इस लेख में हम क्रीमी लेयर (creamy layer) पर सरल एवं सहज़ चर्चा करेंगे एवं इसके विभिन्न महत्वपूर्ण पहलुओं एवं तथ्यों को समझने का प्रयास करेंगे।

यह लेख आरक्षण से संबंधित है, इसीलिए आरक्षण को समझने के क्रम में इसे समझना बहुत जरूरी हो जाता है। आरक्षण को ज़ीरो लेवल से समझने के लिए आप दिये हुए लिंक का इस्तेमाल कर सकते हैं।

आरक्षण : आधारभूत समझ[1/4]
आरक्षण का संवैधानिक आधार[2/4]
आरक्षण का विकास क्रम[3/4]
आरक्षण के पीछे का गणित यानी कि रोस्टर सिस्टम[4/4]
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क्रीमी लेयर क्या है?

क्रीमी लेयर भारतीय राजनीति का एक प्रचलित शब्द है जिसका उपयोग पिछड़े वर्ग के उन सदस्यों को संदर्भित करने के लिए किया जाता है जो सामाजिक और आर्थिक रूप से अत्यधिक उन्नत हैं। 

हम जानते हैं कि अनुच्छेद 15 एवं 16 के तहत पिछड़े वर्ग को आरक्षण दिया जाता है, जो कि समानता स्थापित करने का एक सकारात्मक कार्रवाई है। आरक्षण देने के लिए पिछड़े वर्गों को जाति के आधार पर वर्गीकृत किया गया है लेकिन ये जरूरी तो नहीं है कि किसी जाति विशेष के सभी लोगों को आरक्षण की जरूरत हो।

समाज में निचले स्तर पर माने जाने वाली जातियों में भी लोगों का कुछ भाग ऐसा होता है जो कि सामाजिक एवं आर्थिक रूप से सम्पन्न होता है। दूसरी बात ये कि दशकों से चल रही आरक्षण व्यवस्था का लाभ उठाकर कई पिछड़ी जातियाँ या उसके लोग अपेक्षाकृत उन्नत हो जाते हैं।

ऐसे में पिछड़ी जातियों के सही लोगों तक आरक्षण का लाभ पहुंचाने के लिए जरूरी हो जाता है कि उन जाति या वर्गों के उन व्यक्तियों को आरक्षण से हतोत्साहित किया जाए जो कि सामाजिक एवं आर्थिक रूप से उन्नत हो चुके है। और क्रीमी लेयर व्यवस्था यही करता है।

क्रीमी लेयर की पृष्ठभूमि

अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति को आरक्षण आजादी के बाद से ही मिलना शुरू हो गया था। पर क्रीमी लेयर एससी एवं एसटी वर्ग पर लागू नहीं होता है बल्कि OBC पर लागू होता है। ये जो टर्म है ”क्रीमी लेयर” इसे 1971 में सत्तनाथन आयोग द्वारा पहली बार इस्तेमाल किया गया था, जिसका मतलब था “मलाईदार परत (creamy layer)” को नागरिक पदों के आरक्षण (कोटा) से बाहर रखना। 

आगे चलकर 1992 में इंद्रा साहनी बनाम भारत सरकार मामले में सुप्रीम कोर्ट ने OBC के लिए 27 % आरक्षण को तो स्वीकार कर लिया लेकिन साथ ही उन्होने कुछ शर्तें भी जोड़ी, जिसमें से एक शर्त ये था कि ओबीसी के क्रीमीलेयर से संबन्धित व्यक्तियों को आरक्षण की सुविधा से वंचित रखा जाना चाहिए।

इसी फैसले का पालन करने के उद्देश्य से जस्टिस राम नंदन प्रसाद (Justice R N Prasad) समिति का गठन किया गया, 1993 में उनकी रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया गया और क्रीमीलेयर व्यवस्था को शुरू किया गया।

कुल मिलाकर यहाँ समझने वाली बात ये है कि (1) भले ही सरकारी नौकरियों एवं उच्च शिक्षण संस्थानों में OBC के लिये 27% आरक्षण (कोटा) निर्धारित है, किंतु जो लोग ‘क्रीमी लेयर’ के अंतर्गत आते हैं, उन्हें इस आरक्षण का लाभ नहीं मिलता है। क्रीमी लेयर की पहचान आय (Income) और माता-पिता के रैंक के आधार पर की जाती है।

(2) अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लोग इस वर्गीकरण से मुक्त हैं, और हमेशा पारिवारिक आय की परवाह किए बिना आरक्षण का लाभ प्राप्त कर सकते हैं।

क्रीमी लेयर के तहत आने वाले लोग

क्रीमीलेयर के तहत दो तरह के लोग आते हैं पहला वे जो कि सरकारी नौकरी में नहीं है। और दूसरा वे जो सरकारी नौकरी में है। जो सरकारी नौकरी में नहीं है उसके लिए आय (Income) ही क्रीमीलेयर का मुख्य आधार है जबकि सरकारी नौकरियों में सेवा दे रहे व्यक्तियों के लिए पद भी मायने रखता है।

(1) वे लोग जो सरकारी नौकरियों में नहीं है –

आय मानदंड को सभी स्रोतों से माता-पिता की सकल वार्षिक आय (Gross Annual Income) के रूप में परिभाषित किया गया है। हालांकि इसमें कुछ अपवाद भी है जिस पर हमने आगे चर्चा की है।

1993 में जब “क्रीमी लेयर” पेश की गई थी, तो इसकी सीमा 1 लाख रुपए थी। यानी कि 1 लाख या उससे ज्यादा सालाना कमाने वाले व्यक्ति या उसके बच्चे OBC के तहत मिलने वाले 27% आरक्षण का लाभ नहीं उठा सकता है।

2004 में प्रति वर्ष 2.5 लाख रुपये तक संशोधित किया गया, 2008 में 4.5 लाख रुपये, 2013 में 6 लाख और 2017 में इसे बढ़ाकर 8 लाख रुपए कर दिया गया। अभी फिलहाल 8 लाख रुपए न्यूनतम सालाना ही चल रहा है।

[हालांकि यहाँ ये याद रखिए कि अक्टूबर 2015 में, राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (एनसीबीसी) ने प्रस्तावित किया कि अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) से संबंधित व्यक्ति, जिसकी माता-पिता की सकल वार्षिक आय 15 लाख रुपये तक है, को ओबीसी के लिए न्यूनतम सीमा के रूप में माना जाना चाहिए। संसदीय समिति ने भी इसका समर्थन किया और सरकार 12 लाख रुपए की सीमा को मान भी गई, पर वह कृषि आय को भी सकल वार्षिक आय में जोड़ना चाहती है। इस पर सांसदों का विरोध है और मामला अधर में है।]

(2) वे लोग जो सरकारी नौकरियों में है –

सरकार के लिए काम करने वाले लोगों के लिए डिपार्टमेंट ऑफ पर्सनेल एंड ट्रेनिंग (DoPT) ने कुछ प्रकार के लोगों की एक सूची बनाई है जिसके तहत आने वाले लोग (ख़ासकर के उनके बच्चे) क्रीमी लेयर के तहत आते हैं;

(I) संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्तियों के बच्चे क्रीमी लेयर के तहत आएंगे, जैसे राष्ट्रपति, उप-राष्ट्रपति, उच्चतम एवं उच्च न्यायालय के न्यायाधीश, UPSC के अध्यक्ष एवं सदस्य, चुनाव आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्य आदि।

(II) अखिल भारतीय सेवा में या केंद्रीय सेवा में या राज्य सेवा में कार्यरत ग्रुप A अधिकारियों के बच्चे क्रीमीलेयर के तहत आएंगे, जैसे कि IAS, IPS, IFos इत्यादि।

(III) केंद्रीय सेवाओं में या राज्य सेवाओं में कार्यरत ग्रुप B अधिकारियों के बच्चे क्रीमीलेयर के तहत आएंगे, जैसे कि Chief Pharmacists, Income Tax officers, Superintendents of GST and Customs इत्यादि

(IV) सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (PSUs) में काम करने वाले व्यक्ति भी क्रीमीलेयर के तहत आते है। इसके साथ ही बैंक, बीमा कंपनियों एवं विश्वविद्यालयों में काम कर रहे समान स्तर के लोंग भी क्रीमी लेयर में आते हैं।

(V) सशस्त्र बलों (armed forces) एवं अर्ध-सैनिक बलों (paramilitary forces) में काम करने वाले ऐसे सैनिक जो कि कर्नल (Colonel)रैंक या उससे ऊपर अपनी सेवाएँ दे रहे हैं उसके बच्चे क्रीमीलेयर के तहत आएंगे।

ये थे क्रीमी लेयर के तहत आने वाले कुछ महत्वपूर्ण श्रेणियाँ, इसके अलावा भी श्रेणियाँ है जो DoPT ने बना रखी है, अगर आप सभी को जानना चाहते हैं तो नीचे दिये गए PDF को देख सकते हैं।

Importants Facts

  1. वे बच्चे जो अपने माता-पिता की वर्तमान स्थिति के कारण क्रीमीलेयर के तहत आते हैं, वे तब भी क्रीमीलेयर के तहत आएंगे जब उसके माता-पिता सेवानिवृत हो जाएँगे या मर जाएंगे।
  2. बच्चों के क्रीमीलेयर का निर्धारण उसके माता-पिता के सकल-वार्षिक आय से होता है न कि उस बच्चे के खुद के आय से। इसका मतलब ये हुआ कि अगर किसी माता-पिता का सकल वार्षिक आय 8 लाख से कम है पर उसके बच्चे का वार्षिक आय 8 लाख है तो भी वह बच्चा नॉन-क्रीमीलेयर के तहत आयेगा और आरक्षण का लाभ उठा पाएगा।

क्रीमीलेयर का निर्धारण कैसे किया जाता है?

उन संगठनों में कार्यरत व्यक्तियों के बेटे और बेटियों की क्रीमी लेयर की स्थिति जहां सरकार में पदों की तुलना या पदों की तुलना का मूल्यांकन नहीं किया गया है, निम्नानुसार निर्धारित किया जाता है:

“माता-पिता की वेतन और अन्य स्रोतों से आय (वेतन और कृषि भूमि के अलावा) अलग से निर्धारित की जाती है। यदि माता-पिता की वेतन से आय या अन्य स्रोतों से माता-पिता की आय (वेतन और कृषि भूमि के अलावा) लगातार तीन वर्षों की अवधि के लिए 8 लाख रुपये प्रति वर्ष की सीमा से अधिक है, तो पुत्र और पुत्री को क्रीमी लेयर में माना जाएगा।

लेकिन माता-पिता के बेटे और बेटियां जिनकी वेतन से आय 8 लाख प्रति वर्ष रुपये से कम है। और अन्य स्रोतों से आय भी 8 लाख रुपये प्रति वर्ष से कम है, इसे क्रीमी लेयर में नहीं माना जाएगा, भले ही वेतन और अन्य स्रोतों से आय का योग लगातार तीन वर्षों की अवधि के लिए 8 लाख रुपये प्रति वर्ष से अधिक हो।

इसका सीधा-सीधा मतलब ये है की किसी भी उम्मीदवार की क्रीमी लेयर की स्थिति निर्धारित करने के लिए आय या धन को जाँचने के लिए, वेतन से आय और कृषि भूमि से आय को ध्यान में नहीं रखा जाएगा।

इसका अर्थ है कि यदि किसी उम्मीदवार के माता-पिता की आय 8 लाख रुपये प्रति वर्ष से अधिक है एवं, कृषि भूमि से आय 8 लाख रुपये प्रति वर्ष से अधिक है, लेकिन वेतन और कृषि के अलावा अन्य स्रोतों से आय 8 लाख रुपये से कम है। तो इस आधार पर उम्मीदवार को क्रीमी लेयर में नहीं माना जाएगा, बशर्ते उसके माता-पिता के पास संपत्ति कर अधिनियम में निर्धारित छूट सीमा से अधिक संपत्ति लगातार तीन वर्षों की अवधि के लिए न हो।

संपत्ति कर अधिनियम, 1957 भारत की संसद का एक अधिनियम था इसके अनुसार, एक व्यक्ति, एक हिंदू अविभाजित परिवार या एक कंपनी को प्रति वर्ष ₹30 लाख से अधिक की आय पर 1% का संपत्ति कर देना पड़ता था। हालांकि 1 अप्रैल 2016 से अधिनियम को खत्म कर दिया गया है। और संपत्ति कर को लेवी से प्रतिस्थापित कर दिया गया है जो कि उन व्यक्तियों, फर्मों, सहकारी समितियों और स्थानीय प्राधिकरण पर लागू होता है जिनकी आय ₹1 करोड़ से अधिक है। इसीलिए उपरोक्त संपत्ति कर का कोई मतलब बनता नहीं है।

समापन टिप्पणी

कुल मिलाकर देखें तो 3 साल में क्रीमी लेयर में संशोधन करके उसके आय सीमा को बढ़ाए जाने का प्रावधान है, अंतिम बार इसे 2017 में संशोधित किया गया था। उस हिसाब से देखें तो अब टाइम आ गया है कि इसमें संशोधन हो। जल्द ही हमें इससे संबंधित कुछ नए अपडेट मिल सकते हैं।

जहां तक रही एससी एवं एसटी के आरक्षण में क्रीमीलेयर की बात तो आपको बता दें कि जरनैल सिंह बनाम लक्ष्मी नारायण मामले (सितंबर 2018) में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अब क्रीमीलेयर के तहत आने वाले एससी एवं एसटी वर्ग के व्यक्ति को प्रोमोशन में आरक्षण नहीं दिया जा सकता। और ये अभी प्रभाव में है।

जैसा कि हम अब जानते हैं, ओबीसी के आरक्षण के लिए क्रीमी लेयर पात्रता निर्धारित करने में, केवल परिवार की आय को आधार के रूप में लिया जाता है, लेकिन ईडब्ल्यूएस के आरक्षण के लिए पात्रता तय करने में, उसके परिवार के साथ-साथ उसकी अपनी आय को भी लिया जाता है।

कृषि आय और संपत्ति जैसे कृषि भूमि और वाणिज्यिक भूमि भी ईडब्ल्यूएस आरक्षण की पात्रता में शामिल हैं, जबकि कृषि आय और संबंधित संपत्ति ओबीसी के क्रीमी लेयर के निर्धारण में शामिल नहीं हैं।

ओबीसी की तरह एससी और एसटी आरक्षण में क्रीमी लेयर का प्रावधान नहीं है।

उम्मीद है आपको क्रीमी लेयर का पूरा कॉन्सेप्ट समझ में आया होगा, आरक्षण से संबंधित अन्य लेखों को अवश्य पढ़ें और जरूरतमंदों तक इस लेख को पहुंचाए….!

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References,
PRS Legislative Report
https://www.bhaskar.com/obc-reservation-criteria-what-is-creamy
https://en.wikipedia.org/wiki/Creamy_layer
DoPT document
Original Constitution
DoPT Annual Report