यह लेख अनुच्छेद 108 (Article 108) का यथारूप संकलन है। आप इसका हिन्दी और इंग्लिश दोनों अनुवाद पढ़ सकते हैं। आप इसे अच्छी तरह से समझ सके इसीलिए इसकी व्याख्या भी नीचे दी गई है आप उसे जरूर पढ़ें।

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Article 108

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📜 अनुच्छेद 108 (Article_108) – Original

विधायी प्रक्रिया
108. कुछ दशाओं में दोनों सदनों की संयुक्त बैठक — (1) यदि किसी विधेयक के एक सदन द्वारा पारित किए जाने और दूसरे सदन को पारेषित किए जाने के पश्चात —
(क) दूसरे सदन द्वारा विधेयक अस्वीकर कर दिया गया है, या
(ख) विधेयक में किए जाने वाले संशोधनों के बारे में दोनों सदन अंतिम रूप से असहमत हो गए हैं, या
(ग) दूसरे सदन को विधेयक प्रास होने की तारीख से उसके द्वारा विधेयक पारित किए बिना छह मास से अधिक बीत गए हैं,

तो उस दशा के सिवाय, जिसमें लोक सभा का विघटन होने के कारण विधेयक व्यपगत हो गया है, राष्ट्रपति विधेयक पर विचार-विमर्श करने और मत देने के प्रयोजन के लिए सदनों को संयुक्त बैठक में अधिवेशित होने के लिए आहूत करने के अपने आशय की सूचना, यदि वे बैठक में हैं तो संदेश द्वारा या यदि वे बैठक में नहीं हैं तो लोक अधिसूचना द्वारा देगा:

परन्तु इस खंड की कोई बात धन विधेयक को लागू नहीं होगी।

(2) छह मास की ऐसी अवधि की गणना करने में, जो खंड (1) में निर्दिष्ट है, किसी ऐसी अवधि को हिसाब में नहीं लिया जाएगा जिसमें उक्त खंड के उपखंड (ग) में निर्दिष्ट सदन सत्रावसित या निरंतर चार से अधिक दिनों के लिए स्थगित कर दिया जाता है।

(3) यदि राष्ट्रपति ने खंड (1) के अधीन सदनों को संयुक्त बैठक में अधिवेशित होने के लिए आहूत करने के अपने आशय की सूचना दे दी है ता कोई भी सदन विधेयक पर आगे कार्यवाही नहीं करेगा, किन्तु राष्ट्रपति अपनी अधिसूचना की तारीख के पश्चात्‌ किसी समय सदनों को अधिसूचना में विनिर्दिष्ट प्रयोजन के लिए संयुक्त बैठक में अधिवेशित होने के लिए आहूत कर सकेगा और, यदि वह ऐसा करता है तो, सदन तद्गुसार अधिवेशित होंगे।

(4) यदि सदनों की संयुक्त बैठक में विधेयक ऐसे संशोधनों सहित, यदि कोई हों, जिन पर संयुक्त बैठक में सहमति हो जाती है, दोनों सदनों के उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों की कुल संख्या के बहुमत द्वारा पारित हो जाता है तो इस संविधान के प्रयोजनों के लिए वह दोनों सदनों द्वारा पारित किया गया समझा जाएगा:

परन्तु संयुक्त बैठक में —
(क) यदि विधेयक एक सदन से पारित किए जाने पर दूसरे सदन द्वारा संशोधनों सहित पारित नहीं कर दिया गया है और उस सदन को, जिसमें उसका आरंभ हुआ था, लौटा नहीं दिया गया है तो ऐसे संशोधनों से भिन्‍न (यदि कोई हों), जों विधेयक के पारित होने में देरी के कारण आवश्यक हो गए हैं, विधेयक में कोई और संशोधन प्रस्थापित नहीं किया जाएगा।
(ख) यदि विधेयक इस प्रकार पारित कर दिया गया है और लौटा दिया गया है तो विधेयक में केवल पूर्वोक्त संशोधन, और ऐसे अन्य संशोधन, जो उन विषयों से सुसंगत हैं जिन पर सदनों में सहमति नहीं हई है, प्रस्थापित किए जाएंगे, और पीठासीन व्यक्ति का इस बारे में विनिश्चय अंतिम होगा कि कौन से संशोधन इस खंड के अधीन ग्राह्य हैं।

(5) सदनों की संयुक्त बैठक में अधिवेशित होने के लिए आहूत करने के अपने आशय की राष्ट्रपति की सूचना के पश्चात्‌, लोक सभा का विघटन बीच में हो जाने पर भी, इस अनुच्छेद के अधीन संयुक्त बैठक हो सकेगी और उसमें विधेयक पारित हो सकेगा।
—-अनुच्छेद 108—-

Legislative Process
108. Joint sitting of both Houses in certain cases — (1) If after a Bill has been passed by one House and transmitted to the other House —
(a) the Bill is rejected by the other House; or
(b) the Houses have finally disagreed as to the amendments to be made in the Bill; or
(c) more than six months elapse from the date of the reception of the Bill by the other House without the Bill being passed by it,
the President may, unless the Bill has elapsed by reason of a dissolution of the House of the People, notify to the Houses by message if they are sitting or by public notification if they are not sitting, his intention to summon them to meet in a joint sitting for the purpose of deliberating and voting on the Bill:

Provided that nothing in this clause shall apply to a Money Bill.

(2) In reckoning any such period of six months as is referred to in clause (1) no account shall be taken of any period during which the House referred to in sub-clause (c) of that clause is prorogued or adjourned for more than four consecutive days.

(3) Where the President has under clause (1) notified his intention of summoning the Houses to meet in a joint sitting, neither House shall proceed further with the Bill, but the President may at any time after the date of his
notification summon the Houses to meet in a joint sitting for the purpose specified in the notification and, if he does so, the Houses shall meet accordingly.

(4) If at the joint sitting of the two Houses the Bill, with such amendments, if any, as are agreed to in joint sitting, is passed by a majority of the total number of members of both Houses present and voting, it shall be deemed for the purposes of this Constitution to have been passed by both Houses:

Provided that at a joint sitting—
(a) if the Bill, having been passed by one House, has not been passed by the other House with amendments and returned to the House in which it originated, no amendment shall be proposed to the Bill other than such amendments (if any) as are made necessary by the delay in the passage of the Bill;
(b) if the Bill has been so passed and returned, only such amendments as aforesaid shall be proposed to the Bill and such other amendments as are relevant to the matters with respect to which the Houses have not agreed;

and the decision of the person presiding as to the amendments which are admissible under this clause shall be final.
(5) A joint sitting may be held under this article and a Bill passed thereat, notwithstanding that a dissolution of the House of the People has intervened since the President notified his intention to summon the Houses to meet therein.
Article 108

🔍 Article 108 Explanation in Hindi

अनुच्छेद 52 से लेकर 151 तक भारतीय संविधान के भाग 5 के तहत आता है। भाग 5 को 5 अध्यायों में बांटा गया है। इसी का दूसरा अध्याय है – संसद (Parliament)

संसद के तहत अनुच्छेद 79 से लेकर 122 तक आते हैं। और इस भाग के अंतर्गत संघ के संसद की चर्चा की गई है। जिसके तहत राष्ट्रपति (President), लोकसभा (Lok Sabha), एवं राज्यसभा (Rajya Sabha) आते हैं।

तो इस अध्याय के तहत आने वाले अनुच्छेदों में हम संसद (Parliament) को विस्तार से समझने वाले हैं। यहाँ यह याद रखिए कि संविधान के भाग 5 को संघ या The Union के नाम से भी जाना जाता है।

कुल मिलाकर संविधान के भाग 5 के अध्याय II अंतर्गत अनुच्छेद 79 से लेकर अनुच्छेद 122 तक आता है। इस लेख में हम अनुच्छेद 108 (Article 108) को समझने वाले हैं;

अनुच्छेद-39 – भारतीय संविधान
अनुच्छेद-21 – भारतीय संविधान
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| अनुच्छेद 108कुछ दशाओं में दोनों सदनों की संयुक्त बैठक

अनुच्छेद 79 के तहत, देश के सर्वोच्च प्रतिनिधि संस्था के रूप में संसद की व्यवस्था की गई है। संसद तीन घटकों से मिलकर बना है; राष्ट्रपति (President), लोकसभा (Lok Sabha) और राज्यसभा (Rajya Sabha)।

संसद में दो सदन है लोक सभा और राज्यसभा। लोकसभा में कुल 543 निर्वाचित सीटें हैं। भारत में संसद का दूसरा सदन भी है, जिसे राज्य सभा या राज्यों की परिषद के रूप में जाना जाता है। अभी फिलहाल 245 सीटें राज्यसभा में प्रभाव में है जिसमें से 233 सदस्यों को चुनने के लिए चुनाव होते हैं जबकि 12 सदस्यों को राष्ट्रपति मनोनीत करते हैं।

कुल मिलाकर अभी लोक सभा और राज्य सभा में 788 सदस्य है। और यही विधायिका (Legislator) है जो कि कानून बनाता है।

संसद में कानून बनाने की प्रक्रिया विधेयक (Bill) से शुरू होती है। विधेयक दरअसल कानून का एक ड्राफ्ट होता है जो बताता है कि कानून किस बारे में है और ये क्यों लाया जा रहा है।

अनुच्छेद 107 के तहत हमने समझा कि विधेयकों किसी सदन में पेश करने एवं उसे पास करने संबंधी नियम क्या है।

अनुच्छेद 108 में बताया गया है कि यदि दोनों सदनों में गतिरोध उत्पन्न हो जाए तो फिर विधेयकों को किस तरह से पारित किया जाएगा। इसके लिए दोनों सदनों की संयुक्त बैठक की व्यवस्था की गई है। इस अनुच्छेद के तहत कुल 5 खंड है। आइये इसे समझें;

अनुच्छेद-12 – भारतीय संविधान
Article 108 Explanation

Article 108(1) Explanation

अनुच्छेद 108(1) के तहत उन गतिरोधों की बात की गई है जिनके आधार पर राष्ट्रपति दोनों सदनों की संयुक्त बैठक बुला सकता है। सामान्यतः संसद के एक सदन में विधेयक पारित होने के बाद उसे दूसरे सदन में भेजा जाता है, यदि वो यहाँ से पास हो जाये तभी वह अधिनियम बन सकता है।

लेकिन हर बार ऐसा होता नहीं है कई बार कुछ मुद्दों को लेकर गतिरोध उत्पन्न हो जाता है और किसी सदन में जाकर वो विधेयक अटक जाता है। तो यदि कोई विधेयक एक सदन द्वारा पारित कर दिया गया हो और आगे की कार्रवाही के लिए उसे दूसरा सदन भेजा गया हो, लेकिन यदि —

(क) दूसरे सदन द्वारा विधेयक अस्वीकर कर दिया जाय, या
(ख) दूसरे सदन द्वारा विधेयक में संशोधन कर दिए जाए पर प्रथम सदन द्वारा उसे मानने से इंकार कर दिया जाय, या
(ग)* दूसरे सदन द्वारा बिना विधेयक को पास किए 6 महीने से ज्यादा समय हो जाय।

तो ऐसी स्थिति में राष्ट्रपति उस विधेयक पर विचार-विमर्श और मत (vote) देने के उद्देश्य से दोनों सदनों की संयुक्त बैठक (joint sitting of both houses) बुला सकता है।

लेकिन यहाँ पर दो बातें याद रखने योग्य है;

पहली बात तो ये कि वो विधेयक लोक सभा के विघटन के कारण समाप्त नहीं होना चाहिए। हमने अनुच्छेद 107 में समझा था कि –

(1) अगर कोई विधेयक लोक सभा में लंबित है तो लोक सभा के विघटन पर वह विधेयक समाप्त हो जाएगा।

(2) गर कोई विधेयक लोक सभा द्वारा पारित कर दिया गया हो और राज्य सभा में लंबित हो तो भी वह विधेयक लोक सभा के विघटन पर समाप्त हो जाएगा।

दूसरी बात ये कि इस खंड की कोई बात धन विधेयक को लागू नहीं होगी। यानि कि अगर वो विधेयक धन विधेयक है तो फिर दोनों सदनों की संयुक्त बैठक नहीं बुलाई जा सकती है। ऐसा इसीलिए क्योंकि धन विधेयक के मामले में राज्यसभा की भूमिका नगण्य होती है। इसे लोक सभा अपने ही दम पर संभालता है।

Article 108(2) Explanation

अनुच्छेद 108(2) के तहत यह व्यवस्था किया गया है कि छह मास की ऐसी अवधि की गणना करने में, जो खंड (1) में निर्दिष्ट है, किसी ऐसी अवधि को हिसाब में नहीं लिया जाएगा जिसमें उक्त खंड के उपखंड (ग) में निर्दिष्ट सदन सत्रावसित या निरंतर चार से अधिक दिनों के लिए स्थगित कर दिया जाता है।

हमने अनुच्छेद 108(1) के उपखंड (ग)* के तहत हमने समझा कि दूसरे सदन द्वारा बिना विधेयक को पास किए 6 महीने से ज्यादा समय हो जाए तो भी राष्ट्रपति संयुक्त बैठक का आह्वान कर सकता है।

लेकिन ये जो छह माह की अवधि है उसमें उस समय को नहीं गिना जाता है जब सदन सत्रावसित (Prorogated) हो या लगातार चार दिनों के लिए सदन स्थगित रहा हो।

Article 108(3) Explanation

अनुच्छेद 108(3) के तहत यह व्यवस्था किया गया है कि यदि राष्ट्रपति ने खंड (1) के अधीन सदनों को संयुक्त बैठक में अधिवेशित होने के लिए आहूत करने के अपने आशय की सूचना दे दी है तो कोई भी सदन विधेयक पर आगे कार्यवाही नहीं करेगा, किन्तु राष्ट्रपति अपनी अधिसूचना की तारीख के पश्चात्‌ किसी समय सदनों को अधिसूचना में विनिर्दिष्ट प्रयोजन के लिए संयुक्त बैठक में अधिवेशित होने के लिए आहूत कर सकेगा और, यदि वह ऐसा करता है तो, सदन तद्गुसार अधिवेशित होंगे।

कहने का अर्थ है कि अगर राष्ट्रपति ने ऐसी सूचना दे दी है कि वो संयुक्त बैठक बुलाने वाला है तो ऐसी स्थिति में सदन उस विधेयक पर आगे कोई कार्रवाई नहीं करेगा। भले ही राष्ट्रपति इस प्रयोजन के लिए इस सूचना के बाद कभी अधिवेशन की तारीख तय करें।

Article 108(4) Explanation

अनुच्छेद 108 (4) के तहत यह व्यवस्था किया गया है कि यदि विवादित विधेयक को इस संयुक्त बैठक में दोनों सदनों के उपस्थित एवं मत देने वाले सांसदों की संख्या के बहुमत से पारित कर दिया जाता है तो यह मान लिया जाएगा कि विधेयक को दोनों सदनों ने पारित कर दिया है।

लेकिन यहाँ पर दो बातें हैं;

पहली बात तो ये कि यदि एक सदन द्वारा पारित विधेयक को दूसरे सदन द्वारा संशोधनों सहित पारित नहीं कर दिया गया है और उस विधेयक को लौटाया भी नहीं गया है (जिसमें उसका आरंभ हुआ था)। तो ऐसी स्थिति में दोनों सदनों की संयुक्त बैठक में सिर्फ उन संशोधनों को लिया जाएगा जो कि विधेयक के पारित होने में देरी के कारण आवश्यक हो गए हैं। इसके अलावा कोई और संशोधन उस विधेयक में नहीं किया जाएगा।

कहने का अर्थ ये है की एक सदन द्वारा पारित विधेयक को दूसरे सदन द्वारा पारित करके पहले सदन को लौटना होता है (जिसमें उसका आरंभ हुआ था)। लेकिन अगर ऐसा नहीं किया जाता है और इसके फलस्वरूप जब दोनों सदनों की संयुक्त बैठक आयोजित की जाएगी तो उस बैठक में उस विधेयक में कोई संशोधन नहीं किया जाएगा सिवाय उस संशोधन के जो कि विधेयक के पारित होने में देरी के कारण बहुत जरूरी हो गए हैं (बस इतनी सी बात है)।

दूसरी बात ये कि यदि एक सदन द्वारा पारित विधेयक को दूसरे सदन द्वारा संशोधनों सहित पारित कर दिया गया है और पहले सदन को लौटा भी दिया गया है, लेकिन कुछ ऐसे संशोधन रह गए हैं जिन पर दोनों सदनों की सहमति नहीं बन पाई है। तो ऐसी स्थिति में दोनों सदनों की संयुक्त बैठक में केवल वही संशोधन (या उस विषय से सुसंगत कोई संशोधन) ही प्रस्थापित (proposed) किए जा सकता है।

हालांकि यहाँ यह याद रखिए कि इस तरह की स्थितियों में पीठासीन अधिकारी (यानि कि अध्यक्ष) का फैसला ही अतिम होगा। वहीं यह अंतिम निर्णय लेंगे कि कौन सा संशोधन उस विधेयक के तहत लेने योग्य है और कौन सा नहीं।

कुल मिलाकर मोटे तौर पर कहें तो दोनों सदनों की संयुक्त बैठक में संबन्धित विधेयक में दो प्रकार के संशोधन किए जा सकते हैं; पहला तो वे संशोधन जो कि विधेयक के पारित होने में देरी के कारण आवश्यक हो गए हैं और दूसरा वे जिनपर दोनों सदनों की सहमति नहीं बन पाई है या उस विषय से सुसंगत है।

[नोट – दोनों सदनों की संयुक्त बैठक की अध्यक्षता लोकसभा का अध्यक्ष करता है तथा उसकी अनुपस्थिति में उपाध्यक्ष इस दायित्व को निभाता है। यदि उपाध्यक्ष भी अनुपस्थित हो तो राज्यसभा का उप-सभापति यह दायित्व निभाता है।

यदि राज्यसभा का उप-सभापति भी अनुपस्थित हो तो संयुक्त बैठक में उपस्थित सदस्यों द्वारा इस बात का निर्णय किया जाता है कि इस संयुक्त बैठक अध्यक्षता कौन करेगा।

(यहाँ याद रखने वाली बात ये है कि संयुक्त बैठक की अध्यक्षता राज्यसभा का सभापति नहीं करता क्योंकि वह किसी भी सदन का सदस्य नहीं होता है।)]

Article 108(5) Explanation

अनुच्छेद 108 (5) के तहत सदनों की संयुक्त बैठक में अधिवेशित होने के लिए आहूत करने के अपने आशय की राष्ट्रपति की सूचना के पश्चात्‌, लोक सभा का विघटन बीच में हो जाने पर भी, इस अनुच्छेद के अधीन संयुक्त बैठक हो सकेगी और उसमें विधेयक पारित हो सकेगा।

कहने का अर्थ है कि यदि राष्ट्रपति ने संयुक्त बैठक बुलाने की सूचना दी है लेकिन यदि उस सूचना के बाद और संयुक्त बैठक होने से पहले लोक सभा का विघटन (Dissolution) हो जाता है तो भी संयुक्त बैठक आयोजित की जा सकेगी और और उसमें विधेयक पारित किया जा सकेगा।

विस्तार से पढ़ें – दोनों सदनों की संयुक्त बैठक

तो यही है अनुच्छेद 108 (Article 108), उम्मीद है आपको समझ में आया होगा। दूसरे अनुच्छेदों को समझने के लिए नीचे दिए गए लिंक का इस्तेमाल कर सकते हैं।

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FAQ. अनुच्छेद 108 (Article 108) क्या है?

अनुच्छेद 108 में बताया गया है कि यदि दोनों सदनों में गतिरोध उत्पन्न हो जाए तो फिर विधेयकों को किस तरह से पारित किया जाएगा। इसके लिए दोनों सदनों की संयुक्त बैठक की व्यवस्था की गई है। इस अनुच्छेद के तहत कुल 5 खंड है।
विस्तार से समझने के लिए लेख पढ़ें;

अस्वीकरण – यहाँ प्रस्तुत अनुच्छेद और उसकी व्याख्या, मूल संविधान (नवीनतम संस्करण), संविधान पर डी डी बसु की व्याख्या (मुख्य रूप से), एनसाइक्लोपीडिया, संबंधित मूल अधिनियम और संविधान के विभिन्न ज्ञाताओं (जिनके लेख समाचार पत्रों, पत्रिकाओं एवं इंटरनेट पर ऑडियो-विजुअल्स के रूप में उपलब्ध है) पर आधारित है। हमने बस इसे रोचक और आसानी से समझने योग्य बनाने का प्रयास किया है।