इस लेख में हम वर्टिकल एवं हॉरिजॉन्टल आरक्षण (Vertical and Horizontal Reservation) पर सरल एवं सहज चर्चा करेंगे एवं इसके विभिन्न महत्वपूर्ण पहलुओं को समझने का प्रयास करेंगे।

आरक्षण को समझने के क्रम में हमारा सामना ऊर्ध्वाधर एवं क्षैतिज आरक्षण यानी कि वर्टिकल एवं हॉरिजॉन्टल आरक्षण से होता है, इसीलिए इसे समझना बहुत ही जरूरी हो जाता है।

आरक्षण की सम्पूर्ण समझ के लिए आप आरक्षण वाले लेख को अवश्य पढ़ें जो कि चार भागों में लिखा गया है। सभी का लिंक क्रमशः नीचे दिया हुआ है।

आरक्षण : आधारभूत समझ[1/4]
आरक्षण का संवैधानिक आधार[2/4]
आरक्षण का विकास क्रम[3/4]
आरक्षण के पीछे का गणित यानी कि रोस्टर सिस्टम[4/4]

चूंकि पूरी आरक्षण व्यवस्था मूल अधिकारों के इर्द-गिर्द घूमता है (खासकर के समता का अधिकार के), तो हमारी सलाह है कि बेहतर समझ के लिए कम से कम मौलिक अधिकारों पर एक नज़र जरूर डाल लीजिए।

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वर्टिकल एवं हॉरिजॉन्टल आरक्षण
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आरक्षण (Reservation)

आरक्षण, सकारात्मक भेदभाव (positive discrimination) का एक रूप है, जो कि समाज के ऐसे वर्ग को मुख्य धारा में लाने के लिए अपनाया जाता है जो किन्ही कारणों से सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक या शैक्षिक आदि क्षेत्रों के संबंध में बहुत पीछे छूट गए है। इसीलिए इस उद्देश्य से किए गए किसी कार्य को सकारात्मक कार्रवाई (Affirmative Action) भी कहा जाता है।

आसान भाषा में कहें तो आरक्षण का उद्देश्य है, रोजगार और शिक्षा तक पहुंच में समाज के हाशिए के वर्गों को तरजीह देना। समाज के कुछ वर्गों का हाशिये तक पहुँच जाने के पीछे कई ऐतिहासिक कारक जिम्मेदार रहा है। सकारात्मक कार्रवाई के तहत हम उन्ही गलतियों को ठीक करने की कोशिश करते हैं।

वर्टिकल एवं हॉरिजॉन्टल आरक्षण

आजादी से पहले भी किसी न किसी मात्रा में विभिन्न क्षेत्रों में आरक्षण देखने को मिलता है। आजादी के बाद इसे बड़े पैमाने पर लागू किया गया। जहां पहले सिर्फ एससी एवं एसटी वर्ग को लोकसभा, विधानसभा, शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश या नियुक्तियों में आरक्षण मिलता था वहीं 1992 से ओबीसी वर्ग को भी आरक्षण देने की व्यवस्था की गई।

ओबीसी को आरक्षण देने के पीछे का कारण इंदिरा साहनी बनाम भारत सरकार का मामला 1992 है। इसी जजमेंट में सुप्रीम कोर्ट ने इस बात का जिक्र किया कि आरक्षण वर्टिकल और हॉरिजॉन्टल होगी।

चूंकि सुप्रीम कोर्ट ने ही कहा था कि आरक्षण की ऊपरी सीमा 50 % होगी तो ऐसे में ये जरूरी था कि कुछ ऐसी व्यवस्था हो जिससे कि 50 % तक कुल आरक्षण को रोक कर रखा जा सके। क्योंकि अगर महिलाओं, दिव्याङ्गजनों एवं ट्रान्सजेंडर आदि को भी अलग से आरक्षण दिया जाता तो फिर ये फिर 50 % से ज्यादा होना ही था क्योंकि एससी, एसटी और ओबीसी को ही मिलाकर कुल आरक्षण 49.5 % हो चुका था।

इसीलिए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि – सभी आरक्षण एक ही प्रकृति के नहीं होते हैं। दो प्रकार के आरक्षण हैं, जिन्हें सुविधा के लिए ‘ऊर्ध्वाधर आरक्षण (vertical reservation)’ और ‘क्षैतिज आरक्षण (horizontal reservation)’ के रूप में संदर्भित किया जा सकता है। अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़े वर्गों के पक्ष में आरक्षण [अनुच्छेद 16(4) के तहत] को ऊर्ध्वाधर आरक्षण (Vertical reservation) कहा जा सकता है, जबकि शारीरिक रूप से विकलांगों के पक्ष में आरक्षण [अनुच्छेद 16 के खंड (2) के तहत] को क्षैतिज (horizontal) कहा जा सकता है।

क्षैतिज आरक्षण, ऊर्ध्वाधर आरक्षणों में कटौती करते हैं, जिन्हें इंटर-लॉकिंग आरक्षण (Inter-locking reservation) कहा जाता है। मान लीजिए कि 3% रिक्तियां शारीरिक रूप से विकलांग व्यक्तियों के पक्ष में आरक्षित हैं; यह आरक्षण अनुच्छेद 16 के खंड (2) से संबंधित होगा। इस कोटे के तहत चुने गए व्यक्तियों को; यदि वह अनुसूचित जाति श्रेणी से संबंधित है तो उसे आवश्यक समायोजन करके उस कोटे में रखा जाएगा; इसी प्रकार, यदि वह खुली प्रतियोगिता (open competition) श्रेणी से संबंधित है, तो उसे आवश्यक समायोजन करके उस श्रेणी में रखा जाएगा।

कुल मिलाकर इन क्षैतिज आरक्षणों को प्रदान करने के बाद भी, नागरिकों के पिछड़े वर्ग के पक्ष में आरक्षण का प्रतिशत वही रहता है – और वही रहना चाहिए।

सारांश

वर्टिकल आरक्षण का मतलब ऐसे आरक्षण से है जो कानून के तहत निर्दिष्ट (Specified) प्रत्येक समूह के लिए अलग से लागू होता है। अनुसूचित जातियों (SC), अनुसूचित जनजातियों (ST) और अन्य पिछड़े वर्गों (OBC) के लिए आरक्षण को ऊर्ध्वाधर आरक्षण (vertical reservation) के रूप में जाना जाता है।

क्षैतिज आरक्षण का तात्पर्य अन्य श्रेणियों के लाभार्थियों जैसे महिलाओं, बुजुर्गों, ट्रांसजेंडर और विकलांग व्यक्तियों को समान अवसर प्रदान करना है, जो ऊर्ध्वाधर श्रेणियों में कटौती करते हैं।

कहने का अर्थ ये है कि महिलाओं, ट्रान्सजेंडर एवं दिव्याङ्गजनों आदि के लिए कोई अलग से आरक्षण कैटेगरी नहीं बनी है जैसे कि एससी, एसटी एवं ओबीसी बनाया गया है। इसीलिए महिलाओं एवं दिव्याङ्गजनों आदि को जो आरक्षण मिलता है, वो अलग से नहीं मिलता है बल्कि एससी, एसटी एवं ओबीसी के कोटे से ही कटौती की जाती है।

यानी कि अगर महिलाओं के लिए 30% आरक्षण है तो यह आरक्षण उसे अलग से नहीं मिलेगा बल्कि एससी, एसटी एवं ओबीसी कोटे के तहत जितनी सीटें भरी जानी है उसमें से 30% महिला होना चाहिए।

समझने के लिए मान लीजिए कि ST, SC एवं OBC; प्रत्येक वर्ग के लिए 100 सीटों पर रिक्तियाँ निकली है, ऐसे में एससी के 100 सीटों में से 30 सीटें महिलाओं द्वारा भरा जाएगा, एसटी के 100 सीटों में से 30 सीटें महिलाओं द्वारा भरा जाएगा और ओबीसी के 100 सीटों में से 30 सीटें महिलाओं द्वारा भरा जाएगा।

यहाँ पर ये याद रखिए कि महिलाओं एवं बच्चों को आरक्षण अनुच्छेद 15(3) के तहत मिलता है, जबकि दिव्याङ्गजनों एवं ट्रान्सजेंडर आदि को आरक्षण अनुच्छेद 16(2) के तहत मिलता है।

Q. क्या आर्थिक रूप से कमजोर व्यक्ति (EWS) वर्टिकल आरक्षण की श्रेणी में आता है?

जिस तरह से 10 प्रतिशत आरक्षण दिया जाता है उसे तो वर्टिकल ही कहा जाएगा। क्योंकि इसे दिया भी अलग से जाता है और गिना भी अलग से जाता है। हालांकि 103वें संविधान संशोधन अधिनियम (जिसके तहत इसे लाया गया है) में भी स्पष्ट नहीं किया गया है कि इसे वर्टिकल श्रेणी में रखा जाएगा या फिर हॉरिजॉन्टल श्रेणी में।

सुप्रीम कोर्ट में यह चैलेंज किया गया है और जब तक अंतिम रूप से फैसला नहीं आ जाता तब तक ठोस रूप में कुछ कहना सही नहीं है। क्योंकि अकादमिक दुनिया में अभी भी एससी, एसटी एवं ओबीसी को ही वर्टिकल में रखा जाता है EWS को नहीं, ऐसा इसीलिए ताकि 50% के ऊपरी सीमा का पालन हो सके।

Vikram Pal And Otehrs vs State Of Haryana मामला 2020 को देखें तो वहाँ भी पंजाब-हरियाणा उच्च न्यायालय ने EWS को हॉरिजॉन्टल में काउंट नहीं किया है।

इससे संबंधित एक महत्वपूर्ण मामला है Saurav Yadav versus State of Uttar Pradesh मामला 2020। आइये इसे समझते हैं;

Saurav Yadav vs State of Uttar Pradesh 2020

सोनम तोमर और रीता रानी ने क्रमश: 276.5949 और 233.1908 अंक हासिल किए थे. उन्होंने क्रमशः ओबीसी-महिला और एससी-महिला की श्रेणियों के तहत आवेदन किया था। और जैसा कि हम जानते हैं, ओबीसी और एससी वर्टिकल आरक्षण श्रेणियां हैं, जबकि महिला क्षैतिज आरक्षण श्रेणी है।

कहने का अर्थ ये था कि चूंकि सोनम तोमर ओबीसी महिला है तो उसे ओबीसी के तहत ही चुना जाएगा। लेकिन हुआ ये कि ओबीसी के कोटे के तहत जितने व्यक्ति को भरना था वो पूरे हो चुके थे, इसीलिए सोनम तोमर को सेलेक्ट नहीं किया गया।

वहीं एक सामान्य-महिला (यानी कि अनारक्षित श्रेणी की महिला), जिसने 274.8298 अंक हासिल किए थे, जो कि सोनम तोमर से कम था, लेकिन उसे फिर भी अंतिम रूप से क्वालिफ़ाई माना गया क्योंकि वो सामान्य महिला थी और सामान्य श्रेणी में उसके लिए जगह खाली था। जबकि ऊपर बताये गए दोनों उम्मीदवारों ने अपनी श्रेणियों में अर्हता प्राप्त नहीं की।

कहने का अर्थ ये है कि सरकार की नीति आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवारों को उनकी श्रेणियों तक सीमित रखने की थी, भले ही उन्होंने उच्च ग्रेड हासिल किए हों।

[?] ऐसे में, अदालत के समक्ष सवाल यह था कि यदि चयन करने के लिए अंतर्निहित मानदंड “मेरिट” है, तो क्या सोनम तोमर को उच्च अंक हासिल करने के लिए ओबीसी-महिला श्रेणी के बजाय सामान्य-महिला कोटा के तहत चुना जाना चाहिए?

अदालत ने उत्तर प्रदेश सरकार के खिलाफ फैसला सुनाया, जिसमें कहा गया था कि यदि वर्टिकल-क्षैतिज आरक्षित श्रेणी के प्रतिच्छेद से संबंधित व्यक्ति ने वर्टिकल आरक्षण के बिना अर्हता प्राप्त करने के लिए पर्याप्त अंक प्राप्त किए हैं, तो व्यक्ति को वर्टिकल आरक्षण के बिना योग्यता के रूप में गिना जाएगा, और उसे सामान्य श्रेणी में क्षैतिज कोटे से बाहर नहीं रखा जाएगा।

अदालत ने यह भी कहा कि अगर ऐसा नहीं होता है तो यह, यह सुनिश्चित करने के समान है कि सामान्य वर्ग सिर्फ ऊंची जातियों के लिए ‘आरक्षित’ है।

[=] पूर्व में वर्टिकल आरक्षण के मामले में एक समान प्रश्न उत्पन्न हुआ था, और कानून भी इसी तरह तय किया गया था: यदि एससी श्रेणी का कोई व्यक्ति सामान्य श्रेणी के लिए कट-ऑफ से अधिक अंक प्राप्त करता है, तो व्यक्ति को सामान्य श्रेणी के तहत गिना जाएगा बजाय एससी कोटे के तहत।

वो मामला है Rajesh kumar daria vs rpsc 2020 जिसके तहत यह फैसला आया कि यदि कोई एससी वर्ग का व्यक्ति सामान्य वर्ग के व्यक्ति के cut ऑफ मार्क्स से अधिक स्कोर करता है तो उसे सामान्य वर्ग के तहत क्वालिफ़ाई माना जाएगा।

facts

इन दोनों मामलों से यह स्पष्ट हो जाता है कि अगर कोई व्यक्ति जिसे आरक्षण का लाभ मिलता है लेकिन वो इतने नंबर लाता है जो कि सामान्य वर्ग के लिए cut off मार्क्स होता है तो उस आरक्षित व्यक्ति को सामान्य वर्ग में काउंट किया जाएगा।

उम्मीद है आपको वर्टिकल एवं हॉरिजॉन्टल आरक्षण समझ में आया होगा। अगर आपको इसे समझने में दिक्कत आ रही है तो मैं सलाह दूंगा कि आप आरक्षण को बिलकुल ज़ीरो लेवल से समझें।

आरक्षण : आधारभूत समझ[1/4]
आरक्षण का संवैधानिक आधार[2/4]
आरक्षण का विकास क्रम[3/4]
आरक्षण के पीछे का गणित यानी कि रोस्टर सिस्टम[4/4]

References,
https://indiankanoon.org/doc/9720812/
How horizontal, vertical quotas work; what Supreme Court said
Saurav Yadav vs The State Of Uttar Pradesh on 18 December, 2020
Indira Sawhney Vs. Government of India Case 1992
Constitution of India
Commentary on constitution (fundamental rights) – d d basu
https://en.wikipedia.org/wiki/Reservation_in_India
FAQs Related to Reservation
https://dopt.gov.in/sites/default/files/FAQ_SCST.pdf