यह लेख Article 215 (अनुच्छेद 215) का यथारूप संकलन है। आप इस मूल अनुच्छेद का हिन्दी और इंग्लिश दोनों संस्करण पढ़ सकते हैं। आप इसे अच्छी तरह से समझ सके इसीलिए इसकी व्याख्या भी नीचे दी गई है आप उसे जरूर पढ़ें, और MCQs भी सॉल्व करें।
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📜 अनुच्छेद 215 (Article 215) – Original
भाग 6 “राज्य” [अध्याय 5 — राज्य का विधान मंडल] [राज्यों के उच्च न्यायालय] |
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215. उच्च न्यायालयों का अभिलेख न्यायालय होना— प्रत्येक उच्च न्यायालय अभिलेख न्यायालय होगा और उसको अपने अवमान के लिए दंड देने की शक्ति सहित ऐसे न्यायालय की सभी शक्तियां होंगी। |
Part VI “State” [CHAPTER V — The State Legislature] [The High Courts in the States] |
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215. High Courts to be courts of record—Every High Court shall be a court of record and shall have all the powers of such a court including the power to punish for contempt of itself. |
🔍 Article 215 Explanation in Hindi
भारतीय संविधान का भाग 6, अनुच्छेद 152 से लेकर अनुच्छेद 237 तक कुल 6 अध्यायों (Chapters) में विस्तारित है (जिसे कि आप नीचे टेबल में देख सकते हैं)।
Chapters | Title | Articles |
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I | साधारण (General) | Article 152 |
II | कार्यपालिका (The Executive) | Article 153 – 167 |
III | राज्य का विधान मंडल (The State Legislature) | Article 168 – 212 |
IV | राज्यपाल की विधायी शक्ति (Legislative Power of the Governor) | Article 213 |
V | राज्यों के उच्च न्यायालय (The High Courts in the States) | Article 214 – 232 |
VI | अधीनस्थ न्यायालय (Subordinate Courts) | Article 233 – 237 |
जैसा कि आप ऊपर देख सकते हैं, इस भाग के अध्याय 5 का नाम है “राज्यों के उच्च न्यायालय (The High Courts in the States)” और इसका विस्तार अनुच्छेद 214 से लेकर 232 तक है। इस लेख में हम अनुच्छेद 215 को समझने वाले हैं;
⚫ अनुच्छेद 129 – भारतीय संविधान |
| Article 215 – उच्च न्यायालयों का अभिलेख न्यायालय होना (High Courts to be courts of record)
न्याय (Justice) लोकतंत्र का एक आधारभूत स्तंभ है क्योंकि यह व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा करता है, कानून के शासन को बनाए रखता है, संघर्ष के समाधान की सुविधा देता है और निष्पक्षता और समानता को बढ़ावा देता है। यह लोकतांत्रिक संस्थानों को मजबूत करता है और समाज की समग्र भलाई और स्थिरता में योगदान देता है।
भारत में इसे सुनिश्चित करने के लिए संविधान द्वारा एकीकृत न्यायिक व्यवस्था (Integrated Judiciary System) की शुरुआत की गई है। इस व्यवस्था में उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) सबसे शीर्ष पर आता है, उसके बाद राज्यों उच्च न्यायालय (High Court) आता है और फिर उसके बाद जिलों का अधीनस्थ न्यायालय (Subordinate Court)।
संविधान का भाग 6, अध्याय V, राज्यों के उच्च न्यायालय की बात करता है। जिस तरह से अनुच्छेद 129 के तहत सुप्रीम कोर्ट को अभिलेख न्यायालय बनाया गया है उसी तरह से अनुच्छेद 215 के तहत उच्च न्यायालय को अभिलेख न्यायालय बनाया गया है।
अनुच्छेद 215 के तहत कहा गया है कि प्रत्येक उच्च न्यायालय अभिलेख न्यायालय होगा और उसको अपने अवमान के लिए दंड देने की शक्ति सहित ऐसे न्यायालय की सभी शक्तियां होंगी।
यहाँ पर दो बातें हैं;
पहली बात – उच्च न्यायालय अभिलेख न्यायालय होगा।
दूसरी बात – उच्च न्यायालय को अपने अवमान (Contempt) के लिए दंड देने की शक्ति होगी।
आइये दोनों को थोड़े विस्तार से समझते हैं;
उच्च न्यायालय का अभिलेख न्यायालय होना (High Court as a court of record):
कोर्ट ऑफ रिकॉर्ड (Court of Record) का मतलब है कि कार्यवाही को रिकॉर्ड (अभिलेख) के लिए भविष्य के संदर्भों के लिए रखना। इसका इस्तेमाल विश्वसनीय और अकाट्य साक्ष्य के रूप में किया जा सकता है।
कहने का अर्थ है कि उच्च न्यायालय की कार्यवाही एव उसके फैसले सार्वकालिक अभिलेख व साक्ष्य के रूप में रखे जाते हैं। खास बात ये है कि अन्य अदालत में चल रहे मामले के दौरान इन अभिलेखों पर प्रश्न नहीं उठाया जा सकता। बल्कि उसका इस्तेमाल मार्गदर्शन के लिए या विधिक संदर्भों में किया जाता है।
कुल मिलाकर, भारत में, उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों को अभिलेख न्यायालयों के रूप में मान्यता प्राप्त है। रिकॉर्ड के न्यायालयों के रूप में, उनके पास कुछ विशिष्ट विशेषताएं और शक्तियां हैं:
कार्यवाही की रिकॉर्डिंग (Recording of Proceedings): अभिलेख न्यायालय अपनी कार्यवाही का एक व्यापक और सटीक रिकॉर्ड बनाए रखते हैं, जिसमें मौखिक तर्क, प्रस्तुतियाँ और निर्णय शामिल होते हैं। इन अभिलेखों को सावधानीपूर्वक बनाए रखा जाता है और भविष्य के संदर्भ के लिए संरक्षित किया जाता है।
बाध्यकारी मिसालें (Binding Precedents): अभिलेख न्यायालयों में बाध्यकारी मिसालें बनाने की शक्ति है। कहने का अर्थ है कि इन अदालतों द्वारा दिए गए निर्णय और निर्णय कानून की आधिकारिक व्याख्या के रूप में काम करते हैं और कानूनी सिद्धांतों को स्थापित करते हैं जिसे कि निचली अदालतों को समान मामलों में पालन करना होता है।
अभिलेख न्यायालयों के रिकॉर्ड और निर्णय अन्य सबूतों के बिना अन्य अदालतों में सबूत के रूप में स्वीकार्य हैं। इसके अलावा, उनके निर्णयों को आधिकारिक माना जाता है और देश के कानूनी परिदृश्य पर इसका महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।
निष्कर्षतः एक अदालत को अभिलेख न्यायालय के रूप में पदनामित करना न्यायिक प्रणाली के भीतर इसकी उच्च स्थिति को दर्शाता है, इसके अधिकार, विश्वसनीयता और ऐतिहासिक महत्व को उजागर करता है।
उच्च न्यायालय को अपने अवमान के लिए दंड देने की शक्ति (Contempt of Court):
न्यायालय की अवमानना (Contempt of Court) न्यायालय की अपनी महिमा और सम्मान की रक्षा करने की शक्ति है। हालांकि ‘अदालत की अवमानना (contempt of court)’ को संविधान द्वारा परिभाषित नहीं किया गया है। लेकिन संविधान के अनुच्छेद 129 ने सर्वोच्च न्यायालय को और अनुच्छेद 215 ने उच्च न्यायालयों को स्वयं की अवमानना को दंडित करने की शक्ति प्रदान की।
दूसरे शब्दों में, उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालय के पास न्यायालय के अवमानना पर दंडित करने का अधिकार है। न्यायालय अवमानना अधिनियम, 1971 के तहत दीवानी और आपराधिक अवमानना दोनों को परिभाषित किया गया है।
दीवानी अवमानना (Civil Contempt) का अर्थ है अदालत के किसी भी फैसले की जानबूझ कर अवज्ञा करना।
आपराधिक अवमानना (Criminal Contempt) का आशय ऐसे कृत्यों से हैं जो कि अदालत के अधिकार को बदनाम करने या कम करने का काम करता है। या फिर न्यायिक प्रक्रिया में बाधा पहुंचाता है,या न्याय प्रशासन को किसी भी तरीके से रोकता है।
यहाँ यह याद रखिए कि किसी मामले का निर्दोष प्रकाशन और उसका वितरण न्यायिक कार्यवाही रिपोर्ट की निष्पक्ष, उचित आलोचना और प्रशासनिक दिशा से इस पर टिप्पणी को न्यायालय की अवमानना में नहीं माना जाता।
अभिलेख का न्यायालय (Court of Record) का न्यायालय की अवमानना (Contempt of court) से क्या संबंध है?
जैसा कि हमने ऊपर भी समझा कि ‘कोर्ट ऑफ रिकॉर्ड’ का अर्थ है एक ऐसा न्यायालय जिसके कार्य और कार्यवाहियां चिरस्थायी स्मृति के लिए पंजीकृत हैं या वह स्मृति या सबूत है जिसका कोई अंत नहीं है। इसका इस्तेमाल विश्वसनीय और अकाट्य साक्ष्य के रूप में किया जा सकता है।
इन अभिलेखों की सच्चाई पर सवाल नहीं उठाया जा सकता है और इन अभिलेखों को उच्च प्राधिकारी के रूप में भी माना जाता है। और इन अभिलेखों की सत्यता के विरुद्ध कही गई किसी भी बात में न्यायालय की अवमानना शामिल है। इसीलिए अदालतों के फैसले के खिलाफ कुछ भी गलत टिप्पणी करने से न्यायालय की अवमानना होती है।
इस टॉपिक के बारे में जानने को और भी बहुत कुछ है, तो अगर इससे भी ज्यादा विस्तार में न्यायालय की अवमानना को समझना है तो दिए गए लेख को पढ़ें;
⚫ न्यायालय की अवमानना (Contempt of Court)↗ |
तो यही है अनुच्छेद 215, उम्मीद है आपको समझ में आया होगा। दूसरे अनुच्छेदों को समझने के लिए नीचे दिए गए लिंक का इस्तेमाल कर सकते हैं।
◾ उच्चतम न्यायालय (Supreme Court of India): Overview ◾ उच्च न्यायालय (High Court): गठन, भूमिका, स्वतंत्रता |
सवाल-जवाब के लिए टेलीग्राम जॉइन करें; टेलीग्राम पर जाकर सर्च करे – @upscandpcsofficial
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अस्वीकरण – यहाँ प्रस्तुत अनुच्छेद और उसकी व्याख्या, मूल संविधान (उपलब्ध संस्करण), संविधान पर डी डी बसु की व्याख्या (मुख्य रूप से), प्रमुख पुस्तकें (एम. लक्ष्मीकान्त, सुभाष कश्यप, विद्युत चक्रवर्ती, प्रमोद अग्रवाल इत्यादि) एनसाइक्लोपीडिया, संबंधित मूल अधिनियम और संविधान के विभिन्न ज्ञाताओं (जिनके लेख समाचार पत्रों, पत्रिकाओं एवं इंटरनेट पर ऑडियो-विजुअल्स के रूप में उपलब्ध है) पर आधारित है। हमने बस इसे रोचक और आसानी से समझने योग्य बनाने का प्रयास किया है। |