संसद में मुख्य रूप से चार प्रकार के विधेयक पेश किए जाते हैं जिसकी चर्चा आगे की गई है; उसमें से धन विधेयक और वित्त विधेयक (Money bill & Finance bill) काफी महत्वपूर्ण विधेयक है।
इस लेख में हम धन विधेयक और वित्त विधेयक (Money bill and Finance bill) पर सरल और सहज चर्चा करेंगे, एवं इन दोनों के बीच के अंतर को समझेंगे, तो अच्छी तरह से समझने के लिए लेख को अंत तक जरूर पढ़ें साथ ही अन्य विधेयकों को भी पढ़ें –
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विधेयकों के प्रकार (Types of Bill):
अनुच्छेद 79 के तहत, देश के सर्वोच्च प्रतिनिधि संस्था के रूप में संसद की व्यवस्था की गई है। संसद तीन घटकों से मिलकर बना है; राष्ट्रपति (President), लोकसभा (Lok Sabha) और राज्यसभा (Rajya Sabha)।
किसी भी कानून बनने की शुरुआत संसद में विधेयक से होती है, जो कि कानून कैसी होगी उसी का एक मसौदा (Draft) होता है। संसद में विभिन्न स्तरों से गुजरने के बाद यह कानून का रूप लेती है।
मोटे तौर पर चार प्रकार के विधेयक (bill) होते हैं – संविधान संशोधन विधेयक (Constitution Amendment Bill), साधारण विधेयक (Ordinary bill), धन विधेयक (Money Bill) और वित्त विधेयक (Finance bill)।
इसमें संविधान संशोधन विधेयक, संविधान के प्रावधान को बदलने या उसमें संशोधन से संबन्धित होता है। साधारण विधेयक की बात करें तो ये ऐसे विधेयक होते हैं जो ना ही संविधान संशोधन विधेयक होते है और न ही धन और वित्त विधेयक।
यानी कि ये सामान्य क़ानूनों से संबन्धित होते हैं, हालांकि वित्त विधेयक साधारण विधेयक के गुण भी प्रदर्शित करते हैं कैसे करते हैं इसे हम आगे देखने वाले हैं।
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धन विधेयक और वित्त विधेयक (Money bill & Finance bill):
धन विधेयक की बात करें या वित्त विधेयक की दोनों किसी न किसी प्रकार से पैसों से ही संबन्धित है। फिर भी कुछ प्रावधानों की वजह से इन दोनों में अंतर आ जाती है।
संविधान में भी इन दोनों को अलग-अलग अनुच्छेदों में वर्णित किया गया है। धन विधेयक को अनुच्छेद 110 में वर्णित किया गया है और वित्त विधेयक को अनुच्छेद 117 में। जितने भी धन विधेयक होते हैं वे सभी वित्त विधेयक होते हैं पर सभी वित्त विधेयक धन विधेयक नहीं होते हैं।
धन विधेयक का कॉन्सेप्ट (Money Bill Concept):
किस प्रकार के विधेयक को धन विधेयक माना जाएगा ये संविधान के अनुच्छेद 110 में परिभाषित की गई है। इस अनुच्छेद के अनुसार कोई विधेयक तभी धन विधेयक माना जाएगा, जब उसमें निम्न वर्णित प्रावधानों में से एक या अधिक प्रावधान परिलक्षित होंगे।
1. यदि किसी विधेयक में, किसी कर का अधिरोपन (Imposition), उत्सादन (abolition), परिहार (remission), परिवर्तन (alteration) या विनियमन (Regulation) होता हो।
इसका सीधा सा मतलब ये है कि जब किसी में विधेयक में टैक्स लगाने, बढ़ाने, कम करने या उस टैक्स को खत्म करने से संबन्धित प्रावधान हो तो उसे धन विधेयक कहा जाएगा।
2. अगर किसी विधेयक में, भारत सरकार द्वारा उधार लिए गए धन के विनियमन (Regulation) या भारत सरकार द्वारा दी गई किसी गारंटी का विनियमन या अपने ऊपर ली गई किसी वित्तीय बाध्यताओं से संबन्धित किसी विधि का संशोधन हो;
दूसरे शब्दों में कहें तो भारत सरकार द्वारा ऋण लेना, गारंटी देना अथवा वित्तीय उत्तरदायित्व लेने के संबंध में कानून बनाने से संबन्धित प्रावधानों वाले विधेयक को धन विधेयक कहा जाएगा।
3. अगर किसी विधेयक में, भारत की संचित निधि (Consolidated Fund) या आकस्मिकता निधि (Contingency Fund) में से धन जमा करने या उसमें से धन निकालने से संबन्धित प्रावधान हो तो उसे धन विधेयक कहा जाएगा।
4. ऐसा विधेयक जो, भारत की संचित निधि से धन के विनियोग से संबन्धित हो। [संचित निधि यानी कि भारत का राजकोष और विनियोग का मतलब होता है किसी विशेष उपयोग के लिए आधिकारिक रूप से आवंटित धन की राशि।]
5. ऐसा विधेयक जो, भारत की संचित निधि पर भारित (Charged) किसी व्यय की उद्घोषणा या इस प्रकार के किसी व्यय की राशि में वृद्धि से संबन्धित हो।
6. ऐसा विधेयक जो, भारत की संचित निधि या लोक लेखा (Public Account) में किसी प्रकार के धन की प्राप्ति या अभिरक्षा या इनसे व्यय या इनका केंद्र या राज्य की निधियों का लेखा परीक्षण से संबन्धित हो।
[लोक लेखा (Public Account) भी संचित निधि की तरह एक निधि है, पर इसमें कुछ भिन्नताएँ है, निधियों को जानने के लिए इस लेख को जरूर पढ़ें। – विभिन्न प्रकार की निधियाँ (Types of Funds)]
7. उपरोक्त विनिर्दिष्ट (Specified) किसी विषय का आनुषंगिक (ancillary) कोई विषय। यानी कि अभी जो ऊपर 6 प्रावधानों को पढ़ें है उसका अगर कोई आनुषंगिक विषय भी होगा तब भी वे धन विधेयक माने जाएंगे।
| और अधिक विस्तार से समझने के लिए पढ़ें – Article 110
क्या-क्या धन विधेयक नही है?
निम्न कारणों के आधार पर किसी विधेयक को धन विधेयक नहीं माना जाता है :-
1. जुर्मानों या अन्य धनीय शास्तियों (Monetary penalties) का अधिरूपन (Imposition);
2. अनुज्ञप्तियों (Licenses) के लिए फ़ीसों या की गई सेवाओं के लिए फ़ीसों की मांग;
3. किसी स्थानीय प्राधिकारी या निकाय द्वारा स्थानीय प्रयोजनों के लिए किसी कर के अधिरोपन, उत्सादन (Cancellation), परिहार (Avoidance), परिवर्तन या विनियमन का उपबंध।
धन विधेयक से संबन्धित प्रावधान
◼ किस विधेयक को धन विधेयक कहना है और किस विधेयक को नहीं ये फैसला लोकसभा अध्यक्ष लेता है इस मामले में लोकसभा के अध्यक्ष का निर्णय अंतिम निर्णय होता है। उसके निर्णय को किसी न्यायालय, संसद या राष्ट्रपति द्वारा चुनौती नहीं दी जा सकती है।
◼ धन विधेयक केवल लोकसभा में केवल राष्ट्रपति की सिफ़ारिश से ही प्रस्तुत किया जा सकता है। इस प्रकार के प्रत्येक विधेयक को सरकारी विधेयक माना जाता है तथा इसे केवल मंत्री ही प्रस्तुत कर सकता है।
◼ लोकसभा में पारित होने के उपरांत इसे राज्यसभा के विचारार्थ भेजा जाता है। राज्यसभा धन विधेयक को अस्वीकृत या संशोधित नहीं कर सकती है। यह केवल सिफ़ारिश कर सकती है।
वो भी लोकसभा के लिए यह आवश्यक नहीं होता है कि वह राज्यसभा की सिफ़ारिशों को स्वीकार ही करें। इसके साथ ही 14 दिन के भीतर उसे इस पर स्वीकृति देनी होती है अन्यथा वह राज्यसभा द्वारा पारित समझा जाता है।
◼ इस प्रकार देखा जा सकता है कि धन विधेयक के संबंध में राज्यसभा की शक्ति काफी सीमित है। दूसरी ओर साधारण विधेयकों के मामले में दोनों सदनों को समान शक्ति प्रदान की गई है।
अंततः जब धन विधेयक को राष्ट्रपति को प्रस्तुत किया जाता है तो वह या तो इस पर अपनी स्वीकृति दे सकता है या फिर इसे रोककर रख सकता है लेकिन वह किसी भी दशा में इसे पुनर्विचार के लिए वापस नहीं भेज सकता है।
ऐसा इसीलिए होता है क्योंकि लोकसभा में प्रस्तुत करने से पहले राष्ट्रपति की सहमति ली जाती है यदि वे सहमति दे देते हैं इसका मतलब है कि राष्ट्रपति इससे सहमत है।
वित्त विधेयक का कॉन्सेप्ट (Finance bill Concept):
भारतीय संविधान में धन विधेयक और वित्त विधेयक में भेद किया गया है। धन विधेयक को अनुच्छेद 110 के तहत परिभाषित किया गया है, वही वित्त विधेयक को अनुच्छेद 117 के तहत।
मोटे तौर पर बात करें तो उन सभी विधेयकों को वित्त विधेयक कहा जाता है जो कि सामान्यतः राजस्व या व्यय से संबंधित वित्तीय मामलों होते हैं।
इस तरह से देखें तो सभी धन विधेयक, वित्त विधेयक होना चाहिए और सभी वित्त विधेयक, धन विधेयक होना चाहिए, क्योंकि कमोबेश धन विधेयक में भी राजस्व या व्यय से संबन्धित मामले ही होते हैं। लेकिन ऐसा नहीं होता है।
सभी धन विधेयक तो वित्त विधेयक होता है लेकिन सभी वित्त विधेयक धन विधेयक नहीं होता है। ऐसा क्यों?
अनुच्छेद 110(1) के अंतर्गत जितने भी विषय दिए गए है वो धन विधेयक कहलाते हैं। वहीं अनुच्छेद 117(1) के अनुसार वित्त विधेयक वो विधेयक होता है जिसमें अनुच्छेद 110 के तहत आने वाले विषय तो हो लेकिन सिर्फ वही नहीं हो।
जैसे कि अगर कोई विधेयक करारोपन (Taxation) के बारे में हो लेकिन सिर्फ करारोपन के बारे में ही न हो। यानि कि उसमें अन्य तरह के मामले भी हो सकते हैं।
यह विधेयक साधारणतया प्रत्येक वर्ष बजट पेश किए जाने के तुरंत पश्चात लोकसभा में पेश किया जाता है। इस पर धन विधेयक की सभी शर्तें लागू होती है तथा इसमें संशोधन प्रस्तावित किए जा सकते है।
वित्त विधेयक का वर्गीकरण (Classification of Finance Bill):
वित्त विधेयक को दो भागों में बांटा जा सकता है :- वित्त विधेयक (।) और वित्त विधेयक (॥)
जैसा कि हमने ऊपर समझा कि सभी धन विधेयक, वित्त विधेयक होते हैं लेकिन सभी वित्त विधेयक धन विधेयक नहीं होते हैं। केवल वही वित्त विधेयक धन विधेयक होते हैं, जिनका उल्लेख अनुच्छेद 110 में किया गया है।
और सबसे बड़ी बात ये कि कौन सा विधेयक धन विधेयक होगा और कौन नहीं ये लोकसभा अध्यक्ष तय करते हैं। कहने का अर्थ है कि इतना सब कुछ लिखा होने के बावजूद भी अगर लोकसभा अध्यक्ष किसी विधेयक को धन विधेयक घोषित करता है तो धन विधेयक होगा।
वित्त विधेयक (।)
वित्त विधेयक(।) की चर्चा अनुच्छेद 117 (1) में की गई है। वित्त विधेयक (।) में अनुच्छेद 110 (यानी कि धन विधेयक) के तहत जो मुख्य 6 प्रावधानों की चर्चा की गई है, वो सब तो आता ही है साथ ही साथ कोई अन्य विषय जो अनुच्छेद 110 में नहीं लिखा हुआ है वो भी आता है, जैसे कि विशिष्ट ऋण से संबन्धित कोई प्रावधान।
इस तरह के विधेयक में दो तत्व ऐसे होते हैं जो किसी धन विधेयक में भी होता हैं; (पहली बात) इसे भी राज्यसभा में पेश नहीं किया जा सकता है, और (दूसरी बात) इसे भी राष्ट्रपति की सिफ़ारिश पर ही पेश किया जा सकता है।
कहने का अर्थ है कि वित्त विधेयक(।) में अनुच्छेद 110 (धन विधेयक) के सारे प्रावधान आते हैं इसीलिए इसे पहले राष्ट्रपति से स्वीकृति लेने की जरूरत पड़ती है। और उसके बाद इसे लोकसभा में प्रस्तुत किया जाता है।
◾ इस हिसाब से देखें तो इसे भी धन विधेयक होना चाहिए और धन विधेयक की तरह ही इसको भी ट्रीटमेंट मिलना चाहिए लेकिन ऐसा नहीं होने के पीछे का सबसे बड़ा कारण ये है कि लोक सभा अध्यक्ष यह तय करता है कि क्या धन विधेयक होगा और क्या नहीं।
अगर लोक सभा अध्यक्ष इसे एक धन विधेयक के रूप में घोषित करता है तो यह एक धन विधेयक हो जाएगा और उसी अनुसार ट्रीटमेंट पाएगा। वहीं लोक सभा अध्यक्ष ऐसा कुछ नहीं करता है तो फिर यह एक वित्त विधेयक होगा और वही ट्रीटमेंट पाएगा जो कि कोई कोई साधारण विधेयक पाता है।
◾ लेकिन अनुच्छेद 110 में वर्णित 6 मामलों के इत्तर जितने भी मामले होते हैं, उन मामलों में वित्त विधेयक (I) एक साधारण विधेयक की तरह हो जाता है।
यानी कि अब इसे राष्ट्रपति की पूर्व स्वीकृति की जरूरत नहीं रहती और अब जब ये राज्यसभा में जाएगा तो राज्यसभा इसे रोक के रख सकती है या फिर चाहे तो पारित कर सकती है।
◾ यदि इस प्रकार के विधेयक में दोनों सदनों के बीच कोई गतिरोध होता है तो राष्ट्रपति दोनों सदनों के गतिरोध को समाप्त करने के लिए संयुक्त बैठक बुला सकता है। जबकि धन विधेयक में संयुक्त बैठक बुलाने का कोई प्रावधान नहीं है।
दोनों सदनों से पास होने के बाद जब विधेयक राष्ट्रपति को प्रस्तुत किया जाता है, तो वह या तो विधेयक को अपनी स्वीकृति दे सकता है या उसे रोक सकता है या फिर पुनर्विचार के लिए सदन को वापस कर सकता है। जबकि धन विधेयक में राष्ट्रपति पुनर्विचार के लिए नहीं भेज सकता है।
वित्त विधेयक (॥)
वित्त विधेयक(॥) की चर्चा अनुच्छेद 117 (3) में की गई है। यह इस मायने में खास है कि इसमें अनुच्छेद 110 का कोई भी प्रावधान सम्मिलित नहीं होता है। तो फिर इसमें क्या सम्मिलित होता है?
◾ अनुच्छेद 117(3) के अनुसार, जिस विधेयक को अधिनियमित और प्रवर्तित किए जाने पर भारत के संचित निधि से धन व्यय करना पड़े। लेकिन फिर से याद रखिए कि ऐसा कोई मामला नहीं होता, जिसका उल्लेख अनुच्छेद 110 में होता है।
◾ इसे साधारण विधेयक की तरह प्रयोग किया जाता है तथा इसके लिए भी वही प्रक्रिया अपनायी जाती है, जो साधारण विधेयक के लिए अपनायी जाती है।
यानी कि इस विधेयक को पहले लोकसभा में पारित करने की भी बाध्यता नहीं होती है इसे जिस सदन में चाहे पेश किया जा सकता है। और राज्यसभा इसे संशोधित भी कर सकती है, रोककर भी रख सकती है या फिर पारित कर सकती है।
◾ इसकी दूसरी ख़ासियत ये है कि वित्त विधेयक(॥) को सदन में प्रस्तुत करने के लिए राष्ट्रपति की स्वीकृति की जरूरत नहीं पड़ती है लेकिन संसद के किसी भी सदन द्वारा इसे तब तक पारित नहीं किया जा सकता, जब तक कि राष्ट्रपति सदन को ऐसा करने की अनुशंसा (Recommendation) न दे दे।
◾ यदि इस प्रकार के विधेयक में दोनों सदनों के बीच कोई गतिरोध होता है तो राष्ट्रपति दोनों सदनों के गतिरोध को समाप्त करने के लिए संयुक्त बैठक बुला सकता है।
◾ जब दोनों सदनों से पास होकर जब विधेयक राष्ट्रपति को प्रस्तुत किया जाता है, तो वह या तो विधेयक को अपनी स्वीकृति दे सकता है या उसे रोक सकता है या फिर पुनर्विचार के लिए सदन को वापस कर सकता है।
| और अधिक विस्तार से समझने के लिए पढ़ें – Article 117
धन विधेयक और वित्त विधेयक में अंतर (Difference between Money bill & Finance Bill):
धन विधेयक (Money Bill)
- प्रत्येक धन विधेयक एक वित्त विधेयक होता है।
- अनुच्छेद 110 में वर्णित विषय ही धन विधेयक की श्रेणी में आते हैं।
- एक धन विधेयक को राज्य सभा में पेश नहीं किया जा सकता है।
- एक धन विधेयक को पेश करने से पहले राष्ट्रपति की अनुमति आवश्यक होता है।
- धन विधेयक कभी भी एक सामान्य विधेयक की श्रेणी में नहीं आते हैं।
- कोई विधेयक धन विधेयक है या नहीं ये अंतिम रूप से लोक सभा अध्यक्ष तय करता है।
- धन विधेयक राज्यसभा में पारित न भी हो तो उस पर कोई फर्क नहीं पड़ता है।
- धन विधेयक के संबंध में अगर दोनों सदनों में गतिरोध भी हो तो कोई संयुक्त बैठक नहीं बुलाई जा सकती है।
वित्त विधेयक (Finance Bill):
- प्रत्येक वित्त विधेयक एक धन विधेयक नहीं होता है।
- केवल वही वित्त विधेयक धन विधेयक होते हैं जिसका उल्लेख अनुच्छेद 110 में किया गया है।
- एक वित्त विधेयक को राज्य सभा में पेश किया भी जा सकता है और नहीं भी।
- एक वित्त विधेयक का संबंध अनुच्छेद 110 में वर्णित विषय के अलावा भी हो सकता है।
- एक वित्त विधेयक को पेश करने से पहले राष्ट्रपति की अनुमति आवश्यक हो भी सकती है और नहीं भी।
- एक वित्त विधेयक एक सामान्य विधेयक की श्रेणी में आ सकता है।
- एक वित्त विधेयक को दोनों सदनों से पास होना जरूरी होता है।
- एक वित्त विधेयक के संबंध में अगर दोनों सदनों में गतिरोध हो तो कोई संयुक्त बैठक बुलाई जा सकती है।
तो यही था धन विधेयक और वित्त विधेयक (Money bill & Finance bill), उम्मीद है आपको समझ में आया होगा। संसद से संबन्धित अन्य लेखों को नीचे से पढ़ें।