यह लेख अनुच्छेद 127 (Article 127) का यथारूप संकलन है। आप इसका हिन्दी और इंग्लिश दोनों अनुवाद पढ़ सकते हैं। आप इसे अच्छी तरह से समझ सके इसीलिए इसकी व्याख्या भी नीचे दी गई है आप उसे जरूर पढ़ें।

पाठकों से अपील 🙏
Bell आइकॉन पर क्लिक करके हमारे नोटिफ़िकेशन सर्विस को Allow कर दें ताकि आपको हरेक नए लेख की सूचना आसानी से प्राप्त हो जाए। साथ ही नीचे दिए गए हमारे सोशल मीडिया हैंडल से जुड़ जाएँ और नवीनतम विचार-विमर्श का हिस्सा बनें;
⬇️⬇️⬇️
Article 127


📜 अनुच्छेद 127 (Article 127) – Original

केंद्रीय न्यायपालिका
127. तदर्थ न्यायाधीशों की नियुक्ति — (1) यदि किसी समय उच्चतम न्यायालय के सत्र को आयोजित करने या चालू रखने के लिए उस न्यायालय के न्यायाधीशों की गणपूर्ति प्राप्त न हो तो 1[राष्ट्रीय न्यायिक नियक्ति आयोग भारत के मुख्य न्यायमूर्ति द्वारा उसे किए गए किसी निर्देश पर, राष्ट्रपति की पूरे सहमति से] और संबंधित उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति से परामर्श करने के पश्चात, किसी उच्च न्यायालय के किसी ऐसे न्यायाधीश से, जो उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त होने के लिए सम्यक्त रूप से अर्हित है और जिसे भारत का मुख्य न्यायमूर्ति नामोदिष्ट करे, न्यायालय की बैठकों में उतनी अवधि के लिए, जितनी आवश्यक हो, तदर्थ न्यायाधीश के रूप में उपस्थित रहने के लिए लिखित रूप में अनुरोध कर सकेगा।

(2) इस प्रकार नामोदिष्ट न्यायाधीश का कर्तव्य होगा कि वह अपने पद के अन्य कर्तव्यों पर पूर्विकता देकर उस समय और उस अवधि के लिए, जिसके लिए उसकी उपस्थिति अपेक्षित है, उच्चतम न्यायालय की बैठकों में, उपस्थित हो और जब वह इस प्रकार उपस्थित होता है तब उसको उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश की सभी अधिकारिता, शक्तियां और विशेषाधिकार होंगे और वह उक्त न्यायाधीश के कर्तव्यों का निर्वहन करेगा।
====================
1. संविधान (निन्यानवेवां संशोधन) अधिनियम, 2014 की धारा 4 द्वारा (13-4-2015 से) “भारत का मुख्य न्यायमूर्ति राष्ट्रपति की पूर्व सहमति से” के स्थान पर प्रतिस्थापित। यह संशोधन सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स ऑन रिकॉर्ड एसोसिएशन बनाम भारत संघ ए.आई.आर. 2016 एस.सी. 117 वाले मामले में उच्चतम न्यायालय के तारीख 16 अक्तूबर, 2015 के आदेश द्वारा अभिखंडित कर दिया गया है।
अनुच्छेद 127

THE UNION JUDICIARY
127. Appointment of ad hoc Judges.— (1) If at any time there should not be a quorum of the Judges of the Supreme Court available to hold or continue any session of the Court, 1[the National Judicial Appointments Commission on a reference made to it by the Chief Justice of India, may with the previous consent of the President] and after consultation with the Chief Justice of the High Court concerned, request in writing the attendance at the sittings of the Court, as an ad hoc Judge, for such period as may be necessary, of a Judge of a High Court duly qualified for appointment as a Judge of the Supreme Court to be designated by the Chief Justice of India.

(2) It shall be the duty of the Judge who has been so designated, in priority to other duties of his office, to attend the sittings of the Supreme Court at the time and for the period for which his attendance is required, and while so attending he shall have all the jurisdiction, powers and privileges, and shall discharge the duties, of a Judge of the Supreme Court.
==============
1. Subs. by the Constitution (Ninety-ninth Amendment) Act, 2014, s. 4, for “the Chief Justice of India may, with the previous consent of the President” (w.e.f. 13-4-2015). This amendment has been struck down by the Supreme Court in the case of Supreme Court Advocates-on-Record Association and another vs. Union of India in its judgment dated 16-10-2015, AIR 2016 SC 117.
Article 127

🔍 Article 127 Explanation in Hindi

अनुच्छेद 52 से लेकर 151 तक भारतीय संविधान के भाग 5 के तहत आता है। भाग 5 को 5 अध्यायों में बांटा गया है। इसी का चौथा अध्याय है – संघ की न्यायपालिका (The Union Judiciary)

न्याय (Justice) एक जटिल और बहुआयामी अवधारणा है जो व्यक्तियों के साथ निष्पक्ष व्यवहार और न्यायपूर्ण समाज के रखरखाव को संदर्भित करता है।

न्याय लोकतंत्र का एक आधारभूत स्तंभ है क्योंकि यह व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा करता है, कानून के शासन को बनाए रखता है, संघर्ष के समाधान की सुविधा देता है और निष्पक्षता और समानता को बढ़ावा देता है। यह लोकतांत्रिक संस्थानों को मजबूत करता है और समाज की समग्र भलाई और स्थिरता में योगदान देता है।

भारत में इसे सुनिश्चित करने के लिए संविधान द्वारा एकीकृत न्यायिक व्यवस्था (Integrated Judiciary System) की शुरुआत की गई है। इस व्यवस्था में उच्चतम न्यायालय सबसे शीर्ष पर आता है, उसके बाद राज्यों उच्च न्यायालय आता है और फिर उसके बाद जिलों का अधीनस्थ न्यायालय

संविधान का भाग 5, अध्याय IV संघीय न्यायालय यानि कि उच्चतम न्यायालय की बात करता है। अनुच्छेद 127 तदर्थ न्यायाधीशों की नियुक्ति (Appointment of ad hoc Judges) के बारे में है।

अनुच्छेद-126- भारतीय संविधान
—————————

| अनुच्छेद 127 – तदर्थ न्यायाधीशों की नियुक्ति

Article 127 तदर्थ न्यायाधीशों की नियुक्ति के बारे में है। तदर्थ (Ad-hoc) का मतलब होता है जब जरूरत है और जब तक के लिए जरूरत है सिर्फ तब तक के लिए। इस अनुच्छेद के कुल दो खंड है, आइये समझते हैं;

अनुच्छेद 127(1) के तहत कहा गया है कि यदि किसी समय उच्चतम न्यायालय के सत्र को आयोजित करने या चालू रखने के लिए उस न्यायालय के न्यायाधीशों की गणपूर्ति प्राप्त न हो तो भारत का मुख्य न्यायमूर्ति, राष्ट्रपति की सहमति से और संबंधित उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति से परामर्श करने के पश्चात, किसी उच्च न्यायालय के किसी ऐसे न्यायाधीश से, जो उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त होने के लिए सम्यक रूप से अर्हित है और जिसे भारत का मुख्य न्यायमूर्ति नामोदिष्ट (Designate) करे, न्यायालय की बैठकों में उतनी अवधि के लिए, जितनी आवश्यक हो, तदर्थ न्यायाधीश के रूप में उपस्थित रहने के लिए लिखित रूप में अनुरोध कर सकेगा।

दरअसल सुप्रीम कोर्ट में जब कभी कोरम पूरा करने में स्थायी न्यायाधीशों की संख्या कम हो रही हो तो भारत का मुख्य न्यायाधीश किसी उच्च न्यायालय के किसी न्यायाधीश को अस्थायी काल के लिए उच्चतम न्यायालय में तदर्थ न्यायाधीश नियुक्ति कर सकता है। लेकिन ऐसा वह संबन्धित उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के परामर्श एवं राष्ट्रपति की पूर्ण मंजूरी के बाद ही कर सकता है।

हालांकि यहाँ यह याद रखें कि इस पद पर नियुक्त व्यक्ति के पास उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश की अर्हता (Qualification) होनी चाहिए।

अनुच्छेद 124 (3) के अनुसार, कोई व्यक्ति उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) का न्यायाधीश तभी बन सकता है जब वो व्यक्ति भारत का नागरिक हो और निम्नलिखित में कोई एक योग्यता हो;

(a) किसी उच्च न्यायालय का या ऐसे दो या अधिक न्यायालयों का लगातार कम से कम पाँच तक न्यायाधीश रहा हो, या 

(b) किसी उच्च न्यायालय का या ऐसे दो या अधिक न्यायालयों का लगातार कम से कम 10 साल तक अधिवक्ता (Advocate) रहा हो, या 

(c) राष्ट्रपति की दृष्टि में सम्मानित व योग्य न्यायवादी (jurist) हो।

यहाँ पर यह याद रखिए कि संविधान में उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश की नियुक्ति के लिए न्यूनतम आयु का उल्लेख नहीं है।

अनुच्छेद 127(2) के तहत बताया गया है कि इस प्रकार नामोदिष्ट न्यायाधीश का कर्तव्य होगा कि वह अपने पद के अन्य कर्तव्यों पर पूर्विकता देकर उस समय और उस अवधि के लिए, जिसके लिए उसकी उपस्थिति अपेक्षित है, उच्चतम न्यायालय की बैठकों में, उपस्थित हो और जब वह इस प्रकार उपस्थित होता है तब उसको उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश की सभी अधिकारिता, शक्तियां और विशेषाधिकार होंगे और वह उक्त न्यायाधीश के कर्तव्यों का निर्वहन करेगा।

तदर्थ न्यायाधीश (Ad-hoc Judge) के पद पर नियुक्त होने वाले व्यक्ति को उसके कार्यकाल के दौरान उच्चतम न्यायलाय के न्यायाधीश की न्यायनिर्णयत, शक्तियाँ और विशेषाधिकार प्राप्त होता है। ऐसे न्यायाधीशों का यह कर्तव्य होता है कि जब भी उसकी उपस्थिति अपेक्षित हो वह उच्चतम न्यायालय की बैठकों में उपस्थित हो।

अनुच्छेद-31- भारतीय संविधान

तो यही है अनुच्छेद 127 (Article 127), उम्मीद है आपको समझ में आया होगा। दूसरे अनुच्छेदों को समझने के लिए नीचे दिए गए लिंक का इस्तेमाल कर सकते हैं।

सवाल-जवाब के लिए टेलीग्राम जॉइन करें; टेलीग्राम पर जाकर सर्च करे – @upscandpcsofficial

| Related Article

अनुच्छेद 128 – भारतीय संविधान
अनुच्छेद- 126 – भारतीय संविधान
—————————
भारतीय संविधान
संसद की बेसिक्स
मौलिक अधिकार बेसिक्स
भारत की न्यायिक व्यवस्था
भारत की कार्यपालिका
—————————–
FAQ. अनुच्छेद 127 (Article 127) क्या है?

Article 127 तदर्थ न्यायाधीशों की नियुक्ति के बारे में है। तदर्थ (Ad-hoc) का मतलब होता है जब जरूरत है और जब तक के लिए जरूरत है सिर्फ तब तक के लिए। इस अनुच्छेद के कुल दो खंड है, आइये समझते हैं;

अस्वीकरण – यहाँ प्रस्तुत अनुच्छेद और उसकी व्याख्या, मूल संविधान (उपलब्ध संस्करण), संविधान पर डी डी बसु की व्याख्या (मुख्य रूप से), प्रमुख पुस्तकें (एम. लक्ष्मीकान्त, सुभाष कश्यप, प्रमोद अग्रवाल इत्यादि) एनसाइक्लोपीडिया, संबंधित मूल अधिनियम और संविधान के विभिन्न ज्ञाताओं (जिनके लेख समाचार पत्रों, पत्रिकाओं एवं इंटरनेट पर ऑडियो-विजुअल्स के रूप में उपलब्ध है) पर आधारित है। हमने बस इसे रोचक और आसानी से समझने योग्य बनाने का प्रयास किया है।