इस लेख में हम संसदीय व्यवस्था (Parliamentary System) पर सरल और सहज चर्चा करेंगे, एवं इसके विभिन्न महत्वपूर्ण पहलुओं को समझने का प्रयास करेंगे,

तो अच्छी तरह से समझने के लिए इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ें और साथ ही इस टॉपिक से संबंधित अन्य लेखों को भी पढ़ें।

हमारे देश में ब्रिटेन की तरह प्रधानमंत्री सबसे ताकतवर होता है, अमेरिका की तरह राष्ट्रपति नहीं! और इसकी वजह क्या है? संसदीय व्यवस्था

संसदीय व्यवस्था
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शासन के कितने रूप हैं?

सरकार, एक ऐसी संस्था जिसके पास मूलभूत रूप से समाज पर शासन करने का प्राधिकार होता है; सैद्धांतिक रूप से भी और व्यवहारिक रूप से भी। शासन के कई प्रकार होते हैं जैसे कि,

(1) राजतंत्र (Monarchy) – यानी कि जहां एक राजा या तानाशाह का शासन होता है।

(2) अल्पतन्त्र (Oligarchy) – यानी कि जहां कुछ मुट्ठी भर कुलीन वर्ग या आभिजात्य वर्ग का शासन होता है।

(3) धर्मतंत्र (Theocracy) – यानी कि जहां पर भगवान के नाम पर धार्मिक समूहों या धर्मगुरुओं द्वारा शासन चलाया जाता है।

(4) अधिनायकवाद (Authoritarianism) – यानी कि पूरी की पूरी राजनैतिक शक्ति पर किसी एक व्यक्ति या कुछ लोगों का एकाधिकार।

(5) लोकतंत्र (Democracy) – यानी कि जनता शासन।

इनमें से सभी प्रकार के शासन व्यवस्था को कहीं न कहीं व्यवहार में लाया जा रहा है लेकिन आज के समय में इस सब में से लोकतंत्र (Democracy) सबसे ज्यादा प्रचलित एवं विश्वसनीय है, ऐसा इसीलिए है क्योंकि कहीं न कहीं व्यक्ति को सबसे ज्यादा नागरिक अधिकार और स्वतंत्रता इसी व्यवस्था में मिलता है।

लोकतंत्र दो प्रकार का होता है। प्रत्यक्ष लोकतंत्र (Direct democracy) और अप्रत्यक्ष लोकतंत्र (Indirect democracy)

प्रत्यक्ष लोकतंत्र (Direct democracy); यानी कि ऐसा लोकतंत्र जहां सीधे तौर पर लोग शासन व्यवस्था में भर लेते हैं। इसका जीता-जागता उदाहरण स्विट्ज़रलैंड है।
अप्रत्यक्ष लोकतंत्र (Indirect democracy); का मतलब ऐसी व्यवस्था से है जहां जनता द्वारा चुने गये प्रतिनिधियों के द्वारा शासन चलाया जाता है। हर एक प्रतिनिधि किसी क्षेत्र विशेष के लोगों के समूह का प्रतिनिधित्व करते हैं। भारत में यही व्यवस्था है।

देश में एक ऐसी जगह होती हैं, जहां पर ये चुने हुए प्रतिनिधि बैठते हैं। उसी जगह को भारत में संसद (Parliament) कहा जाता है। यहीं से पूरे देश का भाग्य लिखा जाता है। (अलग-अलग देश में अलग-अलग नाम होते हैं जैसे – अमेरिका में काँग्रेस, ईरान में मजलिस, ब्राज़ील में नेशनल असेंबली इत्यादि…।)

उस चुने हुए प्रतिनिधियों में से कुछ कार्यपालिका (Executive) बन जाएँगे (कार्यपालिका वे बनेंगे जो बहुमत में होंगे) और बाद बांकी सब विधायिका (Legislature) तो हैं ही।

इसी कार्यपालिका और विधायिका के सम्बन्धों के आधार पर आधुनिक लोकतांत्रिक व्यवस्थाएं दो प्रकार के होते हैं। संसदीय व्यवस्था (Parliamentary System) और अध्यक्षात्मक व्यवस्था (Presidential System)

चूंकि हमारा देश भारत संसदीय व्यवस्था (Parliamentary System) पर आधारित है, हम इसी पर फोकस करेंगे, लेकिन साथ ही इसे अच्छी तरह से समझने के लिए अध्यक्षात्मक व्यवस्था पर भी प्रकाश डालेंगे।

संसदीय व्यवस्था है क्या? (What is Parliamentary System?)

संसदीय व्यवस्था, यानी कि एक ऐसी व्यवस्था जिसका केंद्र संसद हो। दूसरे शब्दों में कहें तो इस व्यवस्था में कार्यपालिका अपनी नीतियों एवं कार्यों के लिए विधायिका के प्रति उत्तरदायी होता है।

इस व्यवस्था का आधार जनता है ➡ जनता संसद को चुनती है (खासतौर पर लोकसभा को तो प्रत्यक्ष रूप से चुनती है) ➡ वहाँ बहुमत प्राप्त दल अपना एक नेता चुनती हैं ➡ राष्ट्रपति उसे प्रधानमंत्री के पद पर नियुक्त करती है ➡ प्रधानमंत्री एक मंत्रिपरिषद का गठन करता है ➡ मंत्रिपरिषद कार्यपालिका की भूमिका निभाती है (इसी को सरकार कहते हैं) ➡ यहीं कार्यपालिका न्यायपालिका का गठन करती है। कुल मिलाकर ये इसका एक बेसिक स्ट्रक्चर है।

? संसदीय सरकार का जनक ब्रिटेन को माना जाता है। इसीलिए संसदीय सरकार को ‘सरकार का वेस्टमिन्सटर स्वरूप‘ भी कहा जाता है; ये इसलिए कहा जाता है क्योंकि Palace of Westminster ब्रिटेन का संसद है। सरकार का यह स्वरूप ब्रिटेन, जापान, कनाडा, भारत आदि में प्रचलित है।

दूसरी ओर, राष्ट्रपति सरकार को गैर-उत्तरदायी या गैर-संसदीय या निश्चित कार्यकारी व्यवस्था भी कहा जाता है और यह अमेरिका, ब्राज़ील,रूस, श्रीलंका आदि में प्रचलित है। 

संसदीय व्यवस्था की मुख्य विशेषताएं

सामूहिक उत्तरदायित्व (Collective responsibility) संसदीय व्यवस्था में कार्यपालिका, विधायिका के प्रति उत्तरदायी होती है। यहीं बात इस संसदीय व्यवस्था को खास बनाती है; क्योंकि अगर अध्यक्षात्मक व्यवस्था की बात करें तो वहाँ ऐसा कुछ नहीं होता है। वहाँ कार्यपालिका विधायिका से स्वतंत्र होती है। अमेरिका का संसदीय सिस्टम इसका एक उत्तम उदाहरण है।

अन्योन्याश्रय संबंध (Interdependent relationship)संसद, कार्यपालिका को बना भी सकती है और हटा भी सकती है। वो कैसे? वो ऐसे कि संसद अविश्वास प्रस्ताव ला सकती है। अविश्वास प्रस्ताव ये जानने के लिए होती है कि विधायिका का विश्वास अभी भी कार्यपालिका पर है कि नहीं। यानी कि सरकार अभी भी बहुमत में है कि नहीं।

? इसी प्रकार कार्यपालिका भी चाहे तो संसद को बना भी सकती है और भंग भी कर सकती है। वो कैसे? वो ऐसे कि प्रधानमंत्री के पास ये शक्ति होती है कि वे जब भी चाहे लोकसभा को भंग कर सकते है। लोकसभा भंग होने का मतलब है संसद भंग।

इसी को कहते है कार्यपालिका और विधायिका का अन्योन्याश्रय संबंध (Interdependent relationship)। ये व्यवस्था अध्यक्षात्मक व्यवस्था में नहीं होती है।

? ये जो अन्योन्याश्रय संबंध है, इससे कार्यपालिका और विधायिका के बीच टकराव खत्म हो जाता है और दोनों मिलकर काम करते हैं। भारत में संसदीय व्यवस्था अपनाने के पीछे एक कारण यह भी है, क्योंकि अगर अध्यक्षात्मक प्रणाली अपना लिया जाता तो पता चलता कि, संसद सदस्य देश के लिए कानून बनाने की जगह एक दूसरे से लड़ने में ही अपना आधा समय गुज़ार देते और एक नए बने देश के लिए ये बिलकुल भी अच्छी बात नहीं होती।

नामिक एवं वास्तविक कार्यपालिकासंसदीय व्यवस्था में राज्य का प्रधान अलग होता है और सरकार का प्रधान अलग होता है। यानी कि भारत की बात करें तो यहाँ राज्य का प्रधान राष्ट्रपति होता है वहीं सरकार का प्रधान प्रधानमंत्री होता है।

? राष्ट्रपति के पास नाममात्र की शक्ति होती है। उनका एक प्रमुख काम बस संविधान की रक्षा करना है। बाद बाँकि सारी की सारी वास्तविक शक्तियाँ प्रधानमंत्री के पास होती है, इसलिए इस व्यवस्था को प्रधानमंत्रीय व्यवस्था (Prime Minister’s system) भी कहते है। प्रधानमंत्री चूंकि अपने मंत्रिमंडल की मदद से शासन चलाता है इसीलिए इसे मंत्रिमंडलीय व्यवस्था (Cabinet System) भी कहते हैं।

? वहीं अध्यक्षात्मक व्यवस्था की बात करें तो वहाँ राज्य का प्रमुख और सरकार का प्रमुख एक ही व्यक्ति होता हैं और वो होता है वहाँ का राष्ट्रपति। इसीलिए तो इसे राष्ट्रपति व्यवस्था (Presidential System) भी कहते है।

ये भी एक कारण है अमेरिकी राष्ट्रपति के इतना ताकतवर होने का। गौरतलब है कि अमेरिका में कैबिनेट जनता द्वारा नहीं चुना गया होता है बल्कि राष्ट्रपति का ये विशेषाधिकार होता है कि वे जिसे चाहे कैबिनेट में जगह दे सकता है। इसीलिए ये लोग राष्ट्रपति के प्रति उत्तरदायी होते हैं।

Q. संसदीय व्यवस्था में राज्य के प्रमुख के लिए अलग व्यक्ति और सरकार के प्रमुख के लिए अलग व्यक्ति की आवश्यकता आखिर क्यों पड़ती है?

दरअसल संसदीय व्यवस्था उत्तरदायित्व के सिद्धांत (Principles of liability) पर आधारित होता है, वहीं अध्यक्षात्मक व्यवस्था स्थिरता के सिद्धांत (Principles of stability) पर आधारित होता है। इसका क्या मतलब है?

इसका मतलब ये है कि अध्यक्षात्मक व्यवस्था में एक बार अगर कोई व्यक्ति राष्ट्रपति बन जाता है तो वे अपने पूरे कार्यकाल तक राष्ट्रपति बना रहता है, कार्यकाल के बीच में उसे हटाना बहुत ही मुश्किल है;

ये कितना मुश्किल है इसका अंदाजा आप इस बात से लगा सकते है कि अमेरिका में आज तक एक भी राष्ट्रपति को उसके कार्यकाल के बीच में हटाया नहीं गया है। बशर्ते की उसकी पद पर रहते हुए मृत्यु न हो गयी हो।

अब भारत में चूंकि संसदीय उत्तरदायित्व का सिद्धांत काम करता है इसीलिए इसकी कोई गारंटी नहीं होती है कि सरकार अपना कार्यकाल पूरा करेगा ही। पर जब तक वो अपने पद पर रहेगा वो जनता के प्रति उत्तरदायी जरूर रहेगा।

? ऐसी स्थिति में अगर सरकार गिर गयी तो कोई तो हो जो नयी सरकार बनने तक देश को चलयमान रख सकें, देश को प्रतिनिधित्व दे सके एवं देश में संवैधानिक प्रभुत्व को बनाये रख सकें। इसी स्थिति में राज्य के प्रमुख की भूमिका अहम हो जाती है। यानी कि राष्ट्रपति की भूमिका अहम हो जाती है।

चूंकि हम एक संघीय व्यवस्था (Federal system) वाले देश में रह रहें है और यहाँ राज्य विधानमंडल होता है जो कि राज्य के लिए संसद की तरह ही काम करता है। केंद्र में प्रधानमंत्री की तरह ही वहाँ मुख्यमंत्री होता है।

मुख्यमंत्री का कार्यकाल भी अस्थिर होता है इसीलिए वहाँ राज्यपाल की व्यवस्था की गयी है। ताकि सरकार न होने कि स्थिति में भी आम प्रशासन पर कोई इम्पैक्ट न पड़े। इस तरह से संसदीय व्यवस्था में राष्ट्रपति और राज्यपाल काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है।

? भारत में चूंकि राज्य के प्रमुख का चुनाव होता है इसीलिए इसे गणतंत्र (republic) कहा जाता है, जबकि ब्रिटेन की बात करें तो वहाँ भी भारत की ही तरह संसदीय व्यवस्था है लेकिन वहाँ राज्य के प्रमुख का चुनाव नहीं होता है यानी कि वंशानुगत होता है, इसीलिए ब्रिटेन लोकतंत्र होते हुए भी गणतंत्र नहीं है।

? भारत का संविधान, केंद्र और राज्य दोनों में सरकार के संसदीय स्वरूप की व्यवस्था करता है। अनुच्छेद 74 और 75 केंद्र में संसदीय व्यवस्था का उपबंध करते हैं और अनुच्छेद 163 और 164 राज्यों में। 

संसदीय व्यवस्था की खूबी

सरकार की संसदीय व्यवस्था के निम्नलिखित खूबियाँ है।

विधायिका एवं कार्यपालिका के मध्य सामंजस्य

जैसा कि हमने ऊपर भी चर्चा किया है कि विधायिका और कार्यपालिका दोनों एक दूसरे पर परस्पर निर्भर रहते हैं। हालांकि दोनों का कार्य क्षेत्र अलग-अलग होता है। फिर भी कार्यपालिका, विधायिका का ही एक अंग होता है।

? इसे इस तरह से समझ सकते हैं कि एक सांसद, विधायिका (Legislature) का तो हिस्सा होता ही है। पर साथ ही साथ वे एक ही समय में कार्यपालिका (Executive) का भी हिस्सा बन सकता है। क्योंकि विधायिका तो वे सभी 545 (लोकसभा के लिए) सदस्य है। पर उसी में से कुछ सदस्य कार्यपालिका बन जाता है या फिर दूसरे शब्दों में कहें तो मंत्री बन जाता है।

? उदाहरण के लिए वर्तमान प्रधानमंत्री श्रीमान नरेंद्र मोदी एक सांसद हैं क्योंकि वे किसी संसदीय क्षेत्र से चुनाव जीत कर आए है। चूंकि वे एक सांसद है इसीलिए वे विधायिका का भी हिस्सा है। फिर वे बहुमत प्राप्त दल के नेता भी हैं, इसीलिए वे प्रधानमंत्री है, वे प्रधानमंत्री है इसीलिए वे कार्यपालिका भी है।

कुल मिलाकर कहने का अर्थ ये है कि एक व्यक्ति, अगर वे एक मंत्री है तो वे विधायिका और कार्यपालिका दोनों के सदस्य होते हैं। इसे कहते हैं दोहरी सदस्यता।

उत्तरदायी सरकार (Responsible government)

? इस व्यवस्था में कार्यपालिका हमेशा विधायिका के प्रति उत्तरदायी होता है। यानी की संसद के प्रति उत्तरदायी होता है। संसद के प्रति उत्तरदायी होने का मतलब है जनता के प्रति उत्तरदायी होना; क्योंकि आखिर वे सब लोग जनता के ही तो प्रतिनिधि है।

? अनुच्छेद 75 में कहा गया है कि मंत्रिपरिषद लोकसभा के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी होगी। (यहाँ से पढ़ें – प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री)

यहीं बात अध्यक्षात्मक व्यवस्था वाली सरकार में नहीं होती है, वहाँ का राष्ट्रपति और सचिव या फिर उसे कार्यपालिका कह लीजिये; अपने संसद के प्रति उत्तरदायी नहीं होता है।

वैकल्पिक सरकार की व्यवस्था (Alternative government system)

मौजूदा सरकार अगर अपना बहुमत खो देती है तो राष्ट्रपति, विपक्षी दल को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित कर सकती है। इसे ही वैकल्पिक सरकार की व्यवस्था कहते हैं। कहने का अर्थ ये है कि ये विकल्प हमेशा होता है कि अगर मौजूदा सरकार गिर जाती है तो बिना दूसरा चुनाव कराये विपक्षी दल को सरकार बनाने का मौका मिलता है।

बहुमत प्राप्त दल का शासन और राजनैतिक एकरूपता

इस व्यवस्था में सरकार वही होता हैं जिसके पास बहुमत होता है। इसीलिए उस बहुमत प्राप्त दल की समान विचारधारा होती है। इसी विचारधारा को केंद्र में रखकर वे चुनाव भी लड़ते हैं।

हालांकि गठबंधन सरकार के मामले में मंत्री सर्वसम्मति के प्रति बाध्य होते हैं और इस तरह की परिस्थिति में कई विचारधारा एक साथ भी आ सकती हैं।

संसदीय व्यवस्था की खामी

अस्थिर सरकार (Unstable government)हमने ऊपर भी चर्चा किया है कि इस व्यवस्था में कोई ठीक नहीं होता है कि सरकार अपना कार्यकाल पूरा करेगा की नहीं। खासकर के अगर गठबंधन की सरकार हो तब तो ये कहना और भी मुश्किल है।

नीतियों की निश्चितता का अभाव (Lack of certainty of policies)अब चूंकि कार्यकाल की अनिश्चितता होती है, जल्दी-जल्दी सरकार बदलती है इसीलिए नीतियों में कोई एकरूपता नहीं रह जाता है। पिछली सरकार कोई योजना शुरू करता है और नई सरकार को वो योजना पसंद नहीं आता है तो वे उसे खत्म कर देते हैं। इससे कुल मिलाकर लॉस जनता का ही होता है। ▶ नीतियों में निश्चितता से कोई देश कितनी जल्दी तरक्की कर सकता है उसका ज्वलंत उदाहरण चीन है।

मंत्रिमंडल की निरंकुशता (Cabinet autocracy)कई बार इसका उल्टा भी होता है, किसी दल को पूर्ण बहुमत मिल जाता है और बहुत सारे राज्यों में भी उसकी सरकार बन जाती है। राज्यसभा में भी बहुमत में आ जाता है तो वो सरकार इतनी ताकतवर हो जाती है कि किसी की सुनती ही नहीं और निरंकुशता के रास्ते पर चल पड़ती है।

अकुशल व्यक्तियों द्वारा सरकार का संचालन (Government run by unskilled people)अब हमारे देश में चूंकि नेता का पढ़ा-लिखा होना आवश्यक नहीं होता है इसीलिए कई बार ऐसे व्यक्ति चुन कर भेज दिये जाते हैं जो सरकार चलाने में अकुशल होता है। और उसका खामियाजा जनता को भुगतना पड़ता है।

संसदीय और अध्यक्षीय प्रणाली में अंतर

संसदीय व्यवस्थाअध्यक्षात्मक व्यवस्था
1. दोहरी कार्यकारिणी
2. बहुमत दल का शासन
3. सामूहिक उत्तरदायित्व
4. राजनीतिक एकरूपता
5. दोहरी सदस्यता
6. प्रधानमंत्री का नेतृत्व
7. विधायिका एवं कार्यपालिका के बीच सामंजस्य
8. उत्तरदायी सरकार
9. अस्थायी सरकार
10. अकुशल व्यक्तियों द्वारा सरकार का संचालन
1. एकल कार्यकारिणी
2. राष्ट्रपति एवं विधायिका का पृथक रूप से निर्वाचन
3. उत्तरदायित्व का अभाव
4. राजनीतिक एकरूपता का अभाव
5. एकल सदस्यता
6. राष्ट्रपति का नेतृत्व
7. विधायिका एवं कार्यपालिका के बीच टकराव
8. गैर-उत्तरदायी सरकार
9. स्थायी सरकार
10. कुशल व्यक्तियों द्वारा सरकार संचालन
इस चार्टको यहाँ से डाउनलोड करें

कुल मिलाकर यही है संसदीय व्यवस्था (Parliamentary System), उम्मीद है समझ में आया होगा। नीचे अन्य जरूरी लेखों का लिंक है उसे भी जरूर पढ़ें।

संसदीय व्यवस्था Practice Quiz


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Chapter Wise Polity Quiz

भारत की संसदीय व्यवस्था अभ्यास प्रश्न

  1. Number of Questions - 5
  2. Passing Marks - 80 %
  3. Time - 4 Minutes
  4. एक से अधिक विकल्प सही हो सकते हैं।

1 / 5

संसदीय व्यवस्था के बारे में इनमें से क्या सही है?

Which of the following statements is correct regarding the defects of the parliamentary system?

  1. Here there is a danger of the autocracy of the cabinet.
  2. There is a danger of government being run by unskilled persons.
  3. There is a lack of certainty of policies here.
  4. The process of development is very slow in a parliamentary system.

2 / 5

संसदीय व्यवस्था की खामियों के संबंध में इनमें से कौन सा कथन सही है?

  1. यहाँ मंत्रिमंडल की निरंकुशता का ख़तरा होता है।
  2. अकुशल व्यक्तियों द्वारा सरकार के संचालन का ख़तरा मौजूद होता है।
  3. यहाँ नीतियों की निश्चितता का अभाव होता है।
  4. संसदीय व्यवस्था में विकास की प्रक्रिया बहुत धीमी होती है।

Identify the correct statements from the given statements-

  1. In a parliamentary system, there is harmony between the legislature and the executive.
  2. Article 74 states that the Council of Ministers shall be collectively responsible to the Lok Sabha.
  3. In a parliamentary system, there is always a provision to form an alternative government.
  4. Articles 162 and 165 provide for parliamentary system in the state.

3 / 5

दिए गए कथनों में से सही कथनों की पहचान करें-

  1. संसदीय व्यवस्था में विधायिका एवं कार्यपालिका के मध्य सामंजस्य होता है।
  2. अनुच्छेद 74 में कहा गया है कि मंत्रिपरिषद लोकसभा के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी होगी
  3. संसदीय व्यवस्था में वैकल्पिक सरकार बनाने की व्यवस्था हमेशा होती है।
  4. अनुच्छेद 162 और 165 राज्य में संसदीय व्यवस्था का उपबंध करता है।

Identify the correct statements from the given statements-

  1. The system of ruling by religious groups or religious leaders in the name of God is called theocracy.
  2. The monopoly of one person or a few people over the entire political power of the whole is called authoritarianism.
  3. India is an example of a direct democracy.
  4. Where the representatives elected by the public sit, it is called the Parliament or Legislature.

4 / 5

दिए गए कथनों में से सही कथनों की पहचान करें-

  1. भगवान के नाम पर धार्मिक समूहों या धर्मगुरुओं द्वारा शासन चलाने की व्यवस्था को धर्मतंत्र कहा जाता है।
  2. पूरी की पूरी राजनीतिक शक्ति पर किसी एक व्यक्ति या कुछ लोगों के एकाधिकार को अधिनायकवाद कहा जाता है।
  3. भारत एक प्रत्यक्ष लोकतंत्र का उदाहरण है।
  4. जहां पर जनता द्वारा चुने हुए प्रतिनिधि बैठते है उसे ही संसद या विधानमंडल कहा जाता है।

Which of the following statements is correct regarding presidential system?

  1. This system is more stable than the parliamentary system.
  2. Here the head of the state and the head of the government are the same person.
  3. Here the reins of government are in the hands of skilled people.
  4. This is a responsible government.

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अध्यक्षात्मक व्यवस्था के संबंध में इनमें से कौन सा कथन सही है?

  1. यह व्यवस्था संसदीय व्यवस्था से ज्यादा स्थिर होता है।
  2. यहाँ राज्य का प्रमुख और सरकार का प्रमुख एक ही व्यक्ति होता है।
  3. यहाँ सरकार की बागडोर कुशल व्यक्तियों के हाथ में होता है।
  4. यह एक उत्तरदायी सरकार होता है।

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संवैधानिक उपचारों का अधिकार
मूल अधिकारों एवं निदेशक तत्वों में टकराव
विधि की सम्यक प्रक्रिया क्या है?
संविधान की मूल संरचना
संविधान संशोधन की पूरी प्रक्रिया
राज्य के नीति निदेशक तत्व (DPSP)
भारत की संघीय व्यवस्था
सहकारी संघवाद
केंद्र-राज्य विधायी संबंध
केंद्र-राज्य प्रशासनिक संबंध
केंद्र-राज्य वित्तीय संबंध