यह लेख अनुच्छेद 145 (Article 145) का यथारूप संकलन है। आप इसका हिन्दी और इंग्लिश दोनों अनुवाद पढ़ सकते हैं। आप इसे अच्छी तरह से समझ सके इसीलिए इसकी व्याख्या भी नीचे दी गई है आप उसे जरूर पढ़ें।

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Article 145


📜 अनुच्छेद 145 (Article 145) – Original

केंद्रीय न्यायपालिका
145. न्यायालय के नियम आदि — (1) संसद्‌ द्वारा बनाई गई किसी विधि के उपबंधों के अधीन रहते हुए, उच्चतम न्यायालय समय-समय पर, राष्ट्रपति के अनुमोदन से न्यायालय की पद्धति और प्रक्रिया के, साधारणतया, विनियमन के लिए नियम बना सकेगा जिसके अंतर्गत निम्नलिखित भी हैं, अर्थात्‌ :-

(क) उस न्यायालय में विधि-व्यवसाय करने वाले व्यक्तियों के बारे में नियम;

(ख) अपीलें सुनने के लिए प्रक्रिया के बारे में और अपीलों संबंधी अन्य विषयों के बारे में, जिनके अंतर्गत वह समय भी है जिसके भीतर अपीलें उस न्यायालय में ग्रहण की जानी हैं, नियम ;

(ग) भाग 3 द्वारा प्रदत्त अधिकारों में से किसी का प्रवर्तन कराने के लिए उस न्यायालय में कार्यवाहियों के बारे में नियम ;

1[(गग) 2[अनुच्छेद 39क] के अधीन उस न्यायालय में कार्यवाहियों के बारे में नियम;

(घ) अनुच्छेद 134 के खंड (1) के उपखंड (ग) के अधीन अपीलों को ग्रहण किए जाने के बारे में नियम ;

(ङ) उस न्यायालय द्वारा सुनाए गए किसी निर्णय या किए गए आदेश का जिन शर्तों के अधीन रहते हुए पुनर्विलोकन किया जा सकेगा उनके बारे में और ऐसे पुनर्विलोकन के लिए प्रक्रिया के बारे मे, जिसके अतंर्गत वह समय भी है जिसके भीतर ऐसे पुनर्विलोकन के लिए आवेदन उस न्यायालय में ग्रहण किए जाने हैं, नियम ;

(च) उस न्यायालय में किन्हीं कार्यवाहियों के और उनके आनुषंगिक खर्चे के बारे में, तथा उसमें कार्यवाहियों के संबंध में प्रभारित की जाने वाली फीसों के बारे में नियम ;

(छ) जमानत मंजूर करने के बारे में नियम ;

(ज) कार्यवाहियों को रोकने के बारे में नियम ;

(झ) जिस अपील के बारे में उस न्यायालय को यह प्रतीत होता है कि वह तुच्छ या तंग करने वाली है अथवा विलंब करने के प्रयोजन से की गई है, उसके संक्षिप्त अवधारण के लिए उपबंध करने वाले नियम ;

(ञ) अनुच्छेद 317 के खंड (1) में निर्दिष्ट जांचों के लिए प्रक्रिया के बारे में नियम।

(2) 3[4**** खंड (3) के उपबंधों] के अधीन रहते हुए, इस अनुच्छेद के अधीन बनाए गए नियम, उन न्यायाधीशों की न्यूनतम संख्या नियत कर सकेंगे जो किसी प्रयोजन के लिए बैठेंगे तथा एकल न्यायाधीशों और खंड न्यायालयों की शक्ति के लिए उपबंध कर सकेंगे।

(3) जिस मामले में इस संविधान के निर्वचन के बारे में विधि का कोई सारवान प्रश्न अंतर्वलित है उसका विनिश्चय करने के प्रयोजन के लिए या इस संविधान के अनुच्छेद 143 के अधीन निर्देश की सुनवाई करने के प्रयोजन के लिए बैठने वाले न्यायाधीशों की 5[4**** न्यूनतम संख्या] पांच होगी:

परन्तु जहां अनुच्छेद 132 से भिन्‍न इस अध्याय के उपबंधों के अधीन अपील की सुनवाई करने वाला न्यायालय पांच से कम न्यायाधीशों से मिलकर बना है और अपील की सुनवाई के दौरान उस न्यायालय का समाधान हो जाता है कि अपील में संविधान के निर्वचन के बारे में विधि का ऐसा सारवान्‌ प्रश्न अंतर्वलित है जिसका अवधारण अपील के निपटारे के लिए आवश्यक है वहां वह न्यायालय ऐसे प्रश्न को उस न्यायालय को, जो ऐसे प्रश्न को अंतर्वलित करने वाले किसी मामले के विनिश्चय के लिए इस खंड की अपेक्षानुसार गठित किया जाता है, उसकी राय के लिए निर्देशित करेगा और ऐसी राय की प्राप्ति पर उस अपील को उस राय के अनुरूप निपटाएगा।

(4) उच्चतम न्यायालय प्रत्येक निर्णय खुले न्यायालय में ही सुनाएगा, अन्यथा नहीं और अनुच्छेद 143 के अधीन प्रत्येक प्रतिवेदन खुले न्यायालय में सुनाई गई राय के अनुसार ही दिया जाएगा, अन्यथा नहीं।

(5) उच्चतम न्यायालय द्वारा प्रत्येक निर्णय और ऐसी प्रत्येक राय, मामले की सुनवाई में उपस्थित न्यायाधीशों की बहुसंख्या की सहमति से ही दी जाएगी, अन्यथा नहीं, किन्तु इस खंड की कोई बात किसी ऐसे न्यायाधीश को, जो सहमत नहीं है, अपना विसम्मत निर्णय या राय देने से निवारित नहीं करेगी ।
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1. संविधान (बयालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1976 की धारा 26 द्वारा (1-2-977 से) अंतःस्थापित।
2. संविधान (तैंतालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1977 की धारा 6 द्वारा (13-4-978 से) “अनुच्छेद 31क और अनुच्छेद 39क” के स्थान पर प्रतिस्थापित।
3. संविधान (बयालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1976 का धारा 26 द्वारा (1-2-1977 से) “खंड (3) के उपबंधों” के स्थान पर प्रतिस्थापित।
4. संविधान (तैतालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1977 की धारा 6 द्वारा (13-4-1978 से) कतिपय शब्दों, अंकों और अक्षरों का लोप किया गया।
5. संविधान (बयालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1976 की धारा 26 द्वारा (1-2-977 से) “न्यूनतम संख्या” के स्थान पर प्रतिस्थापित।
अनुच्छेद 145

THE UNION JUDICIARY
145. Rules of Court, etc.—(1) Subject to the provisions of any law made by Parliament, the Supreme Court may from time to time, with the approval of the President, make rules for regulating generally the practice and procedure of the Court including—
(a) rules as to the persons practising before the Court;
(b) rules as to the procedure for hearing appeals and other matters pertaining to appeals including the time within which appeals to the Court are to be entered;
(c) rules as to the proceedings in the Court for the enforcement of any of the rights conferred by Part III;
1[(cc) rules as to the proceedings in the Court under 2[article 139A];]
(d) rules as to the entertainment of appeals under sub-clause (c) of clause (1) of article 134;
(e) rules as to the conditions subject to which any judgment pronounced or order made by the Court may be reviewed and the procedure for such review including the time within which applications to the Court for such review are to be entered;
(f) rules as to the costs of and incidental to any proceedings in the Court and as to the fees to be charged in respect of proceedings therein;
(g) rules as to the granting of bail;
(h) rules as to stay of proceedings;
(i) rules providing for the summary determination of any appeal which appears to the Court to be frivolous or vexatious or brought for the purpose of delay;
(j) rules as to the procedure for inquiries referred to in clause (1) of article 317.

(2) Subject to the 3[provisions of 4*** clause (3)], rules made under this article may fix the minimum number of Judges who are to sit for any purpose, and may provide for the powers of single Judges and Division Courts.

(3) 5[4***The minimum number] of Judges who are to sit for the purpose of deciding any case involving a substantial question of law as to the interpretation of this Constitution or for the purpose of hearing any reference under article 143 shall be five:

Provided that, where the Court hearing an appeal under any of the provisions of this Chapter other than article 132 consists of less than five Judges and in the course of the hearing of the appeal the Court is satisfied that the appeal involves a substantial question of law as to the interpretation of this Constitution the determination of which is necessary for the disposal of the appeal, such Court shall refer the question for opinion to a Court constituted as required by this clause for the purpose of deciding any case involving such a question and shall on receipt of the opinion dispose of the appeal in conformity with such opinion.

(4) No judgment shall be delivered by the Supreme Court save in open Court, and no report shall be made under article 143 save in accordance with an opinion also delivered in open Court

(5) No judgment and no such opinion shall be delivered by the Supreme Court save with the concurrence of a majority of the Judges present at the hearing of the case, but nothing in this clause shall be deemed to prevent a Judge who does not concur from delivering a dissenting judgment or opinion.
=============
1. Ins. by the Constitution (Forty-second Amendment) Act, 1976, s. 26 (w.e.f. 1-2-1977).
2. Subs. by the Constitution (Forty-third Amendment) Act, 1977, s. 6, for “articles 131A and 139A” (w.e.f. 13-4-1978).
3. Subs. by the Constitution (Forty-second Amendment) Act, 1976, s. 26, for “provisions of clause (3)” (w.e.f. 1-2-1977).
4. Certain words omitted by the Constitution (Forty-third Amendment) Act, 1977, s. 6 (w.e.f. 13-4-1978).
5. Subs. by the Constitution (Forty-second Amendment) Act, 1976, s. 26, for “The minimum number” (w.e.f. 1-2-1977).
Article 145

🔍 Article 145 Explanation in Hindi

अनुच्छेद 52 से लेकर 151 तक भारतीय संविधान के भाग 5 के तहत आता है। भाग 5 को 5 अध्यायों में बांटा गया है। इसी का चौथा अध्याय है – संघ की न्यायपालिका (The Union Judiciary)

संसद के इस अध्याय के तहत अनुच्छेद 124 से लेकर अनुच्छेद 147 तक आते हैं। इस लेख में हम अनुच्छेद 145 (Article 145) को समझने वाले हैं;

न्याय (Justice) एक जटिल और बहुआयामी अवधारणा है जो व्यक्तियों के साथ निष्पक्ष व्यवहार और न्यायपूर्ण समाज के रखरखाव को संदर्भित करता है।

न्याय लोकतंत्र का एक आधारभूत स्तंभ है क्योंकि यह व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा करता है, कानून के शासन को बनाए रखता है, संघर्ष के समाधान की सुविधा देता है और निष्पक्षता और समानता को बढ़ावा देता है। यह लोकतांत्रिक संस्थानों को मजबूत करता है और समाज की समग्र भलाई और स्थिरता में योगदान देता है।

भारत में इसे सुनिश्चित करने के लिए संविधान द्वारा एकीकृत न्यायिक व्यवस्था (Integrated Judiciary System) की शुरुआत की गई है। इस व्यवस्था में उच्चतम न्यायालय सबसे शीर्ष पर आता है, उसके बाद राज्यों उच्च न्यायालय आता है और फिर उसके बाद जिलों का अधीनस्थ न्यायालय

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| अनुच्छेद 145 – न्यायालय के नियम आदि

संविधान का भाग 5, अध्याय IV संघीय न्यायालय यानि कि उच्चतम न्यायालय की बात करता है। अनुच्छेद 145 न्यायालय के नियम आदि (Rules of Court, etc) के बारे में है।

इस अनुच्छेद के तहत कुल 5 खंड है। आइये समझते हैं।

अनुच्छेद 145(1) सर्वोच्च न्यायालय को कुछ शर्तों और सीमाओं के अधीन अपनी स्वयं की प्रक्रियाओं को विनियमित करने के लिए नियम बनाने की शक्ति प्रदान करता है।

कहने का अर्थ है की सुप्रीम कोर्ट अपनी प्रक्रियाओं को संचालित करने के लिए खुद नियम बना सकता है, लेकिन यह नियम संसद‌ द्वारा बनाई गई किसी विधि के उपबंधों के अधीन होना चाहिए, और राष्ट्रपति से अनुमोदित (Approved) होनी चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट द्वारा बनाए गए नियमों में निम्नलिखित नियम भी शामिल होंगे;

(a) उस न्यायालय में विधि-व्यवसाय करने वाले व्यक्तियों के बारे में नियम;

  • सर्वोच्च न्यायालय, उसके समक्ष Law Practice करने वाले व्यक्ति के लिए नियम बनाए जा सकते हैं। यह उनकी पात्रता, शिक्षा, इत्यादि के बारे में हो सकता है।

(b) अपीलें सुनने के लिए प्रक्रिया के बारे में नियम और अपीलों संबंधी अन्य विषयों के बारे में नियम, जिनके अंतर्गत वह समय भी है जिसके भीतर अपीलें उस न्यायालय में ग्रहण की जानी हैं;

  • यह खंड अपील से संबंधित नियम बनाने के बारे में बात करता है, जैसे कि अगर किसी अपील को उच्च न्यायालय से उच्चतम न्यायालय जाना है तो उसके क्या नियम होंगे, इसके अलावा अपील को स्थानांतरित करने के लिए समय सीमा क्या होगी इत्यादि।

(c) संविधान के भाग 3 (मौलिक अधिकारों) द्वारा प्रदत्त अधिकारों में से किसी का प्रवर्तन कराने के लिए उस न्यायालय में कार्यवाहियों के बारे में नियम;

(cc) अनुच्छेद 39क (जिसे निःशुल्क विधिक सहायता भी कहा जाता है) के अधीन उस न्यायालय में कार्यवाहियों के बारे में नियम;

(d) अनुच्छेद 134 के खंड (1) के उपखंड (ग) के अधीन अपीलों को ग्रहण किए जाने के बारे में नियम ;

(e) उस न्यायालय द्वारा सुनाए गए किसी निर्णय या किए गए आदेश का जिन शर्तों के अधीन रहते हुए पुनर्विलोकन किया जा सकेगा उनके बारे में नियम और ऐसे पुनर्विलोकन के लिए प्रक्रिया के बारे में नियम, जिसके अतंर्गत वह समय भी है जिसके भीतर ऐसे पुनर्विलोकन के लिए आवेदन उस न्यायालय में ग्रहण किए जाने हैं ;

(f) उस न्यायालय में किन्हीं कार्यवाहियों के और उनके आनुषंगिक खर्चे के बारे में, तथा उसमें कार्यवाहियों के संबंध में प्रभारित की जाने वाली फीसों के बारे में नियम ;

(g) जमानत मंजूर करने के बारे में नियम ;

(h) कार्यवाहियों को रोकने के बारे में नियम ;

(i) जिस अपील के बारे में उस न्यायालय को यह प्रतीत होता है कि वह तुच्छ या तंग करने वाली है अथवा विलंब करने के प्रयोजन से की गई है, उसके संक्षिप्त अवधारण के लिए उपबंध करने वाले नियम ;

(j) अनुच्छेद 317 के खंड (1) में निर्दिष्ट जांचों के लिए प्रक्रिया के बारे में नियम।

अनुच्छेद 145(2) के तहत कहा गया है कि इसी अनुच्छेद के खंड (3) के उपबंधों के अधीन रहते हुए, इस अनुच्छेद के अधीन बनाए गए नियम, उन न्यायाधीशों की न्यूनतम संख्या नियत कर सकेंगे जो किसी प्रयोजन के लिए बैठेंगे तथा एकल न्यायाधीशों (single Judges) और खंड न्यायालयों (Division Courts) की शक्ति के लिए उपबंध कर सकेंगे।

इसके तहत यह कहा गया है कि इस अनुच्छेद के तहत जो नियम सुप्रीम कोर्ट द्वारा बनाए जाएंगे, उन्ही नियमों के तहत किसी प्रयोजन के लिए बैठने वाले न्यायाधीशों की न्यूनतम संख्या को नियत किया जा सकेगा, और साथ ही एकल न्यायाधीशों (single Judges) और खंड न्यायालयों (Division Courts) के लिए शक्तियों की भी व्यवस्था की जा सकेगी, लेकिन यह सब अनुच्छेद 145 के खंड (3) के अधीन होना चाहिए; क्यों, आइये समझें;

अनुच्छेद 145(3) के तहत कहा गया है कि जिस मामले में इस संविधान के व्याख्या (interpretation) के बारे में विधि का कोई सारवान प्रश्न (Substantial question) सम्मिलित है उसका विनिश्चय करने के प्रयोजन के लिए या इस संविधान के अनुच्छेद 143 के अधीन निर्देश की सुनवाई करने के प्रयोजन के लिए बैठने वाले न्यायाधीशों की न्यूनतम संख्या पांच होगी:

इस खंड के तहत दो बातें कही गई है;

(पहली बात), सुप्रीम कोर्ट जब भी संविधान के किसी ऐसे विषय की व्याख्या करेगी, जिसमें विधि का सारवान प्रश्न सम्मिलित है तो फिर इसके लिए कम से कम 5 न्यायाधीशों का एक बेंच बैठेगा।

(दूसरी बात), सुप्रीम कोर्ट जब भी अनुच्छेद 143 के तहत राष्ट्रपतीय संदर्भ (Presidential References) की सुनवाई करने के लिए बैठेंगी तो कम से कम 5 न्यायाधीशों का बेंच होना चाहिए।

कम से कम पाँच न्यायाधीशों वाले इस बेच को ही संवैधानिक पीठ (Constitutional Bench) कहा जाता है। उदाहरण के लिए आप केशवानंद भारती मामला या मिनर्वा मिल्स के मामले को देख सकता हैं।

यहां यह याद रखिए कि अगर अनुच्छेद 132 के अलावा इस अध्याय (यानि कि अनुच्छेद 124 से 147 तक) के उपबंधों के अधीन अपील की सुनवाई करने वाला न्यायालय पांच से कम न्यायाधीशों से मिलकर बना है और अपील की सुनवाई के दौरान उस न्यायालय को यह पता चलता है कि अपील में संविधान की व्याख्या का प्रश्न है तो ऐसे प्रश्न को उस न्यायालय को भेजा जाएगा जो कि कम से कम पाँच न्यायाधीशों से मिलकर बना होगा।

अनुच्छेद 145(4) के तहत कहा गया है कि उच्चतम न्यायालय प्रत्येक निर्णय खुले न्यायालय में ही सुनाएगा, अन्यथा नहीं और अनुच्छेद 143 के अधीन प्रत्येक प्रतिवेदन खुले न्यायालय में सुनाई गई राय के अनुसार ही दिया जाएगा, अन्यथा नहीं।

यहां पर दो बातें हैं;

(पहली बात), सुप्रीम कोर्ट प्रत्येक निर्णय खुले न्यायालय (open Court) में ही सुनाएगा।

(दूसरी बात), अनुच्छेद 143 के तहत राष्ट्रपतीय परामर्श (Presidential References) के लिए जो रिपोर्ट तैयार किया जाएगा वो खुले न्यायालय में सुनाई गई राय के अनुसार ही तैयार किया जाएगा।

खुला न्यायालय (Open Court) क्या होता है?
न्यायपालिका के संदर्भ में एक खुली अदालत, न्याय के एक मूलभूत सिद्धांत को संदर्भित करती है जिसके लिए अदालती कार्यवाही को पारदर्शी और सुलभ तरीके से संचालित करने की आवश्यकता होती है। यह दर्शाता है कि अदालती सुनवाई और परीक्षण आम तौर पर जनता के लिए खुले होने चाहिए, जिससे व्यक्तियों को न्यायिक प्रक्रिया का अवलोकन करने और भाग लेने की अनुमति मिल सके।

एक खुली अदालत के प्रमुख पहलू और निहितार्थ हैं:

सार्वजनिक पहुँच: एक खुली अदालत यह सुनिश्चित करती है कि अदालती कार्यवाही आम जनता के लिए सुलभ हो। यह पत्रकारों, शोधकर्ताओं और जनता के सदस्यों सहित किसी भी इच्छुक व्यक्ति को सुनवाई में भाग लेने और कार्यवाही का निरीक्षण करने की अनुमति देता है। यह खुलापन न्याय प्रणाली की पारदर्शिता, जवाबदेही और सार्वजनिक जांच को बढ़ावा देता है।

मौलिक अधिकार: खुली अदालत का सिद्धांत सार्वजनिक मुकदमे के अधिकार से निकटता से जुड़ा हुआ है, जिसे भारतीय संविधान सहित कई कानूनी प्रणालियों में मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता प्राप्त है। यह व्यक्तियों को कानूनी कार्यवाही के बारे में जानने, सूचित करने और न्याय प्रशासन में विश्वास रखने के अपने अधिकार का प्रयोग करने में सक्षम बनाता है।

निष्पक्षता: खुली अदालत का सिद्धांत यह सुनिश्चित करता है कि अदालती कार्यवाही निष्पक्ष रूप से संचालित हो। सार्वजनिक अवलोकन की अनुमति देकर, यह संभावित पूर्वाग्रह, भ्रष्टाचार, या अनुचित प्रभाव के विरुद्ध एक जाँच के रूप में कार्य करता है, क्योंकि कार्यवाही दर्शकों की उपस्थिति में आयोजित की जाती है।

निवारक प्रभाव: एक खुली अदालत की उपस्थिति अदालती कार्यवाही के दौरान अनुचित प्रथाओं, कदाचार या शक्ति के दुरुपयोग के खिलाफ एक निवारक के रूप में कार्य कर सकती है।

शैक्षिक और सूचनात्मक मूल्य: खुली अदालती कार्यवाही जनता को शैक्षिक और सूचनात्मक मूल्य प्रदान करती है। वे कानूनी प्रणाली, कानूनों के आवेदन और न्याय के प्रशासन की सार्वजनिक समझ में योगदान करते हैं। यह व्यक्तियों को कानूनी प्रक्रियाओं के बारे में जानने और कानूनी पेशेवरों के वकालत कौशल का निरीक्षण करने की अनुमति देता है।

खुली अदालत का सिद्धांत पारदर्शिता, जवाबदेही और न्यायपालिका में जनता के विश्वास को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह सुनिश्चित करता है कि न्याय न केवल किया जाता है बल्कि न्यायिक प्रक्रिया की वैधता और अखंडता को मजबूत करते हुए देखा भी जाता है।
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अनुच्छेद 145(5) के तहत यह कहा गया है कि उच्चतम न्यायालय द्वारा प्रत्येक निर्णय और ऐसी प्रत्येक राय, मामले की सुनवाई में उपस्थित न्यायाधीशों की बहुसंख्या की सहमति से ही दी जाएगी, अन्यथा नहीं, किन्तु इस खंड की कोई बात किसी ऐसे न्यायाधीश को, जो सहमत नहीं है, अपना विसम्मत निर्णय या राय देने से निवारित नहीं करेगी।

यहां पर बस ये कहा गया है कि अगर कई न्यायाधीशों वाला बेंच है तो प्रत्येक निर्णय बहुमत के आधार पर लिया जाएगा और अगर कोई न्यायाधीश निर्णय से असहमति रखता है तो उसे अपनी असहमति दर्ज करने का पूरा अधिकार होगा।

उदाहरण के लिए आप समझ सकते हैं कि केशवानंद भारती मामले में 13 न्यायाधीशों का बेंच बैठा था और 7:6 के आधार पर फैसला हुआ था, यानि कि 6 न्यायाधीश उस निर्णय से खुश नहीं थे और उनका उस बारे में अपना मत था।

उच्चतम न्यायालय का क्षेत्राधिकार (Jurisdiction of SC)

यहां तक हमने खंडवार इस अनुच्छेद को समझ लिया है अब आइये इस अनुच्छेद को ओवरऑल समझते हैं, ताकि चीज़ें एकदम स्पष्ट रहें;

संवैधानिक पीठ (constitutional bench) क्या और यह कब बैठता है?

एक संविधान पीठ सर्वोच्च न्यायालय की एक पीठ है जिसमें पाँच या अधिक न्यायाधीश होते हैं। ये कोई सामान्य बेंच नहीं है। आमतौर पर सर्वोच्च न्यायालय की सुनवाई एक न्यायाधीश (एकल बेंच) या दो न्यायाधीशों की पीठ (जिसे खंडपीठ कहा जाता है) या कभी-कभी तीन न्यायाधीशों द्वारा किया जाता है।
अनुच्छेद 145(3): जैसा कि हमने ऊपर भी समझा कि “इस संविधान की व्याख्या के रूप में या अनुच्छेद 143 के तहत किसी भी संदर्भ की सुनवाई के उद्देश्य से कानून के किसी महत्वपूर्ण प्रश्न को तय करने के उद्देश्य से बैठने वाले न्यायाधीशों की न्यूनतम संख्या पाँच होती है और इसे ही संवैधानिक पीठ (Constitutional Bench) कहा जाता है।

यहाँ यह याद रखें कि जब सर्वोच्च न्यायालय के दो या अधिक तीन-न्यायाधीशों की बेंच ने कानून के एक ही बिंदु पर परस्पर विरोधी निर्णय दिए हों, तो एक बड़ी बेंच द्वारा कानून की निश्चित समझ और व्याख्या की आवश्यकता होती है।

वर्तमान में, आवश्यकता पड़ने पर संविधान पीठों को तदर्थ (Ad-hoc) आधार पर पर स्थापित किया जाता है। 2018 तक के आंकड़ों के अनुसार, भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 2187 संविधान पीठ गठित किए जा चुके हैं और फैसले किए गए हैं।

Overall Article 145

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 145 उन नियमों और प्रक्रियाओं से संबंधित है जो भारत के सर्वोच्च न्यायालय के कामकाज को नियंत्रित करते हैं। यह सर्वोच्च न्यायालय को कुछ शर्तों और सीमाओं के अधीन अपनी स्वयं की प्रक्रियाओं को विनियमित करने के लिए नियम बनाने की शक्ति प्रदान करता है।

यहां Article 145 की प्रमुख विशेषताएं और प्रावधान हैं:

  1. नियम बनाने की शक्ति: अनुच्छेद 145 सर्वोच्च न्यायालय को न्यायालय के अभ्यास और प्रक्रिया को विनियमित करने के लिए नियम बनाने का अधिकार देता है। सुप्रीम कोर्ट के कुशल और प्रभावी कामकाज के लिए ये नियम आवश्यक हैं।
  2. राष्ट्रपति से परामर्श: अनुच्छेद 145 के तहत सर्वोच्च न्यायालय द्वारा बनाए गए नियमों को भारत के राष्ट्रपति के परामर्श से बनाया जाना चाहिए। यह सुनिश्चित करता है कि नियम समग्र संवैधानिक ढांचे के अनुरूप हैं और कार्यकारी शाखा के हित को ध्यान में रखा गया है।
  3. संवैधानिक प्रावधानों के अधीन: अनुच्छेद 145 के तहत सर्वोच्च न्यायालय द्वारा बनाए गए नियम संविधान के प्रावधानों के अधीन हैं। वे किसी भी मौजूदा संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन नहीं कर सकते हैं या व्यक्तियों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं कर सकते हैं।
  4. न्यायालय की अवमानना: अनुच्छेद 145 भी सर्वोच्च न्यायालय को स्वयं की अवमानना ​​को परिभाषित करने और दंडित करने का अधिकार देता है। अदालत अवमाननापूर्ण व्यवहार से निपटने के लिए नियम और प्रक्रियाएं निर्धारित कर सकती है जो अदालत के अधिकार और गरिमा को कम करती है।
  5. अन्य न्यायालयों के लिए नियमः सर्वोच्च न्यायालय अपनी स्वयं की प्रक्रियाओं के लिए नियम बनाने के अतिरिक्त, अपने अधीनस्थ किसी न्यायालय की प्रथा और प्रक्रिया को विनियमित करने के लिए भी नियम बना सकता है। ये नियम न्यायिक प्रणाली में न्याय प्रशासन में एकरूपता और निरंतरता सुनिश्चित करते हैं।

◾ Article 145 के तहत सर्वोच्च न्यायालय को दी गई शक्ति उसे अपनी कार्यवाही के संचालन के लिए एक अच्छी तरह से विनियमित प्रणाली स्थापित करने और बनाए रखने की अनुमति देती है। अदालत ऐसे नियम बना सकती है जो मामलों को दाखिल करने और पेश करने, अधिवक्ताओं के प्रवेश, दस्तावेजों को जमा करने, सुनवाई के समय-निर्धारण और अन्य महत्वपूर्ण प्रक्रियात्मक पहलुओं को नियंत्रित करते हैं।

◾ Article 145 के तहत सर्वोच्च न्यायालय द्वारा बनाए गए नियम न्याय के निष्पक्ष और कुशल प्रशासन में योगदान करते हैं, यह सुनिश्चित करते हुए कि न्यायालय कानून के शासन को बनाए रखने और व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा करने में प्रभावी ढंग से कार्य करता है।

◾ यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि जबकि सर्वोच्च न्यायालय के पास अनुच्छेद 145 के तहत नियम बनाने का अधिकार है, ये नियम समग्र संवैधानिक ढांचे के अधीन हैं और यदि आवश्यक हो तो न्यायालय द्वारा स्वयं या विधायी कार्रवाई द्वारा समीक्षा और संशोधित की जा सकती है।

कुल मिलाकर, Article 145 भारत के सर्वोच्च न्यायालय को अपनी प्रक्रियाओं को विनियमित करने और अधीनस्थ न्यायालयों के लिए नियम बनाने का अधिकार देता है। ये नियम न्याय की एक व्यवस्थित और कुशल प्रणाली स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और भारतीय न्यायिक प्रणाली में सर्वोच्च न्यायालय की अखंडता और अधिकार को बनाए रखने में मदद करते हैं।

तो यही है अनुच्छेद 145 (Article 145), उम्मीद है आपको समझ में आया होगा। दूसरे अनुच्छेदों को समझने के लिए नीचे दिए गए लिंक का इस्तेमाल कर सकते हैं।

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Concept MCQs

  1. Which article of the Indian Constitution deals with the power of the Supreme Court to make rules for its own procedures?
    a) Article 143
    b) Article 145
    c) Article 144
    d) Article 146
💡View Answer

Explanation: The correct answer is b) Article 145. Article 145 empowers the Supreme Court to make rules for regulating the practice and procedure of the court.

  1. According to Article 145, the rules made by the Supreme Court must be made in consultation with:
    a) The President of India
    b) The Prime Minister of India
    c) The Chief Justice of India
    d) The Attorney General of India
💡View Answer

Explanation: The correct answer is a) The President of India. Article 145 states that the rules made by the Supreme Court must be made in consultation with the President.

  1. What is the purpose of Article 145 of the Indian Constitution?
    a) To define the powers and jurisdiction of the Supreme Court
    b) To ensure the independence of the judiciary
    c) To regulate the procedures of the Supreme Court
    d) To establish the hierarchy of courts in India
💡View Answer

Explanation: The correct answer is c) To regulate the procedures of the Supreme Court. Article 145 empowers the Supreme Court to make rules for regulating its own procedures.

  1. Which of the following is not subject to the rules made by the Supreme Court under Article 145?
    a) Government authorities
    b) Judges of the Supreme Court
    c) Courts subordinate to the Supreme Court
    d) Parliament of India
💡View Answer

Explanation: The correct answer is d) Parliament of India. While the Supreme Court can make rules for the practice and procedure of courts subordinate to it, it does not have the authority to make rules for the functioning of the Parliament.

  1. What is the significance of the power granted under Article 145 of the Indian Constitution?
    a) It ensures the independence of the judiciary from the executive
    b) It enables the Supreme Court to enforce its decisions effectively
    c) It establishes the hierarchy of courts in India
    d) It grants the President the authority to appoint judges of the Supreme Court
💡View Answer

Explanation: The correct answer is b) It enables the Supreme Court to enforce its decisions effectively. The power to make rules under Article 145 allows the Supreme Court to establish procedures that aid in the implementation and enforcement of its judgments and orders.

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भारतीय संविधान
संसद की बेसिक्स
मौलिक अधिकार बेसिक्स
भारत की न्यायिक व्यवस्था
भारत की कार्यपालिका
Article 145
अस्वीकरण – यहाँ प्रस्तुत अनुच्छेद और उसकी व्याख्या, मूल संविधान (उपलब्ध संस्करण), संविधान पर डी डी बसु की व्याख्या (मुख्य रूप से), प्रमुख पुस्तकें (एम. लक्ष्मीकान्त, सुभाष कश्यप, प्रमोद अग्रवाल इत्यादि) एनसाइक्लोपीडिया, संबंधित मूल अधिनियम और संविधान के विभिन्न ज्ञाताओं (जिनके लेख समाचार पत्रों, पत्रिकाओं एवं इंटरनेट पर ऑडियो-विजुअल्स के रूप में उपलब्ध है) पर आधारित है। हमने बस इसे रोचक और आसानी से समझने योग्य बनाने का प्रयास किया है।
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