यह लेख अनुच्छेद 92 (Article 92) का यथारूप संकलन है। आप इसका हिन्दी और इंग्लिश दोनों अनुवाद पढ़ सकते हैं। आप इसे अच्छी तरह से समझ सके इसीलिए इसकी व्याख्या भी नीचे दी गई है आप उसे जरूर पढ़ें।

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Article 92

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📜 अनुच्छेद 92 (Article 92) – Original

संसद के अधिकारी
92. जब सभापति या उपसभापति को पद से हटाने का कोई संकल्प विचाराधीन है तब उसका पीठासीन न होना — (1) राज्य सभा की किसी बैठक में, जब उपराष्ट्रपति को उसके पद से हटाने का कोई संकल्प विचाराधीन है तब सभापति, या जब उपसभापति को उसके पद से हटाने का कोई संकल्प विचाराधीन है तब उपसभापति, उपस्थित रहने पर भी, पीठासीन नहीं होगा और अनुच्छेद 91 के खंड (2) के उपबंध ऐसी प्रत्येक बैठक के संबंध में वैसे ही लागू होंगे जैसे वे उस बैठक के संबंध में लागू होते हैं जिससे, यथास्थिति, सभापति या उपसभापति अनुपस्थित है।
(2) जब उपराष्ट्रपति को उसके पद से हटाने का कोई संकल्प राज्य सभा में विचाराधीन है तब सभापति को राज्य सभा में बोलने और उसकी कार्यवाहियों में अन्यथा भाग लेने का अधिकार होगा, किन्तु वह अनुच्छेद 100 में किसी बात के होते हुए भी ऐसे संकल्प पर या ऐसी कार्यवाहियों के दौरान किसी अन्य विषय पर, मत देने का बिल्कुल हकदार नहीं होगा।
—-अनुच्छेद 92 —-

Officers of Parliament
92. The Chairman or the Deputy Chairman not to preside while a resolution for his removal from office is under consideration.—(1) At any sitting of the Council of States, while any resolution for the removal of the Vice-President from his office is under consideration, the Chairman, or while any resolution for the removal of the Deputy Chairman from his office is under consideration, the Deputy Chairman, shall not, though he is present, preside, and the provisions of clause (2) of article 91 shall apply in relation to every such sitting as they apply in relation to a sitting from which the Chairman, or, as the case may be, the Deputy Chairman, is absent.

(2) The Chairman shall have the right to speak in, and otherwise to take part in the proceedings of, the Council of States while any resolution for the removal of the Vice-President from his office is under consideration in the Council, but, notwithstanding anything in article 100, shall not be entitled to vote at all on such resolution or on any other matter during such proceedings.
Article 92

🔍 Article 92 Explanation in Hindi

अनुच्छेद 52 से लेकर 151 तक भारतीय संविधान के भाग 5 के तहत आता है। भाग 5 को 5 अध्यायों में बांटा गया है। इसी का दूसरा अध्याय है – संसद (Parliament)

संसद के तहत अनुच्छेद 79 से लेकर 122 तक आते हैं। और इस भाग के अंतर्गत संघ के संसद की चर्चा की गई है। जिसके तहत राष्ट्रपति (President), लोकसभा (Lok Sabha), एवं राज्यसभा (Rajya Sabha) आते हैं।

तो इस अध्याय के तहत आने वाले अनुच्छेदों में हम संसद (Parliament) को विस्तार से समझने वाले हैं। यहाँ यह याद रखिए कि संविधान के भाग 5 को संघ या The Union के नाम से भी जाना जाता है।

कुल मिलाकर संविधान के भाग 5 के अध्याय II अंतर्गत अनुच्छेद 79 से लेकर अनुच्छेद 122 तक आता है। इस लेख में हम अनुच्छेद 92 (Article 92) को समझने वाले हैं;

अनुच्छेद-39 – भारतीय संविधान
अनुच्छेद-21 – भारतीय संविधान
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| अनुच्छेद 92 – जब सभापति या उपसभापति को पद से हटाने का कोई संकल्प विचाराधीन है तब उसका पीठासीन न होना

राज्यसभा (Rajya Sabha) अप्रत्यक्ष रूप से राज्यों को प्रतिनिधित्व देने वाला एक संस्था है। अनुच्छेद 79 के तहत, देश के सर्वोच्च प्रतिनिधि संस्था के रूप में संसद की व्यवस्था की गई है।

संसद तीन घटकों से मिलकर बना है; राष्ट्रपति (President), लोकसभा (Lok Sabha) और राज्यसभा (Rajya Sabha)। इस संसद के दो सदन है जिसमें से निचले सदन को लोकसभा और ऊपरी सदन को राज्यसभा कहा जाता है।

इसके सदस्यों का चुनाव जनता सीधे नहीं करती है बल्कि ये लोग अप्रत्यक्ष रूप से चुनकर आते हैं। अभी फिलहाल 245 सीटें राज्यसभा में प्रभाव में है जिसमें से 233 सदस्यों को चुनने के लिए चुनाव होते हैं जबकि 12 सदस्यों को राष्ट्रपति मनोनीत करते हैं।

जिस तरह लोकसभा के कार्य संचालन के लिए एक अध्यक्ष होता है उसी तरह से राज्यसभा के कार्य संचालन के लिए भी एक अध्यक्ष होता है जिसे सभापति कहा जाता है। [राज्यसभा↗️ के बारे में विस्तार से जानें]

अनुच्छेद 80 में राज्यसभा की संरचना के बारे में बताया गया है। वहीं अनुच्छेद 89 के तहत राज्यसभा के लिए सभापति (Chairman) और उपसभापति (Deputy Chairman) की व्यवस्था की गई है।

लेकिन सवाल यही है कि अगर सभापति या उपसभापति को पद से हटाने का कोई संकल्प विचाराधीन है तो ऐसी स्थिति में उनके अधिकार है, क्या वो बैठक की अध्यक्षता कर सकते है?

अनुच्छेद 92 इसी सवाल का उत्तर देता है। इस अनुच्छेद के दो खंड है, आइये समझें;

अनुच्छेद 92 (1) के तहत बताया गया है कि राज्य सभा की किसी बैठक में, जब उपराष्ट्रपति को उसके पद से हटाने का कोई संकल्प विचाराधीन है तब सभापति, या जब उपसभापति को उसके पद से हटाने का कोई संकल्प विचाराधीन है तब उपसभापति, उपस्थित रहने पर भी, पीठासीन नहीं होगा और अनुच्छेद 91 के खंड (2) के उपबंध ऐसी प्रत्येक बैठक के संबंध में वैसे ही लागू होंगे जैसे वे उस बैठक के संबंध में लागू होते हैं जिससे, यथास्थिति, सभापति या उपसभापति अनुपस्थित है।

चूंकि उपराष्ट्रपति ही राज्यसभा का सभापति होता है इसीलिए उपराष्ट्रपति को पद से हटाये जाने का मतलब हुआ, सभापति को अपने पद से हटाना। उपराष्ट्रपति अपने पद से कैसे हट सकता है इसके बारे में अनुच्छेद 67 में बताया गया है।

अनुच्छेद 67(ख) में बताया गया है कि उपराष्ट्रपति को राज्यसभा के संकल्प द्वारा पद से हटाया जा सकता है। लेकिन यह संकल्प तत्कालीन समस्त सदस्यों के बहुमत से पारित होना चाहिए और लोकसभा की सहमति भी होना चाहिए।

वहीं उपसभापति की बात करें तो अनुच्छेद 90 में बताया गया है कि उपसभापति अपने पद से कैसे हट सकता है। अनुच्छेद 90(ग) में बताया गया है कि राज्यसभा के तत्कालीन समस्त सदस्यों के बहुमत से पारित संकल्प द्वारा अपने पद से हटाया जा सकता है।

अब अनुच्छेद 92(1) की बात करें तो इसमें दो बातें हैं;

पहली बात तो ये कि राज्य सभा की किसी बैठक में, जब उपराष्ट्रपति को उसके पद से हटाने का कोई संकल्प विचाराधीन है तब सभापति, पीठासीन (Presiding) नहीं होगा। यानि कि बैठक की अध्यक्षता नहीं करेगा भले ही वह उस सदन में उपस्थित हो।

दूसरी बात ये कि राज्य सभा की किसी बैठक में, जब उपसभापति को उसके पद से हटाने का कोई संकल्प विचाराधीन है तब उपसभापति, पीठासीन नहीं होगा, भले ही वह उस सदन में उपस्थित हों।

यहाँ यह याद रखिए कि अनुच्छेद 91 के खंड (2) के उपबंध ऐसी प्रत्येक बैठक के संबंध में वैसे ही लागू होंगे जैसे वे उस बैठक के संबंध में लागू होते हैं जिससे, सभापति या उपसभापति अनुपस्थित है।

अनुच्छेद 92 (2) के तहत बताया गया है कि जब उपराष्ट्रपति को उसके पद से हटाने का कोई संकल्प राज्य सभा में विचाराधीन है तब सभापति को राज्य सभा में बोलने और उसकी कार्यवाहियों में अन्यथा भाग लेने का अधिकार होगा, किन्तु वह अनुच्छेद 100 में किसी बात के होते हुए भी ऐसे संकल्प पर या ऐसी कार्यवाहियों के दौरान किसी अन्य विषय पर, मत देने का बिल्कुल हकदार नहीं होगा।

कहने का अर्थ है कि जब उपराष्ट्रपति को उसके पद से हटाने का कोई संकल्प राज्य सभा में विचाराधीन है तो सभापति राज्यसभा की कार्यवाहियों में भाग ले सकता है, बोल भी सकता है लेकिन मतदान नहीं कर सकता है।

यहाँ पर यह याद रखिए कि अनुच्छेद 91(1) के तहत राज्य सभा की उस बैठक में, जब उपराष्ट्रपति को उसके पद से हटाने का कोई संकल्प विचाराधीन है तब सभापति, पीठासीन (Presiding) नहीं होगा।

अनुच्छेद 100 में सदन में होने वाले मतदान के बारे में बताया गया है।

तो यही है अनुच्छेद 92 (Article 92), उम्मीद है आपको समझ में आया होगा। दूसरे अनुच्छेदों को समझने के लिए नीचे दिए गए लिंक का इस्तेमाल कर सकते हैं।

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संसद की बेसिक्स
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FAQ. अनुच्छेद 92(Article 92) क्या है?

अनुच्छेद 92 में बताया गया है कि जब सभापति या उपसभापति को पद से हटाने का कोई संकल्प विचाराधीन है तब वह पीठासीन अधिकारी के रूप में सदन की अध्यक्षता नहीं कर सकता है।
विस्तार से समझने के लिए लेख पढ़ें;

अस्वीकरण – यहाँ प्रस्तुत अनुच्छेद और उसकी व्याख्या, मूल संविधान (नवीनतम संस्करण), संविधान पर डी डी बसु की व्याख्या (मुख्य रूप से), एनसाइक्लोपीडिया, संबंधित मूल अधिनियम और संविधान के विभिन्न ज्ञाताओं (जिनके लेख समाचार पत्रों, पत्रिकाओं एवं इंटरनेट पर ऑडियो-विजुअल्स के रूप में उपलब्ध है) पर आधारित है। हमने बस इसे रोचक और आसानी से समझने योग्य बनाने का प्रयास किया है।