यह लेख Article 218 (अनुच्छेद 218) का यथारूप संकलन है। आप इस मूल अनुच्छेद का हिन्दी और इंग्लिश दोनों संस्करण पढ़ सकते हैं। आप इसे अच्छी तरह से समझ सके इसीलिए इसकी व्याख्या भी नीचे दी गई है आप उसे जरूर पढ़ें, और MCQs भी सॉल्व करें।
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📜 अनुच्छेद 218 (Article 218) – Original
भाग 6 “राज्य” [अध्याय 5 — राज्य का विधान मंडल] [राज्यों के उच्च न्यायालय] |
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218. उच्चतम न्यायालय से संबंधित कुछ उपबंधों का उच्च न्यायालयों को लागू होना — अनुच्छेद 124 के खंड (4) और खंड (5) के उपबंध, जहां-जहां उनमें उच्चतम न्यायालय के प्रति निर्देश है वहां-वहां उच्च न्यायालय के प्रति निर्देश प्रतिस्थापित करके, उच्च न्यायालय के संबंध में वैसे ही लागू होंगे जैसे वे उच्चतम न्यायालय के संबंध में लागू होते हैं। |
Part VI “State” [CHAPTER V — The State Legislature] [The High Courts in the States] |
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218. Application of certain provisions relating to Supreme Court to High Courts— The provisions of clauses (4) and (5) of article 124 shall apply in relation to a High Court as they apply in relation to the Supreme Court with the substitution of references to the High Court for references to the Supreme Court. |
🔍 Article 218 Explanation in Hindi
भारतीय संविधान का भाग 6, अनुच्छेद 152 से लेकर अनुच्छेद 237 तक कुल 6 अध्यायों (Chapters) में विस्तारित है (जिसे कि आप नीचे टेबल में देख सकते हैं)।
Chapters | Title | Articles |
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I | साधारण (General) | Article 152 |
II | कार्यपालिका (The Executive) | Article 153 – 167 |
III | राज्य का विधान मंडल (The State Legislature) | Article 168 – 212 |
IV | राज्यपाल की विधायी शक्ति (Legislative Power of the Governor) | Article 213 |
V | राज्यों के उच्च न्यायालय (The High Courts in the States) | Article 214 – 232 |
VI | अधीनस्थ न्यायालय (Subordinate Courts) | Article 233 – 237 |
जैसा कि आप ऊपर देख सकते हैं, इस भाग के अध्याय 5 का नाम है “राज्यों के उच्च न्यायालय (The High Courts in the States)” और इसका विस्तार अनुच्छेद 214 से लेकर 232 तक है। इस लेख में हम अनुच्छेद 218 को समझने वाले हैं;
⚫ अनुच्छेद 124 – भारतीय संविधान |
| अनुच्छेद 218 – उच्चतम न्यायालय से संबंधित कुछ उपबंधों का उच्च न्यायालयों को लागू होना (Application of certain provisions relating to Supreme Court to High Courts)
न्याय (Justice) लोकतंत्र का एक आधारभूत स्तंभ है क्योंकि यह व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा करता है, कानून के शासन को बनाए रखता है, संघर्ष के समाधान की सुविधा देता है और निष्पक्षता और समानता को बढ़ावा देता है। यह लोकतांत्रिक संस्थानों को मजबूत करता है और समाज की समग्र भलाई और स्थिरता में योगदान देता है।
भारत में इसे सुनिश्चित करने के लिए संविधान द्वारा एकीकृत न्यायिक व्यवस्था (Integrated Judiciary System) की शुरुआत की गई है। इस व्यवस्था में उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) सबसे शीर्ष पर आता है, उसके बाद राज्यों उच्च न्यायालय (High Court) आता है और फिर उसके बाद जिलों का अधीनस्थ न्यायालय (Subordinate Court)।
संविधान का भाग 6, अध्याय V, राज्यों के उच्च न्यायालय की बात करता है। अनुच्छेद 218 के तहत उच्चतम न्यायालय से संबंधित कुछ उपबंधों का उच्च न्यायालयों को लागू होना वर्णित है।
अनुच्छेद 218 के तहत बताया गया है कि अनुच्छेद 124 के खंड (4) और खंड (5) के उपबंध, जहां-जहां उनमें उच्चतम न्यायालय के प्रति निर्देश है वहां-वहां उच्च न्यायालय के प्रति निर्देश प्रतिस्थापित करके, उच्च न्यायालय के संबंध में वैसे ही लागू होंगे जैसे वे उच्चतम न्यायालय के संबंध में लागू होते हैं।
अनुच्छेद 124 का खंड (4) उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों को उसके पद से हटाने के बारे में है। वहीं अनुच्छेद 124 का खंड (5) सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों का कदाचार या असमर्थता साबित करने की प्रक्रिया के बारे में है।
चूंकि अनुच्छेद 218 में कहा गया है कि जहां-जहां उच्चतम न्यायालय के प्रति निर्देश है उसे उच्च न्यायालय के प्रति निर्देश समझा जाए, ऐसे में आइये अनुच्छेद 124 का खंड (4) और (5) पर चर्चा करते हैं;
अनुच्छेद 124 का खंड (4) कहता है कि उच्चतम न्यायालय के किसी न्यायाधीश को उसके पद से तब तक नहीं हटाया जाएगा जब तक साबित कदाचार या असमर्थता के आधार पर ऐसे हटाए जाने के लिए संसद् के प्रत्येक सदन द्वारा अपनी कुल सदस्य संख्या के बहुमत द्वारा तथा उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों के कम से कम दो-तिहाई बहुमत द्वारा समर्थित समावेदन, राष्ट्रपति के समक्ष उसी सत्र में रखे जाने पर राष्ट्रपति ने आदेश नहीं दे दिया है।
इस खंड के तहत न्यायाधीशों को पद से हटाने की विधि (method) के बारे में बताया गया है। न्यायाधीशों को राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है लेकिन राष्ट्रपति उसे अपने मन से हटा नहीं सकता है।
अनुच्छेद 124(4) के तहत, राष्ट्रपति उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश को उसके पद से तभी हटा सकता है, जब उस न्यायाधीश को हटाने का आधार (कदाचार या असमर्थता) सिद्ध हो जाये और उसके बाद संसद के दोनों सदनों के विशेष बहुमत से इस प्रस्ताव को पास किया जाये।
विशेष बहुमत (Special Majority) मतलब, प्रत्येक सदन के कुल सदस्य संख्या का बहुमत और उपस्थित और मतदान में भाग लेने वाले सदस्यों का दो-तिहाई बहुमत।
यही नियम उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को हटाने के मामले में भी लागू होता है;
यानि कि हाई कोर्ट के न्यायाधीश को राष्ट्रपति के आदेश से पद से हटाया जा सकता है। लेकिन हटाने के आधार सिद्ध कदाचार या अक्षमता (misbehaviour or incapacity) होनी चाहिए।
इसी के साथ ही न्यायाधीश को हटाने के प्रस्ताव को प्रत्येक सदन के विशेष बहुमत से पारित होना चाहिए। वो भी उसी सत्र में जिस सत्र में हटाने का प्रस्ताव लाया गया है। इसे ही महाभियोग (Impeachment) द्वारा हटाया जाना कहते हैं;
यह जानना रोचक है कि अब तक उच्च न्यायालय के किसी न्यायाधीश पर महाभियोग नहीं लगाया गया है।
लेकिन सवाल यही आता है कि न्यायाधीश को हटाने का आधार कैसे सिद्ध होगा, इसी के बारे में अगले खंड “खंड (5)” में बताया गया है।
अनुच्छेद 124 का खंड (5) कहता है कि संसद खंड (4) के अधीन किसी समावेदन के रखे जाने की तथा न्यायाधीश के कदाचार या असमर्थता के अन्वेषण और साबित करने की प्रक्रिया का विधि द्वारा विनियमन कर सकेगी।
इस खंड के तहत यह व्यवस्था किया गया है कि अनुच्छेद 124(4) के तहत जो न्यायाधीश को हटाने का प्रस्ताव जो सदन में पेश किया जाएगा, उसके बाद जो उसकी कदाचार या असमर्थता (misbehaviour or incapacity) साबित करने की प्रक्रिया होगी, वो संसद निर्धारित करेगा।
संसद ने इसी को निर्धारित करने के लिए बकायदे एक कानून बनाया जिसका नाम है ‘न्यायाधीश जांच अधिनियम 1968 (Judges enquiry Act 1968)↗‘। इसमें उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को हटाने के संबंध में महाभियोग की प्रक्रिया वर्णन है। इसके अनुसार न्यायाधीश को हटाने की निम्नलिखित प्रक्रिया है –
1. निष्कासन प्रस्ताव पर लोकसभा अध्यक्ष या राज्यसभा सभापति तभी विचार करेगा जब उस प्रस्ताव को लोकसभा में 100 सदस्यों और राज्यसभा में 50 सदस्यों से लिखित सहमति मिलेगी।
2. इतना होने के बावजूद भी ये अध्यक्ष या सभापति पर निर्भर करता है कि वे इसे स्वीकृति दे या नहीं। यानी कि इस प्रस्ताव को ये शामिल भी कर सकते है या इसे अस्वीकार भी कर सकते हैं।
3. यदि इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया जाये तो अध्यक्ष या सभापति को इसकी जांच के लिए तीन सदस्यीय समिति गठित करनी होगी। इस समिति में शामिल होना चाहिए –
(1) मुख्य न्यायाधीश या उच्चतम न्यायालय का कोई न्यायाधीश,
(2) किसी उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश , और
(3) प्रतिष्ठित न्यायवादी (Eminent jurist)।
4. यदि यह समिति न्यायाधीश को दुर्व्यवहार का दोषी या असक्षम पाती है तो इस प्रस्ताव पर विचार कर सकता है।
5. इसके बाद विशेष बहुमत से दोनों सदनों में प्रस्ताव पारित कर इसे राष्ट्रपति को भेजा जाता है और अंत में राष्ट्रपति न्यायाधीश को हटाने का आदेश जारी कर देते हैं।
यहाँ यह जानना रोचक है कि उच्चतम न्यायालय के किसी न्यायाधीश पर अब तक महाभियोग नहीं लगाया गया है। एक बार ऐसा मौका बना भी था जब उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश वी रामास्वामी (1991-1993) को जांच समिति द्वारा दुर्व्यवहार का दोषी पाया गया था। पर वे इसलिए नहीं हटाए जा सके क्योंकि यह लोकसभा में पारित नहीं हो सका। कॉंग्रेस पार्टी मतदान से अलग हो गई थी।
कुल मिलाकर उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश और उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को हटाना लगभग एक सा ही है। हालांकि यहां यह याद रखिए कि अनुच्छेद 217 के खंड में भी उपरोक्त क्लॉज़ का वर्णन है;
उसमें कहा गया है कि किसी उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को, उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश को हटाने के लिए अनुच्छेद 124 के खंड (4) में उपबंधित रीति से उसके पद से राष्ट्रपति द्वारा हटाया जा सकेगा। विस्तार से समझने के लिए अनुच्छेद 217 पढ़ें;
तो यही है अनुच्छेद 218 , उम्मीद है आपको समझ में आया होगा। दूसरे अनुच्छेदों को समझने के लिए नीचे दिए गए लिंक का इस्तेमाल कर सकते हैं।
◾ उच्चतम न्यायालय (Supreme Court of India): Overview ◾ उच्च न्यायालय (High Court): गठन, भूमिका, स्वतंत्रता |
सवाल-जवाब के लिए टेलीग्राम जॉइन करें; टेलीग्राम पर जाकर सर्च करे – @upscandpcsofficial
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अस्वीकरण – यहाँ प्रस्तुत अनुच्छेद और उसकी व्याख्या, मूल संविधान (उपलब्ध संस्करण), संविधान पर डी डी बसु की व्याख्या (मुख्य रूप से), प्रमुख पुस्तकें (एम. लक्ष्मीकान्त, सुभाष कश्यप, विद्युत चक्रवर्ती, प्रमोद अग्रवाल इत्यादि) एनसाइक्लोपीडिया, संबंधित मूल अधिनियम और संविधान के विभिन्न ज्ञाताओं (जिनके लेख समाचार पत्रों, पत्रिकाओं एवं इंटरनेट पर ऑडियो-विजुअल्स के रूप में उपलब्ध है) पर आधारित है। हमने बस इसे रोचक और आसानी से समझने योग्य बनाने का प्रयास किया है। |