यह लेख Article 217 (अनुच्छेद 217) का यथारूप संकलन है। आप इस मूल अनुच्छेद का हिन्दी और इंग्लिश दोनों संस्करण पढ़ सकते हैं। आप इसे अच्छी तरह से समझ सके इसीलिए इसकी व्याख्या भी नीचे दी गई है आप उसे जरूर पढ़ें, और MCQs भी सॉल्व करें।

Bell आइकॉन पर क्लिक करके हमारे नोटिफ़िकेशन सर्विस को Allow कर दें ताकि आपको हरेक नए लेख की सूचना आसानी से प्राप्त हो जाए। साथ ही नीचे दिए गए हमारे सोशल मीडिया हैंडल से जुड़ जाएँ और नवीनतम विचार-विमर्श का हिस्सा बनें। खासकर के टेलीग्राम और यूट्यूब से जरूर जुड़ जाएं;
⬇️⬇️⬇️


📜 अनुच्छेद 217 (Article 217) – Original

भाग 6 “राज्य” [अध्याय 5 — राज्य का विधान मंडल] [राज्यों के उच्च न्यायालय]
217. उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की नियुक्ति और उसके पद की शर्तें— (1) 1[अनुच्छेद 124क में निर्दिष्ट राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग की सिफारिश पर, राष्ट्रपति अपने हस्ताक्षर और मुद्रा सहित अधिपत्र द्वारा उच्च न्यायालय के प्रत्येक न्यायाधीश को नियुक्त करेगा और वह न्यायाधीश 2[अपर या कार्यकारी न्यायाधीश की दशा में अनुच्छेद 224 में उपबंधित रूप में पद धारण करेगा और किसी अन्य दशा में तब तक पद धारण करेगा जब तक वह 3[बासठ वर्ष] की आयु प्राप्त नहीं कर लेता है।]]

परंतु

(क) कोई न्यायाधीश, राष्ट्रपति को संबोधित अपने हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा अपना पद त्याग सकेगा ;

(ख) किसी न्यायाधीश को उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश को हटाने के लिए अनुच्छेद 124 के खंड (4) में उपबंधित रीति से उसके पद से राष्ट्रपति द्वारा हटाया जा सकेगा।;

(ग) किसी न्यायाधीश का पद, राष्ट्रपति द्वारा उसे उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त किए जाने पर या राष्ट्रपति द्वारा उसे भारत के राज्यक्षेत्र में किसी अन्य उच्च न्यायालय को, अंतरित किए जाने पर रिक्त हो जाएगा।

(2) कोई व्यक्ति, किसी उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति के लिए तभी अर्हित होगा जब वह भारत का नागरिक है और

(क) भारत के राज्यक्षेत्र में कम से कम दस वर्ष तक न्यायिक पद धारण कर चुका है;

(ख) किसी **4 उच्च न्यायालय का या ऐसे दो या अधिक न्यायालयों का लगातार कम से कम 10 वर्षों तक अधिवक्ता रहा है; ***1

5[(ग) * * *

स्पष्टीकरण — इस खंड के प्रयोजनों के लिए

6[(क) भारत के राज्यक्षेत्र में न्यायिक पद धारण करने की अवधि की संगणना करने में वह अवधि भी सम्मिलित की जाएगी जिसके दौरान
कोई व्यक्ति न्यायिक पद धारण करने के पश्चात्‌ किसी उच्च न्यायालय का अधिवक्ता रहा है या उसने किसी अधिकरण के सदस्य का पद धारण किया हैं अथवा संघ या राज्य के अधीन कोई ऐसा पद धारण किया है जिसके विधि का विशेष ज्ञान अपेक्षित है ;]

7[(कक) किसी उच्च न्यायालय का अधिवक्ता रहने की अवधि की संगणना करनें में वह अवधि भी सम्मिलित की जाएगी जिसके दौरान किसी व्यक्ति ने अधिवक्ता होने के पश्चात्‌ 8[न्यायिक पद धारण किया है या किसी अधिकरण के सदस्य का पद धारण किया है अथवा संघ या राज्य
के अधीन कोई ऐसा पद धारण किया है जिसके लिए विधि का विशेष ज्ञान अपेक्षित है ;]

(ख) भारत के राज्यक्षेत्र में न्यायिक पद धारण करने या किसी उच्च न्यायालय का अधिवक्ता रहने की अवधि की संगणना करने में इस
संविधान के प्रारंभ से पहले की वह अवधि भी सम्मिलित की जाएगी जिसके दौरान किसी व्यक्ति ने, यथास्थिति, ऐसे क्षेत्र में जो 15 अगस्त, 1947 से पहले भारत शासन अधिनियम, 1935 में परिभाषित भारत में समाविष्ट था, न्यायिक पद धारण किया है या वह ऐसे किसी क्षेत्र में किसी उच्च न्यायालय का अधिवक्ता रहा है ।

9[(3) यदि उच्च न्यायालय के किसी न्यायाधीश की आयु के बारे में कोई प्रश्न उठता है तो उस प्रश्न का विनिश्वय भारत के मुख्य न्यायमूर्ति से परामर्श करने के पश्चात्‌ राष्ट्रपति द्वारा किया जाएगा और राष्ट्रपति का विनिश्वय अंतिम होगा।]
================
1. संविधान (निन्यानवैवां संशोधन) अधिनियम, 2014 की धारा 6 द्वारा (13-4-2015 से) “भारत के मुख्य न्यायमूर्ति से, उस राज्य के राज्यपाल से और मुख्य न्यायमूर्ति से झिन्‍न किसी न्यायाधीश की नियुक्ति की दशा मैं उस उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति से परामर्श करने के पश्चात्‌, राष्ट्रपति” के स्थान पर प्रतिस्थापित। यह संशोधन सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स आन रिकार्ड एसोसिएशन बनाम भारत संघ ए.आई.आर. 2016 एस.सी. 117 में उच्चतम न्यायालय के तारीख 16 अक्तूबर, 2015 के आदेश द्वारा अभिखंडित कर दिया गया है।

2. संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 12 द्वारा “तब तक पद धारण करेगा जब तक कि वह साठ वर्ष की आयु प्राप्त न कर ले” के स्थान पर (1-11-1956 से) प्रतिस्थापित ।

3. संविधान (पंद्रहवां संशोधन) अधिनियम, 1963 की धारा 4 द्वारा “साठ वर्ष” के स्थान पर (5-10-1963 से) प्रतिस्थापित।

4. संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “पहली अनुसूची में विनिर्दिष्ट किसी राज्य में के” शब्दों का (1-11-1956 से) लोप किया गया।

5. संविधान (बयालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1976 की धारा 36 द्वारा (3-1-1977 से) शब्द “या” और उपखंड (ग) अंतःस्थापित किए गए और संविधान (चवालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 28 द्वारा (20-6-1979 से) उनका लोप किया गया।

6. संविधान (चवालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1978 का धारा 28 द्वारा (20-6-1979 से) अंतःस्थापित।

7. संविधान (चवालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 28 द्वारा (20-6-1979 से) खंड (क) को खंड (कक) के रूप में पुनःअक्षरांकित किया गया।

8. संविधान (बयालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1976 का धारा 36 द्वारा (3-1-1977 से) “न्याथियक पद धारण किया हो” के स्थान पर प्रतिस्थापित।

9. संविधान (पंद्रहवां संशोधन) अधिनियम, 1963 की धारा 4 द्वारा (भूतलक्षी प्रभाव से ) अंतःस्थापित।
अनुच्छेद 217 हिन्दी संस्करण

Part VI “State” [CHAPTER V — The State Legislature] [The High Courts in the States]
217. Appointment and conditions of the office of a Judge of a High Court—(1) Every Judge of a High Court shall be appointed by the President by warrant under his hand and seal 1[on the recommendation of the National
Judicial Appointments Commission referred to in article 124A], and the Governor of the State, and, in the case of appointment of a Judge other than the Chief Justice, the Chief Justice of the High Court, 2[shall hold office, in the
case of an additional or acting Judge, as provided in article 224, and in any other case, until he attains the age of 3[sixty-two years:]]

Provided that—
(a) a Judge may, by writing under his hand addressed to the President, resign his office;
(b) a Judge may be removed from his office by the President in the manner provided in clause (4) of article 124 for the removal of a Judge of the Supreme Court;
(c) the office of a Judge shall be vacated by his being appointed by the President to be a Judge of the Supreme Court or by his being transferred by the President to any other High Court within the territory of India.
(2) A person shall not be qualified for appointment as a Judge of a High Court unless he is a citizen of India and—
(a) has for at least ten years held a judicial office in the territory of India; or
(b) has for at least ten years been an advocate of a High Court 4* or of two or more such Courts in succession.1*

5(c)* * * * *
Explanation.—For the purposes of this clause—
6[(a) in computing the period during which a person has held judicial office in the territory of India, there shall be included any period, after he has held any judicial office, during which the person has been an advocate of a High Court or has held the office of a member of a tribunal or any post, under the Union or a State, requiring special knowledge of law;]
7[(aa)] in computing the period during which a person has been an advocate of a High Court, there shall be included any period during which the person 8[has held judicial office or the office of a member of a tribunal or any post, under the Union or a State, requiring special knowledge of law] after he became an advocate;

(b) in computing the period during which a person has held judicial office in the territory of India or been an advocate of a High Court, there shall be included any period before the commencement of this Constitution during which he has held judicial office in any area which was comprised before the fifteenth day of August, 1947, within India as defined by the Government of India Act, 1935, or has been an advocate of any High Court in any such area, as the case may be.
9[(3) If any question arises as to the age of a Judge of a High Court, the question shall be decided by the President after consultation with the Chief Justice of India and the decision of the President shall be final.]
========================================
1. Subs. by the Constitution (Ninety-ninth Amendment) Act, 2014, s. 6, for “after consultation with the Chief Justice of India, the Governor of the State, and, in the case of appointment of a Judge other than the Chief Justice, the Chief Justice of the High Court” (w.e.f. 13-4-2015). This amendment has been struck down by the Supreme Court in the case of Supreme Court Advocates-on-Record Association and Another Vs. Union of India in its judgment dated 16-10-2015, AIR 2016 SC 117.
2. Subs. by the Constitution (Seventh Amendment) Act, 1956, s. 12, for “shall hold office until he attains the age of sixty years” (w.e.f. 1-11-1956).
3. Subs. by the Constitution (Fifteenth Amendment) Act, 1963, s. 4(a), for “sixty years” (w.e.f. 5-10-1963).
4. The words “in any State specified in the First Schedule” omitted by the Constitution (Seventh Amendment) Act, 1956, s. 29 and Sch. (w.e.f. 1-11-1956).
5. The word “or” and sub-clause (c) were ins. by the Constitution (Forty-second Amendment) Act, 1976, s. 36 (w.e.f. 3-1-1977) and omitted by the Constitution (Forty-fourth Amendment) Act, 1978, s. 28 (w.e.f. 20-6-1979).
6. Ins. by the Constitution (Forty-fourth Amendment) Act, 1978. s. 28 (w.e.f. 20-6-1979).
7. Cl. (a) re-lettered as cl. (aa) by the Constitution (Forty-fourth Amendment) Act, 1978, s. 28 (w.e.f. 20-6-1979).
8. Subs. by the Constitution (Forty-second Amendment) Act, 1976, s. 36, for “has held judicial office” (w.e.f. 3-1-1977).
9. Ins. by the Constitution (Fifteenth Amendment) Act, 1963, s. 4(b), (with retrospective effect).
Article 217 English Version

🔍 Article 217 Explanation in Hindi

भारतीय संविधान का भाग 6, अनुच्छेद 152 से लेकर अनुच्छेद 237 तक कुल 6 अध्यायों (Chapters) में विस्तारित है (जिसे कि आप नीचे टेबल में देख सकते हैं)।

ChaptersTitleArticles
Iसाधारण (General)Article 152
IIकार्यपालिका (The Executive)Article 153 – 167
IIIराज्य का विधान मंडल (The State Legislature)Article 168 – 212
IVराज्यपाल की विधायी शक्ति (Legislative Power of the Governor)Article 213
Vराज्यों के उच्च न्यायालय (The High Courts in the States)Article 214 – 232
VIअधीनस्थ न्यायालय (Subordinate Courts)Article 233 – 237
[Part 6 of the Constitution]

जैसा कि आप ऊपर देख सकते हैं, इस भाग के अध्याय 5 का नाम है “राज्यों के उच्च न्यायालय (The High Courts in the States)” और इसका विस्तार अनुच्छेद 214 से लेकर 232 तक है। इस लेख में हम अनुच्छेद 217 को समझने वाले हैं;

अनुच्छेद 124 – भारतीय संविधान
Closely Related to Article 217

| अनुच्छेद 217 – उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की नियुक्ति और उसके पद की शर्तें (Appointment and conditions of the office of a Judge of a High Court)

न्याय (Justice) लोकतंत्र का एक आधारभूत स्तंभ है क्योंकि यह व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा करता है, कानून के शासन को बनाए रखता है, संघर्ष के समाधान की सुविधा देता है और निष्पक्षता और समानता को बढ़ावा देता है। यह लोकतांत्रिक संस्थानों को मजबूत करता है और समाज की समग्र भलाई और स्थिरता में योगदान देता है।

भारत में इसे सुनिश्चित करने के लिए संविधान द्वारा एकीकृत न्यायिक व्यवस्था (Integrated Judiciary System) की शुरुआत की गई है। इस व्यवस्था में उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) सबसे शीर्ष पर आता है, उसके बाद राज्यों उच्च न्यायालय (High Court) आता है और फिर उसके बाद जिलों का अधीनस्थ न्यायालय (Subordinate Court)।

संविधान का भाग 6, अध्याय V, राज्यों के उच्च न्यायालय की बात करता है। जिस तरह से अनुच्छेद 124 के तहत सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश की नियुक्ति और उसके पद की शर्तें बताया गया है उसी तरह से अनुच्छेद 217 के तहत उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की नियुक्ति और उसके पद की शर्तें बताया गया है।

अनुच्छेद 217 के तहत कुल तीन खंड है;

Article 217 Clause 1 Explanation

अनुच्छेद 217 (1) के तहत कहा गया है कि भारत के मुख्य न्यायाधीश से, उस राज्य के राज्यपाल से और मुख्य न्यायमूर्ति से भिन्न किसी न्यायाधीश की नियुक्ति की दशा में उस उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति से परामर्श करने के पश्चात, राष्ट्रपति अपने हस्ताक्षर और मुद्रा सहित अधिपत्र द्वारा उच्च न्यायालय के प्रत्येक न्यायाधीश को नियुक्त करेगा और वह न्यायाधीश अपर या कार्यकारी न्यायाधीश की दशा में अनुच्छेद 224 में उपबंधित रूप में पद धारण करेगा और किसी अन्य दशा में तब तक पद धारण करेगा जब तक वह बासठ वर्ष की आयु प्राप्त नहीं कर लेता है।

जैसा कि हमने समझा कि उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्त राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा, भारत के मुख्य न्यायाधीश और उस राज्य के राज्यपाल से परामर्श के बाद की जाती है और अन्य न्यायधीशों की नियुक्ति के लिए राष्ट्रपति उस न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श लेता है।

और इसी प्रकार यदि दो या अधिक राज्यों के साझा उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की नियुक्ति संबन्धित सभी राज्यों के राज्यपालों से परामर्श लेने के बाद की जाती है।

तीसरे न्यायाधीश मामले (Third judges case) 1998 में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि हाई कोर्ट के न्यायाधीशों की नियुक्ति पर उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को दो वरिष्ठतम न्यायाधीशों से परामर्श करना चाहिए। इस प्रकार, अकेले भारत के मुख्य न्यायाधीश की राय से परामर्श प्रक्रिया पूरी नहीं होगी।

यहां यह याद रखिए कि न्यायाधीशों की नियुक्ति पर प्रथम न्यायाधीश केस 1981, द्वितीय न्यायाधीश केस 1993 और तीसरे न्यायाधीश केस 1998 हुआ और इन तीनों मामलों के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कॉलेजियम प्रणाली (Collegium System)↗  स्थापित करके न्यायिक स्वतंत्रता के सिद्धांत को विकसित किया।

इस कॉलेजियम प्रणाली को खत्म करने के लिए साल 2014 में सरकार ने 99वां संविधान संशोधन अधिनियम की मदद से संविधान में अनुच्छेद 124A, 124B, और 124C को जोड़ा एवं अनुच्छेद 217 में भी संशोधन करके इसे लिखवा दिया और इस तरह से कॉलेजियम प्रणाली (Collegium System) की जगह पर एक राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग की स्थापना की।

लेकिन सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स आन रिकार्ड एसोसिएशन (SCARA) बनाम भारत सरकार 2016 द्वारा उच्चतम न्यायालय ने 16 अक्तूबर, 2015 के आदेश द्वारा इसे समाप्त कर दिया गया है।

इसीलिए अभी पुरानी कॉलेजियम प्रणाली ही चल रहा है। अगर आपको नहीं पता है कि कॉलेजियम प्रणाली क्या है तो दिए गए लेख को अवश्य पढ़ें; — कॉलेजियम प्रणाली↗

अनुच्छेद 217 के खंड (1) के तहत कुछ और बातें कही गई है जो कि निम्नलिखित है;

पहली बात) संविधान में हाई कोर्ट के न्यायाधीशों का कार्यकाल निर्धारित किया नहीं गया है, बस यह बताया गया है कि उच्च न्यायालय का न्यायाधीश 62 वर्ष की आयु तक अपना पद धारण कर सकता है।

हालांकि अपर (Additional) या कार्यकारी न्यायाधीश (acting Judge) की दशा में अनुच्छेद 224 में उपबंधित रूप में पद धारण करेगा। इसका क्या मतलब है इसे अनुच्छेद 224↗ में विस्तार से समझेंगे;

दूसरी बात) कोई न्यायाधीश, राष्ट्रपति को संबोधित अपने हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा अपना पद त्याग सकेगा ;

तीसरी बात) किसी उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को, उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश को हटाने के लिए अनुच्छेद 124 के खंड (4) में उपबंधित रीति से उसके पद से राष्ट्रपति द्वारा हटाया जा सकेगा।

कहने का अर्थ है कि उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को वैसे ही हटाया जा सकता है जैसे कि अनुच्छेद 124 के खंड (4) के तहत सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश को हटाया जाता है;

अनुच्छेद 124(4) के तहत न्यायाधीशों को पद से हटाने की विधि (method) के बारे में बताया गया है। न्यायाधीशों को राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है लेकिन राष्ट्रपति उसे अपने मन से हटा नहीं सकता है। 

अनुच्छेद 124(4) के तहत, राष्ट्रपति उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश को उसके पद से तभी हटा सकता है, जब उस न्यायाधीश को हटाने का आधार (कदाचार या असमर्थता) सिद्ध हो जाये और उसके बाद संसद के दोनों सदनों के विशेष बहुमत से इस प्रस्ताव को पास किया जाये।

विशेष बहुमत (Special Majority) मतलब, प्रत्येक सदन के कुल सदस्य संख्या का बहुमत और उपस्थित और मतदान में भाग लेने वाले सदस्यों का दो-तिहाई बहुमत। [विस्तार से समझने के लिए पढ़ें – बहुमत कितने प्रकार के होते हैं?]

तीसरी बात) किसी न्यायाधीश का पद, राष्ट्रपति द्वारा उसे उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त किए जाने पर या राष्ट्रपति द्वारा उसे भारत के राज्यक्षेत्र में किसी अन्य उच्च न्यायालय को, अंतरित किए जाने पर रिक्त हो जाएगा।

यानि कि अगर उच्च न्यायालय का कोई न्यायाधीश सुप्रीम कोर्ट का न्यायाधीश बन जाता है या फिर उसका ट्रान्सफर किसी दूसरे राज्य के उच्च न्यायालय में हो जाता है तो उस न्यायाधीश का पद रिक्त (Vacant) माना जाएगा।

Article 217 Clause 2 Explanation

अनुच्छेद 217 के खंड (2) के तहत उच्च न्यायालय का न्यायाधीश बनने की योग्यता दिया गया है, जो कि कुछ इस प्रकार है;

उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप मे नियुक्ति के लिए व्यक्ति के पास निम्न योग्यताएँ होनी चाहिए।

1. वह भारत का नागरिक हो, और
2. उसे भारत के न्यायिक कार्य में 10 वर्ष का अनुभव हो यानि कि भारत के राज्यक्षेत्र में कम से कम 10 वर्ष तक वो न्यायिक पद धारण कर चुका हो; , अथवा

3. वह उच्च न्यायालय में या ऐसे दो या अधिक न्यायालयों में लगातार 10 वर्षों तक अधिवक्ता रह चुका हो।

यहाँ पर दो बातें याद रखिए,

(1) संविधान में उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की नियुक्त के लिए कोई न्यूनतम आयु सीमा निर्धारित नहीं की गई है, और

(2) संविधान में उच्चतम न्यायालय के जैसा प्रख्यात न्यायविदों को उच्च न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त करने का कोई प्रावधान नहीं है।

अनुच्छेद के इस खंड के तहत कुछ परंतुक भी है, जो कि कुछ इस प्रकार है;

1. भारत के राज्यक्षेत्र में न्यायिक पद धारण करने की अवधि की संगणना करने में वह अवधि भी सम्मिलित की जाएगी—

  • जिसके दौरान कोई व्यक्ति न्यायिक पद धारण करने के पश्चात्‌ किसी उच्च न्यायालय का अधिवक्ता रहा है; या
  • उसने किसी अधिकरण (Tribunal) के सदस्य का पद धारण किया हैं; अथवा,
  • संघ या राज्य के अधीन कोई ऐसा पद धारण किया है जिसके विधि का विशेष ज्ञान अपेक्षित है ;

2. किसी उच्च न्यायालय का अधिवक्ता रहने की अवधि की संगणना करनें में वह अवधि भी सम्मिलित की जाएगी —

  • जिसके दौरान किसी व्यक्ति ने अधिवक्ता होने के पश्चात्‌ न्यायिक पद धारण किया है या किसी अधिकरण के सदस्य का पद धारण किया है; अथवा,
  • संघ या राज्य के अधीन कोई ऐसा पद धारण किया है जिसके लिए विधि का विशेष ज्ञान अपेक्षित है;

3. भारत के राज्यक्षेत्र में न्यायिक पद धारण करने या किसी उच्च न्यायालय का अधिवक्ता रहने की अवधि की संगणना करने में—

  • इस संविधान के प्रारंभ से पहले की वह अवधि भी सम्मिलित की जाएगी जिसके दौरान किसी व्यक्ति ने, यथास्थिति, ऐसे क्षेत्र में जो 15 अगस्त, 1947 से पहले भारत शासन अधिनियम, 1935 में परिभाषित भारत में समाविष्ट था, न्यायिक पद धारण किया है; या, वह ऐसे किसी क्षेत्र में किसी उच्च न्यायालय का अधिवक्ता रहा है।

Article 217 Clause 3 Explanation

अनुच्छेद 217 के खंड (3) के तहत कहा गया है कि यदि उच्च न्यायालय के किसी न्यायाधीश की आयु के बारे में कोई प्रश्न उठता है तो उस प्रश्न का विनिश्वय भारत के मुख्य न्यायमूर्ति से परामर्श करने के पश्चात्‌ राष्ट्रपति द्वारा किया जाएगा और राष्ट्रपति का विनिश्वय (Decision) अंतिम होगा।

तो यही है Article 217, उम्मीद है आपको समझ में आया होगा। दूसरे अनुच्छेदों को समझने के लिए नीचे दिए गए लिंक का इस्तेमाल कर सकते हैं।

उच्चतम न्यायालय (Supreme Court of India): Overview
उच्च न्यायालय (High Court): गठन, भूमिका, स्वतंत्रता
Must Read

सवाल-जवाब के लिए टेलीग्राम जॉइन करें; टेलीग्राम पर जाकर सर्च करे – @upscandpcsofficial

Related MCQs with Explanation

/8
1 votes, 5 avg
59

Chapter Wise Polity Quiz

उच्च न्यायालय बेसिक्स अभ्यास प्रश्न

  1. Number of Questions – 8 
  2. Passing Marks – 75  %
  3. Time – 6 Minutes
  4. एक से अधिक विकल्प सही हो सकते हैं।

1 / 8

संविधान के किस संशोधन द्वारा संसद को अधिकार दिया गया है कि वह दो या दो से अधिक राज्यों के लिए एक ही उच्च न्यायालय की स्थापना कर सकेगी?

2 / 8

उच्च न्यायालय (high Court) के संबंध में दिए गए कथनों में से सही कथन का चुनाव करें;

  1. अनुच्छेद 214 के तहत प्रत्येक राज्य के लिए एक उच्च न्यायालय की व्यवस्था की गई है.
  2. उच्च न्यायालय का क्षेत्राधिकार केवल उस राज्य तक ही सीमित रह सकती है।
  3. 2021 तक भारत में 24 उच्च न्यायालय अस्तित्व में है।
  4. बंबई उच्च न्यायालय का अधिकार क्षेत्र सिर्फ महाराष्ट्र तक सीमित है।

3 / 8

उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के संदर्भ में दिए गए कथनों में से सही कथन की पहचान करें;

  1. उच्च न्यायालय में कितने न्यायाधीश होंगे यह उच्चतम न्यायालय तय करता है।
  2. उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति राज्यपाल करता है।
  3. किसी उच्च न्यायालय का न्यायाधीश बनने के लिए कम से कम 10 वर्षों तक उसी न्यायालय में अधिवक्ता रहना जरूरी है।
  4. संविधान में उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की नियुक्त के लिए कोई न्यूनतम आयु सीमा निर्धारित नहीं है

4 / 8

संविधान का कौन सा भाग उच्च न्यायालय से संबन्धित है?

5 / 8

दिए गए कथनों में से सही कथन की पहचान करें;

  1. उच्च न्यायालय के न्यायाधीश संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा का शपथ लेता है।
  2. उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के कार्यकाल की समाप्ति 65 वर्ष की आयु में होती है।
  3. उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को हटाने के लिए न्यायाधीश जांच अधिनियम 1968 का सहारा लेना पड़ सकता है।
  4. अनुच्छेद 222 उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के स्थानांतरण से संबन्धित है।

6 / 8

किन स्थितियों में अनुच्छेद 223 के तहत राष्ट्रपति किसी उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को उच्च न्यायालय का ‘कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश’ नियुक्त कर सकता है?

7 / 8

निम्न में से कौन सी बातें उच्च न्यायालय की स्वतंत्रता को सुनिश्चित करता है?

8 / 8

दिए गए कथनों में से सही कथन की पहचान करें;

  1. अनुच्छेद 224 के तहत राष्ट्रपति कुछ खास परिस्थितियों में योग्य व्यक्तियों को हाई कोर्ट के अतिरिक्त न्यायाधीशों के रूप में अस्थायी रूप से नियुक्त कर सकते हैं.
  2. उच्च न्यायालय में सेवानिवृत न्यायाधीश भी काम कर सकते हैं।
  3. अनुच्छेद 224 (क) अतिरिक्त और कार्यकारी न्यायाधीश से संबंधित है।
  4. उच्च न्यायालय के न्यायधीश को संसद द्वारा उसी विधि से हटाया जा सकता है जिस विधि से उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश को हटाया जाता है।

Your score is

0%

आप इस क्विज को कितने स्टार देना चाहेंगे;

| Next and Previous to Article 217

अनुच्छेद 218 – भारतीय संविधान
अनुच्छेद 216 – भारतीय संविधान
Article 217
भारतीय संविधान
संसद की बेसिक्स
मौलिक अधिकार बेसिक्स
भारत की न्यायिक व्यवस्था
भारत की कार्यपालिका
Important Pages of Compilation
अस्वीकरण – यहाँ प्रस्तुत अनुच्छेद और उसकी व्याख्या, मूल संविधान (उपलब्ध संस्करण), संविधान पर डी डी बसु की व्याख्या (मुख्य रूप से), प्रमुख पुस्तकें (एम. लक्ष्मीकान्त, सुभाष कश्यप, विद्युत चक्रवर्ती, प्रमोद अग्रवाल इत्यादि) एनसाइक्लोपीडिया, संबंधित मूल अधिनियम और संविधान के विभिन्न ज्ञाताओं (जिनके लेख समाचार पत्रों, पत्रिकाओं एवं इंटरनेट पर ऑडियो-विजुअल्स के रूप में उपलब्ध है) पर आधारित है। हमने बस इसे रोचक और आसानी से समझने योग्य बनाने का प्रयास किया है।