शेयर मार्केट के काम करने के तरीके जानने के बाद, इस लेख में हम शेयर के प्रकार एवं इसकी विशेषताओं पर सरल और सहज चर्चा करेंगे,

एवं इसके विभिन्न महत्वपूर्ण पहलुओं को समझने का प्रयास करेंगे; तो बेहतर समझ के लिए इसे अंत तक जरूर पढ़ें।

नोट – अगर आप शेयर मार्केट के बेसिक्स को ज़ीरो लेवल से समझना चाहते हैं तो आपको पार्ट 1 से शुरुआत करनी चाहिए।

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| शेयर किसे कहते हैं?

शेयर (Share) यानी कि अपने हिस्से के चीजों को दूसरों से बांटना या साझा करना, जैसे कि हम अपना खाना शेयर करते हैं, अपनी फीलिंग्स शेयर करते हैं आदि।

पर बाज़ार के सेंस में बात करें तो हम अपने हिस्से के चीजों को तभी शेयर करते हैं जब उसके बदले में हमें कुछ चाहिए होता है। यहाँ जो चाहिए होता है वो है पैसा।

पूंजीवाद कहता है कि आपके पास अभी जो संपत्ति या पूंजी है बस उसी से संतुष्ट मत हो जाओ बल्कि उसे और बढ़ाओ और बढ़ाते ही रहो।

जाहिर है ये तभी बढ़ेगा जब हम अपने बिज़नस को बढ़ाएंगे, बिज़नस तभी बढ़ेगा जब उत्पादकता बढ़ेगी और उत्पादकता तभी बढ़ेगी जब उसमें अतिरिक्त पूंजी डाला जाएगा। ये पूंजी या तो उधार (ऋण) लेकर आ सकता है या फिर अपने बिज़नस का शेयर बेचकर।

| शेयर के प्रकार

मोटे तौर पर शेयर को दो भागों में बांटा जाता है। 1. इक्विटि शेयर (Equity share) और 2. प्रेफरेंस शेयर (Preference share)

⚫ एक तो होता है कंपनी का मालिक जिसके पास कंपनी का सबसे ज्यादा शेयर होता है और दूसरा होता है कॉमन शेयर होल्डर जैसे कि हम और आप जो किसी कंपनी में स्टॉक मार्केट के जरिये शेयर खरीदते हैं।

इन दोनों को मिलाकर इक्विटि शेयर या फिर ओर्डिनरी इक्विटि शेयर (Ordinary Equity Share) कहा जाता है। वहीं प्रेफरेंस शेयर (Preference share) की बात करें तो जैसा कि नाम से स्पष्ट है इसे कुछ खास ट्रीटमेंट मिलता है यानी कि कुछ मामलों में प्रेफरेंस शेयर होल्डर को वरीयता दी जाती है।

कोई कंपनी इक्विटि शेयर कब जारी करती है और प्रेफरेंस शेयर कब जारी करती है?

कई बार जब कोई कंपनी बहुत ज्यादा लोन ले लेती है और वो और लोन लेना नहीं चाहती या फिर उसकी स्थिति ही कुछ ऐसी हो गई है कि और लोन वह बर्दास्त नहीं कर सकती है तो वह इक्विटि शेयर जारी करती है।

वहीं प्रेफरेंस शेयर की बात करें तो जब कंपनी को तत्काल पैसों की जरूरत आन पड़ती है या फिर कंपनी को ऐसा लगता है आने वाले वक्त में सब कुछ ठीक हो जाएगा और कंपनी फिर से रिकवर कर लेगी या फिर अगर ऐसे भी कंपनी को ठीक लगता है तो वे प्रेफरेंस शेयर जारी करती है।

प्रेफरेंस शेयर का एक फायदा ये है कि जब कंपनी जब चाहे उसे वापस ले सकती है, यानी कि निवेशक को मूलधन लौटाकर अपने शेयर वापस ले सकती है।

इक्विटि शेयर और प्रेफरेंस शेयर में अंतर

⚫ इक्विटि शेयर की बात करें तो ये सबसे सामान्य प्रकार के शेयरों में से एक हैं। अगर शेयर का प्राइस ऊपर जाएगा तो इक्विटि शेयर होल्डर को फायदा होगा और अगर नीचे जाएगा तो नुकसान।

लेकिन प्रेफरेंस शेयर की बात करें तो उसे एक फ़िक्स्ड रिटर्न मिलता है। शेयर प्राइस ऊपर जाये या नीचे उससे इसको कोई मतलब नहीं होता है।

⚫ कंपनी जो भी मुनाफा कमाती है अगर कंपनी चाहे तो उस मुनाफ़े को इक्विटि शेयर होल्डर के साथ बाँट भी सकती है और नहीं भी।

लेकिन प्रेफरेंस शेयर की बात करें तो कंपनी के लाभांश/मुनाफ़े पर सबसे पहला अधिकार प्रेफरेंस शेयर होल्डर का ही होता है। उसे बांटने के बाद अगर कुछ बचता है इक्विटि शेयर होल्डर को मिल सकता है।

⚫ अगर कंपनी डूब जाती है तो उसके परिसंपत्तियों को बेचकर जो पैसा मिलता है उसमें प्रेफरेंस शेयर होल्डर को वरीयता दी जाती है उसकी भरपाई होने के बाद अगर कुछ बच जाएगा तो वो इक्विटि शेयर होल्डर को मिलेगा।

⚫ इक्विटि शेयर को शेयर मार्केट में खरीदा-बेचा जा सकता है इसीलिए इक्विटि शेयर होल्डर हो फायदा होगा या नुकसान ये मार्केट पर निर्भर करता है यानी कि इक्विटि शेयर होल्डर बहुत ही ज्यादा जोखिम उठाता है,

जबकि प्रेफरेंस शेयर की बात करें तो उसको खरीदा-बेचा नहीं जा सकता है और उसका रिटर्न भी फ़िक्स्ड होता है इसीलिए वो बहुत ही कम जोखिम उठाता है।

⚫ इक्विटि शेयर होल्डर को कंपनी में वोटिंग का अधिकार मिलता है और ये मैनेजमेंट का का पार्ट भी हो सकता हैं इसीलिए ये बहुत हद तक ये कंपनी को कंट्रोल भी कर सकता है।

जबकि प्रेफरेंस शेयर होल्डर को वोटिंग का अधिकार नहीं मिलता है और न ही ये मैनेजमेंट का पार्ट हो सकता हैं इसीलिए ये कंपनी के लाभांश में हिस्सेदार होते हुए भी उस कंपनी को कंट्रोल नहीं कर सकता है।

⚫ इक्विटि शेयर में सभी लोग इन्वेस्ट कर सकते हैं क्योंकि इसके शेयर का प्राइस काफी कम होता है। जबकि प्रेफरेंस शेयर में खास तौर पर बड़े पूंजीपति वर्ग, या वेंचर कैपिटल फ़र्म आदि ही इन्वेस्ट करते है, क्योंकि आम इन्वेस्टर के पास उतने पैसे ही नहीं होते हैं।

| इक्विटि शेयर का वर्गीकरण

इक्विटी शेयरों को शेयर पूंजी के प्रकार के अनुसार निम्नलिखित भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है। इनमें से कुछ के बारे में हमने पहले भी चर्चा किया है।

अधिकृत शेयर पूंजी (Authorized share capital) : यह एक कंपनी द्वारा जारी की जा सकने वाली पूंजी की अधिकतम राशि है। इसे बढ़ाया भी जा सकता है। लेकिन इसके लिए, कंपनी को कुछ औपचारिकताओं को पूरा करना पड़ता है और कानूनी संस्थाओं को आवश्यक शुल्क भी देना पड़ता है।

जारी की गई शेयर पूँजी (Issued share capital) : यह अधिकृत पूँजी (Authorized capital) का वह भाग है जो कंपनी अपने निवेशकों को जारी किया हुआ है।

सब्स्क्राइब्ड शेयर कैपिटल (Subscribed Share Capital) : सब्स्क्राइब्ड शेयर ऐसे शेयर हैं जिन्हें निवेशकों ने खरीदने का वादा किया है। यानी कि यह कंपनी द्वारा जारी की गई पूंजी के उस हिस्से को संदर्भित करता है, जिसे निवेशक स्वीकार करता हैं या उस हिस्से को खरीदने पर सहमत होता है।

ये शेयर आमतौर पर एक प्रारंभिक सार्वजनिक पेशकश (Initial public offering)(IPO) के हिस्से के रूप में सब्सक्राइब किए जाते हैं।

पेड-अप कैपिटल : यह सब्स्क्राइब्ड कैपिटल के उस हिस्से को संदर्भित करता है जिसके लिए निवेशक भुगतान करते हैं।

कुछ अन्य प्रकार के शेयर से जुड़े टर्म है जो अक्सर इस्तेमाल में आते हैं, जैसे कि

अधिकार शेयर (Rights share) : ये उस तरह के शेयर हैं जो कंपनी अपने पहले से विद्यमान शेयर धारकों को जारी करती है। मौजूदा शेयरधारकों के स्वामित्व अधिकारों की रक्षा के लिए इस तरह के स्टॉक जारी किए जाते हैं इसीलिए इसे अधिकार निर्गम (Rights issue) भी कहा जाता है।

बोनस शेयर : वे शेयर जो कंपनी द्वारा अपने पुराने शेयर धारकों को मुफ्त में उपलब्ध कराए जाते है। इसे स्क्रिप शेयर (Scrip share) भी कहा जाता है।

स्वेट शेयर (Sweat share) : जब कर्मचारी या निर्देशक असाधारण रूप से अच्छी तरह से अपनी भूमिका निभाते हैं, तो उन्हें पुरस्कृत करने के लिए स्वेट शेयर जारी किए जाते हैं।

| प्रेफरेंस शेयर के प्रकार

संचयी और गैर-संचयी वरीयता शेयर (Cumulative and non-cumulative preference shares)

जैसा कि हम जानते हैं प्रेफरेंस शेयर के मामले में कंपनी अपने निवेशकों को एक फ़िक्स्ड रिटर्न प्रोमिस करती है। संचयी वरीयता शेयर (Cumulative preference share) में होता ये है कि अगर कंपनी किसी साल अपने निवेशकों को जितना प्रॉमिस किया है उतना नहीं लौटा पाती है तो वो अगले साल के रिटर्न में जुड़ जाएगा। यानी कि अगले साल उसे दोनों साल का रिटर्न देना होगा।

गैर-संचयी वरीयता वाले शेयरों (Non cumulative preference shares) के मामले में, ऐसा कुछ नहीं होता। अगर कंपनी किसी साल रिटर्न पे नहीं कर पाती है तो अगले साल सिर्फ उसी साल का रिटर्न वो पे करेगा, पिछले साल का नहीं।

प्रतिभागी और गैर-प्रतिभागी वरीयता शेयर (Participant and non-participating preference shares)

प्रतिभागी वरीयता शेयरधारकों (Participant preference shareholders) को प्रेफरेंस शेयर का लाभ तो मिलता ही है साथ ही साथ इक्विटी शेयर का लाभ भी मिलता है। जैसे कि अगर कंपनी ने निर्धारित लाभांश से अधिक लाभ कमाया है, तो प्रतिभागी वरीयता शेयरधारकों को उतना तो मिलेगा ही जितना कि उसका पहले से बनता है पर उसके अलावा उस अधिक वाले हिस्से में से भी मिलेगा।

गैर-प्रतिभागी वरीयता शेयरधारकों को इक्विटी शेयरधारकों के भुगतान के बाद मुनाफे में भाग लेने का अधिकार नहीं है। इसलिए यदि कोई कंपनी कोई अतिरिक्त लाभ कमाती है, तो उन्हें कोई अतिरिक्त लाभांश नहीं मिलेगा। वे केवल हर साल लाभांश का अपना निश्चित हिस्सा ही प्राप्त करेंगे।

परिवर्तनीय और गैर-परिवर्तनीय वरीयता वाले शेयर (Convertible and non-convertible preference shares)

परिवर्तनीय वरीयता वाले शेयरधारकों (Convertible preference shareholders) के पास प्रेफरेंस शेयरों को साधारण इक्विटी शेयरों में बदलने का विकल्प या अधिकार होता है।

गैर-परिवर्तनीय वरीयता वाले शेयरों (Non-convertible preference shares) को इक्विटी शेयरों में परिवर्तित होने का अधिकार नहीं होता है।

प्रतिदेय और अप्रतिदेय वरीयता वाले शेयर (Redeemable and non-redeemable preference shares)

Redeemable वरीयता वाले शेयरों को जारी करने वाली कंपनी अपने शेयर की पुनर्खरीद कर सकता है। यानी कि जितने रुपए में कंपनी उस शेयर को जारी किया था उतने रुपए लौटाकर कंपनी अपने शेयर को पुनः प्राप्त कर सकता है। कितने समय बाद कंपनी अपने शेयर वापस ले सकता है ये शेयर जारी करते समय ही तय कर लिया जाता है।

non-redeemable वरीयता वाले शेयर की बात करें तो इसमें ऐसी कोई बात नहीं होती है।

⚫ कुल मिलाकर यही है शेयर के प्रकार, उम्मीद है आप इसे अच्छी तरह से समझ गए होंगे। अभी आपके पास पढ़ने के लिए बॉन्ड मार्केट, डेरिवेटिव्स, म्यूचुअल फ़ंड, इंश्योरेंस, क्रिप्टोकरेंसी आदि है। मार्केट की बेहतर समझ के लिए आप इन सभी लेखों को जरूर पढ़ें।

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