यह लेख अनुच्छेद 71 (Article 71) का यथारूप संकलन है। आप इसका हिन्दी और इंग्लिश दोनों अनुवाद पढ़ सकते हैं। आप इसे अच्छी तरह से समझ सके इसीलिए इसकी व्याख्या भी नीचे दी गई है आप उसे जरूर पढ़ें।

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अनुच्छेद 71

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📜 अनुच्छेद 71 (Article 71)

1[71. राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के निर्वाचन से संबंधित या संसक्त विषय — (1) राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के निर्वाचन से उत्पन्न या संसक्त सभी शंकाओं और विवादों की जांच और विनिश्चय उच्चतम न्यायालय द्वारा किया जाएगा और उसका विनिश्चय अंतिम होगा।

(2) यदि उच्चतम न्यायालय द्वारा किसी व्यक्ति के राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के रूप में निर्वाचन को शून्य घोषित कर दिया जाता है तो उसके द्वारा, यथास्थिति, राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के पद की शक्तियों के प्रयोग और कर्तव्यों के पालन में उच्चतम न्यायालय के विनिश्चय की तारीख को या उससे पहले किए गए कार्य उस घोषणा के कारण अविधिमान्य नहीं होंगे।

(3) इस संविधान के उपबंधों के अधीन रहते हुए, राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के निर्वाचन से संबंधित या संसक्त किसी विषय का विनियमन संसद विधि द्वारा कर सकेगी।

(4) राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के रूप में किसी व्यक्ति के निर्वाचन को उसे निर्वाचित करने वाले निर्वाचकगण के सदस्यों में किसी भी कारण से विद्यमान किसी रिक्ति के आधार पर प्रश्नगत नहीं किया जाएगा।]
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1. अनुच्छेद 71, संविधान (उनतालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1975 की धारा 2 द्वारा (10-8-1975 से) और तत्पश्चात संविधान (चवालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 10 द्वारा (20-6-1979 से) संशोधित होकर उपरोक्त रूप में आया।
——(अनुच्छेद 71)——-

1[71. Matters relating to, or connected with, the election of a President or Vice-President.—(1) All doubts and disputes arising out of or in connection with the election of a President or Vice-President shall be inquired into and decided by the Supreme Court whose decision shall be final.

(2) If the election of a person as President or Vice-President is declared void by the Supreme Court, acts done by him in the exercise and performance of the powers and duties of the office of President or Vice-President, as the case may be, on or before the date of the decision of the Supreme Court shall not be invalidated by reason of that declaration.

(3) Subject to the provisions of this Constitution, Parliament may by law regulate any matter relating to or connected with the election of a President or Vice-President.

(4) The election of a person as President or Vice-President shall not be called in question on the ground of the existence of any vacancy for whatever reason among the members of the electoral college electing him.]
—————————-
1. Subs. by the Constitution (Thirty-ninth Amendment) Act, 1975, s. 2 (w.e.f 10-8-1975) and further subs. by the Constitution (Forty-fourth Amendment) Act, 1978, s. 10. (w.e.f. 20-6-1979).
——(Article 71)—–

🔍 Article 71 Explanation in Hindi

अनुच्छेद 52 से लेकर 151 तक भारतीय संविधान के भाग 5 के तहत आता है। भाग 5 को 5 अध्यायों में बांटा गया है। इसी का पहला अध्याय है – कार्यपालिका (Executive)

कार्यपालिका के तहत अनुच्छेद 52 से लेकर 78 तक आते हैं। और इस भाग के अंतर्गत संघ के कार्यपालिका की चर्चा की गई है। जिसके तहत राष्ट्रपति (President), उप-राष्ट्रपति (vice president), मंत्रिपरिषद (Council of Ministers) एवं महान्यायवादी (Attorney General) आते हैं।

कार्यपालिका के तहत यहाँ प्रधानमंत्री की चर्चा इसीलिए नहीं की गई है क्योंकि मंत्रिपरिषद का मुखिया ही प्रधानमंत्री होता है।

यहाँ यह याद रखिए कि संविधान के भाग 5 को संघ या The Union के नाम से भी जाना जाता है।

कुल मिलाकर संविधान के भाग 5 के अंतर्गत अनुच्छेद 52 से लेकर अनुच्छेद 151 तक आता है। इस लेख में हम अनुच्छेद 71 को समझने वाले हैं;

अनुच्छेद-39 – भारतीय संविधान
अनुच्छेद-21 – भारतीय संविधान
अनुच्छेद 71 (Article 71)

| अनुच्छेद 71 – राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के निर्वाचन से संबंधित या संसक्त विषय

अनुच्छेद 71(1) राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के निर्वाचन से उत्पन्न या संसक्त सभी शंकाओं और विवादों की जांच और विनिश्चय उच्चतम न्यायालय द्वारा किया जाएगा और उसका विनिश्चय अंतिम होगा।

अनुच्छेद के इस खंड के तहत राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के चुनाव से उत्पन्न विवादों को सुलझाने का अधिकार सुप्रीम कोर्ट को दिया गया है। हालांकि इन्दिरा गांधी की सरकार ने साल 1975 में 39वें संविधान संशोधन की मदद से इस व्यवस्था को बदल दिया था। उन्होने यह व्यवस्था कर दी थी कि अब इस तरह की जांच से संबन्धित विषयों को सुलझाने का अधिकार उस निकाय को होगा जिसे संसद विधि द्वारा बनाएगी।

लेकिन साल 1978 में मोरारजी देसाई की सरकार ने इस व्यवस्था को बदल दिया और उसी स्थिति को बहाल कर दिया जो कि पहले था। यानि कि अनुच्छेद 71(1) वाली स्थिति।

अनुच्छेद 71(2) के तहत व्यवस्था किया गया है कि यदि उच्चतम न्यायालय द्वारा किसी व्यक्ति के राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के रूप में निर्वाचन को शून्य घोषित कर दिया जाता है तो उस अमुक राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के द्वारा जो काम किया गया है वो शून्य नहीं होगा। यानि कि वो लागू रहेगा।

अनुच्छेद 71(3) के तहत यह व्यवस्था किया गया है कि इस संविधान के उपबंधों के अधीन रहते हुए, राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के निर्वाचन से संबंधित किसी विषय का विनियमन (Regulation) संसद विधि द्वारा कर सकेगी।

यानि कि अगर संसद चाहती है कि राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के चुनाव से संबन्धित विषयों को वो विनियमित (Regulate) करें तो वो ऐसा कर सकती है।

अनुच्छेद 71(4) राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के रूप में किसी व्यक्ति के निर्वाचन को उसे निर्वाचित करने वाले निर्वाचकगण के सदस्यों में किसी भी कारण से विद्यमान किसी रिक्ति के आधार पर प्रश्नगत नहीं किया जाएगा।

यह भाग हमेशा से संविधान का हिस्सा नहीं था। इसके पीछे की कहानी भी आपातकाल↗️ से जुड़ी हुई है। विशेष जानकारी के लिए आप उस लेख को पढ़िये। आइये यहाँ संक्षिप्त में समझते हैं;

◾आपातकाल लगा तो जून 1975 में लेकिन जिन कारणों ने एक माहौल सेट किया वो बहुत पहले ही शुरू हो चुका था। कई घटनाएं एक के बाद एक घटती चली गई। उसी में से एक महत्वपूर्ण घटना है नव निर्माण आंदोलन

दिसंबर 1973 में, अहमदाबाद में L. D. College of Engineering के छात्रों ने स्कूल की फीस में बढ़ोतरी के विरोध में हड़ताल की। एक महीने बाद, गुजरात विश्वविद्यालय के छात्रों ने राज्य सरकार को बर्खास्त करने की मांग करते हुए विरोध प्रदर्शन किया। उन्होने इस आंदोलन को ‘नवनिर्माण आंदोलन’ या उत्थान के लिए आंदोलन कहा।

इस समय गुजरात में मुख्यमंत्री चिमनभाई पटेल के नेतृत्व में कांग्रेस का शासन था। जो कि भ्रष्टाचार के कारण ”चिमन चोर” के रूप में जाना जाता था।

छात्र ने सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया और जल्द ही कारखाने के श्रमिकों और समाज के अन्य क्षेत्रों के लोग इसमें शामिल हो गए। पुलिस के साथ झड़पें, बसों और सरकारी कार्यालयों को जलाना और राशन की दुकानों पर हमले रोजमर्रा की घटना बन गया।

फरवरी 1974 तक, केंद्र सरकार को कारवाई करने को मजबूर होना पड़ा। इसने विधानसभा को निलंबित कर दिया और राज्य पर राष्ट्रपति शासन लगा दिया।

◾उस समय राष्ट्रपति थे वी वी गिरि। जो कि 24 अगस्त 1969 से राष्ट्रपति पद पर आसीन थे। यानि कि वी वी गिरि का कार्यकाल 24 अगस्त 1974 को समाप्त हो रहा था।

और नया राष्ट्रपति चुना जाना था। और इसके लिए प्रक्रिया आरंभ की गई लेकिन इस पर सवाल उठने शुरू हुए। ऐसा इसीलिए क्योंकि अनुच्छेद 54 के अनुसार राज्य विधानमंडल के निर्वाचित सदस्य भी राष्ट्रपति चुनाव के निर्वाचक मण्डल में सदस्य होते हैं।

◾गुजरात विधानमंडल तो भंग था ऐसे में बिना पूरे निर्वाचक मण्डल के राष्ट्रपति का चुनाव कैसे हो सकता था। पर चुनाव तो हुआ और नया राष्ट्रपति फकरुद्दीन अली अहमद अपने पद पर आसीन भी हो गए।

लेकिन जब इस चुनाव को चुनौती दी गई तब इंदिरा गांधी ने इसी स्थिति से निपटने के लिए 10 अगस्त 1975 को 39वें संविधान संशोधन की मदद से अनुच्छेद 71(4) के तहत एक व्यवस्था लाया कि राष्ट्रपति का चुनाव किसी भी हालत में नहीं रुकेगा, भले ही राष्ट्रपति को चुनने वाले निर्वाचक मण्डल में से कुछ सदस्य कम हो।

ये व्यवस्था आज भी चल रही है। 2022 के राष्ट्रपति चुनाव को भी देखें तो जम्मू और कश्मीर का विधानमंडल भंग था फिर भी नया राष्ट्रपति चुनकर आया। और ऐसा इसीलिए हो पाया क्योंकि अनुच्छेद 71(4) में इसके बारे में लिखा हुआ है।

राष्ट्रपति चुनाव प्रक्रिया
◾ आपातकाल 1975 : एक कड़वा सच

तो यही है अनुच्छेद 71 (Article 71), उम्मीद है आपको समझ में आया होगा। दूसरे अनुच्छेदों को समझने के लिए नीचे दिए गए लिंक का इस्तेमाल कर सकते हैं।

अनुच्छेद-52 – भारतीय संविधान
अनुच्छेद-31(क) – भारतीय संविधान
अनुच्छेद 71 (Article 71)
FAQ. अनुच्छेद 71 (Article 71) क्या है?

अनुच्छेद 71 के अनुसार, राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के निर्वाचन से उत्पन्न या संसक्त सभी शंकाओं और विवादों की जांच और विनिश्चय उच्चतम न्यायालय द्वारा किया जाएगा और उसका विनिश्चय अंतिम होगा।
विस्तार से समझने के लिए लेख पढ़ें;

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अनुच्छेद 70
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भारतीय संविधान
संसद की बेसिक्स
मौलिक अधिकार बेसिक्स
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अस्वीकरण – यहाँ प्रस्तुत अनुच्छेद और उसकी व्याख्या, मूल संविधान (नवीनतम संस्करण), संविधान पर डी डी बसु की व्याख्या (मुख्य रूप से), एनसाइक्लोपीडिया, संबंधित मूल अधिनियम और संविधान के विभिन्न ज्ञाताओं (जिनके लेख समाचार पत्रों, पत्रिकाओं एवं इंटरनेट पर ऑडियो-विजुअल्स के रूप में उपलब्ध है) पर आधारित है। हमने बस इसे रोचक और आसानी से समझने योग्य बनाने का प्रयास किया है।