यह लेख Article 207 (अनुच्छेद 207) का यथारूप संकलन है। आप इस मूल अनुच्छेद का हिन्दी और इंग्लिश दोनों संस्करण पढ़ सकते हैं। आप इसे अच्छी तरह से समझ सके इसीलिए इसकी व्याख्या भी नीचे दी गई है आप उसे जरूर पढ़ें, और MCQs भी सॉल्व करें।

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📜 अनुच्छेद 207 (Article 207) – Original

भाग 6 “राज्य” [अध्याय 3 — राज्य का विधान मंडल] [वित्तीय विषयों के संबंध में प्रक्रिया]
206. वित्त विधेयकों के बारे में विशेष उपबंध—(1) अनुच्छेद 199 के खंड (1) के उपखंड (क) से उपखंड (च) में विनिर्दिष्ट किसी विषय के लिए उपबंध करने वाला विधेयक या संशोधन राज्यपाल की सिफारिश से ही पुरःस्थापित या प्रस्तावित किया जाएगा, अन्यथा नहीं और ऐसा उपबंध करने वाला विधेयक विधान परिषद्‌ में पुरःस्थापित नहीं किया जाएगा;

परंतु किसी कर के घटाने या उत्सादन के लिए उपबंध करने वाले किसी संशोधन के प्रस्ताव के लिए इस खंड के अधीन सिफारिश की अपेक्षा नहीं होगी।

(2) कोई विधेयक या संशोधन उक्त विषयों में से किसी विषय के लिए उपबंध करने वाला केवल इस कारण नहीं समझा जाएगा कि वह जुर्मानों या अन्य धनीय शास्तियों के अधिरोपण का अथवा अनुज़प्तियों के लिए फीसों की या की गई सेवाओं के लिए फीसों की मांग का या उनके संदाय का उपबंध करता है अथवा इस कारण नहीं समझा जाएगा कि वह किसी स्थानीय प्राधिकारी या निकाय द्वारा स्थानीय प्रयोजनों के लिए किसी कर के अधिरोपण, उत्सादन, परिहार, परिवर्तन या विनियमन का उपबंध करता है।

(3) जिस विधेयक को अधिनियमित और प्रवर्तित किए जाने पर राज्य की संचित निधि में से व्यय करना पड़ेगा वह विधेयक राज्य के विधान-मंडल के किसी सदन द्वारा तब तक पारित नहीं किया जाएगा जब तक ऐसे विधेयक पर विचार करने के लिए उस सदन से राज्यपाल ने सिफारिश नहीं की है।
अनुच्छेद 207 हिन्दी संस्करण

Part VI “State” [CHAPTER III — The State Legislature] [Procedure in respect of financial matters]
207. Special provisions as to financial Bills—(1) A Bill or amendment making provision for any of the matters specified in sub-clauses (a) to (f) of clause (1) of article 199 shall not be introduced or moved except on the
recommendation of the Governor, and a Bill making such provision shall not be introduced in a Legislative Council:

Provided that no recommendation shall be required under this clause for the moving of an amendment making provision for the reduction or abolition of any tax.

(2) A Bill or amendment shall not be deemed to make provision for any of the matters aforesaid by reason only that it provides for the imposition of fines or other pecuniary penalties, or for the demand or payment of fees for
licences or fees for services rendered, or by reason that it provides for the imposition, abolition, remission, alteration or regulation of any tax by any local authority or body for local purposes.

(3) A Bill which, if enacted and brought into operation, would involve expenditure from the Consolidated Fund of a State shall not be passed by a House of the Legislature of the State unless the Governor has recommended to that House the consideration of the Bill.
Article 207 English Version

🔍 Article 207 Explanation in Hindi

भारतीय संविधान का भाग 6, अनुच्छेद 152 से लेकर अनुच्छेद 237 तक कुल 6 अध्यायों (Chapters) में विस्तारित है (जिसे कि आप नीचे टेबल में देख सकते हैं)।

ChaptersTitleArticles
Iसाधारण (General)Article 152
IIकार्यपालिका (The Executive)Article 153 – 167
IIIराज्य का विधान मंडल (The State Legislature)Article 168 – 212
IVराज्यपाल की विधायी शक्ति (Legislative Power of the Governor)Article 213
Vराज्यों के उच्च न्यायालय (The High Courts in the States)Article 214 – 232
VIअधीनस्थ न्यायालय (Subordinate Courts)Article 233 – 237
[Part 6 of the Constitution]

जैसा कि आप ऊपर देख सकते हैं, इस भाग के अध्याय 3 का नाम है “राज्य का विधान मंडल (The State Legislature)” और इसका विस्तार अनुच्छेद 158 से लेकर अनुच्छेद 212 तक है।

इस अध्याय को आठ उप-अध्यायों (sub-chapters) में बांटा गया है, जिसे कि आप नीचे चार्ट में देख सकते हैं;

Chapter 3 [Sub-Chapters]Articles
साधारण (General)Article 168 – 177
राज्य के विधान मण्डल के अधिकारी (Officers of the State Legislature)Article 178 – 187
कार्य संचालन (Conduct of Business)Article 188 – 189
सदस्यों की निरर्हताएं (Disqualifications of Members)Article 190 – 193
राज्यों के विधान-मंडलों और उनके सदस्यों की शक्तियां, विशेषाधिकार और उन्मुक्तियां (Powers, privileges and immunities of State Legislatures and their members)Article 194 – 195
विधायी प्रक्रिया (Legislative Procedure)Article 196 – 201
वित्तीय विषयों के संबंध में प्रक्रिया (Procedure in respect of financial matters)Article 202 – 207
साधारण प्रक्रिया (Procedure Generally)Article 208 – 212
[Part 6 of the Constitution]

इस लेख में हम वित्तीय विषयों के संबंध में प्रक्रिया (Procedure in respect of financial matters) के तहत आने वाले अनुच्छेद 207 को समझने वाले हैं।

अनुच्छेद 117 – भारतीय संविधान
Closely Related to Article 207

| अनुच्छेद 207 – वित्त विधेयकों के बारे में विशेष उपबंध (Special provisions as to financial Bills)

भारत एक संघीय व्यवस्था वाला देश है यानी कि यहाँ केंद्र सरकार की तरह राज्य सरकार भी होता है और जिस तरह से केंद्र में विधायिका (Legislature) होता है उसी तरह से राज्य का भी अपना एक विधायिका होता है।

केन्द्रीय विधायिका (Central Legislature) को भारत की संसद (Parliament of India) कहा जाता है। यह एक द्विसदनीय विधायिका है, जिसका अर्थ है कि इसमें दो सदन हैं: लोकसभा (लोगों का सदन) और राज्यसभा (राज्यों की परिषद)। इसी तरह से राज्यों के लिए भी व्यवस्था की गई है।

अनुच्छेद 168(1) के तहत प्रत्येक राज्य के लिए एक विधानमंडल (Legislature) की व्यवस्था की गई है और यह विधानमंडल एकसदनीय (unicameral) या द्विसदनीय (bicameral) हो सकती है।

जिस तरह से अनुच्छेद 117 के तहत केंद्र के लिए वित्त विधेयकों के बारे में विशेष उपबंध की व्यवस्था की गई है उसी तरह से अनुच्छेद 207 के तहत राज्यों के लिए वित्त विधेयकों के बारे में विशेष उपबंध की व्यवस्था की गई है।

अनुच्छेद 207 के तहत कुल 3 खंड है;

जैसा कि हम जानते हैं कि विधानमंडल में कानून बनाने की प्रक्रिया विधेयक (Bill) से शुरू होती है। विधेयक दरअसल कानून का एक ड्राफ्ट होता है जो बताता है कि कानून किस बारे में है और ये क्यों लाया जा रहा है।

ये जो विधेयक है इसे मोटे तौर पर चार भागों में बांटा जाता है; (1) सामान्य विधेयक (Ordinary Bill), (2) संविधान संशोधन विधेयक (Constitutional Amendment Bill), (3) धन विधेयक (Money Bill) और (4) वित्त विधेयक (Finance Bill)।

अनुच्छेद 198 के तहत धन विधेयकों के संबंध में विशेष प्रक्रिया (Special Procedure) का उल्लेख किया गया है। और,

अनुच्छेद 199 के तहत धन विधेयक (Money Blll) की परिभाषा दी गई है, कि किन विषयों पर आधारित विधेयकों को धन विधेयक माना जाएगा; लेकिन वित्त विधेयक का क्या?

Article 207 के तहत वित्त विधेयकों (Finance Bill) के बारे में विशेष उपबंध किया गया है। इस अनुच्छेद से यह स्पष्ट होता है कि वित्त विधेयक किस प्रकार धन विधेयक से अलग होता है। इस अनुच्छेद के कुल 3 खंड है। आइये समझें;

⚫ Complete Concept:– धन विधेयक और वित्त विधेयक
Related to Article 199 and Article 207

Article 207(1)  के तहत यह व्यवस्था किया गया है कि अनुच्छेद 199 के खंड (1) के उपखंड (क) से उपखंड (च) में विनिर्दिष्ट किसी विषय के लिए उपबंध करने वाला विधेयक या संशोधन राज्यपाल की सिफारिश से ही पुरःस्थापित या प्रस्तावित किया जाएगा, अन्यथा नहीं और ऐसा उपबंध करने वाला विधेयक विधान परिषद में पुरःस्थापित नहीं किया जाएगा:

अनुच्छेद 199(1) के तहत उन विषयों की सूची दी गई है जिनमें से किसी एक या अधिक के आधार पर लाई गई किसी विधेयक को धन विधेयक समझा जाएगा। ये विषय निम्नलिखित है;

(क). यदि किसी विधेयक में, किसी कर का अधिरोपन (Imposition), उत्सादन (abolition), परिहार (remission), परिवर्तन (alteration) या विनियमन (Regulation) होता हो।

इसका सीधा सा मतलब ये है कि जब किसी में विधेयक में टैक्स लगाने, बढ़ाने, कम करने या उस टैक्स को खत्म करने से संबन्धित प्रावधान हो तो उसे धन विधेयक कहा जाएगा।

(ख). अगर किसी विधेयक में, राज्य सरकार द्वारा उधार लिए गए धन के विनियमन (Regulation) या राज्य सरकार द्वारा दी गई किसी गारंटी का विनियमन या अपने ऊपर ली गई किसी वित्तीय बाध्यताओं से संबन्धित किसी विधि का संशोधन हो;

दूसरे शब्दों में कहें तो राज्य सरकार द्वारा ऋण लेना, गारंटी देना अथवा वित्तीय उत्तरदायित्व लेने के संबंध में कानून बनाने से संबन्धित प्रावधानों वाले विधेयक को धन विधेयक कहा जाएगा।

(ग). अगर किसी विधेयक में, राज्य की संचित निधि या आकस्मिकता निधि में से धन जमा करने या उसमें से धन निकालने से संबन्धित प्रावधान हो;

(घ). ऐसा विधेयक जो, राज्य की संचित निधि से धन के विनियोग से संबन्धित हो।

[संचित निधि यानी कि राजकोष (Treasury) और विनियोग का मतलब होता है किसी विशेष उपयोग के लिए आधिकारिक रूप से आवंटित धन की राशि।]

(ङ). ऐसा विधेयक जो, राज्य की संचित निधि पर भारित किसी व्यय की उद्घोषणा या इस प्रकार के किसी व्यय की राशि में वृद्धि से संबन्धित हो।

(च). ऐसा विधेयक जो, राज्य की संचित निधि या लोक लेखा में किसी प्रकार के धन की प्राप्ति या अभिरक्षा या इनसे व्यय करने से संबन्धित हो।

[लोक लेखा भी संचित निधि की तरह एक निधि है, पर इसमें कुछ भिन्नताएँ है, निधियों को जानने के लिए इस लेख को जरूर पढ़ें। – विभिन्न प्रकार की निधियाँ]

अनुच्छेद 207(1) के तहत दो व्यवस्था किया गया है:

पहली बात तो ये कि अनुच्छेद 199 के खंड (1) के उपखंड (क) से उपखंड (च) में विनिर्दिष्ट किसी विषय के लिए उपबंध करने वाला विधेयक या संशोधन राज्यपाल की सिफारिश से ही पुरःस्थापित (Introduced) किया जाएगा, अन्यथा नहीं।

और दूसरी बात ये कि इस तरह का कोई विधेयक विधान परिषद में पेश नहीं किया जाएगा, यानि कि सिर्फ विधान सभा में ही पेश किया जाएगा।

लेकिन यहाँ पर याद रखिए कि किसी कर के घटाने या समाप्त करने के लिए उपबंध करने वाले किसी संशोधन के प्रस्ताव के लिए इस खंड के अधीन राज्यपाल की सिफारिश की जरूरत नहीं होगी।

Article 207(2) इसके तहत जो बताया गया है इसे आप अनुच्छेद 199 (2) से लिंक करके देख सकते हैं। कहने का अर्थ है कि निम्न कारणों के आधार पर किसी विधेयक को धन विधेयक या वित्त विधेयक नहीं माना जाता है :-

1. जुर्मानों (fines) या अन्य धनीय शास्तियों (Monetary penalties) का अधिरोपन (Imposition);

2. अनुज्ञप्तियों (Licenses) के लिए फ़ीसों या की गई सेवाओं के लिए फ़ीसों की मांग;

3. किसी स्थानीय प्राधिकारी या निकाय द्वारा स्थानीय प्रयोजनों के लिए किसी कर के अधिरोपन (Imposition), उत्सादन (abolition), छूट (remission), परिवर्तन (alteration) या विनियमन (regulation) का उपबंध।

Article 207(3)  के तहत व्यवस्था किया गया है कि जिस विधेयक को अधिनियमित और प्रवर्तित किए जाने पर राज्य की संचित निधि में से व्यय करना पड़ेगा वह विधेयक राज्य के विधान-मंडल के किसी सदन द्वारा तब तक पारित नहीं किया जाएगा जब तक ऐसे विधेयक पर विचार करने के लिए उस सदन से राज्यपाल ने सिफारिश नहीं की है।

जिस विधेयक को अधिनियमित और लागू किए जाने पर राज्य की संचित निधि में से व्यय करना पड़ेगा वह विधेयक विधानमंडल के किसी सदन द्वारा तब तक पारित नहीं किया जाएगा जब तक ऐसा करने के लिए उस सदन से राज्यपाल ने सिफारिश नहीं की है।

कुल मिलाकर यही है वित्त विधेयक (Finance Bill)। लेकिन जाहिर है यहाँ से कुछ स्पष्ट नहीं हुआ इसीलिए आइये इसके कॉन्सेप्ट को समझते हैं;

वित्त विधेयक का कॉन्सेप्ट (Concept of Finance Bill):

भारतीय संविधान में धन विधेयक और वित्त विधेयक में भेद किया गया है। केंद्र के मामले में धन विधेयक को अनुच्छेद 110 के तहत परिभाषित किया गया है, वही वित्त विधेयक को अनुच्छेद 117 के तहत। राज्य के मामले में धन विधेयक को अनुच्छेद 199 के तहत परिभाषित किया गया है, वहीं वित्त विधेयक को अनुच्छेद 207 के तहत।

मोटे तौर पर बात करें तो उन सभी विधेयकों को वित्त विधेयक कहा जाता है जो कि सामान्यतः राजस्व (Revenue) या व्यय (expenditure) से संबंधित वित्तीय मामलों होते हैं।

इस तरह से देखें तो सभी धन विधेयक, वित्त विधेयक होना चाहिए और सभी वित्त विधेयक, धन विधेयक होना चाहिए, क्योंकि कमोबेश धन विधेयक में भी राजस्व या व्यय से संबन्धित मामले ही होते हैं। लेकिन ऐसा नहीं होता है।

सभी धन विधेयक तो वित्त विधेयक होता है लेकिन सभी वित्त विधेयक धन विधेयक नहीं होता है। ऐसा क्यों?

अनुच्छेद 110(1) एवं 199(1) के अंतर्गत जितने भी विषय दिए गए है वो धन विधेयक कहलाते हैं। वहीं अनुच्छेद 117(1) एवं 207 (1) के अनुसार वित्त विधेयक वो विधेयक होता है जिसमें अनुच्छेद 110 या अनुच्छेद 199 के तहत आने वाले विषय तो हो लेकिन सिर्फ वही नहीं हो।

जैसे कि अगर कोई विधेयक करारोपन (Taxation) के बारे में हो लेकिन सिर्फ करारोपन के बारे में ही न हो। यानि कि उसमें अन्य तरह के मामले भी हो सकते हैं।

वित्त विधेयक का वर्गीकरण (Classification of Finance bill):

समझने के लिए, वित्त विधेयकों को दो भागों में विभाजित किया जाता है; वित्त विधेयक (।) और वित्त विधेयक (॥)

अनुच्छेद 117(1) और 207(1) को वित्त विधेयक (।) कहा जाता है।

वित्त विधेयक(।)  में अनुच्छेद 110 और 199 (यानी कि धन विधेयक) के तहत जो मुख्य 6 प्रावधानों की चर्चा की गई है, वो सब तो आता ही है साथ ही साथ कोई अन्य विषय जो अनुच्छेद 110 व 199 में नहीं लिखा हुआ है वो भी आता है, जैसे कि विशिष्ट ऋण से संबन्धित कोई प्रावधान।

इस तरह के विधेयक में दो तत्व ऐसे होते हैं जो किसी धन विधेयक में भी होता हैं;

(पहली बात) इसे भी राज्यसभा या विधान परिषद में पेश नहीं किया जा सकता है, और

(दूसरी बात) इसे भी राष्ट्रपति या राज्यपाल की सिफ़ारिश पर ही पेश किया जा सकता है।

◾ इस हिसाब से देखें तो इसे भी धन विधेयक होना चाहिए और धन विधेयक की तरह ही इसको भी ट्रीटमेंट मिलना चाहिए लेकिन ऐसा नहीं होने के पीछे का सबसे बड़ा कारण ये है कि लोक सभा अध्यक्ष या विधानसभा अध्यक्ष यह तय करता है कि क्या धन विधेयक होगा और क्या नहीं।

◾ अगर लोक सभा अध्यक्ष या विधानसभा अध्यक्ष इसे एक धन विधेयक के रूप में घोषित करता है तो यह एक धन विधेयक हो जाएगा और उसी अनुसार ट्रीटमेंट पाएगा। वहीं लोक सभा अध्यक्ष या विधान सभा अध्यक्ष ऐसा कुछ नहीं करता है तो फिर यह एक वित्त विधेयक होगा और वही ट्रीटमेंट पाएगा जो कि कोई कोई साधारण विधेयक पाता है।

कहने का अर्थ ये है कि भले ही वित्त विधेयक(।) को सिर्फ लोक सभा या विधान सभा में पेश किया जाए और वो भी राष्ट्रपति या राज्यपाल की सिफ़ारिश पर पेश किया जाए लेकिन चूंकि वो एक धन विधेयक नहीं है इसीलिए राज्यसभा या विधान परिषद को इस विधेयक को रद्द करने या इसमें संशोधन करने की शक्ति होती है। बिलकुल वैसे ही जैसे कि साधारण विधेयक के मामले में राज्य सभा या विधान परिषद में होता है।

◾ लेकिन यहाँ जो ट्विस्ट है वो ये है कि कोई भी सदन (चाहे केंद्र में वो लोक सभा हो या राज्यसभा और राज्यों में विधान सभा हो या विधान परिषद) इस विधेयक में प्रस्तावित टैक्स को तब तक बढ़ा नहीं सकता है जब तक राष्ट्रपति या राज्यपाल ऐसा करने को न बोले। लेकिन किसी टैक्स के घटाने या समाप्त करने के लिए लाये गए किसी संशोधन के प्रस्ताव के लिए इस खंड के अधीन राष्ट्रपति या राज्यापाल की सिफारिश की जरूरत नहीं होगी।

◾ इस के अलावा यह एक सामान्य विधेयक की तरह ही काम करता है। इस तरह से से सदनों से पारित होकर जब वित्त विधेयक(।) राष्ट्रपति के पास पहुंचता है तो राष्ट्रपति या राज्यपाल सामान्य विधेयक की तरह ही उस विधेयक को या तो सहमति दे सकता है, या फिर रोक के रख सकता है, या पुनर्विचार के लिए सदन को वापस भेज सकता है। [हालांकि राज्यपाल चाहे तो राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए आरक्षित रख सकता है]

जबकि जब धन विधेयक को राष्ट्रपति या को प्रस्तुत किया जाता है तो वह या तो इस पर अपनी स्वीकृति दे सकता है या फिर इसे रोककर रख सकता है लेकिन वह किसी भी दशा में इसे पुनर्विचार के लिए वापस नहीं भेज सकता है।

वित्त विधेयक (॥) – अनुच्छेद 117(3) या 207(3) के प्रावधानों को ही वित्त विधेयक (॥) कहा जाता है।

यह इस मायने में खास है कि इसमें अनुच्छेद 110 या 199 का कोई भी प्रावधान सम्मिलित नहीं होता है। तो फिर इसमें क्या सम्मिलित होता है?

अनुच्छेद 117(3) या 207(3) के अनुसार, जिस विधेयक को अधिनियमित और लागू किए जाने पर संचित निधि से धन व्यय करना पड़े। उसे वित्त विधेयक (॥) कहा जाता है।

लेकिन फिर से याद रखिए कि ऐसा कोई मामला नहीं होता, जिसका उल्लेख अनुच्छेद 110 या अनुच्छेद 199 में होता है। बल्कि इस तरह के विधेयक में अन्य बातों के साथ-साथ संचित निधि से व्यय का एक या अधिक प्रस्ताव होता है।

◾ इसे साधारण विधेयक की तरह प्रयोग किया जाता है तथा इसके लिए भी वही प्रक्रिया अपनायी जाती है, जो साधारण विधेयक के लिए अपनायी जाती है। यानी कि इस विधेयक को पहले लोकसभा या विधानसभा में पारित करने की भी बाध्यता नहीं होती है इसे जिस सदन में चाहे पेश किया जा सकता है। और राज्यसभा या विधान परिषद इसे संशोधित भी कर सकती है, रोककर भी रख सकती है या फिर पारित कर सकती है।

◾ इसकी दूसरी ख़ासियत ये है कि वित्त विधेयक(॥) को सदन में प्रस्तुत करने के लिए राष्ट्रपति या राज्यपाल की स्वीकृति की जरूरत नहीं पड़ती है लेकिन संसद या विधानमंडल के किसी भी सदन द्वारा इसे तब तक पारित नहीं किया जा सकता, जब तक कि राष्ट्रपति या राज्यपाल सदन को ऐसा करने की सिफ़ारिश न करें।

◾ दोनों ही सदन चाहे तो इसे स्वीकार कर सकता है या फिर अस्वीकार कर सकता है।

◾ जब दोनों सदनों से पास होकर जब विधेयक राष्ट्रपति या राज्यपाल को प्रस्तुत किया जाता है, तो वह या तो विधेयक को अपनी स्वीकृति दे सकता है या उसे रोक सकता है या फिर पुनर्विचार के लिए सदन को वापस कर सकता है।

धन विधेयक और वित्त विधेयक में अंतर (Difference between Money bill and finance bill):

धन विधेयक

  • प्रत्येक धन विधेयक एक वित्त विधेयक होता है।
  • अनुच्छेद 110 या अनुच्छेद 199 में वर्णित विषय ही धन विधेयक की श्रेणी में आते हैं।
  • एक धन विधेयक को राज्य सभा में या विधान परिषद में पेश नहीं किया जा सकता है।
  • धन विधेयक कभी भी एक सामान्य विधेयक की श्रेणी में नहीं आते हैं।
  • कोई विधेयक धन विधेयक है या नहीं ये अंतिम रूप से लोक सभा अध्यक्ष तय करता है।
  • धन विधेयक राज्यसभा में पारित न भी हो तो उस पर कोई फर्क नहीं पड़ता है।
  • धन विधेयक के संबंध में अगर दोनों सदनों में गतिरोध भी हो तो कोई संयुक्त बैठक नहीं बुलाई जा सकती है।

वित्त विधेयक

  • प्रत्येक वित्त विधेयक एक धन विधेयक नहीं होता है।
  • केवल वही वित्त विधेयक धन विधेयक होते हैं जिसका उल्लेख अनुच्छेद 110 या 199 में किया गया है।
  • एक वित्त विधेयक को राज्य सभा या विधान परिषद में पेश किया भी जा सकता है और नहीं भी।
  • एक वित्त विधेयक का संबंध अनुच्छेद 110 या 199 में वर्णित विषय के अलावा भी हो सकता है।
  • एक वित्त विधेयक एक सामान्य विधेयक की श्रेणी में आ सकता है।
  • एक वित्त विधेयक को दोनों सदनों से पास होना जरूरी होता है।
  • एक वित्त विधेयक के संबंध में अगर दोनों सदनों में गतिरोध हो तो कोई संयुक्त बैठक बुलाई जा सकती है। हालांकि राज्यों के मामले में ऐसा नहीं होता है।
⚫ धन विधेयक और वित्त विधेयक (Money Bill & Finance Bill Explanation)
ऊपर लिंक पर क्लिक करके विस्तार से पढ़ें

तो यही है Article 207 , उम्मीद है आपको समझ में आया होगा। दूसरे अनुच्छेदों को समझने के लिए नीचे दिए गए लिंक का इस्तेमाल कर सकते हैं।

राज्य विधानमंडल (State Legislature): गठन, कार्य, आदि
भारतीय संसद (Indian Parliament): Overview
Must Read

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धन विधेयक और वित्त विधेयक अभ्यास प्रश्न

  1. Number of Questions – 5
  2. Passing Marks – 80 %
  3. Time – 4 Minutes
  4. एक से अधिक विकल्प सही हो सकते हैं।

Choose the correct statement from the given statements with reference to Money Bill;

  1. Only a minister can introduce a money bill.
  2. The President cannot withhold the Money Bill.
  3. The Rajya Sabha cannot do anything other than amend the Money Bill.
  4. A money bill can be introduced in either house on the recommendation of the President.

1 / 5

धन विधेयक के संदर्भ में दिए गए कथनों में से सही कथन का चुनाव करें;

  1. धन विधेयक को केवल मंत्री ही प्रस्तुत कर सकता है।
  2. धन विधेयक को राष्ट्रपति अपने पास रोककर नहीं रख सकता है।
  3. राज्यसभा धन विधेयक में संशोधन के सिवाय और कुछ नहीं कर सकती है।
  4. धन विधेयक को किसी भी सदन में राष्ट्रपति की सिफ़ारिश से पेश किया जा सकता है।

Which of the following does not come under Money Bill?

2 / 5

इनमें से क्या धन विधेयक के अंतर्गत नहीं आता है?

Identify the correct statement from the given statements regarding the Finance Bill;

  1. Only those financial bills are money bills, which are mentioned in article 110.
  2. Rajya Sabha can introduce amendments to the Finance Bill.
  3. In the case of a Finance Bill, the President can call a joint sitting of both the Houses.
  4. A Finance Bill can be introduced in either House.

3 / 5

वित्त विधेयक के संबंध में दिए गए कथनों में से सही कथन की पहचान करें;

  1. केवल वही वित्त विधेयक धन विधेयक होते हैं, जिनका उल्लेख अनुच्छेद 110 में किया गया है।
  2. वित्त विधेयक पर राज्यसभा संशोधन प्रस्तुत कर सकता है।
  3. वित्त विधेयक के मामले में राष्ट्रपति दोनों सदनों की संयुक्त बैठक बुला सकता है।
  4. वित्त विधेयक को किसी भी सदन में पेश किया जा सकता है।

Which of the following article describes Money Bill and not Finance Bill?

4 / 5

निम्न में से कौन सा अनुच्छेद धन विधेयक की व्याख्या करता है वित्त विधेयक की नहीं?

Identify the correct statement from the following regarding Money Bill;

  1. All money bills are financial bills.
  2. Article 117 explains it.
  3. Bills containing provisions relating to the regulation of money borrowed by the Central Government are Money Bills.
  4. Bills relating to the appropriation of money from the Consolidated Fund of India are Money Bills.

5 / 5

धन विधेयक के संबंध में निम्न में से सही कथन की पहचान करें;

  1. सभी धन विधेयक वित्त विधेयक होते हैं।
  2. अनुच्छेद 117 इसकी व्याख्या करता है।
  3. केंद्र सरकार द्वारा उधार लिए गए धन के विनियमन से संबंधित प्रावधान वाले विधेयक धन विधेयक होते हैं।
  4. भारत की संचित निधि से धन के विनियोग से संबन्धित विधेयक धन विधेयक होते हैं।

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भारत की कार्यपालिका
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अस्वीकरण – यहाँ प्रस्तुत अनुच्छेद और उसकी व्याख्या, मूल संविधान (उपलब्ध संस्करण), संविधान पर डी डी बसु की व्याख्या (मुख्य रूप से), प्रमुख पुस्तकें (एम. लक्ष्मीकान्त, सुभाष कश्यप, विद्युत चक्रवर्ती, प्रमोद अग्रवाल इत्यादि) एनसाइक्लोपीडिया, संबंधित मूल अधिनियम और संविधान के विभिन्न ज्ञाताओं (जिनके लेख समाचार पत्रों, पत्रिकाओं एवं इंटरनेट पर ऑडियो-विजुअल्स के रूप में उपलब्ध है) पर आधारित है। हमने बस इसे रोचक और आसानी से समझने योग्य बनाने का प्रयास किया है।