यह लेख अनुच्छेद 123 (Article 123) का यथारूप संकलन है। आप इसका हिन्दी और इंग्लिश दोनों अनुवाद पढ़ सकते हैं। आप इसे अच्छी तरह से समझ सके इसीलिए इसकी व्याख्या भी नीचे दी गई है आप उसे जरूर पढ़ें।

पाठकों से अपील 🙏
Bell आइकॉन पर क्लिक करके हमारे नोटिफ़िकेशन सर्विस को Allow कर दें ताकि आपको हरेक नए लेख की सूचना आसानी से प्राप्त हो जाए। साथ ही नीचे दिए गए हमारे सोशल मीडिया हैंडल से जुड़ जाएँ और नवीनतम विचार-विमर्श का हिस्सा बनें;
⬇️⬇️⬇️
Article 123

सवाल-जवाब के लिए टेलीग्राम जॉइन करें; टेलीग्राम पर जाकर सर्च करे – @upscandpcsofficial


📜 अनुच्छेद 123 (Article 123) – Original

राष्ट्रपति की विधायी शक्तियाँ
123. संसद के विश्रांतिकाल में अध्यादेश प्रख्यापित करने की राष्ट्रपति की शक्ति — (1) उस समय को छोड़कर जब संसद्‌ के दोनों सदन सत्र में हैं, यदि किसी समय राष्ट्रति का यह समाधान हो जाता है कि ऐसी परिस्थितियां विद्यमान हैं जिनके कारण तुरन्त कार्रवाई करना उसके लिए आवश्यक हो गया है तो वह ऐसे अध्यादेश प्रख्यापित कर सकेगा जो उसे उन परिस्थितियों में अपेक्षित प्रतीत हों।

(2) इस अनुच्छेद के अधीन प्रख्यापित अध्यादेश का वही बल और प्रभाव होगा जो संसद्‌ के अधिनियम का होता है, किन्तु प्रत्येक ऐसा अध्यादेश—
(क) संसद्‌ के दोनों सदनों के समक्ष रखा जाएगा और संसद्‌ के पुनः समवेत होने से छह सप्ताह की समाप्ति पर या यदि उस अवधि की समाप्ति से पहले दोनों सदन उसके अननुमोदन का संकल्प पारित कर देते हैं तो, इनमें से दूसरे संकल्प के पारित होने पर प्रवर्तन में नहीं रहेगा ; और
(ख) राष्ट्रपति द्वारा किसी भी समय वापस लिया जा सकेगा।

स्पष्टीकरण — जहां संसद्‌ के सदन, भिन्‍न-भिन्‍न तारीखों को पुनः समवेत होने के लिए, आहत किए जाते हैं वहां इस खंड के प्रयोजनों के लिए, छह सप्ताह की अवधि की गणना उने तारीखों में से पश्चातवर्ती तारीख से की जाएगी।

(3) यदि और जहां तक इस अनुच्छेद के अधीन अध्यादेश कोई ऐसा उपबंध करता है जिसे अधिनियमित करने के लिए संसद्‌ इस संविधान के अधीन सक्षम नहीं है तो और वहां तक वह अध्यादेश शून्य होगा।

1(4)* ———*——————* ——————*
==========
1. संविधान (चवालीसवाँ संशोधन) अधिनियम 1978 की धारा 16 द्वारा (20-6-1979 से) खंड (4) का लोप किया गया। इससे पूर्व यह खंड संविधान (अड़तीसवां संशोधन) अधिनयम 1975 की धारा 2 द्वारा (भूतलक्षी प्रभाव से) अंतःस्थापित किया गया था।
अनुच्छेद 123

Legislative Powers of the President
123. Power of President to promulgate Ordinances during recess of Parliament.— (1) If at any time, except when both Houses of Parliament are in session, the President is satisfied that circumstances exist which render it necessary for him to take immediate action, he may promulgate such Ordinances as the circumstances appear to him to require.

(2) An Ordinance promulgated under this article shall have the same force and effect as an Act of Parliament, but every such Ordinance—
(a) shall be laid before both Houses of Parliament and shall cease to operate at the expiration of six weeks from the reassembly of Parliament, or, if before the expiration of that period resolutions disapproving it are passed by both Houses, upon the passing of the second of those resolutions; and
(b) may be withdrawn at any time by the President.

Explanation.—Where the Houses of Parliament are summoned to reassemble on different dates, the period of six weeks shall be reckoned from the later of those dates for the purposes of this clause.

(3) If and so far as an Ordinance under this article makes any provision which Parliament would not under this Constitution be competent to enact, it shall be void.

1(4)*——-* ———————-* ————————*
===========
1. . Ins. by the Constitution (Thirty-eighth Amendment) Act, 1975, s. 2 (with retrospective effect) and omitted by the Constitution (Forty-fourth Amendment) Act, 1978, s. 16 (w.e.f. 20-6-1979).
Article 123

🔍 Article 123 Explanation in Hindi

अनुच्छेद 52 से लेकर 151 तक भारतीय संविधान के भाग 5 के तहत आता है। भाग 5 को 5 अध्यायों में बांटा गया है। इसी का तीसरा अध्याय है – राष्ट्रपति की विधायी शक्तियाँ (Legislative Powers of the President)

संसद के इस अध्याय के तहत सिर्फ 1 ही अनुच्छेद आते हैं वो है अनुच्छेद 123।

कुल मिलाकर संविधान के भाग 5 के अध्याय III के अंतर्गत अनुच्छेद 123 आता है। इस लेख में हम अनुच्छेद 123 (Article 123) को समझने वाले हैं;

अनुच्छेद-39 – भारतीय संविधान
अनुच्छेद-21 – भारतीय संविधान
—————————

| अनुच्छेद 123 – संसद के विश्रांतिकाल में अध्यादेश प्रख्यापित करने की राष्ट्रपति की शक्ति

अनुच्छेद 79 के तहत, देश के सर्वोच्च प्रतिनिधि संस्था के रूप में संसद की व्यवस्था की गई है। संसद तीन घटकों से मिलकर बना है; राष्ट्रपति (President), लोकसभा (Lok Sabha) और राज्यसभा (Rajya Sabha)।

संसद में दो सदन है लोक सभा (House of the People) और राज्यसभा (Council of States)। लोकसभा में कुल 543 निर्वाचित सीटें हैं, जो कि प्रत्यक्ष मतदान द्वारा चुनकर आते हैं।

वहीं राज्यसभा में अभी फिलहाल 245 सीटें है जिसमें से 233 सदस्यों को चुनने के लिए चुनाव होते हैं जबकि 12 सदस्यों को राष्ट्रपति मनोनीत करते हैं।

संसद का मुख्य काम है कानून बनाना। लेकिन जैसा कि एक कहावत है – ‘सब दिन होत न एक समान’। ये कहावत राजनीति में भी ज्यादा चरितार्थ हो जाता है, चूंकि सब दिन संसद चल नहीं सकता है। आखिर उसे भी रेस्ट की जरूरत पड़ती ही है। फिर ऐसे में विधि बनाने का काम कौन करेगा?

अनुच्छेद 123 के तहत संसद के विश्रांतिकाल (recess of Parliament) में अध्यादेश जारी करने की राष्ट्रपति की शक्ति के बारे में बताया गया है। इसके तहत कुल 3 खंड है। आइये समझें;

क्या हो अगर संसद का सत्रावसान हो गया हो या फिर कहें कि वो छुट्टी पर हो और राजनीतिक स्थिति कुछ इस तरह से बदल जाए कि किसी कानून की सख्त जरूरत आन परे तो ऐसी ऐसी स्थिति में क्या किया जाएगा?

इसी स्थिति को ध्यान में रखकर संविधान ने अनुच्छेद 123 के तहत राष्ट्रपति को ये अधिकार दिया है कि वो अध्यादेश (Ordinance) जारी कर सकता है।

अनुच्छेद-31- भारतीय संविधान

Article 123(1) Explanation

अनुच्छेद 123(1) के तहत कहा गया है कि उस समय को छोड़कर जब संसद्‌ के दोनों सदन सत्र में हैं, यदि किसी समय राष्ट्रपति का यह समाधान हो जाता है कि ऐसी परिस्थितियां विद्यमान हैं जिनके कारण तुरन्त कार्रवाई करना उसके लिए आवश्यक हो गया है तो वह ऐसे अध्यादेश प्रख्यापित कर सकेगा जो उसे उन परिस्थितियों में अपेक्षित प्रतीत हों।

इस खंड के तहत राष्ट्रपति, केवल तीन स्थितियों में अध्यादेश जारी कर सकता है;

1. जब संसद के दोनों सदन का सत्र न चल रहा हो।

2. जब लोकसभा का सत्रावसान हो गया हो लेकिन राज्यसभा चल रहा हो।

3. जब लोकसभा चल रहा हो लेकिन राज्य सभा का सत्रावसान हो गया हो।

यानी कि अध्यादेश उस समय भी जारी किया जा सकता है जब संसद में केवल एक सदन का सत्र चल रहा हो क्योंकि जाहिर है कोई भी विधेयक दोनों सदनों द्वारा पारित किया जाना होता है न की केवल एक सदन द्वारा।

इससे एक बात और समझ सकते हैं कि जब संसद के दोनों सदनों का सत्र चल रहा हो उस समय अध्यादेश जारी नहीं किया जा सकता है।

Article 123(2) Explanation

अनुच्छेद 123(2) के तहत मुख्य रूप से तीन बातें कहीं गई है;

पहली बात – अध्यादेश की वही संवैधानिक सीमाएं होती है, जो संसद द्वारा बनाए गए किसी कानून की होती हैं। यानि कि अध्यादेश का वही बल और प्रभाव होता जो संसद के अधिनियम का होता है। इस मामले में दोनों में कोई अंतर नहीं होती है।

दूसरी बात – अध्यादेश तभी जारी किया जाता है जब संसद सत्र न चल रहा हो। संसद में जब भी सत्रावसान होता है तो नियम ये है कि दो सत्रावसानों के बीच अधिकतम 6 महीने से ज्यादा का गैप न हो। आमतौर पर होता भी नहीं है।

इसीलिए अध्यादेश की अधिकतम अवधि 6 महीने तक है। क्योंकि जाहिर है इन 6 महीनों के अंदर संसद का सत्र चालू हो ही जाएगा।

संसद का सत्र जैसे ही चालू हो जाएगा उसके 6 सप्ताह के भीतर उस अध्यादेश को दोनों सदनों के समक्ष प्रस्तुत किया जाना चाहिए।

यदि संसद के दोनों सदन उस अध्यादेश को पारित कर देती है तो वह कानून का रूप धारण कर लेता है। और अगर उस अध्यादेश को संसद अस्वीकृत कर दें तो वह अध्यादेश वही समाप्त हो जाता है।

अगर उसे संसद में पेश नहीं किया जाएगा तो बैठक शुरू होने के 6 सप्ताह के बाद वो अपने आप ही समाप्त हो जाएगा। और अगर बैठक शुरू नहीं होता है तो अधिकतम 6 महीने तक वो अध्यादेश वैध रह सकता है।

▶ लेकिन यहाँ याद रखिए यदि कोई अध्यादेश संसद के सभापटल पर रखने से पूर्व ही समाप्त हो जाता है तो इस अध्यादेश के अंतर्गत किए गए कार्य तब भी वैध व प्रभावी रहेंगे।

एक बात और याद रखिए कि यदि संसद का दोनों सदन अलग-अलग तिथियों पर शुरू होता है तो 6 सप्ताह की गणना; जो सदन सबसे बाद में जो शुरू हुआ होगा, वहाँ से होगा।

तीसरी बातराष्ट्रपति किसी भी समय किसी अध्यादेश को वापस ले सकता है। लेकिन वो अपने मन से ऐसा नहीं कर सकता है।

वह किसी भी अध्यादेश को प्रधानमंत्री के नेतृत्व वाले मंत्रिमंडल की सलाह पर ही जारी करता है और उसी की सलाह पर खत्म भी कर सकता है।

Article 123(3) Explanation

अनुच्छेद 123(3) के तहत कहा गया है कि यदि और जहां तक इस अनुच्छेद के अधीन अध्यादेश कोई ऐसा उपबंध करता है जिसे अधिनियमित करने के लिए संसद्‌ इस संविधान के अधीन सक्षम नहीं है तो और वहां तक वह अध्यादेश शून्य होगा।

कहने का अर्थ है कि अध्यादेश केवल उन्ही मुद्दों पर जारी जा सकता है जिन पर संसद कानून बना सकती है। यानी कि किसी ऐसे मुद्दे पर अध्यादेश नहीं लाया जा सकता है जिस मुद्दे पर किसी भी कारण से संसद भी कानून नहीं बना सकती हो।

यानि कि अध्यादेश की वही संवैधानिक सीमाएं होती है, जो संसद द्वारा बनाए गए किसी कानून की होती हैं। अतः एक अध्यादेश किसी भी मौलिक अधिकार का लघुकरण अथवा उसको छीन नहीं सकता।

अगर ऐसा होता है तो उसे न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है और न्यायालय उस अध्यादेश का उसी तरह से समीक्षा कर सकती है जैसे कि वो नॉर्मल कानून का करती है।

यहाँ से विस्तार से समझें – अध्यादेश (Ordinance) कॉन्सेप्ट

तो यही है अनुच्छेद 123 (Article 123), उम्मीद है आपको समझ में आया होगा। दूसरे अनुच्छेदों को समझने के लिए नीचे दिए गए लिंक का इस्तेमाल कर सकते हैं।

| Related Article

⚫ अनुच्छेद 124 – भारतीय संविधान
अनुच्छेद- 122 – भारतीय संविधान
—————————
भारतीय संविधान
संसद की बेसिक्स
मौलिक अधिकार बेसिक्स
भारत की न्यायिक व्यवस्था
भारत की कार्यपालिका
—————————–
FAQ. अनुच्छेद 123 (Article 123) क्या है?

संसद का मुख्य काम है कानून बनाना। लेकिन चूंकि सब दिन संसद चल नहीं सकता है। आखिर उसे भी रेस्ट की जरूरत पड़ती ही है। फिर ऐसे में विधि बनाने का काम कौन करेगा? इसी को ध्यान में रखकर अनुच्छेद 123 के तहत संसद के विश्रांतिकाल (recess of Parliament) में अध्यादेश जारी करने की शक्ति राष्ट्रपति को दी गई है। इसके तहत कुल 3 खंड है।
विस्तार से समझने के लिए लेख पढ़ें;

अस्वीकरण – यहाँ प्रस्तुत अनुच्छेद और उसकी व्याख्या, मूल संविधान (उपलब्ध संस्करण), संविधान पर डी डी बसु की व्याख्या (मुख्य रूप से), प्रमुख पुस्तकें (एम. लक्ष्मीकान्त, सुभाष कश्यप, प्रमोद अग्रवाल इत्यादि) एनसाइक्लोपीडिया, संबंधित मूल अधिनियम और संविधान के विभिन्न ज्ञाताओं (जिनके लेख समाचार पत्रों, पत्रिकाओं एवं इंटरनेट पर ऑडियो-विजुअल्स के रूप में उपलब्ध है) पर आधारित है। हमने बस इसे रोचक और आसानी से समझने योग्य बनाने का प्रयास किया है।