इस लेख में हम राज्य के नीति निदेशक तत्व (Directive Principles of State Policy) पर सरल और सहज चर्चा करेंगे एवं इसके विभिन्न पहलुओं को समझने की कोशिश करेंगे,

तो अच्छी तरह से समझने के लिए लेख को अंत तक जरूर पढ़ें, और साथ ही संबंधित अन्य लेखों को भी पढ़ें – मौलिक अधिकार +

अगर एक मार्गदर्शक हो तो मंजिल पर पहुँचना आसान हो जाता है और सबसे बड़ी बात कि हमें ये पता होता है कि कहाँ नहीं जाना है। नीति निदेशक तत्व एक संवैधानिक मार्गदर्शक है जो नीति-नियंताओं को मार्गदर्शित करता है।

राज्य के नीति निदेशक तत्व
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राज के नीति निदेशक तत्व क्या है और क्यों है?

राज्य के नीति निदेशक तत्व (Directive Principles of State Policy) का शाब्दिक अर्थ है – राज्य के नीति को निर्देशित करने वाले तत्व।

जब संविधान बनाया गया था उस समय लोगों को शासन करने का और देशहीत में कानून बनाने का कोई तजुर्बा नहीं था। खासकर के राज्यों के लिए जो कि एक लंबे औपनिवेशिक काल के बाद शासन संभालने वाले थे।

और जैसा कि हम जानते है कि हमारे देश में राजनेताओं के लिए पढ़ा-लिखा होना कोई अनिवार्य नहीं है, ऐसे में जब वे देश या राज्य का सत्ता संभालेंगे और जनहित में कानून बनाएँगे तो हो सकता है वो देशहित में कम और व्यक्ति हित में ज्यादा हो।

संविधान सभा के बुद्धिजीवी (Intellectual) और दूरदर्शी (Visionary) सदस्यों ने ये पहले ही भांप लिया था इसीलिए उन्होने राज्य के नीति निदेशक तत्व जैसे क्लॉज़ को जोड़ा ताकि, जब भी राज्य कोई कानून बनाए तो ये निदेशक तत्व एक गाइड की तरह काम करें और नीति-नियंताओं को सही रास्ता दिखाएं

दूसरी बात ये थी कि सारे क़ानूनों को उसी समय लागू करने और उसका क्रियान्वयन कराने के लिए देश के पास उतना वित्तीय संसाधन उपलब्ध नहीं था। क्योंकि कई क़ानूनों के तहत संस्थान या प्रशासनिक इकाईयों आदि की स्थापना करनी पड़ती है। और देश की हालत उस समय बहुत ख़स्ता था।

तीसरी बात ये थी कि देश अभी-अभी आजाद हुआ ही था। उसको अपने पैरों पर खड़े करने की चुनौती थी वही देश में व्यापक विविधता एवं पिछड़ापन एवं अशिक्षा था। ऐसे में आम लोगों को तो ये तक पता नहीं था कि उसके अधिकार क्या-क्या है या फिर कौन से अधिकार है जो उसे मिलना ही चाहिए।

इस स्थिति में अगर सारे क़ानूनों को लागू कर दिया जाता तो, कार्यपालिका और न्यायपालिका पर और भी दबाव आ जाता और इसके क्रियानन्वयन करने में बहुत बाधाएँ आती। 

इसीलिए यही ठीक समझा गया कि इस तरह के प्रावधानों को राज्य के नीति निदेशक तत्व बना दिया जाये ताकि भविष्य में जैसे-जैसे इनके लिए क़ानूनों की जरूरत पड़ती जाएगी वैसे-वैसे इसे लागू किया जा सके।

◾ ऐसा नहीं था कि DPSP कोई नया विचार था बल्कि आयरलैंड में तो ये काम भी कर रहा था और हमने इसे वहीं से लिया। ◾ इसका उल्लेख हमारे संविधान के भाग 4 के अनुच्छेद 36 से अनुच्छेद 51 तक में किया गया है।

नीति निदेशक तत्वों की विशेषताएं

◾ राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों के माध्यम से, आर्थिक और सामाजिक, राजनीतिक और प्रशासनिक, न्याय और कानूनी, पर्यावरण, स्मारकों की सुरक्षा, शांति और सुरक्षा; जैसे क्षेत्रों से संबन्धित कुछ बेहतरीन सिद्धांतों को इसमें शामिल किया गया है जो कि कल्याणकारी राज्य (Welfare state) की स्थापना पर बल देता है।

कल्याणकारी राज्य (Welfare state) – इसका आशय ऐसे राज्य से है जो नागरिकों के आर्थिक और सामाजिक कल्याण का संरक्षण एवं संवर्धन (Promotion) करता है। ये समान अवसर, धन का समतापूर्वक वितरण, उचित न्याय आदि के सिद्धांतों पर आधारित होता है।

◾ राज्य का नीति निदेशक तत्व एक ऐसी सामाजिक-आर्थिक स्थिति को लाना चाहता है जहां नागरिक एक अच्छा जीवन जी सके।

◾ स्वतंत्रता मिलते ही राजनैतिक लोकतंत्र की स्थापना तो हो गई पर DPSP सामाजिक-आर्थिक लोकतंत्र स्थापित करने पर बल देता है।

सामाजिक-आर्थिक लोकतंत्र का मोटे तौर पर मतलब यही है कि व्यावहारिक रूप में नागरिकों को समान अवसर मिलना एवं समाज में धन या संपत्ति का समतापूर्वक वितरण आदि।

◾ DPSP, गैर-प्रवर्तनीय (Non enforceable) है यानी कि इसका एक अधिकार के तौर पर दावा नहीं किया जा सकता और न्यायालय से इसे लागू कराने की मांग नहीं की जा सकती लेकिन राज्य के ऊपर ये एक कर्तव्य आरोपित करता है कि राज्य अपने नीतियों में इन सिद्धांतों का अवश्य ध्यान रखेगा।

यहाँ तक कि न्यायालय को भी किसी फैसले को सुनाते समय इन सिद्धांतों का ध्यान रखना पड़ता है। इसीलिए DPSP ने कई बार न्यायालय के समक्ष चुनौती पेश की और इसकी परिणति हमें कई मामलों में देखने को मिलती है, जैसे कि गोलकनाथ मामला, केशवानन्द भारती मामला, मिनर्वा मिल्स मामला इत्यादि।

राज्य के नीति निदेशक तत्व के प्रावधान

अनुच्छेद 36 – परिभाषा

अनुच्छेद 36 में लिखा है कि यहाँ राज्य का मतलब वहीं है जो भाग 3 में अनुच्छेद 12 में है।

चूंकि इसका शीर्षक ही है राज्य के नीति निर्देशक तत्व यानि कि इसमें भी राज्य शब्द आता है, तो अनुच्छेद 36 में कहा गया है कि राज्य का मतलब यहाँ वहीं है जो मूल अधिकारों वाले भाग के अनुच्छेद 12 में वर्णित है। मतलब कि यहाँ इसे ऐसे समझिए कि अनुच्छेद 12 = अनुच्छेद 36। अब अगर आपको ये नहीं पता कि अनुच्छेद 12 में राज्य का मतलब क्या है, तो आप दिए गए लेख को पढ़ लें – मौलिक अधिकार – अनुच्छेद 12 और 13 सहित

अनुच्छेद 37 – इस भाग में अंतर्विष्ट (Included) तत्वों का लागू होना

अब जैसा कि हम जानते है DPSP, मौलिक अधिकार की तरह बाध्यकारी नहीं है। ये तो बस एक सिफ़ारिश है न की कोई ऐसा कानून जो बाध्यकारी हो।

तो अनुच्छेद 37 में यही कहा गया है कि भले ही ये कोई बाध्यकारी कानून नहीं है पर राज्यों का ये कर्तव्य होगा कि इसे लागू करें। 

राज्य के नीति निदेशक तत्वों का वर्गीकरण

DPSP के वर्गीकरण के कई आधार हो सकते हैं जैसे कि आर्थिक और सामाजिक, राजनीतिक और प्रशासनिक, न्याय और कानूनी, पर्यावरण, शांति और सुरक्षा आदि। हालांकि आमतौर पर अनुच्छेद 38 से लेकर 51 तक जो निदेशक तत्वों की चर्चा की गयी है उसे मुख्य रूप से तीन बड़े भागों में बांट कर देखा जाता है –

पहलासमाजवादी सिद्धान्त वाले निदेशक तत्व (Directive Principles with Socialist Principles),

दूसरागांधीवादी सिद्धांत वाले निदेशक तत्व (Directive Principles with Gandhian principles),

तीसराउदार बौद्धिक सिद्धांत वाले निदेशक तत्व (Directive Principles with liberal intellectual theory)।

आइये एक-एक करके इन तीनों को समझते हैं।

1. समाजवादी सिद्धान्त वाले निदेशक तत्व

समाजवाद (Socialism) – ऐसा सिद्धान्त जिसमें निजी संपत्ति एवं संसाधनों के निजी स्वामित्व की जगह पर पूरे समाज को वरीयता दी जाए।

समाजवादी दृष्टिकोण से देखें तो कोई भी व्यक्ति बिना समाज के सहयोग के अकेला रह और काम नहीं कर सकता है इसीलिए इस विचारधारा का मूल तत्व यही है कि उत्पादन (production) पर पूरे समाज का हक हो न कि किसी व्यक्ति का।

इस तरह से ये संपत्ति पर सामाजिक नियंत्रण स्थापित करके समाज के सभी व्यक्तियों का भला करने पर आधारित है। राज्य के संबंध में इसकी बात करें तो राज्य उत्पादन एवं वितरण के साधनों का राष्ट्रीयकरण करके समाजवाद स्थापित करने की कोशिश करता है। जैसे कि 1991 से पहले का भारत।

इस विचारधारा के अंतर्गत रखे जा सकने वाले अनुच्छेद कुछ इस तरह से है-

अनुच्छेद 38 – राज्य लोक कल्याण की अभिवृद्धि के लिए सामाजिक व्यवस्था बनाएगा

अनुच्छेद 38 के तहत, (1) राज्य ऐसे सामाजिक व्यवस्था की अभिवृद्धि (Growth) का प्रयास करेगा जिससे सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय सुनिश्चित हो सके।

(2) राज्य, आय, प्रतिष्ठा, सुविधाओं और अवसरों की असमानता को भी समाप्त करने का प्रयास करेगा।

◾ इन उपरोक्त प्रावधानों को सुनिश्चित करने के लिए 1950 में योजना आयोग बनाया गया था जिसका काम ही था नियोजित तरीके से देश का विकास हो; इसके लिए योजना बनाना। 2015 में इसका नाम बदलकर नीति आयोग कर दिया गया।

विस्तार से समझें ◾ अनुच्छेद 38

अनुच्छेद 39 – राज्य द्वारा अनुसरणीय कुछ नीति तत्व

राज्य अपनी नीति का इस तरह से संचालन करेंगा कि,

(a) सभी नागरिकों को समान रूप से जीविका के पर्याप्त साधन प्राप्त करने का अधिकार हो,

(b)* भौतिक संसाधनों का स्वामित्व और नियंत्रण इस प्रकार बंटा हो जिससे सामूहिक हित का सर्वोत्तम रूप से क्रियान्वयन हो सके,

(c)* आर्थिक व्यवस्था इस प्रकार का हो जिससे कि धन और उत्पादन के साधनों का संकेन्द्रण न हो,

(d) पुरुषों और स्त्रियों दोनों का समान कार्य के लिए समान वेतन हो,

(e) कर्मकारों (Workers) के स्वास्थ्य और शक्ति एवं बालकों के अवस्था का दुरुपयोग न हो,

(f) बालकों को स्वास्थ्य विकास के अवसर प्रदान किए जाये।

* ये अनुच्छेद शुरू से ही काफी विवादित और चर्चित रहा है क्योंकि इसके प्रावधान मूल अधिकार से टकराते थे। इसके बावजूद भी इन प्रावधानों को सुनिश्चित करने के लिए – जमींदारी प्रथा की समाप्ति, भूमि सीमांकन व्यवस्था, अतिरिक्त भूमि का भूमिहीनों में वितरण, सहकारी कृषि आदि जैसी व्यवस्था को लागू किया गया।

ज्यादा जानकारी के लिए आप दिए गए लेख को जरूर पढ़ें – मूल अधिकारों एवं निदेशक तत्वों में टकराव का विश्लेषण

◾ इसी तरह स्त्री-पुरुष के समान वेतन के लिए समान पारिश्रमिक अधिनियम 1976 बनाया गया। बालकों को शोषण से बचाने के लिए बाल श्रम निषेध एवं विनियमन अधिनियम 1986 बनाया गया।

विस्तार से समझें ◾ अनुच्छेद 39

अनुच्छेद 39 क – समान न्याय और निःशुल्क विधिक सहायता

42वें संविधान संशोधन के माध्यम से इसमें एक और प्रावधान अनुच्छेद 39क के नाम से जोड़ा गया। इसके तहत राज्य यह सुनिश्चित करेगा कि आर्थिक एवं सामाजिक निर्योग्यता के कारण कोई नागरिक न्याय से वंचित न रह पाये।

इसके लिए राज्य उपयुक्त विधान या रीति के माध्यम से निःशुल्क विधिक सहायता की व्यवस्था करेगा।

आपको बता दें कि 1987 से ऐसी व्यवस्था चल भी रही है, इसके लिए आप इस लेख को पढ़ सकते हैं – National Legal Services Authority और Lok Adalat in India

विस्तार से समझें ◾ अनुच्छेद 39A

अनुच्छेद 41 – कुछ दशाओं में काम, शिक्षा और लोक सहायता पाने का अधिकार

इसके तहत राज्य, काम पाने के, शिक्षा पाने के तथा बेकारी, बुढ़ापा, बीमारी एवं निःशक्तता (Disability) की दशाओं में लोक सहायता पाने के अधिकार का प्रभावी उपबंध करेगा।

राज्य ऐसा करता भी है उदाहरण के लिए दिव्यांगजन को ट्राइसाइकल देना, वरिष्ठ नागरिकों को वृद्धा पेंशन देना, काम पाने के इच्छुक लोगों को मनरेगा के तहत काम देना इत्यादि।

विस्तार से समझें – ◾ अनुच्छेद 41

अनुच्छेद 42 – काम की न्यायसंगत और मानवोचित दशाओं का तथा प्रसूति सहायता का उपबंध

इसका मतलब ये है कि राज्य, मानव के काम करने के अनुकूल दशाओं का निर्माण करेगा और दूसरी बात ये कि गर्भवती महिलाओं के लिए प्रसूति सहायता (Maternity relief) का उपबंध करेगा।

◾ ऐसा होता भी उदाहरण के लिए आप देख सकते हैं कि नौकरीपेशा से सीमित घंटे तक काम करवाया जाता है या उसे स्वास्थ्य बीमा दिया जाता है, छुट्टी दी जाती है एवं कार्यस्थल पर अन्य ढ़ेरों सुविधाएं एवं अधिकार दिये जाते हैं।

वहीं प्रसूति सहायता की बात करें तो मातृत्व अवकाश (maternity leave) के तौर पर 6 महीने का वक्त दिया जाता है वो भी सैलरी से बिना पैसा काटे।

इसके अलावा छोटे बच्चे को कार्यस्थल पर साथ लेकर काम करने वाली महिलाओं के लिए शिशुगृह सुविधा (Crèche facility) की भी व्यवस्था की गई है।

विस्तार से समझें ◾ अनुच्छेद 42

अनुच्छेद 43 – कर्मकारों के लिए निर्वाह मजदूरी आदि

राज्य, सभी कर्मकारों को काम, निर्वाह मजदूरी, शिष्ट जीवनस्तर और अवकाश का सम्पूर्ण उपभोग सुनिश्चित करने वाली काम की दशाएँ तथा सामाजिक और सांस्कृतिक अवसर प्राप्त कराने का प्रयास करेगा और खासकर के ग्रामीण क्षेत्रों में कुटीर उद्योगों को वैयक्तिक या फिर सहकारी आधार पर बढ़ाने का प्रयास करेगा।

इस मामले में देखें तो कुटीर उद्योग के क्षेत्र में काफी काम हुआ है उदाहरण के लिए, खादी एवं ग्राम उद्योग बोर्ड, खादी एवं ग्राम उद्योग आयोग, सिल्क बोर्ड, हैंडलूम बोर्ड आदि।

◾ 42वां संविधान संशोधन 1976 द्वारा अनुच्छेद 43 में संशोधन करके एक भाग अनुच्छेद 43क बनाया गया। इसी तरह से 2011 में 97वां संविधान संशोधन करके अनुच्छेद 43ख को जोड़ा गया।

विस्तार से समझें ◾ अनुच्छेद 43

अनुच्छेद 43 क – उद्योगों के प्रबंध में कर्मकारों का भाग लेना

राज्य, उपयुक्त विधान द्वारा उद्योगों में प्रबंध के कार्यों में कर्मकारों को भाग लेने के लिए कदम उठाएगा।

अनुच्छेद 47पोषाहार स्तर और जीवन स्तर को ऊंचा करने तथा लोक स्वास्थ्य का सुधार करने का राज्य का कर्तव्य

राज्य, अपने लोगों के पोषाहार स्तर (Nutritional level) और लोक स्वास्थ्य के सुधार को अपना प्राथमिक कर्तव्य मानेगा और राज्य, खासकर के मादक पेयों एवं स्वास्थ्य के लिए हानिकारक औषधियों के उपभोग का प्रतिषेध करने का प्रयास करेगा।

◾ पोषाहार स्तर और लोक स्वास्थ्य के सुधार के संदर्भ में देखें तो ढ़ेरों योजनाएँ चलायी जा रही है, जैसे कि मिड-डे मील, मिशन पोषण, आयुष्मान भारत योजना, आंगनवाड़ी इत्यादि।

मादक पेय पदार्थों (Alcoholic beverages) के संदर्भ में बात करें तो सरकार ने उस पर रोक तो नहीं लगायी है हालांकि दाम जरूर बढ़ा दिए है

विस्तार से समझें ◾ अनुच्छेद 47

ये रही समाजवादी सिद्धांतों वाली राज्य के नीति निदेशक तत्व। अब बात करते हैं गांधीवादी सिद्धांत के बारे में –

2. गांधीवादी सिद्धांत वाले निदेशक तत्व

ये सिद्धान्त गांधीजी के विचारधारों पर आधारित है। स्वदेशी, सर्वोदय, दलितों का उत्थान और स्वच्छता आदि गांधी जी के विचार में प्रमुखता से शामिल रहा है।

गांधी जी के इन्ही उद्देश्यों और सपने की पूर्ति के लिए निदेशक तत्व में इसे शामिल किया गया है। क्योंकि 1948 में जब गांधी जी कि मृत्यु हुई थी तब संविधान बन ही रहा था।

अगर वे जिंदा होते तो कुछ नीचे बताए गए कुछ प्रावधान तो जरूर उसी समय कानून बन गया होता। पर शायद नहीं थे इसीलिए नीति निदेशक तत्व का हिस्सा उस समय नहीं बना।

हालांकि इनके सिद्धांतों के बहुत सारी बातें समय के साथ लागू हो चुकी है, जिसकी चर्चा आगे की गई है।

अनुच्छेद 40 – ग्राम पंचायतों का संगठन

गांधी जी पंचायती राज्य व्यवस्था के पुरजोर समर्थक थे, वे चाहते थे कि स्थानीय स्वशासन व्यवस्था का गठन किया जाये और सभी आवश्यक शक्तियाँ उनको दी जाये।

उनका ये सपना 1993 में जाकर पूरा हुआ, जब पंचायती राज व्यवस्था को लागू किया गया। इस विषय पर पृथक लेख उपलब्ध है, उसे जरूर पढ़ें।

विस्तार से समझें ◾ अनुच्छेद 40

अनुच्छेद 43 – कुटीर उद्योग के संबंध में

हमने इसे ऊपर भी पढ़ा है। गांधीजी कुटीर उद्योग और आत्मनिर्भरता के इतने बड़े समर्थक थे कि उन्होने एक समय सबको चरखा चलाने एवं अपनी जरूरत का कपड़ा स्वयं बनाने को कहा था। वर्तमान में MSME मंत्रालय के तहत इसे बढ़ावा दिया जा रहा है।

अनुच्छेद 43 ख – सहकारी समितियों का संवर्धन

इसे 97वां संविधान संशोधन 2011 के माध्यम से जोड़ा गया थाइसके तहत कहा गया है कि राज्य, सहकारी समितियों (Co-operative societies) के स्वैच्छिक गठन, स्वायत्त संचालन, लोकतांत्रिक निमंत्रण तथा व्यावसायिक प्रबंधन को बढ़ावा देगा।

आज देशभर में ढ़ेरों सहकारी समितियां (Co-operative societies) काम कर रही है जैसे कि अमूल, लिज्जत पापड़ आदि।

विस्तार से समझें ◾ अनुच्छेद 43

अनुच्छेद 46 – एससी, एसटी और अन्य दुर्बल वर्गों के शिक्षा संबंधी हितों की अभिवृद्धि

राज्य, जनता के दुर्बल वर्गों के, खासकर एससी और एसटी के शिक्षा संबंधी हितों की विशेष सावधानी से अभिवृद्धि करेगा और सामाजिक अन्याय और सभी प्रकार के शोषण से उनकी रक्षा करेगा।

◾ इसको सुनिश्चित करने के लिए अनुसूचित जाति के लिए राष्ट्रीय आयोग, अनुसूचित जनजाति के लिए राष्ट्रीय आयोग, अनुसूचित जाति एवं जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम 1989, राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग, एससी, एसटी एवं अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण आदि की व्यवस्था की गई है।

विस्तार से समझें ◾ अनुच्छेद 46

अनुच्छेद 48 – कृषि और पशुपालन का संगठन

राज्य, कृषि और पशुपालन को आधुनिक और वैज्ञानिक प्रणालियों से संगठित करने का प्रयास करेगा और खासकर के गाय, बछरा व अन्य दुधारू पशुओं की बली पर रोक और उनकी नस्लों में सुधार को प्रोत्साहन देगा।  

इसको सुनिश्चित करने के लिए कई राज्यों में गोवध को प्रतिबंधित किया गया है जैसे कि उत्तर प्रदेश।

विस्तार से समझें

ये रही राज्य के नीति निदेशक तत्व का गांधीवादी सिद्धांत, आइये अब उदार बौद्धिक सिद्धांत के बारे में जानते हैं।

3. उदार बौद्धिक सिद्धांत वाले निदेशक तत्व

उदार का मतलब है – भिन्‍न मतों और व्‍यवहारों के प्रति उदार; उदारवादी मुख्य रूप से Fare Competition, Free Market, Toleration (सहिष्णुता), Limited Government, Human Rights, Gender Equality आदि को सपोर्ट करता है।

अनुच्छेद 44 – नागरिकों के लिए एक समान सिविल संहिता

राज्य, भारत के समस्त राज्यक्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान सिविल संहिता (Uniform Civil Code) प्राप्त कराने का प्रयास करेगा। ये अभी तक संभव नहीं हो पाया है।

विस्तार से समझें ◾ अनुच्छेद 44

अनुच्छेद 45 – छह वर्ष से कम आयु के बालकों के लिए प्रारंभिक बाल्यावस्था देख-रेख और शिक्षा का उपबंध

राज्य, सभी बालकों को छह वर्ष की आयु पूरी करने तक, प्रारंभिक बाल्यावस्था देख-रेख और शिक्षा देने के लिए उपबंध बनाएगा।

भारत में, छह साल से कम उम्र के बच्चों के लिए प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा (ECCE) का प्रावधान मुख्य रूप से एकीकृत बाल विकास सेवा (ICDS) कार्यक्रम के माध्यम से किया जाता है।

यह कार्यक्रम महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा चलाया जाता है, और इसका उद्देश्य छह साल से कम उम्र के बच्चों के साथ-साथ गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं को व्यापक विकास सेवाएं प्रदान करना है।

एकीकृत बाल विकास सेवा (ICDS) कार्यक्रम पूरक पोषण, पूर्व-विद्यालय शिक्षा, स्वास्थ्य जांच, टीकाकरण और रेफरल सेवाओं सहित कई सेवाएं प्रदान करता है। इन सेवाओं के लिए आंगनवाड़ी केंद्र प्राथमिक वितरण बिंदु हैं, जहां बच्चों को पूरक पोषण, स्वास्थ्य जांच और पूर्व-विद्यालय शिक्षा प्रदान की जाती है।

विस्तार से समझें ◾ अनुच्छेद 45

अनुच्छेद 48 – कृषि और पशुपालन का संगठन

इसे हमने ऊपर गांधीवादी सिद्धान्त में भी पढ़ा है, लेकिन वहाँ गोहत्या आदि के बारे में जाना क्योंकि वो गांधीजी के विचार के मेल खाता है। लेकिन ये कृषि और पशुपालन को आधुनिक और वैज्ञानिक प्रणालियों से संगठित करने के संबंध में हैं।

विस्तार से समझें ◾ अनुच्छेद 48

अनुच्छेद 48 A – पर्यावरण का संरक्षण तथा संवर्धन और वन तथा वन्यजीवों की रक्षा

राज्य, देश के पर्यावरण के संरक्षण तथा संवर्धन का और वन तथा वन्यजीवों की रक्षा करने का प्रयास करेगा। ये शुरू से नीति निदेशक तत्व का हिस्सा नहीं था बल्कि इसे 42वां संविधान संशोधन 1976 के माध्यम से जोड़ा गया था।

◾ इस मामले में देखे तो कुछ बहुत ही महत्वपूर्ण कदम उठाए गए है, वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम 1972, वन (संरक्षण) अधिनियम 1980, केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड आदि।

यहाँ तक कि केंद्र सरकार में इसके लिए एक अलग से मंत्रालय है जिसे पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के नाम से जाना जाता है।

विस्तार से समझें ◾ अनुच्छेद 48A

अनुच्छेद 49 – राष्ट्रीय महत्व के संस्मारकों, स्थानों और वस्तुओं का संरक्षण

राज्य की ये बाध्यता है कि – वे राष्ट्रीय महत्व वाले घोषित किए गए कलात्मक या ऐतिहासिक अभिरुचि वाले संस्मारक या स्थान या वस्तु का संरक्षण करें।

इसके लिए, प्राचीन एवं ऐतिहासिक संस्मारक तथा पुरातत्वीय स्थल और अवशेष अधिनियम 1958 बनाया गया है, जिसके तहत सरकार बताए गए उपरोक्त काम करती है।

विस्तार से समझें ◾ अनुच्छेद 49

अनुच्छेद 50 – कार्यपालिका से न्यायपालिका का पृथक्करण

राज्य, राज्य की लोक सेवाओं में, न्यायपालिका को कार्यपालिका से पृथक करने के लिए कदम उठाएगा।

पहले लोक सेवक (जैसे कि कलेक्टर, तहसीलदार आदि) के पास विधिक शक्तियाँ भी होती थी जिससे कि वे अपने सामान्य प्रशासनिक शक्तियों के साथ ही इस्तेमाल करते थे।

लेकिन आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CrPC) 1973 के तहत लोक सेवा में कार्यकारिणी को विधिक सेवा से अलग कर दिया गया।

यानी कि इन लोक सेवकों के पास जो विधिक शक्तियाँ थी उसे जिला न्यायिक मजिस्ट्रेट को सौंप दिया गया जो कि सीधे उच्च न्यायालय के तहत काम करते हैं।

विस्तार से समझें ◾ अनुच्छेद 50

अनुच्छेद 51 – अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा की अभिवृद्धि

इस संबंध में राज्य निम्नलिखित प्रयास करेगा –

(a) अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा की अभिवृद्धि का प्रयास, (b) राष्ट्रों के बीच न्यायसंगत और सम्मानपूर्ण संबंधों को बनाए रखने का प्रयास, (c) अंतर्राष्ट्रीय विधि और संधि-बाध्यताओं के प्रति आदर बढ़ाने का प्रयास, (d) अंतर्राष्ट्रीय विवादों को मध्यस्थता द्वारा निपटाने का प्रयास।

विस्तार से समझें ◾ अनुच्छेद 51

याद रखने योग्य कुछ बातें;

◾ राज्य के नीति निदेशक तत्वों को न्यायालय द्वारा प्रवृत्त नहीं कराया जा सकता है और इसीलिए कोई व्यक्ति निदेशक तत्वों के हनन को लेकर न्यायालय नहीं जा सकता है। हालांकि निदेशक तत्वों का क्रियान्वयन विधान बनाकर किया जा सकता है।

◾ निदेशक तत्वों से संसद को न तो कोई विधायी शक्ति मिलती है और न ही उनकी कोई विधायी शक्ति समाप्त होती है। हमें याद होनी चाहिए कि विधान बनाने की क्षमता का निर्णय संविधान की सातवीं अनुसूची में अंतर्विष्ट विधायी सूची के आधार पर किया जाता है।

◾ चूंकि निदेशक तत्व न्यायालय द्वारा प्रवर्तनीय नहीं है और ये मूल अधिकार भी नहीं है इसीलिए किसी विधि को इस आधार पर शून्य घोषित नहीं किया जा सकता है कि वह विधि निदेशक तत्वों का उल्लंघन करती है।

आजादी के बाद से ही इस संबंध में न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णयों को देखें तो हमें पता चलता है कि न्यायालय ने हमेशा मूल अधिकारों को प्राथमिकता दी है, निदेशक तत्वों को नहीं।

◾ न्यायालय सरकार को किसी निदेशक तत्व को क्रियान्वित करने के लिए विवश नहीं कर सकती है। जैसे कि अनुच्छेद 44 के तहत समान नागरिक संहिता बनाने की बात कही गई है।

तो ऐसे में न्यायालय सरकार को आदेश नहीं दे सकती है कि इस व्यवस्था पर कानून बनाओं। हालांकि न्यायालय सलाह जरूर दे सकता है और देता भी है।

तो कुल मिलाकर बात यही है कि निदेशक तत्व गैर-प्रवर्तनीय होते हुए भी देश के शासन में मूलभूत हैं और विधि बनाते समय इन तत्वों को लागू करना राज्य का कर्तव्य है।

◾ यहाँ यह याद रखिए कि निदेशक तत्वों और मूल अधिकारों के बीच कोई विरोध नहीं है। ये एक-दूसरे के अनुपूरक है और इन दोनों का उद्देश्य एक कल्याणकारी राज्य की स्थापना करना है।

हालांकि आजादी के बाद मूल अधिकार और राज्य के नीति निदेशक तत्वों के बीच टकराव देखने को अवश्य मिलता है। लेकिन न्यायालय द्वारा दिए गए कई निर्णयों के द्वारा अब बहुत ही स्पष्टता आई है। आगे आने वाले अनुच्छेदों में आप इसे समझ पाएंगे;

समापन टिप्पणी (Closing Remarks)

DPSP का गैर-न्यायोचित या गैर-प्रवर्तनीय होना इसे आलोचना का पात्र बनाता है। और बहुत से लोगों ने इस आधार पर इसकी आलोचना की भी जैसे कि टी. टी. कृष्णमचारी ने तो इसे भावनाओं का स्थायी कूड़ाघर तक कहा।

कुछ लोगों ने इसे तर्कहीन व्यवस्था कह इसकी आलोचना की। कुछ लोगों ने ये भी कहा कि ये 20वीं सदी के हिसाब से 20वीं सदी में काम करने के लिए बनाया गया है।

कुल मिलाकर बहुत सारी आलोचनाओं में दम भी है अब जैसे DPSP के अनुच्छेद 37 को ही लें ले। इसके अनुसार ये प्रवर्तनीय तो नहीं है लेकिन इन तत्वों को लागू करना राज्य का कर्तव्य है।

लेकिन जैसे ही इसे लागू करने की कोशिश की गई वैसे ही ये मूल अधिकारों से टकराने लगे। इस तरह से इसने एक विवाद का रूप ले लिया जहां सुप्रीम कोर्ट ने भी शुरुआती दौर में मूल अधिकारों को राज्य के नीति निदेशक तत्व (Directive Principles of State Policy) के जगह पर महत्व दिया।

जो भी हो आज संविधान लागू होने के लगभग 75 वर्ष की स्थिति को देखें तो ऐसे हमें ढेरों अधिनियम, ढेरों योजनाएँ और ढेरों काम नजर आ जाएँगे जो कि DPSP को ध्यान में रखकर किया गया है।

ऐसे में DPSP वाकई किसी काम का नहीं है ऐसा तो बिल्कुल भी नहीं कहा जा सकता। अगर इसको लेकर विवाद हुए भी है तो उसने इसमें और स्पष्टता ही लाया है जो कि भावी नीति-नियंताओं के लिए मार्गदर्शन का काम किया।

तो ये रही राज्य के नीति निदेशक तत्व (Directive Principles of State Policy), उम्मीद है समझ में आया होगा। इस भाग को पूरी तरह से कंप्लीट करने के लिए मूल अधिकारों एवं निदेशक तत्वों में टकराव को जरूर समझें। लिंक नीचे है-

◾◾मूल अधिकारों एवं निदेशक तत्वों में टकराव का विश्लेषण
◾◾विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया और विधि की सम्यक प्रक्रिया
◾◾संविधान की मूल संरचना और केशवानन्द भारती केस

राज्य के नीति निदेशक तत्व प्रैक्टिस Quiz


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राज्य के नीति निदेशक तत्व (DPSP) अभ्यास प्रश्न

  1. Number of Questions - 10
  2. Passing Marks - 80 %
  3. Time - 8 Minutes
  4. एक से अधिक विकल्प सही हो सकते हैं।

What was added to Article 39 through the 42nd Constitutional Amendment?

1 / 10

42वें संविधान संशोधन के माध्यम से अनुच्छेद 39 में क्या जोड़ा गया?

Which of the following is not the correct meaning of the Directive Principles of State Policy?

  1. It means to direct the policy of the state.
  2. It has to be implemented.
  3. This is required to be kept in mind while making laws by the State.
  4. According to Article 36 of the Constitution, it is necessary to be implemented within 100 years.

2 / 10

राज्य के नीति निदेशक तत्व का इनमें से कौन सा सही मतलब नहीं है?

  1. इसका मतलब राज्य के नीति को निर्देशित करने से संबंधित है।
  2. इसे लागू करना ही पड़ता है।
  3. राज्य द्वारा विधि बनाते समय इसे ध्यान में रखा जाना अपेक्षित होता है।
  4. संविधान के अनुच्छेद 36 के अनुसार इसे 100 वर्षों के भीतर क्रियान्वित किया जरूरी है।

Which of the following is a valid reason for including the Directive Principles of State Policy in the Constitution?

  1. It was made a part of the constitution due to widespread violent protests going on across the country.
  2. Keeping in mind the future, it was added to the constitution with the aim of guiding the policies of the state.
  3. Due to such a large population of the country, it was not considered right to implement all the systems or methods at that time, that is why such provisions were made a part of the Constitution by making Directive Principles.
  4. The government was unstable at that time, so many of the arrangements were made part of the constitution under the Directive Principles of State Policy.

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राज्य के नीति निदेशक तत्व को संविधान में जोड़े जाने की निम्न में से कौन सा वजह उचित वजह है?

  1. देश भर में चल रहे व्यापक हिंसक प्रदर्शन के कारण इसे संविधान का हिस्सा बना दिया गया।
  2. भविष्य को ध्यान में रखकर, राज्य के नीतियों को गाइड करने के उद्देश्य से इसे संविधान में जोड़ा गया।
  3. देश की इतनी बड़ी जनसंख्या के कारण सभी व्यवस्था या विधियों को उस समय लागू करना सही नहीं समझा गया, इसीलिए ऐसे प्रावधानों के लिए निदेशक तत्व बना कर संविधान का हिस्सा बना दिया गया।
  4. सरकार उस समय अस्थिर था इसीलिए बहुत सारी व्यवस्था को राज्य के नीति निदेशक तत्व के तहत संविधान का हिस्सा बना दिया गया।

Which of the following articles is not placed under Gandhian doctrine?

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इनमें से किस अनुच्छेद को गांधीवादी सिद्धांत के तहत नहीं रखा जाता है?

Which of the following provision is related to Article 39?

  1. The economic system should be such that there is no concentration of wealth and means of production.
  2. The ownership and control of material resources should be distributed in such a way that the collective interests are best served.
  3. Children should be provided opportunities for health development.
  4. In certain situations (such as unemployment, old age, illness etc.) the state will provide public assistance.

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निम्न में से कौन सा प्रावधान अनुच्छेद 39 से संबंधित है?

  1. आर्थिक व्यवस्था इस प्रकार का हो कि धन और उत्पादन के साधनों का संकेंद्रण न हो।
  2. भौतिक संसाधनों का स्वामित्व और नियंत्रण इस प्रकार बंटा हो जिससे सामूहिक हितों का सर्वोत्तम रूप से क्रियान्वयन हो।
  3. बालकों को स्वास्थ्य विकास के अवसर प्रदान किए जाएं।
  4. कुछ दशाओं (जैसे कि बेकारी, बुढ़ापा, बीमारी आदि) में राज्य लोक सहायता का उपबंध करेगा।

Which of the following is placed under liberal intellectual theory?

  1. Article 44 - Uniform Civil Code
  2. Article 45 - Elementary education for children below the age of six years
  3. Article 48 'A' - Environment Protection
  4. Article 51 - Separation of the Executive from the Judiciary

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निम्नलिखित में से किसे उदार बौद्धिक सिद्धांत के तहत रखा जाता है?

  1. अनुच्छेद 44 - समान नागरिक संहिता
  2. अनुच्छेद 45 - छह वर्ष से कम आयु के बालकों के लिए प्रारंभिक शिक्षा
  3. अनुच्छेद 48 'क' - पर्यावरण संरक्षण
  4. अनुच्छेद 51 - कार्यपालिका का न्यायपालिका से पृथक्करण

In which part and article of the Constitution the Directive Principles of State Policy have been discussed?

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राज्य के नीति निदेशक तत्व की चर्चा संविधान के किस भाग और अनुच्छेद में की गई है?

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राज्य के नीति निदेशक तत्व का विचार भारत ने कहां से लिया?

Which of the following is correct under Article 38?

  1. The state shall endeavor to promote such a social order which ensures socio-economic and political justice.
  2. The State shall endeavor to eliminate inequality of income, status and opportunities.
  3. The State shall endeavor to provide to all citizens equally adequate means of livelihood.
  4. The State shall ensure equal pay for equal work to men and women.

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अनुच्छेद 38 के तहत निम्नलिखित में से कौन सी बातें सही है?

  1. राज्य ऐसे सामाजिक व्यवस्था की अभिवृद्धि का प्रयास करेगा जिससे सामाजिक-आर्थिक एवं राजनीतिक न्याय सुनिश्चित हो।
  2. राज्य, आय, प्रतिष्ठा एवं अवसरों की असमानता को खत्म करने का प्रयास करेगा।
  3. राज्य सभी नागरिकों को समान रूप से जीविका के पर्याप्त साधन उपलब्ध कराने का प्रयास करेगा।
  4. राज्य, स्त्री और पुरुष को समान कार्य के लिए समान वेतन सुनिश्चित करेगा।

Which of the following statements is correct regarding free legal aid?

  1. It was made a part of DPSP through the 42nd Constitutional Amendment.
  2. Free legal aid further strengthens the right to equality.
  3. Article 39 'A' is related to this.
  4. Under Article 39 'A', the district administration can stop the free legal aid.

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निःशुल्क विधिक सहायता के संबंध में इनमें से कौन सा कथन सही है?

  1. इसे 42वें संविधान संशोधन के माध्यम से DPSP का हिस्सा बनाया गया।
  2. निःशुल्क विधिक सहायता समता के अधिकार को और सुदृढ़ करता है।
  3. अनुच्छेद 39 'क' इसी से संबंधित है।
  4. अनुच्छेद 39 'क' के तहत जिला प्रशासन निःशुल्क विधिक सहायता को बंद कर सकता है।

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मूल संविधान भाग 4 (DPSP)↗️
Directive Principles – wikipedia↗️
Socialism – Britannica↗️
https://www.india.gov.in/my-government/constitution-india/constitution-india-full-text