यह लेख Article 233A (अनुच्छेद 233A) का यथारूप संकलन है। आप इस मूल अनुच्छेद का हिन्दी और इंग्लिश दोनों संस्करण पढ़ सकते हैं। आप इसे अच्छी तरह से समझ सके इसीलिए इसकी व्याख्या भी नीचे दी गई है आप उसे जरूर पढ़ें, और MCQs भी सॉल्व करें।

Bell आइकॉन पर क्लिक करके हमारे नोटिफ़िकेशन सर्विस को Allow कर दें ताकि आपको हरेक नए लेख की सूचना आसानी से प्राप्त हो जाए। साथ ही नीचे दिए गए हमारे सोशल मीडिया हैंडल से जुड़ जाएँ और नवीनतम विचार-विमर्श का हिस्सा बनें। खासकर के टेलीग्राम और यूट्यूब से जरूर जुड़ जाएं;
⬇️⬇️⬇️


📜 अनुच्छेद 233A (Article 233A) – Original

भाग 6 “राज्य” [अध्याय 6अधीनस्थ न्यायालय]
1[233A. कुछ जिला न्यायाधीशों की नियुक्तियों का और उनके द्वारा किए गए निर्णयों आदि का विधिमान्यकरण— किसी न्यायालय का कोई निर्णय, डिक्री या आदेश होते हुए भी,

(क) (i) उस व्यक्ति की जो राज्य की न्यायिक सेवा में पहले से ही है या उस व्यक्ति की, जो कम से कम सात वर्ष तक अधिवक्ता या प्लीडर रहा है, उस राज्य में जिला न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति की बाबत, और

(ii) ऐसे व्यक्ति की जिला न्यायाधीश के रूप में पदस्थापना, प्रोन्नति या अंतरण की बाबत, जो संविधान (बीसवां संशोधन) अधिनियम, 1966 के प्रारंभ से पहले किसी समय अनुच्छेद 233 या अनुच्छेद 235 के उपबंधों के अनुसार न करके अन्यथा किया गया है, केवल इस तथ्य के कारण कि ऐसी नियुक्ति, पदस्थापना, प्रोन्नति या अंतरण उक्त उपबंधों के अनुसार नहीं किया गया था, यह नहीं समझा जाएगा कि वह अवैध या शून्य है या कभी भी अवैध या शून्य रहा था।

(ख) किसी राज्य में जिला न्यायाधीश के रूप में अनुच्छेद 233 या अनुच्छेद 235 के उपबंधों के अनुसार न करके अन्यथा नियुक्त, पदस्थापित,
प्रोन्नत या अंतरित किसी व्यक्ति द्वारा या उसके समक्ष संविधान (बीसवां संशोधन) अधिनियम, 1966 के प्रारंभ से पहले प्रयुक्त अधिकारिता की, पारित किए गए या दिए गए निर्णय, डिक्री, दंडादेश या आदेश की और किए गए अन्य कार्य या कार्यवाही की बाबत, केवल इस तथ्य के कारण कि ऐसी नियुक्ति, पदस्थापना, प्रोन्नति या अंतरण उक्त उपबंधों के अनुसार नहीं किया गया था, यह नहीं समझा जाएगा कि वह अवैध या अविधिमान्य है या कभी भी अवैध या अविधिमान्य रहा था।
===============
1. संविधान (बीसवां संशोधन) अधिनियम, 1966 का धारा 2 द्वारा (22-12-1966 से) अंतःस्थापित।
अनुच्छेद 233A हिन्दी संस्करण

Part VI “State” [CHAPTER VISubordinate Courts]
1[233A. Validation of appointments of, and judgments, etc., delivered by, certain district judges— Notwithstanding any judgment, decree or order of any court,—

(a) (i) no appointment of any person already in the judicial service of a State or of any person who has been for not less than seven years an advocate or a pleader, to be a district judge in that State, and

(ii) no posting, promotion or transfer of any such person as a district judge, made at any time before the commencement of the Constitution (Twentieth Amendment) Act, 1966, otherwise than in accordance with the provisions of article 233 or article 235 shall be deemed to be illegal or void or ever to
have become illegal or void by reason only of the fact that such appointment, posting, promotion or transfer was not made in accordance with the said provisions;

(b) no jurisdiction exercised, no judgment, decree, sentence or order passed or made, and no other act or proceeding done or taken, before the commencement of the Constitution (Twentieth Amendment) Act, 1966
by, or before, any person appointed, posted, promoted or transferred as a district judge in any State otherwise than in accordance with the provisions of article 233 or article 235 shall be deemed to be illegal or invalid or ever to have become illegal or invalid by reason only of the fact that such appointment, posting, promotion or transfer was not made in accordance with the said provisions.]
==================
1. Ins. by the Constitution (Twentieth Amendment) Act, 1966, s. 2 (w.e.f. 22-12-1966).
Article 233 English Version

🔍 Article 233A Explanation in Hindi

भारतीय संविधान का भाग 6, अनुच्छेद 152 से लेकर अनुच्छेद 237 तक कुल 6 अध्यायों (Chapters) में विस्तारित है (जिसे कि आप नीचे टेबल में देख सकते हैं)।

ChaptersTitleArticles
Iसाधारण (General)Article 152
IIकार्यपालिका (The Executive)Article 153 – 167
IIIराज्य का विधान मंडल (The State Legislature)Article 168 – 212
IVराज्यपाल की विधायी शक्ति (Legislative Power of the Governor)Article 213
Vराज्यों के उच्च न्यायालय (The High Courts in the States)Article 214 – 232
VIअधीनस्थ न्यायालय (Subordinate Courts)Article 233 – 237
[Part 6 of the Constitution]

जैसा कि आप ऊपर देख सकते हैं, इस भाग के अध्याय 6 का नाम है “अधीनस्थ न्यायालय (Subordinate Courts)” और इसका विस्तार अनुच्छेद 233 से लेकर 237 तक है। इस लेख में हम अनुच्छेद 233A को समझने वाले हैं;

अनुच्छेद 233 – भारतीय संविधान
Closely Related to Article 233A

| अनुच्छेद 233A – कुछ जिला न्यायाधीशों की नियुक्तियों का और उनके द्वारा किए गए निर्णयों आदि का विधिमान्यकरण (Validation of appointments of, and judgments, etc., delivered by, certain district judges)

न्याय (Justice) लोकतंत्र का एक आधारभूत स्तंभ है क्योंकि यह व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा करता है, कानून के शासन को बनाए रखता है, संघर्ष के समाधान की सुविधा देता है और निष्पक्षता और समानता को बढ़ावा देता है। यह लोकतांत्रिक संस्थानों को मजबूत करता है और समाज की समग्र भलाई और स्थिरता में योगदान देता है।

भारत में इसे सुनिश्चित करने के लिए संविधान द्वारा एकीकृत न्यायिक व्यवस्था (Integrated Judiciary System) की शुरुआत की गई है। इस व्यवस्था में उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) सबसे शीर्ष पर आता है, उसके बाद राज्यों उच्च न्यायालय (High Court) आता है और फिर उसके बाद जिलों का अधीनस्थ न्यायालय (Subordinate Court)।

संविधान का भाग 6, अध्याय VI, राज्यों के अधीनस्थ न्यायालय (Subordinate Courts) की बात करता है। अनुच्छेद 233A के तहत कुछ जिला न्यायाधीशों की नियुक्तियों का और उनके द्वारा किए गए निर्णयों आदि का विधिमान्यकरण के बारे में बताया गया है।

जैसा कि आप देख सकते हैं कि अनुच्छेद 233A कुछ जिला न्यायाधीशों की नियुक्तियों का और उनके द्वारा किए गए निर्णयों आदि का विधिमान्यकरण करता है। ये जो प्रावधान है ये मूल संविधान का हिस्सा नहीं था बल्कि संविधान (बीसवां संशोधन) अधिनियम, 1966 द्वारा अंतःस्थापित (Insert) किया गया है।

दरअसल ये जो खंड है ये अनुच्छेद 233 का ही विस्तार है। अनुच्छेद 233 के तहत हमने समझा था कि वहीं व्यक्ति अधीनस्थ न्यायालय का न्यायाधीश बन सकता है जो कि वह केंद्र या राज्य सरकार में किसी सरकारी सेवा में कार्यरत न हो, उसे कम से कम सात वर्ष का अधिवक्ता का अनुभव हो, और उच्च न्यायालय ने उसकी नियुक्ति की सिफ़ारिश की हो।

इसी तरह से अनुच्छेद 235 के तहत अधीनस्थ न्यायालयों पर नियंत्रण की व्यवस्था की गई है (जिसे कि आप आगे पढ़ सकते हैं)।

कुल मिलाकर जिला न्यायाधीश की नियुक्ति (Appointment), पदस्थपना (Posting), प्रमोशन या ट्रान्सफर अनुच्छेद 233 व अनुच्छेद 235 के तहत किया जाना होता है लेकिन अनुच्छेद 233A (क) के तहत कहा गया है कि किसी न्यायालय का कोई निर्णय, डिक्री या आदेश होते हुए भी अगर संविधान (बीसवां संशोधन) अधिनियम, 1966 के प्रारंभ से पहले किसी समय नियुक्ति (Appointment), पदस्थपना (Posting), प्रमोशन या ट्रान्सफर अनुच्छेद 233 या अनुच्छेद 235 के उपबंधों के अनुसार न करके अन्यथा किया गया है उसे अवैध या शून्य नहीं माना जाएगा।

अनुच्छेद 233A (ख) के तहत कहा गया है कि अगर संविधान (बीसवां संशोधन) अधिनियम, 1966 के प्रारंभ से पहले किसी समय नियुक्ति (Appointment), पदस्थपना (Posting), प्रमोशन या ट्रान्सफर अनुच्छेद 233 या अनुच्छेद 235 के उपबंधों के अनुसार न करके अन्यथा किया गया है और इस तरह से नियुक्त व्यक्ति ने अपने अधिकारिता का प्रयोग करते हुए कोई ऑर्डर, निर्णय या दंडादेश पारित किया है तो उस ऑर्डर, निर्णय या दंडादेश को अवैध या शून्य नहीं माना जाएगा।

तो यही है Article 233A , उम्मीद है आपको समझ में आया होगा। दूसरे अनुच्छेदों को समझने के लिए नीचे दिए गए लिंक का इस्तेमाल कर सकते हैं।

◾ जिला एवं सत्र न्यायालय में अंतर (Difference b/2 District and Session Court)
Must Read

सवाल-जवाब के लिए टेलीग्राम जॉइन करें; टेलीग्राम पर जाकर सर्च करे – @upscandpcsofficial

Related MCQs with Explanation

/5
2 votes, 3 avg
71

Chapter Wise Polity Quiz

अधीनस्थ न्यायालय अभ्यास प्रश्न

  1. Number of Questions – 5 
  2. Passing Marks – 80 %
  3. Time – 4 Minutes
  4. एक से अधिक विकल्प सही हो सकते हैं।

1 / 5

अधीनस्थ न्यायालय की संरचना के बारे में इनमें से कौन सा तथ्य सही है?

  1. जिला न्यायालय के नीचे अधीनस्थ न्यायाधीश का न्यायालय आता है।
  2. सत्र न्यायालय के नीचे मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी का न्यायालय आता है।
  3. अधीनस्थ न्यायाधीश के न्यायालय के नीचे केवल न्यायिक दंडाधिकारी का न्यायालय आता है।
  4. मुंसिफ़ अदालत और न्यायिक दंडाधिकारी का अदालत एक ही स्तर पर होता है।

2 / 5

न्यायिक सेवा को किस अनुच्छेद के तहत परिभाषित किया गया है?

3 / 5

दिए गए कथनों में से सही कथन का चुनाव करें;

  1. जिला स्तर पर सबसे बड़ा न्यायिक अधिकारी होता है जिला न्यायाधीश.
  2. जिला न्यायाधीश किसी आरोपी को मृत्युदंड नहीं दे सकता है।
  3. कुछ राज्यों में पंचायत न्यायालय भी छोटे दीवानी एवं फ़ौजदारी मामलों की सुनवाई करते हैं।
  4. जिला न्यायाधीश जिला और सत्र दोनों न्यायालयों में सुनवाई कर सकता है।

4 / 5

अधीनस्थ न्यायालय (Subordinate Courts) के संबंध में दिए गए कथनों में से सही कथन का चुनाव करें;

5 / 5

जिला न्यायाधीश (district judge) के संबंध में दिए गए कथनों में से सही कथन का चुनाव करें;

  1. जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश द्वारा की जाती है।
  2. जिला न्यायाधीश बनने के लिए कम से कम 5 वर्ष अधिवक्ता होना जरूरी होता है।
  3. जिला न्यायाधीश की नियुक्ति की सिफ़ारिश राज्यपाल द्वारा की जाती है।
  4. अनुच्छेद 233 (क) जिला न्यायाधीश के पद पर नियुक्त होने वाले व्यक्ति की अर्हता के बारे में है।

Your score is

0%

आप इस क्विज को कितने स्टार देना चाहेंगे;

| Related Article

अनुच्छेद 234 – भारतीय संविधान
अनुच्छेद 233 – भारतीय संविधान
Next and Previous to Article 233A
भारतीय संविधान
संसद की बेसिक्स
मौलिक अधिकार बेसिक्स
भारत की न्यायिक व्यवस्था
भारत की कार्यपालिका
Important Pages of Compilation
अस्वीकरण – यहाँ प्रस्तुत अनुच्छेद और उसकी व्याख्या, मूल संविधान (उपलब्ध संस्करण), संविधान पर डी डी बसु की व्याख्या (मुख्य रूप से), प्रमुख पुस्तकें (एम. लक्ष्मीकान्त, सुभाष कश्यप, विद्युत चक्रवर्ती, प्रमोद अग्रवाल इत्यादि) एनसाइक्लोपीडिया, संबंधित मूल अधिनियम और संविधान के विभिन्न ज्ञाताओं (जिनके लेख समाचार पत्रों, पत्रिकाओं एवं इंटरनेट पर ऑडियो-विजुअल्स के रूप में उपलब्ध है) पर आधारित है। हमने बस इसे रोचक और आसानी से समझने योग्य बनाने का प्रयास किया है।