders.in/article-161-of-the-indian-constitution/#What_is_pardoning_power
https://byjus.com/free-ias-prep/pardoning-power-president/