यह लेख अनुच्छेद 137 (Article 137) का यथारूप संकलन है। आप इसका हिन्दी और इंग्लिश दोनों अनुवाद पढ़ सकते हैं। आप इसे अच्छी तरह से समझ सके इसीलिए इसकी व्याख्या भी नीचे दी गई है आप उसे जरूर पढ़ें।

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Article 137


📜 अनुच्छेद 137 (Article 137) – Original

केंद्रीय न्यायपालिका
137. निर्णयों या आदेशों का उच्चतम न्यायालय द्वारा पुनर्विलोकन — संसद्‌ द्वारा बनाई गई किसी विधि के या अनुच्छेद 145 के अधीन बनाए गए नियमों के उपबंधों के अधीन रहते हुए, उच्चतम न्यायालय को अपने द्वारा सुनाए गए निर्णय या दिए गए आदेश का पुनरावलोकन करने की शक्ति होगी।
अनुच्छेद 137

THE UNION JUDICIARY
137. Review of judgments or orders by the Supreme Court.— Subject to the provisions of any law made by Parliament or any rules made under article 145, the Supreme Court shall have power to review any judgment pronounced or order made by it.
Article 137

🔍 Article 137 Explanation in Hindi

अनुच्छेद 52 से लेकर 151 तक भारतीय संविधान के भाग 5 के तहत आता है। भाग 5 को 5 अध्यायों में बांटा गया है। इसी का चौथा अध्याय है – संघ की न्यायपालिका (The Union Judiciary)

संसद के इस अध्याय के तहत अनुच्छेद 124 से लेकर अनुच्छेद 147 तक आते हैं। इस लेख में हम अनुच्छेद 137 (Article 137) को समझने वाले हैं;

न्याय (Justice) एक जटिल और बहुआयामी अवधारणा है जो व्यक्तियों के साथ निष्पक्ष व्यवहार और न्यायपूर्ण समाज के रखरखाव को संदर्भित करता है।

न्याय लोकतंत्र का एक आधारभूत स्तंभ है क्योंकि यह व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा करता है, कानून के शासन को बनाए रखता है, संघर्ष के समाधान की सुविधा देता है और निष्पक्षता और समानता को बढ़ावा देता है। यह लोकतांत्रिक संस्थानों को मजबूत करता है और समाज की समग्र भलाई और स्थिरता में योगदान देता है।

भारत में इसे सुनिश्चित करने के लिए संविधान द्वारा एकीकृत न्यायिक व्यवस्था (Integrated Judiciary System) की शुरुआत की गई है। इस व्यवस्था में उच्चतम न्यायालय सबसे शीर्ष पर आता है, उसके बाद राज्यों उच्च न्यायालय आता है और फिर उसके बाद जिलों का अधीनस्थ न्यायालय

अनुच्छेद-136 – भारतीय संविधान
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| अनुच्छेद 137 – निर्णयों या आदेशों का उच्चतम न्यायालय द्वारा पुनर्विलोकन

संविधान का भाग 5, अध्याय IV संघीय न्यायालय यानि कि उच्चतम न्यायालय की बात करता है। अनुच्छेद 137 निर्णयों या आदेशों का उच्चतम न्यायालय द्वारा पुनर्विलोकन (Review of judgments or orders by the Supreme Court) के बारे में है।

अनुच्छेद 137 के तहत कहा गया है कि संसद द्वारा बनाई गई किसी विधि के या अनुच्छेद 145 के अधीन बनाए गए नियमों के उपबंधों के अधीन रहते हुए, उच्चतम न्यायालय को अपने द्वारा सुनाए गए निर्णय या दिए गए आदेश का पुनरावलोकन करने की शक्ति होगी।

इस तरह से समझिए –

भारत के सर्वोच्च न्यायालय के पास अनुच्छेद 137 के तहत अपने स्वयं के निर्णयों की समीक्षा करने की शक्ति है। हालांकि इस संबंध में दो शर्तें हैं;

(पहली शर्त) सुप्रीम कोर्ट, संसद द्वारा पारित किसी भी कानून के प्रावधानों के अनुसार ऐसा कर सकता है।

(दूसरी शर्त) सुप्रीम कोर्ट, अनुच्छेद 145 के तहत बनाए गए नियमों के अधीन रहते हुए ऐसा कर सकता है। कहने का अर्थ है कि इस अधिकार का प्रयोग करने के लिए अनुच्छेद 145 के अनुसार न्यायालय द्वारा स्थापित नियमों का उपयोग किया जा सकता है।

◾ न्यायालय के पास स्पष्ट भूल-चूक को ठीक करने के लिए अपने निर्णयों की जांच करने का अधिकार है, लेकिन महत्वहीन छोटी त्रुटियों को ठीक करने के लिए नहीं।

कहने का अर्थ है कि मामले की नए सिरे से समीक्षा करने के बजाय, न्यायालय उन गंभीर गलतियों को ठीक करने पर ध्यान देता है जिसके कारण न्याय बाधित हुआ है।

कुल मिलाकर निर्णयों की समीक्षा (Review of judgments) वह प्रक्रिया है जो भारत की कानूनी प्रणाली में क़ानून की स्थापना की ओर ले जाती है। सर्वोच्च न्यायालय के पास संविधान के अनुच्छेद 137 के संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार अपने स्वयं के निर्णयों की समीक्षा करने का विवेकाधीन अधिकार (discretionary power) है।

इस सब का मतलब यह है कि अगर किसी पक्ष को सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए निर्णय संतुष्ट नहीं कर पा रहा है तो वह एक समीक्षा याचिका (Review Petition) दायर कर सकता है।

Q. समीक्षा याचिका (Review Petition) किसे कहते हैं?

एक समीक्षा याचिका कानून की अदालत से किया गया अनुरोध है जो इसे पहले से ही प्रदान किए गए आदेश या निर्णय पर पुनर्विचार करने के लिए कहती है। समीक्षा याचिका के लिए आवेदन दाखिल करने की समय सीमा निर्णय या आदेश की तारीख के 30 दिन बाद होती है।

यहाँ याद रखें कि अदालत के लिए हर समीक्षा याचिका (Review Petition) को स्वीकार करना जरूरी नहीं है। न्यायालय पुनर्विचार याचिका को तभी स्वीकार कर सकता है जब वह पर्याप्त आधारों पर दायर की गई हो जो कि:

अदालत के लिए हर समीक्षा याचिका को स्वीकार करना जरूरी नहीं है। न्यायालय पुनर्विचार याचिका को तभी स्वीकार कर सकता है जब वह पर्याप्त आधारों पर दायर की गई हो: जैसे कि,

  • जब नए और महत्वपूर्ण मामले या सबूत की खोज हो, जो उस समय किसी तरह न्यायाधीश के संज्ञान में नहीं आ पाया था या याचिकाकर्ता द्वारा उस समय प्रस्तुत नहीं किया जा सकता था जब आदेश या फैसला दिया गया था।
  • अगर फैसले में या रिकॉर्ड में कोई त्रुटि हुई तो, या
  • कोई अन्य पर्याप्त कारण भी हो सकता है।

अगर Review Petition भी न्यायालय द्वारा खारिज कर दिया जाता है तो फिर याचिकाकर्ता के पास अंतिम उपाय के रूप में उपचारात्मक याचिका (Curative Petition) का रास्ता बचता है।

हालांकि एक Curative Petition को आम तौर पर मौखिक तर्क या मौखिक सुनवाई का अधिकार नहीं दिया जाता है और केवल बहुत ही सीमित आधारों पर विचार किया जाता है।

Curative Petition पर विचार करने के लिए, सर्वोच्च न्यायालय ने विशिष्ट शर्तें निर्धारित की हैं:

  • याचिकाकर्ता को यह स्थापित करना चाहिए कि प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का वास्तविक उल्लंघन हुआ था।
  • याचिका में विशेष रूप से उल्लेख किया जाना चाहिए कि उल्लेखित आधारों को समीक्षा याचिका में लिया गया था और इसे खारिज कर दिया गया था।
  • उपचारात्मक याचिका उपरोक्त आवश्यकताओं की पूर्ति से संबंधित एक वरिष्ठ वकील द्वारा प्रमाणीकरण के साथ होनी चाहिए।
  • याचिका तीन वरिष्ठतम न्यायाधीशों और खंडपीठ के न्यायाधीशों को भेजी जानी है, जिन्होंने याचिका को प्रभावित करने वाले निर्णय को पारित किया, यदि उपलब्ध हो।
  • यदि उपरोक्त बेंच के अधिकांश न्यायाधीश इस बात से सहमत हैं कि मामले को सुनवाई की आवश्यकता है, तो इसे उसी बेंच को भेजा जाता है यदि संभव हो।
  • अदालत याचिकाकर्ता पर “अनुकरणीय लागत (exemplary costs)” लगा सकती है यदि उसकी दलील में दम नहीं है।
⚫ ⚫ विस्तार से समझेंउच्चतम न्यायालय का क्षेत्राधिकार (Jurisdiction of Supreme Court)

तो यही है अनुच्छेद 137(Article 137), उम्मीद है आपको समझ में आया होगा। दूसरे अनुच्छेदों को समझने के लिए नीचे दिए गए लिंक का इस्तेमाल कर सकते हैं।

सवाल-जवाब के लिए टेलीग्राम जॉइन करें; टेलीग्राम पर जाकर सर्च करे – @upscandpcsofficial

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FAQ. अनुच्छेद 137(Article 137) क्या है?

अनुच्छेद 137 निर्णयों या आदेशों का उच्चतम न्यायालय द्वारा पुनर्विलोकन (Review of judgments or orders by the Supreme Court) के बारे में है। Review Petition का संबंध इसी अनुच्छेद से है।
विस्तार से समझने के लिए लेख पढ़ें;

अस्वीकरण – यहाँ प्रस्तुत अनुच्छेद और उसकी व्याख्या, मूल संविधान (उपलब्ध संस्करण), संविधान पर डी डी बसु की व्याख्या (मुख्य रूप से), प्रमुख पुस्तकें (एम. लक्ष्मीकान्त, सुभाष कश्यप, प्रमोद अग्रवाल इत्यादि) एनसाइक्लोपीडिया, संबंधित मूल अधिनियम और संविधान के विभिन्न ज्ञाताओं (जिनके लेख समाचार पत्रों, पत्रिकाओं एवं इंटरनेट पर ऑडियो-विजुअल्स के रूप में उपलब्ध है) पर आधारित है। हमने बस इसे रोचक और आसानी से समझने योग्य बनाने का प्रयास किया है।