यह लेख अनुच्छेद 82 (Article 82) का यथारूप संकलन है। आप इसका हिन्दी और इंग्लिश दोनों अनुवाद पढ़ सकते हैं। आप इसे अच्छी तरह से समझ सके इसीलिए इसकी व्याख्या भी नीचे दी गई है आप उसे जरूर पढ़ें।

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article 82
Article 82 Explanation

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📜 अनुच्छेद 82 (Article 82) – Original

संसद
82. प्रत्येक जनगणना के पश्चात पुनः समायोजन प्रत्येक जनगणना की समाप्ति पर राज्यों को लोक सभा में स्थानों के आबंटन और प्रत्येक राज्य के प्रादेशिक निर्वाचन-क्षेत्रों में विभाजन का ऐसे प्राधिकारी द्वारा और ऐसी रीति से पुनः समायोजन किया जाएगा जो संसद विधि अवधारित करे:

परंतु ऐसे पुनः समायोजन से लोक सभा में प्रतिनिधित्व पर तब तक कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा जब तक उस समय विद्यमान लोक सभा का विघटन नहीं हो जाता है:

1[परंतु यह और कि ऐसा पुनः समायोजन उस तारीख से प्रभावी होगा जो राष्ट्रपति आदेश द्वारा विनिर्दिष्ट करे और ऐसे पुनः समायोजन के प्रभावी होने तक लोक सभा के लिए कोई निर्वाचन उन प्रादेशिक निर्वाचन-क्षेत्रों के आधार पर हो सकेगा जो पुनः समायोजन के पहले विद्यमान है:


परंतु यह और भी कि जब तक सन 2[2026] के पश्चात की गई पहली जनगणना के सुसंगत आंकड़ें प्रकाशित नहीं हो जाते हैं तब तक 3[इस अनुच्छेद के अधीन, —
(i) राज्यों को लोक सभा में 1971 की जनगणना के आधार पर पुनः समायोजित स्थानों के आबंटन का: और
(ii) प्रत्येक राज्य के प्रादेशिक निर्वाचन-क्षेत्रों में विभाजन का, जो 4[2001] की जनगणना के आधार पर पुनः समायोजित किए जाएं,
पुनः समायोजन आवश्यक नहीं होगा।]]
———————————
1. संविधान (बयालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1976 की धारा 16 द्वारा 93-1-1977 से) अन्तःस्थापित।
2. संविधान (चौरासीवाँ संशोधन) अधिनियम, 2001 की धारा 4 द्वारा “2000” (21-2-2002 से) प्रतिस्थापित।
3. संविधान (चौरासीवाँ संशोधन) अधिनियम, 2001 की धारा 4 द्वारा कतिपय शब्दों के स्थान पर (21-2-2002 से) प्रतिस्थापित।
4. संविधान (सतासीवां संशोधन) अधिनियम, 2003 की धारा 3 द्वारा “1991” के स्थान पर (22-6-2003 से) प्रतिस्थापित।
—-अनुच्छेद 82—-

Parliament
82. Readjustment after each census. — Upon the completion of each census, the allocation of seats in the House of the People to the States and the division of each State into territorial constituencies shall be readjusted by such authority and in such manner as Parliament may by law determine:

Provided that such readjustment shall not affect representation in the House of the People until the dissolution of the then existing House:

1[Provided further that such readjustment shall take effect from such date as the President may, by order, specify and until such readjustment takes effect, any election to the House may be held on the basis of the territorial constituencies existing before such readjustment:

Provided also that until the relevant figures for the first census taken after the year 2[2026] have been published, it shall not be necessary to 3[readjust—

(i) the allocation of seats in the House of the People to the States as readjusted on the basis of the 1971 census; and
(ii) the division of each State into territorial constituencies as may be readjusted on the basis of the 4[2001] census, under this article.]]

—————
1. Ins. by the Constitution (Forty-second Amendment) Act, 1976, s. 16 (w.e.f. 3-1-1977).
2. Subs. by the Constitution (Eighty-fourth Amendment) Act, 2001, s. 4, for “2000” (w.e.f. 21-2-2002).
3. Subs. by s.4, ibid., for certain words (w.e.f. 21-2-2002).
4. Subs. by the Constitution (Eighty-seventh Amendment) Act, 2003, s. 3, for “1991” (w.e.f. 22-6-2003).
Article 82

🔍 Article 82 Explanation in Hindi

अनुच्छेद 52 से लेकर 151 तक भारतीय संविधान के भाग 5 के तहत आता है। भाग 5 को 5 अध्यायों में बांटा गया है। इसी का दूसरा अध्याय है – संसद (Parliament)

संसद के तहत अनुच्छेद 79 से लेकर 122 तक आते हैं। और इस भाग के अंतर्गत संघ के संसद की चर्चा की गई है। जिसके तहत राष्ट्रपति (President), लोकसभा (Lok Sabha), एवं राज्यसभा (Rajya Sabha) आते हैं।

तो इस अध्याय के तहत आने वाले अनुच्छेदों में हम संसद (Parliament) को विस्तार से समझने वाले हैं। यहाँ यह याद रखिए कि संविधान के भाग 5 को संघ या The Union के नाम से भी जाना जाता है।

कुल मिलाकर संविधान के भाग 5 के अध्याय II अंतर्गत अनुच्छेद 79 से लेकर अनुच्छेद 122 तक आता है। इस लेख में हम अनुच्छेद 82 (Article 82) को समझने वाले हैं;

अनुच्छेद-39 – भारतीय संविधान
अनुच्छेद-21 – भारतीय संविधान
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| अनुच्छेद 82 – प्रत्येक जनगणना के पश्चात पुनः समायोजन

लोकसभा (Lok Sabha) आम जनों की एक सभा है जहां प्रत्यक्ष मतदान (Direct Election) के द्वारा चुने गए प्रतिनिधि बैठते हैं। प्रत्येक प्रतिनिधि किसी खास भौगोलिक क्षेत्र से चुनकर आते हैं जिसे निर्वाचन क्षेत्र (constituency) कहा जाता है।

प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र, राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में जनसंख्या के आधार पर आवंटित किया गया एक खास भौगोलिक क्षेत्र है। जीते हुए उम्मीदवार किसी खास निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं और संसद में बैठकर विधायी या कार्यकारी प्रक्रिया में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

प्रत्येक सदस्य को सांसद (Member of Parliament) कहा जाता है (जिसकी संख्या वर्तमान में 543 है) और ये सारे सांसद मिलकर विधायिका (legislature) कहलाते हैं।

अनुच्छेद 81 के तहत लोकसभा की संरचना (Composition of the House of the People) का वर्णन है। और इसी अनुच्छेद में (खंड 2 और 3 के तहत) यह बताया गया है कि किस तरह से लोक सभा में जो राज्यों से चुनकर 530 सांसद आएंगे, वो किस विधि से राज्यों में निर्धारित किया जाएगा।

अनुच्छेद 82, अपने पूर्ववर्ती अनुच्छेद 81 का ही विस्तार है। इसीलिए अनुच्छेद 82 को ठीक से समझने के लिए पहले अनुच्छेद 81 को अवश्य समझ लें।

पुनःसमायोजन (Readjustment):

जैसा कि हमने ऊपर समझा अनुच्छेद 82 पुनःसमायोजन (Readjustment) के बारे में है। इस अनुच्छेद के तहत प्रत्येक जनगणना की समाप्ति पर पुनःसमायोजन की व्यवस्था की गई है।

प्रत्येक 10 वर्षों पर जनगणना (Census) की जाती है। ऐसे में स्वाभाविक है कि जनसंख्या में वृद्धि होगी। या ऐसा भी हो सकता है कि किसी प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्र की जनसंख्या कम हो जाये या बहुत अधिक बढ़ जाए।

अनुच्छेद 81 के तहत यह सुनिश्चित किया गया है कि प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र की जनसंख्या यथासाध्य एक ही हो। तो जब हरेक 10 सालों बाद जनसंख्या बढ़ेगी तो ऐसे में जरूरी हो जाएगा कि लोक सभा में स्थानों के आबंटन का पुनःसमायोजन हो और इसी तरह से प्रत्येक राज्य के प्रादेशिक निर्वाचन-क्षेत्रों में बढ़ी हुई जनसंख्या के हिसाब से पुनःसमायोजन हो।

और यह जो पुनःसमायोजन होगा यह संसद द्वारा तय विधि के आधार पर होगा, अन्यथा नहीं। आमतौर पर पुनःसमायोजन के लिए परिसीमन आयोग (Delimitation Commission) का गठन कर दिया जाता है।

कुल मिलाकर कहने का अर्थ यह है कि अनुच्छेद 82 के तहत, संसद प्रत्येक जनगणना के बाद एक परिसीमन अधिनियम बनाती है। यही काम अनुच्छेद 170 के तहत, राज्यों में प्रत्येक जनगणना के बाद की जाती है। अधिनियम लागू होने के बाद, केंद्र सरकार एक परिसीमन आयोग का गठन करती है। आइये इस पर थोड़ा प्रकाश डालते है;

परिसीमन आयोग (Delimitation Commission):

परिसीमन (Delimitation) का आशय जनसंख्या में परिवर्तन को पुनःसमायोजित (Readjustment) करने के लिए किसी देश में क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाओं को तय करने से है।

अनुच्छेद 82 के तहत, संसद प्रत्येक जनगणना के बाद एक परिसीमन अधिनियम बनाती है। अधिनियम लागू होने के बाद, केंद्र सरकार एक परिसीमन आयोग का गठन करती है।

परिसीमन आयोग अधिनियम 1952 में अधिनियमित किया गया था। पहला परिसीमन 1950-51 में राष्ट्रपति द्वारा (चुनाव आयोग की मदद से) किया गया था।

साल 1952, 1962, 1972 और 2002 में अधिनियमित परिसीमन आयोग अधिनियमों के तहत चार बार – 1952, 1963, 1973 और 2002 में परिसीमन आयोगों का गठन किया गया है।

परिसीमन आयोग (Delimitation Commission) को विस्तार से समझें;

Delimitation (परिसीमन): अर्थ व आयोग [Concept]

आप यहाँ देख सकते हैं कि 1951 के जनगणना के बाद 1952 में परिसीमन आयोग का गठन किया गया। इसी तरह से 1961 की जनगणना के बाद 1962 में और 1971 की जनगणना के बाद 1972 में परिसीमन आयोग का गठन किया गया।

लेकिन 1982 में और 1992 में कोई परिसीमन आयोग का गठन नहीं हुआ। ऐसा क्यों नहीं हुआ इसका उत्तर हमने अनुच्छेद 81 के तहत भी समझा और यहाँ भी हम इसकी चर्चा करेंगे क्योंकि इस अनुच्छेद में भी इस बात का जिक्र किया गया है;

अनुच्छेद 81 के खंड (3) के तहत यह व्यवस्था किया गया है कि इस अनुच्छेद में, “जनसंख्या” पद से ऐसी अंतिम पूर्ववर्ती जनगणना में अभिनिश्चित की गई जनसंख्या अभिप्रेत (intended) है जिसके सुसंगत आंकड़े प्रकाशित हो गए हैं:

परंतु इस खंड में अंतिम पूर्ववर्ती जनगणना के प्रति, जिसके सुसंगत आंकड़े प्रकाशित हो गए हैं, निर्देश का, जब तक सन 2026 के पश्चात की गई पहली जनगणना के सुसंगत आंकड़ें प्रकाशित नहीं हो जाते हैं, यह अर्थ लगाया जाएगा कि वह, –

(i) खंड (2) के उपखंड (क) और उस खंड के परंतुक के प्रयोजनों के लिए 1971 की जनगणना के प्रति निर्देश है; और
(ii) खंड (2) के उपखंड (ख) के प्रयोजनों के लिए 2001 की जनगणना के प्रति निर्देश है।

यहाँ पर दो बातें हैं;

पहली बात: खंड (2) के उपखंड (क) और उस खंड के परंतुक के प्रयोजनों के लिए 1971 की जनगणना का इस्तेमाल किया जाएगा। तब तक जब तक की साल 2026 के बाद पहली जनगणना के आंकड़े प्रकाशित नहीं हो जाते हैं, यानि कि मोटे तौर पर 2031 तक।

इसका सीधा सा मतलब यह है कि साल 2031 तक जिस राज्य को जितनी सीटें अभी प्राप्त है, वहीं रहेंगी। यानि कि अगर बिहार को 40 सीटें प्राप्त है तो यह अभी 40 ही रहेंगी भले ही 1971 के बाद जनसंख्या कितनी ही क्यों न बढ़ गई हो।

दूसरी बात: खंड (2) के उपखंड (ख) के प्रयोजनों के लिए 2001 की जनगणना का इस्तेमाल किया जाएगा।

इसका सीधा सा मतलब यह है कि अगर बिहार को 40 सीटें प्राप्त है तो वो तो अभी नहीं बदलने वाली है लेकिन उन सीटों के लिए जो निर्वाचन क्षेत्र तय किया गया है, उस प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र की जनसंख्या यथासाध्य एक ही हो इसके लिए साल 2001 की जनगणना का इस्तेमाल किया जा सकता है।

इसे इस तरह से भी समझ सकते हैं कि हो सकता है कि 1971 के बाद किसी प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्र की जनसंख्या दूसरे प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्र के तुलना में बढ़ गया हो या घट गया हो।

तो ऐसी स्थिति में राज्य के अंदर ही उन 40 निर्वाचन क्षेत्रों को 2001 की जनगणना के आधार पर पुनः समायोजित किया जा सकता है, ताकि सभी निर्वाचन क्षेत्रों की जनसंख्या यथासाध्य एक ही हो जाए।

Q. 1971 वाली जनसंख्या का इस्तेमाल क्यों किया जाता है?

◾ पहले तो 42वें संविधान संशोधन अधिनियम 1976 द्वारा राज्यों को लोकसभा में सीटों का आवंटन और प्रत्येक राज्य के प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों का विभाजन को वर्ष 2000 तक 1971 के जनगणना के आधार पर फिक्स कर दिया गया।

इसीलिए साल 1971 के बाद 2001 के जनगणना तक कोई पुनःसमायोजन नहीं हुआ। यानि कि कायदे से इसे 2002 में होना चाहिए था। लेकिन लोकसभा के मामले में इस प्रतिबंध को 84वें संविधान संशोधन अधिनियम 2001 द्वारा 25 वर्ष और बढ़ाकर 2026 तक फिक्स कर दिया गया। यानी कि 2026 तक जिस राज्य कि अभी जो स्थिति है वही रहेगी, और 1971 वाला जनसंख्या के आधार पर ही चलेगा।

◾ वहीं राज्य के भीतर के निर्वाचन क्षेत्रों के लिए भी साल 2000 तक 1971 के जनगणना का ही प्रयोग किया जाता था (42वें संविधान संशोधन के कारण)।

लेकिन 84वें संविधान संशोधन अधिनियम 2001 द्वारा इसे 1991 की जनगणना पर शिफ्ट कर दिया गया। और पुनः 2003 में 87वां संविधान संशोधन के माध्यम से इसे 2001 के जनगणना पर शिफ्ट कर दिया गया। और ये जो सारी बातें हैं इसी की पुष्टि अनुच्छेद 82 में की गई है।

याद रखने योग्य बातें;

यहाँ दो बातें और याद रखने योग्य है जो कि इसी अनुच्छेद में बताया गया है;

पहली बात तो ये कि अगर किसी पंचवर्षीय लोकसभा के दौरान पुनःसमायोजन किया जाता है तो ऐसे पुनःसमायोजन से लोक सभा में प्रतिनिधित्व पर तब तक कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा जब तक उस समय विद्यमान लोक सभा का विघटन (Dissolution) नहीं हो जाता है।

दूसरी बात ये कि ऐसा पुनःसमायोजन उस तारीख से प्रभावी होगा जो राष्ट्रपति आदेश द्वारा विनिर्दिष्ट (Specify) करे और और जब तक ऐसा नहीं हो जाता है तब तक निर्वाचन (Election) उन प्रादेशिक निर्वाचन-क्षेत्रों (Territorial Constituencies) के आधार पर हो सकेगा जो पुनः समायोजन के पहले विद्यमान था।

तो यही है अनुच्छेद 82 (Article 82), उम्मीद है आपको समझ में आया होगा। दूसरे अनुच्छेदों को समझने के लिए नीचे दिए गए लिंक का इस्तेमाल कर सकते हैं।

परिसीमन आयोग (Delimitation Commission) को विस्तार से जरूर समझें;

Delimitation (परिसीमन): अर्थ व आयोग [Concept]
अनुच्छेद-52 – भारतीय संविधान
अनुच्छेद-31(क) – भारतीय संविधान
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FAQ. अनुच्छेद 82 (Article 82) क्या है?

अनुच्छेद 82 (Article 82) के तहत प्रत्येक जनगणना के पश्चात पुनः समायोजन (Readjustment after each census) की बात कही गई है। यह अनुच्छेद, अनुच्छेद 81 का ही विस्तार है। इसीलिए अनुच्छेद 81 को पहले अवश्य समझ लें;
विस्तार से समझने के लिए लेख पढ़ें;

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अस्वीकरण – यहाँ प्रस्तुत अनुच्छेद और उसकी व्याख्या, मूल संविधान (नवीनतम संस्करण), संविधान पर डी डी बसु की व्याख्या (मुख्य रूप से), एनसाइक्लोपीडिया, संबंधित मूल अधिनियम और संविधान के विभिन्न ज्ञाताओं (जिनके लेख समाचार पत्रों, पत्रिकाओं एवं इंटरनेट पर ऑडियो-विजुअल्स के रूप में उपलब्ध है) पर आधारित है। हमने बस इसे रोचक और आसानी से समझने योग्य बनाने का प्रयास किया है।