यह लेख Article 191 (अनुच्छेद 191) का यथारूप संकलन है। आप इस मूल अनुच्छेद का हिन्दी और इंग्लिश दोनों संस्करण पढ़ सकते हैं। आप इसे अच्छी तरह से समझ सके इसीलिए इसकी व्याख्या भी नीचे दी गई है आप उसे जरूर पढ़ें, और MCQs भी सॉल्व करें।
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📜 अनुच्छेद 191 (Article 191) – Original
भाग 6 “राज्य” [अध्याय 3 — राज्य का विधान मंडल] [सदस्यों की निरर्हताएं] |
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191. सदस्यता के लिए निरर्हताएं — (1) कोई व्यक्ति किसी राज्य की विधान सभा या विधान परिषद् का सदस्य चुने जाने के लिए और सदस्य होने के लिए निरर्हित होगा — 1[(क) यदि वह भारत सरकार के या पहली अनुसूची में विनिर्दिष्ट किसी राज्य की सरकार के अधीन, ऐसे पद को छोड़कर जिसको धारण करने वाले का निरर्हित न होना राज्य के विधान-मंडल ने विधि द्वारा घोषित किया है, कोई लाभ का पद धारण करता है ;] (ख) यदि वह विकृतचित्त है और सक्षम न्यायालय की ऐसी घोषणा विद्यमान हैं; (ग) यदि वह अनुन्मोचित दिवालिया है ; (घ) यदि वह भारत का नागरिक नहीं है या उसने किसी विदेशी राज्य की नागरिकता स्वेच्छा से अर्जित कर ली है या वह किसी विदेशी राज्य के प्रति निष्ठा या अनुषक्ति को अभिस्वीकार किए हुए है; (ङ) यदि वह संसद् द्वारा बनाई गई किसी विधि द्वारा या उसके अधीन इस प्रकार निरहित कर दिया जाता है। 2[स्पष्टीकरण— इस खंड के प्रयोजनों के लिए,] कोई व्यक्ति केवल इस कारण भारत सरकार के या पहली अनुसूची में विनिर्दिष्ट किसी राज्य की सरकार के अधीन लाभ का पद धारण करने वाला नहीं समझा जाएगा कि वह संघ का या ऐसे राज्य का मंत्री है। 3[(2) कोई व्यक्ति किसी राज्य की विधान सभा या विधान परिषद् का सदस्य होने के लिए निरर्हित होगा यदि वह दसवीं अनुसूची के अधीन इस प्रकार निरर्हित हो जाता है।] ============== 1. संविधान (बयालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1976 की धारा 31 द्वारा “जिसके अन्तर्गत सदन की बैठक का गठन करने कै लिए गणपूर्ति सम्मिलित है)” शब्द और कोष्ठक (तारीख अधिसूचित नहीं की गई) से अंतस्थापित। इस संशोधन का संविधान (चवालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 45 द्वारा (20-6-1979 से) लोप कर दिया गया। 2. संविधान (बावनवां संशोधन) अधिनियम, 1985 की धारा 5 द्वारा (1-3-1985 से) “(2) इस अनुच्छेद के प्रयोजनों के लिए” के स्थान पर प्रतिस्थापित। 3. संविधान (बावनवां संशोधन) अधिनियम, 1985 की धारा 5 द्वारा (1-3-1985 से) अंतःस्थापित । |
Part VI “State” [CHAPTER III — The State Legislature] [Disqualifications of Members] |
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191. Disqualifications for membership— (1) A person shall be disqualified for being chosen as, and for being, a member of the Legislative Assembly or Legislative Council of a State— 1[(a) if he holds any office of profit under the Government of India or the Government of any State specified in the First Schedule, other than an office declared by the Legislature of the State by law not to disqualify its holder;] (b) if he is of unsound mind and stands so declared by a competent court; (c) if he is an undischarged insolvent; (d) if he is not a citizen of India, or has voluntarily acquired the citizenship of a foreign State, or is under any acknowledgment of allegiance or adherence to a foreign State; (e) if he is so disqualified by or under any law made by Parliament. 2[Explanation.—For the purposes of this clause], a person shall not be deemed to hold an office of profit under the Government of India or the Government of any State specified in the First Schedule by reason only that he is a Minister either for the Union or for such State. 3[(2) A person shall be disqualified for being a member of the Legislative Assembly or Legislative Council of a State if he is so disqualified under the Tenth Schedule.] ================== 1. Subs. by the Constitution (Forty-second Amendment) Act, 1976, s. 32 to read as “(a) if he holds any such office of profit under the Government of India or the Government of any State specified in the First Schedule as is declared by Parliament by law to disqualify its holder” (date not notified). This amendment was omitted by the Constitution (Forty-fourth Amendment) Act, 1978, s. 45 (w.e.f. 20-6-1979). 2. Subs. by the Constitution (Fifty-second Amendment) Act, 1985, s. 5, for “(2) For the purposes of this article” (w.e.f. 1-3-1985). 3. Ins. by s. 5, ibid. (w.e.f. 1-3-1985). |
🔍 Article 191 Explanation in Hindi
भारतीय संविधान का भाग 6, अनुच्छेद 152 से लेकर अनुच्छेद 237 तक कुल 6 अध्यायों (Chapters) में विस्तारित है (जिसे कि आप नीचे टेबल में देख सकते हैं)।
Chapters | Title | Articles |
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I | साधारण (General) | Article 152 |
II | कार्यपालिका (The Executive) | Article 153 – 167 |
III | राज्य का विधान मंडल (The State Legislature) | Article 168 – 212 |
IV | राज्यपाल की विधायी शक्ति (Legislative Power of the Governor) | Article 213 |
V | राज्यों के उच्च न्यायालय (The High Courts in the States) | Article 214 – 232 |
VI | अधीनस्थ न्यायालय (Subordinate Courts) | Article 233 – 237 |
जैसा कि आप ऊपर देख सकते हैं, इस भाग के अध्याय 3 का नाम है “राज्य का विधान मंडल (The State Legislature)” और इसका विस्तार अनुच्छेद 158 से लेकर अनुच्छेद 212 तक है।
इस अध्याय को आठ उप-अध्यायों (sub-chapters) में बांटा गया है, जिसे कि आप नीचे चार्ट में देख सकते हैं;
Chapter 3 [Sub-Chapters] | Articles |
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साधारण (General) | Article 168 – 177 |
राज्य के विधान मण्डल के अधिकारी (Officers of the State Legislature) | Article 178 – 187 |
कार्य संचालन (Conduct of Business) | Article 188 – 189 |
सदस्यों की निरर्हताएं (Disqualifications of Members) | Article 190 – 193 |
राज्यों के विधान-मंडलों और उनके सदस्यों की शक्तियां, विशेषाधिकार और उन्मुक्तियां (Powers, privileges and immunities of State Legislatures and their members) | Article 194 – 195 |
विधायी प्रक्रिया (Legislative Procedure) | Article 196 – 201 |
वित्तीय विषयों के संबंध में प्रक्रिया (Procedure in respect of financial matters) | Article 202 – 207 |
साधारण प्रक्रिया (Procedure Generally) | Article 208 – 212 |
इस लेख में हम सदस्यों की निरर्हताएं (Disqualifications of Members) के तहत आने वाले अनुच्छेद 191 को समझने वाले हैं।
⚫ अनुच्छेद 102 – भारतीय संविधान |
| अनुच्छेद 191 – सदस्यता के लिए निरर्हताएं (Disqualifications for membership)
भारत एक संघीय व्यवस्था वाला देश है यानी कि यहाँ केंद्र सरकार की तरह राज्य सरकार भी होता है और जिस तरह से केंद्र में विधायिका (Legislature) होता है उसी तरह से राज्य का भी अपना एक विधायिका होता है।
◾ केन्द्रीय विधायिका (Central Legislature) को भारत की संसद (Parliament of India) कहा जाता है। यह एक द्विसदनीय विधायिका है, जिसका अर्थ है कि इसमें दो सदन हैं: लोकसभा (लोगों का सदन) और राज्यसभा (राज्यों की परिषद)। इसी तरह से राज्यों के लिए भी व्यवस्था की गई है।
अनुच्छेद 168(1) के तहत प्रत्येक राज्य के लिए एक विधानमंडल (Legislature) की व्यवस्था की गई है और यह विधानमंडल एकसदनीय (unicameral) या द्विसदनीय (bicameral) हो सकती है।
जिस तरह से अनुच्छेद 102 के तहत केंद्र में सदस्यता के लिए निरर्हताओं के बारे में बताया गया है, उसी तरह से अनुच्छेद 191 के तहत राज्यों में सदस्यता के लिए निरर्हताओं के बारे में बताया गया है;
इस अनुच्छेद के तहत कुल दो खंड है:
अनुच्छेद 191(1) के तहत यह व्यवस्था किया गया है कि कोई व्यक्ति निम्नलिखित स्थितियों में विधानमंडल के किसी सदन का सदस्य चुने जाने के लिए और सदस्य होने के लिए अयोग्य (Disqualified) होगा;
(क) यदि वह भारत सरकार के या पहली अनुसूची में विनिर्दिष्ट किसी राज्य की सरकार के अधीन, ऐसे पद को छोड़कर जिसको धारण करने वाले का निरर्हित न होना राज्य के विधान-मंडल ने विधि द्वारा घोषित किया है, कोई लाभ का पद धारण करता है
यहाँ यह याद रखिए कि अगर विधानमंडल ने विधि द्वारा किसी पद को लाभ का पद नहीं माना है तो उसे यहाँ पर काउंट नहीं किया जाएगा।
लाभ का पद (Office of Profit) क्या है? |
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शब्द “लाभ का पद” भारत सरकार में उस स्थिति या पद को संदर्भित करता है जो साथ में कुछ वित्तीय लाभ लाता है। भारतीय राजनीति में “लाभ के पद” की अवधारणा महत्वपूर्ण है क्योंकि यह संसद या विधान सभा के एक निर्वाचित सदस्य को उनके पद धारण करने से अयोग्य ठहरा सकता है यदि वे इस तरह के कार्यालय में पाए जाते हैं। भारत के संविधान के अनुच्छेद 102 (1) (क) और अनुच्छेद 191 (1) (क) के अनुसार, एक व्यक्ति जो भारत सरकार या किसी राज्य सरकार के अधीन लाभ का पद धारण करता है, संसद या राज्य विधानमंडल में सदस्य बनने के योग्य नहीं है। इसके पीछे तर्क यह है कि निर्वाचित प्रतिनिधियों द्वारा हितों के टकराव या सत्ता के दुरुपयोग को रोका जा सके। विचार यह है कि यदि एक निर्वाचित प्रतिनिधि लाभ का पद धारण करता है, तो इस बात की संभावना है कि वे अपने पद का उपयोग अनुचित लाभ प्राप्त करने या अपने पक्ष में सरकारी निर्णयों को प्रभावित करने के लिए कर सकते हैं। लाभ के पद का मुद्दा भारत में कई विवादों और अदालती मामलों का विषय रहा है, क्योंकि लाभ के पद का निर्धारण जटिल और व्याख्या के अधीन हो सकता है। हालांकि, सामान्य तौर पर, कोई भी पद जिसमें कुछ हद तक कार्यकारी या प्रशासनिक शक्ति का प्रयोग शामिल है या जिसमें सरकारी धन या संसाधनों का प्रबंधन या नियंत्रण शामिल है, को लाभ का पद (Office of Profit) माना जाता है। |
(ख) यदि वह विकृतचित्त (Unsound Mind) है और सक्षम न्यायालय की ऐसी घोषणा विद्यमान है;
(ग) यदि वह अनुन्मोचित दिवालिया (undischarged insolvent) है;
(घ) यदि वह भारत का नागरिक नहीं है या उसने किसी विदेशी राज्य की नागरिकता स्वेच्छा से अर्जित कर ली है या वह किसी विदेशी राज्य के प्रति अपनी निष्ठा रखता है;
(ङ) यदि वह संसद् द्वारा बनाई गई किसी विधि द्वारा या उसके अधीन इस प्रकार निरर्हित कर दिया जाता है।
इस संबंध में संसद ने कई विधियाँ बनाई है जिसके तहत किसी व्यक्ति को सदन की सदस्यता से निरर्हित (Disqualified) माना जाता है; आप नीचे देख सकते है;
⚫ जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 के तहत निम्नलिखित प्रावधानों को भी निरर्हता माना जाता है। जैसे कि –
1. वह चुनावी अपराध या चुनाव में भ्रष्ट आचरण के तहत दोषी करार दिया गया हो।
2. उसे किसी अपराध में दो वर्ष या उससे अधिक की सजा हुई हो।
3. वह निर्धारित समय के अंदर चुनावी खर्च का ब्योरा देने में असफल रहा हो।
4. उसे सरकारी ठेका काम या सेवाओं में दिलचस्पी हो।
5. वह निगम में लाभ के पद पर हो, जिसमें सरकार का 25 प्रतिशत हिस्सेदारी हो।
6. उसे भ्रष्टाचार या निष्ठाहीन होने के कारण सरकारी सेवाओं से बर्खास्त किया गया हो।
7. उसे विभिन्न समूहों में शत्रुता बढ़ाने या रिश्वतखोरी के लिए दंडित किया गया हो।
8. उसे छुआछूत, दहेज जैसे सामाजिक अपराधों के प्रसार में संलिप्त पाया गया हो।
किसी सदस्य में उपरोक्त निरर्हताओं संबंधी प्रश्न पर राष्ट्रपति का फैसला अंतिम होता है, हालांकि ये फैसला वो निर्वाचन आयोग से राय लेकर करता है।
अनुच्छेद 191(2) के तहत बताया गया है कि कोई व्यक्ति किसी राज्य की विधान सभा या विधान परिषद् का सदस्य होने के लिए निरर्हित होगा यदि वह दसवीं अनुसूची के अधीन इस प्रकार निरर्हित हो जाता है;
दल-बदल के आधार पर निरर्हता – संविधान के इस अनुच्छेद के अनुसार किसी व्यक्ति को विधानमंडल की सदस्यता से अयोग्य ठहराया जा सकता है, अगर वो 10वीं अनुसूची के उपबंधों के अनुसार, दल-बदल का दोषी पाया गया हो। जैसे की –
1. अगर वह स्वेच्छा से उस राजनीतिक दल का त्याग करता है, जिस दल के टिकट पर वह चुनाव जीत के आया है;
2. अगर वह अपने पार्टी द्वारा दिये गए निर्देशों के विरुद्ध सदन में मतदान करता है;
3. अगर निर्दलीय चुना गया सदस्य किसी राजनीतिक दल में शामिल हो जाता है;
4. अगर कोई नामित सदस्य (Nominated member) छह महीने के बाद किसी राजनीतिक दल में शामिल होता है।
दल-बदल से संबन्धित जितने भी मामले होते हैं उसे सभापति या अध्यक्ष द्वारा निपटारा किया जाता है। लेकिन याद रखिए कि उच्चतम न्यायालय अध्यक्ष और सभापति द्वारा लिए गए इस निर्णय की न्यायिक समीक्षा कर सकता है।
याद रखें; इस खंड (अनुच्छेद 191(1)) के प्रयोजनों के लिए, अगर कोई व्यक्ति संघ का या राज्य का मंत्री है तो उसे भारत सरकार के या किसी राज्य की सरकार के अधीन लाभ का पद धारण करने वाला नहीं समझा जाएगा।
तो यही है Article 191 , उम्मीद है आपको समझ में आया होगा। दूसरे अनुच्छेदों को समझने के लिए नीचे दिए गए लिंक का इस्तेमाल कर सकते हैं।
◾ राज्य विधानमंडल (State Legislature): गठन, कार्य, आदि ◾ भारतीय संसद (Indian Parliament): Overview |
सवाल-जवाब के लिए टेलीग्राम जॉइन करें; टेलीग्राम पर जाकर सर्च करे – @upscandpcsofficial
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अस्वीकरण – यहाँ प्रस्तुत अनुच्छेद और उसकी व्याख्या, मूल संविधान (उपलब्ध संस्करण), संविधान पर डी डी बसु की व्याख्या (मुख्य रूप से), प्रमुख पुस्तकें (एम. लक्ष्मीकान्त, सुभाष कश्यप, विद्युत चक्रवर्ती, प्रमोद अग्रवाल इत्यादि) एनसाइक्लोपीडिया, संबंधित मूल अधिनियम और संविधान के विभिन्न ज्ञाताओं (जिनके लेख समाचार पत्रों, पत्रिकाओं एवं इंटरनेट पर ऑडियो-विजुअल्स के रूप में उपलब्ध है) पर आधारित है। हमने बस इसे रोचक और आसानी से समझने योग्य बनाने का प्रयास किया है। |