यह लेख Article 201 (अनुच्छेद 201) का यथारूप संकलन है। आप इस मूल अनुच्छेद का हिन्दी और इंग्लिश दोनों संस्करण पढ़ सकते हैं। आप इसे अच्छी तरह से समझ सके इसीलिए इसकी व्याख्या भी नीचे दी गई है आप उसे जरूर पढ़ें, और MCQs भी सॉल्व करें।

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📜 अनुच्छेद 201 (Article 201) – Original

भाग 6 “राज्य” [अध्याय 3 — राज्य का विधान मंडल] [विधायी प्रक्रिया]
201. विचार के लिए आरक्षित विधेयक — जब कोई विधेयक राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित रख लिया जाता है तब राष्ट्रपति घोषित करेगा कि वह विधेयक पर अनुमति देता है या अनुमति रोक लेता है।

परंतु जहां विधेयक धन विधेयक नहीं है वहां राष्ट्रपति राज्यपाल को यह निदेश दे सकेगा कि वह विधेयक को, यथास्थिति, राज्य के विधान-मंडल के सदन या सदनों को ऐसे संदेश के साथ, जो अनुच्छेद 200 के पहले परंतुक में वर्णित है, लौटा दे और जब कोई विधेयक इस प्रकार लौटा दिया जाता है तब ऐसा संदेश मिलने की तारीख से छह मास की अवधि के भीतर सदन या सदनों द्वारा उस पर तदनुसार पुनर्विचार किया जाएगा और यदि वह सदन या सदनों द्वारा संशोधन सहित या उसके बिना फिर से पारित कर दिया जाता है तो उसे राष्ट्रपति के समक्ष उसके विचार के लिए फिर से प्रस्तुत किया जाएगा।
अनुच्छेद 201 हिन्दी संस्करण

Part VI “State” [CHAPTER III — The State Legislature] [Legislative Procedure]
201. Bills reserved for consideration— When a Bill is reserved by a Governor for the consideration of the President, the President shall declare either that he assents to the Bill or that he withholds assent therefrom:

Provided that, where the Bill is not a Money Bill, the President may direct the Governor to return the Bill to the House or, as the case may be, the Houses of the Legislature of the State together with such a message as is mentioned in the first proviso to article 200 and, when a Bill is so returned, the House or Houses shall reconsider it accordingly within a period of six months from the date of receipt of such message and, if it is again passed by the House or Houses with or without amendment, it shall be presented again to the President for his consideration.
Article 201 English Version

🔍 Article 201 Explanation in Hindi

भारतीय संविधान का भाग 6, अनुच्छेद 152 से लेकर अनुच्छेद 237 तक कुल 6 अध्यायों (Chapters) में विस्तारित है (जिसे कि आप नीचे टेबल में देख सकते हैं)।

ChaptersTitleArticles
Iसाधारण (General)Article 152
IIकार्यपालिका (The Executive)Article 153 – 167
IIIराज्य का विधान मंडल (The State Legislature)Article 168 – 212
IVराज्यपाल की विधायी शक्ति (Legislative Power of the Governor)Article 213
Vराज्यों के उच्च न्यायालय (The High Courts in the States)Article 214 – 232
VIअधीनस्थ न्यायालय (Subordinate Courts)Article 233 – 237
[Part 6 of the Constitution]

जैसा कि आप ऊपर देख सकते हैं, इस भाग के अध्याय 3 का नाम है “राज्य का विधान मंडल (The State Legislature)” और इसका विस्तार अनुच्छेद 158 से लेकर अनुच्छेद 212 तक है।

इस अध्याय को आठ उप-अध्यायों (sub-chapters) में बांटा गया है, जिसे कि आप नीचे चार्ट में देख सकते हैं;

Chapter 3 [Sub-Chapters]Articles
साधारण (General)Article 168 – 177
राज्य के विधान मण्डल के अधिकारी (Officers of the State Legislature)Article 178 – 187
कार्य संचालन (Conduct of Business)Article 188 – 189
सदस्यों की निरर्हताएं (Disqualifications of Members)Article 190 – 193
राज्यों के विधान-मंडलों और उनके सदस्यों की शक्तियां, विशेषाधिकार और उन्मुक्तियां (Powers, privileges and immunities of State Legislatures and their members)Article 194 – 195
विधायी प्रक्रिया (Legislative Procedure)Article 196 – 201
वित्तीय विषयों के संबंध में प्रक्रिया (Procedure in respect of financial matters)Article 202 – 207
साधारण प्रक्रिया (Procedure Generally)Article 208 – 212
[Part 6 of the Constitution]

इस लेख में हम विधायी प्रक्रिया (Legislative Procedure) के तहत आने वाले अनुच्छेद 201 को समझने वाले हैं।

अनुच्छेद 111- भारतीय संविधान
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| अनुच्छेद 201 – विचार के लिए आरक्षित विधेयक (Bills reserved for consideration)

भारत एक संघीय व्यवस्था वाला देश है यानी कि यहाँ केंद्र सरकार की तरह राज्य सरकार भी होता है और जिस तरह से केंद्र में विधायिका (Legislature) होता है उसी तरह से राज्य का भी अपना एक विधायिका होता है।

केन्द्रीय विधायिका (Central Legislature) को भारत की संसद (Parliament of India) कहा जाता है। यह एक द्विसदनीय विधायिका है, जिसका अर्थ है कि इसमें दो सदन हैं: लोकसभा (लोगों का सदन) और राज्यसभा (राज्यों की परिषद)। इसी तरह से राज्यों के लिए भी व्यवस्था की गई है।

अनुच्छेद 168(1) के तहत प्रत्येक राज्य के लिए एक विधानमंडल (Legislature) की व्यवस्था की गई है और यह विधानमंडल एकसदनीय (unicameral) या द्विसदनीय (bicameral) हो सकती है।

अनुच्छेद 200 के तहत हमने समझा कि जब कोई विधेयक सदन से पारित होने के बाद राज्यपाल के पास पहुंचता है तो क्या-क्या होता है या हो सकता है; इसी के तहत हमने समझा था कि राज्यपाल कुछ कुछ विधेयकों को राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए आरक्षित रखता है;

अनुच्छेद 201 के तहत हम यही समझने वाले हैं कि जब किसी विधेयक को राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित रखा जाता है तो क्या होता है?

यदि कोई विधेयक राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए सुरक्षित रखा जाता है तो राष्ट्रपति या तो अपनी स्वीकृति दे देते हैं, उसे रोक सकते है या विधानमंडल के सदन या सदनों को पुनर्विचार हेतु भेज सकते हैं।

6 माह के भीतर इस विधेयक पर पुनर्विचार आवश्यक है। यदि विधेयक को उसके मूल रूप में या संशोधित कर दोबारा राष्ट्रपति के पास भेजा तो संविधान में इस बात का उल्लेख नहीं है राष्ट्रपति इस विधेयक को मंजूरी दे या नहीं।

वहीं जब एक धन विधेयक राज्यपाल के समक्ष पेश किया जाता है तब वह इस पर अपनी स्वीकृति दे सकता है, इसे रोक सकता है या राष्ट्रपति को स्वीकृति के लिए सुरक्षित रख सकता है लेकिन राज्य विधानमंडल के पास पुनर्विचार के लिए नहीं भेज सकता। समान्यतः राज्यपाल उस विधेयक को स्वीकृति दे ही देता है, जो उसकी पूर्व अनुमति के बाद लाया जाता है।

जब कि धन विधेयक राष्ट्रपति के विचारार्थ के लिए सुरक्षित रखा जाता है तो राष्ट्रपति या तो इसे स्वीकृति दे देता है या इसे रोक सकता है लेकिन इसे राज्य विधानमंडल के पास पुनर्विचार के लिए नहीं भेज सकता है। [धन विधेयक और वित्त विधेयक को समझें]

राष्ट्रपति और राज्यपाल की विधेयकों से संबंधित शक्ति की तुलना

राष्ट्रपति
सामान्य विधेयकों से संबन्धित
राज्यपाल
सामान्य विधेयकों से संबन्धित
प्रत्येक साधारण विधेयक जब वह संसद के दोनों सदनों (चाहे अलग-अलग या संयुक्त बैठक) से पारित होकर आता है तो उसे राष्ट्रपति के पास मंजूरी के लिए भेजा जाता है। इस मामले में उसके पास तीन विकल्प होते हैं-
1. वह विधेयक को स्वीकृत दे सकता है, फिर विधेयक अधिनियम बन जाता है।
2. वह विधेयक को अपनी स्वीकृत रोक सकता है ऐसी स्थिति में विधेयक समाप्त हो जाएगा और अधिनियम नहीं बन पाएगा।
3. यदि विधेयक को बिना किसी परिवर्तन के फिर से दोनों सदनों द्वारा पारित कराकर राष्ट्रपति की स्वीकृत के लिए भेजा जाये तो राष्ट्रपति को उसे स्वीकृति अवश्य देनी होती है।
◼ऐसे मामलों में राष्ट्रपति के पास केस स्थगन वीटो का अधिकार होता है। यानी कि वह उसे रोक कर रख सकता है।
प्रत्येक साधारण विधेयक जब वह विधानमंडल के सदन या सदनों (अगर विधानपरिषद भी हो तो) से पारित होकर आता है तो इसे राज्यपाल के पास मंजूरी के लिए भेजा जाता है। इस मामले में राज्यपाल के पास चार विकल्प होते है-
1. वह विधेयक को स्वीकृति प्रदान कर सकता है, विधेयक फिर अधिनियम बन जाता है
2. वह विधायक को अपनी स्वीकृति रोक सकता है तब विधेयक समाप्त हो जाएगा और अधिनियम नहीं बन पाएगा।
3. यदि विधेयक को बिना किसी परिवर्तन के फिर से विधानमंडल द्वारा पारित करकर राज्यपाल की स्वीकृति के लिए भेजा जाये तो राज्यपाल के पास केवल स्थगन वीटो का अधिकार है।
4. वह विधेयक को राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए सुरक्षित रख सकता है।
जब भी कोई विधेयक राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति के विचारार्थ सुरक्षित रखा जाता है तो राष्ट्रपति के पास तीन विकल्प होते हैं –
1. वह विधेयक को स्वीकृत दे सकता है जिसके बाद वह अधिनियम बन जाएगा
2. वह विधेयक को अपनी स्वीकृत रोक सकता है, फिर विधेयक खत्म हो जाएगा और अधिनियम नहीं बन पाएगा।
3. वह विधेयक को राज्य विधानमंडल के सदन या सदनों के पास पुनर्विचार के लिए भेज सकता है। सदन द्वारा छह महीने के भीतर इस पर पुनर्विचार करना आवश्यक है। यदि विधेयक को कुछ सुधार या बिना सुधार के राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए दोबारा भेजा जाये तो राष्ट्रपति इसे देने के लिए बाध्य नहीं है; वह स्वीकृत कर भी सकता है और नहीं भी।
जब राज्यपाल राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए किसी विधेयक को सुरक्षित रखता है तो उसके बाद विधेयक को अधिनियम बनाने में उसकी कोई भूमिका नहीं रहती, यदि राष्ट्रपति द्वारा उस विधेयक को पुनर्विचार के लिए सदन या सदनों के पास भेजा जाता है और उसे दोबारा पारित कर फिर राष्ट्रपति के पास स्वीकृत के लिए भेजा जाता है।
इसका मतलब ये है कि अब राज्यपाल की स्वीकृति कि आवश्यकता नहीं रह गई है।
धन विधेयकों से संबन्धितधन विधेयकों से संबन्धित
संसद द्वारा पारित प्रत्येक वित विधेयक को जब राष्ट्रपति के पास स्वीकृति के लिए भेजा जाता है तो उसके पास दो विकल्प होते है –
1. वह विधेयक को स्वीकृति दे सकता है ताकि वह अधिनियम बन जाये
2. वह स्वीकृति न दे तब विधेयक समाप्त हो जाएगा और अधिनियम नहीं बन पायगा। इस प्रकार राष्ट्रपति धन विधेयक को संसद को पुनर्विचार के लिए नहीं लौटा सकता।
वित्त विधेयक जब राज्य विधानमंडल द्वारा पारित कर राज्यपाल के पास स्वीकृति के लिए भेजा जाता है तो उसके पास तीन विकल्प होते है –
1. वह विधेयक को अपनी स्वीकृति दे सकता है, तब विधेयक अधिनियम बन जाएगा।
2. वह विधेयक को अपनी स्वीकृति रोक सकता है जिससे विधेयक समाप्त हो जाएगा और अधिनियम नहीं बन पाएगा।
3. वह विधेयक को राष्ट्रपति के विचारार्थ सुरक्षित रख सकता है। इस तरह राज्यपाल भी वित्त विधेयक को पुनर्विचार के लिय राज्य विधानसभा को वापस नहीं कर सकता।
जब वित्त विधेयक किसी राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति को विचारार्थ भेजा जाता है तो राष्ट्रपति के पास दो विकल्प होते हैं –
1. वह विधेयक को अपनी स्वीकृत दे सकता है, ताकि विधेयक अधिनियम बन सके,
2. वह उसे अपनी स्वीकृति रोक सकता है। तब विधेयक खत्म हो जाएगा और अधिनियम नहीं बन पायगा। इस प्रकार राष्ट्रपति वित्त विधेयक को राज्य विधानसभा के पास पुनर्विचार के लिए नहीं भेज सकता (बिल्कुल संसद जैसे ही)
जब राज्यपाल राष्ट्रपति के विचारार्थ वित्त विधेयक को सुरक्षित रखता है तो इस विधेयक के क्रियाकलाप पर फिर उसकी कोई भूमिका नहीं रह जाती है, यदि राष्ट्रपति विधेयक को स्वीकृति दे दे तो वह अधिनियम बन जाएगा। इसका मतलब ये है कि राज्यपाल की स्वीकृति अब आवश्यक नहीं है।
Article 201 https://wonderhindi.com/president-vs-governor/

तो यही है Article 201, उम्मीद है आपको समझ में आया होगा। दूसरे अनुच्छेदों को समझने के लिए नीचे दिए गए लिंक का इस्तेमाल कर सकते हैं।

राज्य विधानमंडल (State Legislature): गठन, कार्य, आदि
भारतीय संसद (Indian Parliament): Overview
Must Read

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Chapter Wise Polity Quiz

विधानमंडल में विधायी प्रक्रिया अभ्यास प्रश्न

  1. Number of Questions – 5 
  2. Passing Marks – 80 %
  3. Time – 4 Minutes
  4. एक से अधिक विकल्प सही हो सकते हैं।

1 / 5

दिए गए कथनों में से सही कथन का चुनाव करें;

  1. विधानमंडल के मामले में दोनों सदनों की संयुक्त बैठक की व्यवस्था नहीं है।
  2. यदि कोई विधेयक विधानपरिषद में निर्मित हो और उसे विधानसभा उसे अस्वीकृत कर दे तो विधेयक समाप्त हो जाता है।
  3. ज्यादा से ज्यादा परिषद एक विधेयक को चार माह के लिए रोक सकती है।
  4. विधानपरिषद को केंद्र में राज्यसभा को तुलना में कम अधिकार या महत्व दिया गया है।

2 / 5

दिए गए कथनों में से सही कथन का चुनाव करें;

  1. धन विधेयक विधानपरिषद में पेश नहीं किया जा सकता।
  2. राज्यपाल धन विधेयक को सिर्फ एक बार पुनर्विचार के लिए सदन को वापस भेज सकता है।
  3. ऐसा विधेयक जो विधान परिषद में लंबित हो लेकिन विधानसभा द्वारा पारित हो, को खारिज नहीं किया जा सकता।
  4. ऐसा विधेयक जो विधानसभा द्वारा पारित हो लेकिन राष्ट्रपति द्वारा सदन के पास पुनर्विचार हेतु लौटाया गया हो को समाप्त नहीं किया जा सकता।

3 / 5

जब कोई विधेयक विधानसभा से पारित होने के बाद विधान परिषद में भेजा जाता है तो परिषद इनमें से क्या नहीं कर सकता है?

  1. कुछ संशोधनों के बाद पारित कर परिषद विचारार्थ इसे विधानसभा को भेज सकता है।
  2. परिषद इस पर बिना किसी कारवाई के लंबित रख सकता है।
  3. परिषद तीन बार तक विधेयक को अस्वीकृत कर सकता है।
  4. परिषद विधेयक को ज्यादा से ज्यादा 6 महीने तक रोक के रख सकता है।

4 / 5

विधनमंडलीय प्रक्रिया के संबंध में दिए गए कथनों में से सही कथन का चुनाव करें;

  1. दो सत्रों के बीच 8 माह से अधिक का समय नहीं होना चाहिए।
  2. विधानसभा अध्यक्ष बैठक को किसी समय विशेष के लिए स्थगित कर सकता है।
  3. संसद की तरह राज्य विधानमंडल को भी वर्ष में कम से कम दो बार मिलना होता है।
  4. सत्र के बीच में सत्रावसान की घोषणा नहीं की जा सकती है।

5 / 5

विधानसभा में साधारण कानून बनाने की प्रक्रिया के संबंध में दिए गए कथनों में से सही कथन का चुनाव करें;

  1. विधेयक प्रारम्भिक सदन में संसद के विपरीत सिर्फ दो स्तरों से गुजरता है;. प्रथम पाठन एवं द्वितीय पाठन।
  2. दोनों स्तरों से गुजरने के बाद उस विधेयक को दूसरे सदन में भेज दिया जाता है।
  3. दूसरे सदन में उस विधेयक को तीन स्तरों से गुजरना होता है।
  4. एक सदनीय व्यवस्था वाले विधानमंडल में विधेयक पारित कर सीधे राज्यपाल के पास भेज दिया जाता है।

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मौलिक अधिकार बेसिक्स
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अस्वीकरण – यहाँ प्रस्तुत अनुच्छेद और उसकी व्याख्या, मूल संविधान (उपलब्ध संस्करण), संविधान पर डी डी बसु की व्याख्या (मुख्य रूप से), प्रमुख पुस्तकें (एम. लक्ष्मीकान्त, सुभाष कश्यप, विद्युत चक्रवर्ती, प्रमोद अग्रवाल इत्यादि) एनसाइक्लोपीडिया, संबंधित मूल अधिनियम और संविधान के विभिन्न ज्ञाताओं (जिनके लेख समाचार पत्रों, पत्रिकाओं एवं इंटरनेट पर ऑडियो-विजुअल्स के रूप में उपलब्ध है) पर आधारित है। हमने बस इसे रोचक और आसानी से समझने योग्य बनाने का प्रयास किया है।