यह लेख अनुच्छेद 51क (Article 51A) का यथारूप संकलन है। आप इसका हिन्दी और इंग्लिश दोनों अनुवाद पढ़ सकते हैं। आप इसे अच्छी तरह से समझ सके इसीलिए इसकी व्याख्या भी नीचे दी गई है आप उसे जरूर पढ़ें। इसकी व्याख्या इंग्लिश में भी उपलब्ध है, इसके लिए आप नीचे दिए गए लिंक का प्रयोग करें;

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Article 51A

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📜 अनुच्छेद 51क (Article 51A)

1[भाग 4क
मूल कर्तव्य
51क. मूल कर्तव्य — भारत के प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि वह –
(क). संविधान का पालन करें और उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्र ध्वज और राष्ट्र गान का आदर करें;
(ख). स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को हृदय में संजोए रखें और उनका पालन करें;
(ग). भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करें और उसे अक्षुण्ण रखें;
(घ). देश की रक्षा करें और आह्वान किए जाने पर राष्ट्र की सेवा करें;
(ङ). भारत के सभी लोगों में समरसता और समान भ्रातृत्व की भावना का निर्वाण करें जो धर्म, भाषा और प्रदेश या वर्ग आधारित सभी भेदभाव से परे हों, ऐसी प्रथाओं का त्याग करें जो स्त्रियॉं के सम्मान के विरुद्ध हैं;
(च). हमारी सामासिक संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का महत्व समझें और उसका परिरक्षण करें;
(छ). प्राकृतिक पर्यावरण की, जिसके अंतर्गत वन, झील, नदी और वन्य जीव हैं, रक्षा करें और उसका संवर्धन करें तथा प्राणि मात्र के प्रति दया भाव रखें;
(ज). वैज्ञानिक दृष्टिकोण मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करें;
(झ). सार्वजनिक संपत्ति को सुरक्षित रखें और हिंसा से दूर रहें;
(ञ). व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर बढ़ने का सतत प्रयास करें जिससे राष्ट्र निरंतर बढ़ते हुए प्रयत्न और उपलब्धि की नई ऊंचाइयों को छू ले;]
2[(ट). यदि माता-पिता या संरक्षक है, छह वर्ष से चौदह वर्ष तक की आयु वाले अपने, यथास्थिति, बालक या प्रतिपाल्य के लिए शिक्षा के अवसर प्रदान करे।]
—————————
1. संविधान (बयालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1976 की धारा 11 द्वारा (3-1-1977 से) अन्तःस्थापित।
2. संविधान (छियासीवां संशोधन) अधिनियम, 2002 की धारा 4 द्वारा (1-4-2010 से) अंतःस्थापित।
—-अनुच्छेद 51क
1[PART IVA
FUNDAMENTAL DUTIES
51A. Fundamental duties. — It shall be the duty of every citizen of India—
(a) to abide by the Constitution and respect its ideals and institutions, the National Flag and the National Anthem;
(b) to cherish and follow the noble ideals which inspired our national struggle for freedom;
(c) to uphold and protect the sovereignty, unity and integrity of India;
(d) to defend the country and render national service when called upon to do so;
(e) to promote harmony and the spirit of common brotherhood amongst all the people of India transcending religious, linguistic and regional or sectional diversities; to renounce practices derogatory to the dignity of women;
(f) to value and preserve the rich heritage of our composite culture;
(g) to protect and improve the natural environment including forests, lakes, rivers and wild life, and to have compassion for living creatures;
(h) to develop the scientific temper, humanism and the spirit of inquiry and reform;
(i) to safeguard public property and to abjure violence;
(j) to strive towards excellence in all spheres of individual and collective activity so that the nation constantly rises to higher levels of endeavour and achievement;]
2[(k) who is a parent or guardian to provide opportunities for education to his child or, as the case may be, ward between the age of six and fourteen years.]
————————————
1. Ins. by the Constitution (Forty-second Amendment) Act, 1976, s. 11 (w.e.f. 3-1-1977)
2. Ins. by the Constitution (Eighty-sixth Amendment) Act, 2002, s. 4 (w.e.f. 1-4-2010)
Article 51A

🔍 Article 51A Explanation in Hindi

एक मौलिक कर्तव्य एक देश के नागरिकों पर लगाया गया एक कानूनी दायित्व है, जैसा कि संविधान या देश के अन्य कानूनों में उल्लिखित है।

मौलिक कर्तव्यों का उद्देश्य नागरिकों को देश के विकास में सक्रिय रूप से भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करना और राष्ट्र के प्रति जिम्मेदारी की भावना को बढ़ावा देना है।

भारत में, मौलिक कर्तव्यों को 1976 के 42वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम के माध्यम से संविधान में जोड़ा गया था। भारत के नागरिकों के मौलिक कर्तव्यों का उल्लेख भारतीय संविधान के भाग IV-A, अनुच्छेद 51A में किया गया है।

ये कर्तव्य कानून द्वारा लागू करने योग्य नहीं हैं लेकिन देश और समाज के लिए प्रत्येक नागरिक का नैतिक दायित्व माना जाता है।

जैसा कि हमने ऊपर समझा, संविधान के भाग 4A के अंतर्गत अनुच्छेद 51क नामक एक अनुच्छेद को अन्तःस्थापित किया गया। और इसी अनुच्छेद को मूल कर्तव्य (fundamental duty) नाम दिया गया।

इसके अंतर्गत 11 मूल कर्तव्यों की सूची दी गई है जिसमें से 10 मूल कर्तव्यों को 42वें संविधान संशोधन अधिनियम 1976 द्वारा अन्तःस्थापित किया गया था और 11वें मूल कर्तव्य को 86वां संविधान संशोधन अधिनियम 2002 के द्वारा।

मूल कर्तव्य अस्तित्व में कैसे आया?

जब संविधान बनाया गया था उस समय मूल कर्तव्य को संविधान का हिस्सा नहीं बनाया गया था। हालांकि राज्य के नीति निदेशक तत्व के रूप में राज्यों के कर्तव्य तय कर दिये गए थे पर विशेष रूप से जनता के लिए कर्तव्य तय नहीं किए गए।

इसकी जरूरत समझी इन्दिरा गांधी की सरकार ने। उन्होने इसके लिए 1976 में एक समिति का गठन किया। ये समिति सरदार स्वर्ण सिंह के अध्यक्षता में बनाया गया था।

इस समिति का काम मूल कर्तव्यों की आवश्यकता एवं प्रावधान आदि सिफ़ारिश करना था। उस समय देश में आपातकाल लगा हुआ था। विपक्ष के सारे बड़े नेता जेल में बंद कर दिये गए थे, प्रेस पर कई प्रकार का प्रतिबंध लगा दिया गया था।

इस समिति ने सिफ़ारिश किया कि संविधान में मूल कर्तव्यों का एक अलग पाठ होना चाहिए। और उन्होने इस बात को भी रेखांकित किया कि नागरिकों को अधिकारों के प्रयोग के अलावा अपने कर्तव्यों को भी निभाना आना चाहिए।

चूंकि सरकार खुद भी यही चाहती थी इसीलिए इस समिति की सफारिशों को मान लिया गया। और 1976 में ही 42वां संविधान संशोधन करके संविधान में एक नया भाग – भाग ‘4क’ को जोड़ा गया।

इसी भाग के अंतर्गत एक अनुच्छेद बनाया गया जिसे कि अनुच्छेद 51क कहा गया। और इसी अनुच्छेद 51क के अंतर्गत मूल कर्तव्यों को वर्णित किया गया।

सरदार स्वर्ण सिंह की समिति ने कुल 8 मूल कर्तव्यों को जोड़ने की सिफ़ारिश की थी लेकिन 2 और कर्तव्य को सरकार ने इसमें शामिल कर दिया और इस तरह से कुल 10 मूल कर्तव्यों को एक संवैधानिक प्रावधान बना दिया गया।

आगे चलकर 2002 में जब अटल बिहारी बाजपेयी की सरकार थी तब इसमें एक और मूल कर्तव्य को जोड़ा गया और इस तरह से आज संवैधानिक रूप से 11 मूल कर्तव्य है जो अस्तित्व में है।

अनुच्छेद-34 – भारतीय संविधान
अनुच्छेद-35 – भारतीय संविधान
—————————

| अनुच्छेद 51क – मूल कर्तव्य

▶ मूल कर्तव्यों की विधिक उपियोगिता राज्य के नीति निदेशक तत्व की तरह ही है। राज्य के नीति निदेशक तत्व राज्य को संबोधित है लेकिन उसे मानने की कोई कानूनी बाध्यता नहीं है और न्यायालय द्वारा प्रवर्तनीय नहीं है।

इसी प्रकार मूल कर्तव्य नागरिकों को संबोधित है किन्तु उसके उल्लंघन पर कोई जुर्माना या सजा नहीं है।

ये बस एक संवैधानिक उम्मीद है जो प्रत्येक नागरिक से की जाती है, इस आधार पर कि अगर भारत के नागरिक मूल अधिकारों का लुत्फ़ उठाते है तो ऐसे में उन्हे यह भी ध्यान रहना चाहिए कि इस देश या राष्ट्र के प्रति उसके कुछ दायित्व भी है। और क्या दायित्व है, इसे ही अनुच्छेद 51क में लिखा गया है।

▶ अगर कोई नागरिक इन कर्तव्यों की अवहेलना करता है तो वह अधिकार पाने के योग्य नहीं है। उदाहरण के लिए अगर कोई व्यक्ति अनुच्छेद 51क(क) के कर्तव्य के उल्लंघन में संविधान को जला देता है तो वह यह नहीं कह सकता है कि उसने अनुच्छेद 19(1) के तहत दिए गए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के तहत ऐसा किया है।

हालांकि ऐसी स्थिति में मूल कर्तव्यों के उल्लंघन पर कोई सजा नहीं दी जा सकती है क्योंकि यह न्यायालय द्वारा प्रवर्तनीय नहीं है। और इसी कारण से मूल कर्तव्यों की काफी आलोचनाएं होती है।

लेकिन अगर राज्य विधि बनाकर इन कर्तव्यों के उल्लंघन में किए गए किसी कार्य या आचरण को प्रतिषिद्ध (prohibit) कर देता है तो न्यायालय इसे युक्तियुक्त निर्बंधन (reasonable restriction) मानेगा।

▶ 1976 में मूल कर्तव्य को लागू करते समय, इसको और ज्यादा प्रभावी और बाध्यकारी बनाने को लेकर भी सिफ़ारिशें आयी थी जैसे कि (1) अगर कोई मूल कर्तव्यों का अनुपालन न करें तो उसे आर्थिक दंड या शारीरिक दंड दिया जाए। (2) कर अदायगी (Tax payment) को नागरिक का मूल कर्तव्य बनाया जाना चाहिए।

इसे संविधान में शामिल तो नहीं किया गया। लेकिन मूल कर्तव्य के असफल रहने रहने पर संसद उनमें उचित अर्थदंड या सजा का प्रावधान कर सकती है।

हालांकि जरूरत पड़ने पर बहुत सारे मूल कर्तव्यों को सपोर्ट देने के लिए कई नियम-अधिनियम आदि बनाए गए हैं। जैसे कि इंडियन फ्लैग कोड को ही लें तो इसे 2002 में जारी किया गया था जिसमें भारतीय झंडे के आदर, सम्मान और झंडे फहराने के नियम आदि को वर्णित किया गया है। आप इसे यहाँ क्लिक करके पढ़ सकते हैं।

▶ इसके अलावे वन्य जीव संरक्षण संरक्षण अधिनियम 1972, वन संरक्षण अधिनियम 1980, सिविल अधिकार संरक्षण अधिनियम 1955, राष्ट्रीय गौरव अपमान अधिनियम 1971 आदि को देखें तो ये मूल कर्तव्यों को और भी जरूरी बनाती है।

मूल कर्तव्यों की विशेषताएं

▶ इसमें से कुछ कर्तव्य नैतिक किस्म के हैं जिसमें बाह्य तौर पर कुछ भी नहीं करना है बस अपने नैतिकता के प्रतिमानों को उस हिसाब से ढालना है। उदाहरण के लिए आप दूसरे नंबर के कर्तव्य को देखिए।

▶ इसी प्रकार से कुछ कर्तव्य ऐसे है जिसमें जरूरत पड़ने पर कुछ करने का भाव है। उदाहरण के लिए आप कर्तव्य नंबर 4, 6, 7, 9 आदि को देख सकते हैं।

▶ मूल कर्तव्य गैर-न्यायोचित है, यानी कि इसके हनन पर न्यायालय इसे क्रियान्वित नहीं करवा सकता है।

▶ मूल कर्तव्य केवल देश के नागरिकों पर लागू होता है।

▶ मूल कर्तव्यों को भारतीय परंपरा, पौराणिक कथाओं, धर्म आदि के अनुरूप ही बनाया गया है ताकि ये आसानी से लोगों के जीवन का हिस्सा बन जाये।

[Article 51A] मूल कर्तव्यों का महत्व

▶ ये एक सचेतक के रूप में काम करता है। यानी कि जब भी हम मूल अधिकारों का इस्तेमाल करते हैं तो हमें ये याद दिलाता है कि देश के प्रति हमारा कुछ कर्तव्य भी है और हमें उसका भी निर्वहन करना चाहिए।

▶ मूल कर्तव्य हमें राष्ट्र विरोधी काम करने से रोकने का काम करता है। जैसे कि राष्ट्र ध्वज को जलाना, सार्वजनिक संपत्ति को नष्ट करना आदि।

▶ मूल कर्तव्य हम में प्रेरणा की भावना को बलवती करता है और ये हमें एहसास दिलाता है कि ये देश हमारा है और देश को गढ़ने में हमारा भी योगदान मायने रखता है।

हालांकि कर्तव्यों की सूची अधूरी मानी जाती है क्योंकि इसमें बहुत सारे अन्य कर्तव्यों को शामिल नहीं किया गया है जैसे कि – मतदान, टैक्स आदायगी, परिवार नियोजन आदि।

1976 में स्वर्ण सिंह समिति ने कर आदायगी को भी मूल कर्तव्य बनाने की बात सरकार के सामने रखी थी लेकिन उसे श्रीमती गांधी ने शामिल नहीं किया।

कुल मिलाकर मूल कर्तव्य आज अस्तित्व में है और आमतौर पर सभी सरकारी टेक्स्ट बुक में शुरुआती पन्नों में इसे लिखा जाता है ताकि सभी इसे पढ़ सके और समझ सके कि इस देश के प्रति हमारे कुछ कर्तव्य भी है।

तो कुल मिलाकर यही है अनुच्छेद 51क (Article 51A), उम्मीद है आपको समझ में आया होगा। दूसरे अनुच्छेदों को समझने के लिए नीचे दिए गए लिंक का इस्तेमाल कर सकते हैं।

अनुच्छेद-31(ख) – भारतीय संविधान
अनुच्छेद-31(क) – भारतीय संविधान
—–Article 51A——
मूल कर्तव्य (Article 51A) क्या है?

एक मौलिक कर्तव्य एक देश के नागरिकों पर लगाया गया एक कानूनी दायित्व है, जो कि आमतौर पर संविधान या देश के अन्य कानूनों में उल्लिखित होता है। भारत के संविधान में मूल कर्तव्य को साल 1976 में जोड़ा गया।
विस्तार से समझने के लिए लेख पढ़ें;

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————-अनुच्छेद 51————–
भारतीय संविधान
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——Article 51A——–
अस्वीकरण - यहाँ प्रस्तुत अनुच्छेद और उसकी व्याख्या, मूल संविधान (नवीनतम संस्करण), संविधान पर डी डी बसु की व्याख्या (मुख्य रूप से) और संविधान के विभिन्न ज्ञाताओं (जिनके लेख समाचार पत्रों, पत्रिकाओं एवं इंटरनेट पर ऑडियो-विजुअल्स के रूप में उपलब्ध है) पर आधारित है। हमने बस इसे रोचक और आसानी से समझने योग्य बनाने का प्रयास किया है।