इस लेख में राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (National Commission for Scheduled Castes) पर सरल एवं सहज़ चर्चा करेंगे एवं इसके विभिन्न महत्वपूर्ण पहलुओं को समझने का प्रयास करेंगे।

अनुसूचित जाति आयोग और अनुसूचित जनजाति आयोग पहले एक ही हुआ करता था, पर अब दोनों अलग-अलग निकाय के रूप में अलग-अलग मंत्रालय के तहत काम करता है।

इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ें एवं अन्य महत्वपूर्ण आयोगों को भी पढ़ें, लिंक नीचे दिया हुआ है। और साथ ही हमारे फ़ेसबुक पेज को लाइक जरूर करें।

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राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग National Commission for Scheduled Castes
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| अनुसूचित जाति (Schedule Caste) कौन है?

अनुसूचित जाति (एससी), जिन्हें दलित भी कहा जाता है, भारत में ऐतिहासिक रूप से हाशिए पर और वंचित समुदाय हैं। “अनुसूचित जाति” शब्द उन लोगों के समूहों को संदर्भित करता है जो ऐतिहासिक रूप से भारतीय सामाजिक व्यवस्था में समाज के कुछ वर्गों द्वारा सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक भेदभाव, बहिष्कार और अस्पृश्यता के अधीन रहे हैं।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि (Historical Background): अनुसूचित जाति की अवधारणा एक आधुनिक अवधारणा है जिसकी शुरुआत आमतौर पर ब्रिटिश काल से मानी जाती है। प्राचीन काल में वर्ण व्यवस्था अस्तित्व में था और कालांतर में इसी व्यवस्था से जातियों को निर्माण हुआ जो कि अपने मूल रूप में कार्य पर आधारित एक विभाजन था।

पर समय के साथ यह व्यवस्था भ्रष्ट होती गई, और कई ऐसी परंपराएं विकसित हुई जिसमें समाज के कुछ वर्गों को हेय दृष्टि से देखा गया, उसके साथ समानता का व्यवहार नहीं अपनाया गया।

ऐसे ही ऐतिहासिक रूप से वंचित समुदाय को औपचारिक रूप से दलित या अनुसूचित जाति कहा गया। 1935 में अंग्रेजों द्वारा लागू किए गए भारत सरकार अधिनियम में अधिनियम के भाग 14 में आधिकारिक तौर पर “Scheduled Castes” शब्द का इस्तेमाल किया गया था, और स्वतंत्रता के बाद भी भारत सरकार द्वारा इसी परिभाषा का उपयोग जारी रखा गया।

डॉ. भीमराव अंबेडकर ने इसी समाज को “दलित” कहा। और Intellectual Liberal Class इसी को Depressed Class कहता है।

यहां यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि अनुसूचित जातियां एक सजातीय समूह नहीं हैं; इनमें विभिन्न उप-जातियाँ और समुदाय शामिल हैं, जिनमें से प्रत्येक का अपना अनूठा इतिहास और चुनौतियाँ हैं।

संविधान अनुसूचित जाति आदेश, 1950↗, जिसने अनुसूचित जातियों की पहली सूची जारी की थी, के अनुसार केवल हिंदू धर्म का पालन करने वाले हाशिये पर रहने वाले समुदायों के सदस्यों को अनुसूचित जाति माना जा सकता है।

सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय अनुसूची में आने वाली जातियों की एक राज्य-वार सूची प्रकाशित करता है, और केवल सूचीबद्ध राज्यों से जाति प्रमाण पत्र रखने वाले लोग ही एससी समुदाय के सदस्यों को दी जाने वाली सुरक्षा के लिए पात्र होते हैं।

आप यहाँ से अनुसूचित जाति की राज्यवार लिस्ट देख सकते हैं – SC STATE Wise List↗

संवैधानिक मान्यता: भारतीय संविधान अनुसूचित जातियों के उत्थान और अधिकारों की रक्षा की आवश्यकता को मान्यता देता है। संविधान में विभिन्न अनुच्छेदों और प्रावधानों का उद्देश्य उनके सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक उत्थान है। आइये इसे समझें;

Q. भारतीय संविधान के अनुसार अनुसूचित जाति कौन है?

अनुच्छेद 341 परिभाषित करता है कि अनुसूचित जाति (SC) कौन है।

अनुच्छेद 341 कहता है कि – (1) राष्ट्रपति, किसी राज्य या संघक्षेत्र के संबंध में, जहां वह राज्य है, वहाँ उसके राज्यपाल से परामर्श करने के बाद, लोक अधिसूचना द्वारा, उन जातियों (castes), मूलवंशों (races) या जनजातियों (Tribes) या उसके भाग या उनके समूह को विनिर्दिष्ट (specify) कर सकेगा। जिन्हे इस संविधान के प्रयोजनों के लिए उस राज्य या संघक्षेत्र के संबंध में अनुसूचित जाति (SC) समझा जाएगा। 

(2) संसद के पास यह अधिकार है कि विधि द्वारा किसी जाति, मूलवंश या जनजाति को या उसके भाग को या उसके समूह को, खंड (1) के अधीन निकाली गई अधिसूचना में विनिर्दिष्ट (specified) अनुसूचित जाति को, सूची में सम्मिलित कर सकेगी या उसमें से अपवर्जित (exclude) कर सकेगी। 

Q. अनुसूचित जाति के लिए आयोग बनाने की जरूरत क्यों पड़ी?

अनुसूचित जाति हमारे समाज के वे लोग है जिन्हे जाति व्यवस्था में सबसे निचले पायदान पर माना गया। और समाज में सबसे छोटा और निकृष्ट समझे जाने वाले काम को उसके लिए निर्धारित माना गया। जैसे कि हाथ से मैला ढोना (Manual scavenging), कपड़े धोना इत्यादि। इसीलिए इन जातियों ने सबसे ज्यादा अस्पृश्यता (untouchability) और शोषण (Exploitation) झेला।

संविधान निर्माताओं ने इस तथ्य पर ध्यान दिया कि इनके त्वरित सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। इन समुदायों को संविधान के अनुच्छेद 341 में निहित प्रावधानों के अनुसार अनुसूचित जाति के रूप में अधिसूचित किया गया।

आजाद भारत में इन समुदाय के लोगों को मुख्य धारा में लाया जा सके, और इन्हे शोषण एवं असमानता आदि से बचाया जा सके; इसके लिए जरूरी था कि इन लोगों के हित के लिए चिंता करने वाला एक अलग से आयोग या विभाग सरकार में हो। इसी संदर्भ में अनुसूचित जाति आयोग का गठन किया गया।

राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग क्या है?

राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (NCSC), एक संवैधानिक निकाय है, जिसे अनुसूचित जातियों और एंग्लो इंडियन समुदायों के शोषण के खिलाफ उनके सामाजिक, शैक्षिक, आर्थिक और सांस्कृतिक हितों को बढ़ावा देने और उनकी रक्षा करने के लिए सुरक्षा प्रदान करने के उद्देश्य से स्थापित किया गया।

  • यह एक संवैधानिक निकाय इसीलिए है क्योंकि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 338 इसकी व्याख्या करते हुए कहता है कि – अनुसूचित जातियों के लिए एक आयोग होगा जो राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के नाम से जाना जाएगा।
  • राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग, सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय, भारत सरकार के अधिकार क्षेत्र के तहत आता है।

अन्य राष्ट्रीय आयोग जैसे राष्ट्रीय महिला आयोग 1992, राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग 1993 , राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग 1993 , राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग 2007, आदि संवैधानिक आयोग न होकर सांविधिक आयोग है, क्योंकि इनकी स्थापना संसद के अधिनियम के द्वारा किया गया है।

| आयोग का इतिहास (History of NCSC)

राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग

मूल रूप से संविधान का अनुच्छेद 338 अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों (दोनों) के लिए एक विशेष अधिकारी की नियुक्ति का उपबंध करता था, जिसका मुख्य काम था अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के संवैधानिक संरक्षण से संबन्धित सभी मामलों का निरीक्षण करना तथा उनसे संबन्धित प्रतिवेदन राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत करना।

अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों (दोनों) के लिए एक विशेष अधिकारी की नियुक्ति 18 नवम्बर 1950 को किया गया। समय के साथ अनुच्छेद 338 में उल्लिखित SC व ST के लिए एक विशेष अधिकारी के स्थान पर बहु-सदस्यीय आयोग की जरूरत महसूस की गई।

अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (दोनों) के लिए पहला बहु-सदस्यीय आयोग अगस्त 1978 में स्थापित किया गया।

यह व्यापक नीतिगत मुद्दों और अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के विकास के स्तरों पर सरकार को सलाह देने के लिए एक राष्ट्रीय स्तर के सलाहकार निकाय के रूप में स्थापित किया गया था। इसमें एक अध्यक्ष था और विशेष अधिकारी सहित 4 अन्य अधिकारी था।

लेकिन यह एक गैर-सांविधिक निकाय था क्योंकि इसे एक संसदीय संकल्प के द्वारा बनाया गया था। यहाँ से एक अजीब स्थिति बन गई, स्थिति ऐसी थी कि जो विशेष अधिकारी या आयुक्त था वो सांविधिक (Statutory) था क्योंकि इसे अनुच्छेद 338 के तहत बनाया गया था वहीं आयोग असांविधिक (Non-Statutory) था क्योंकि इसे एक गृह मंत्रालय के एक संकल्प (Resolution) द्वारा बनाया गया था। और दोनों को लगभग एक ही काम सौंपा गया था।

इस स्थिति से उबरने के लिए 1 सितंबर 1987 को, सरकार ने एससी और एसटी के लिए आयुक्त और एससी और एसटी के लिए आयोग के कार्यों का सीमांकन (demarcation) करने का निर्णय लिया।

यह निर्णय लिया गया कि केवल अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के आयुक्त ही राष्ट्रपति को रिपोर्ट (वार्षिक) सौंपेंगे और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आयोग, जिसे कि अब अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए राष्ट्रीय आयोग का नाम दिया गया है, यह अध्ययन का काम करेगा।

यानि कि सरकार के इस निर्णय से, आयोग का नाम बदलकर राष्ट्रीय अनुसूचित जाति एवं जनजाति आयोग हो गया।

आगे चलकर 65वां संविधान संशोधन अधिनियम 1990 द्वारा, राष्ट्रीय स्तर की एक बहुसदस्यीय संवैधानिक निकाय की स्थापना की गई, जिसे कि राष्ट्रीय अनुसूचित जाति एवं जनजाति आयोग के नाम से जाना गया।

इस तरह से 1987 में एक संकल्प के द्वारा जो आयोग गठित किया गया था उसे इस नए बने संवैधानिक आयोग से प्रतिस्थापित (Replace) कर दिया गया।

12 मार्च 1992 में पहला संवैधानिक राष्ट्रीय अनुसूचित जाति एवं जनजाति आयोग अस्तित्व में आया। और इसी दिन से SC एवं ST के लिए जो आयुक्त का पद था वो भी समाप्त हो गया।

आगे, 2003 के 89वें संविधान संशोधन अधिनियम के द्वारा राष्ट्रीय अनुसूचित जाति एवं जनजाति आयोग का दो भागों में विभाजन कर दिया गया तथा राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (अनुच्छेद 338 के अंतर्गत) एवं राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (अनुच्छेद 338क के अंतर्गत) नामक दो नए आयोग बना दिये गए।

कुल मिलाकर, साल 2004 से पृथक,राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग अस्तित्व में आया। और अभी 6ठा आयोग अपने कार्यकाल को पूरा कर रहा है। [जिसे कि आप नीचे के चार्ट में देख सकते हैं;]

क्रम सं.नामपदग्रहन एवं पदत्यागआयोग
1सूरज भान24 Feb 2004 से 6 Aug 2007 तक1st
2बूटा सिंह25 May 2007 से 24 May 2010 तक2nd
3P. L. Punia15 Oct 2010 से 14 Oct 2013 तक
& 22 Oct 2013 से 21 Oct 2016 तक
3rd & 4th
4R. S. Katheria31 May 2017 से 30 May 2020 तक5th
5विजय सांपला18 Feb 2021 से 1 February 2022 तक6th

| आयोग की संरचना (Composition of the Commission):

आयोगा में एक अध्यक्ष , एक उपाध्यक्ष एवं तीन अन्य सदस्य होते हैं। वे राष्ट्रपति द्वारा उसके आदेश एवं मुहर लगे आदेश द्वारा नियुक्त किए जाते हैं। उनकी सेवा शर्तें एवं कार्यकाल भी राष्ट्रपति द्वारा ही निर्धारित किए जाते हैं। यहाँ यह याद रखिए कि आयोग के पास अपनी प्रक्रिया को स्वयं विनियमित करने की शक्ति होती है।

| आयोग के कार्य एवं कर्तव्य (Functions and duties of the Commission):

अनुच्छेद 338 के 5वां क्लॉज़ आयोग के कर्तव्य को व्याख्यायित करता है;

1. इस संविधान के तहत या किसी अन्य कानून के तहत या सरकार के किसी भी आदेश के तहत अनुसूचित जातियों के लिए प्रदान किए गए सुरक्षा उपायों से संबंधित सभी मामलों की जांच और निगरानी करना और ऐसे सुरक्षा उपायों के कामकाज का मूल्यांकन करना।

2. अनुसूचित जातियों के अधिकारों और सुरक्षा उपायों से वंचित करने के संबंध में विशिष्ट शिकायतों की जांच पड़ताल एवं सुनवाई करना।

3. अनुसूचित जातियों के सामाजिक-आर्थिक विकास की योजना प्रक्रिया में भाग लेना और सलाह देना और संघ और किसी भी राज्य के तहत उनके विकास की प्रगति का मूल्यांकन करना।

4. राष्ट्रपति को वार्षिक रूप से और ऐसे अन्य समय पर जब आवश्यक हो; रिपोर्ट देना। और ऐसी रिपोर्टों में उन उपायों के बारे में सिफारिशें करना जो संघ या किसी राज्य द्वारा अनुसूचित जातियों के संरक्षण, कल्याण और सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए उन सुरक्षा उपायों और अन्य उपायों के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए किए जाने चाहिए।

आयोग अपनी वार्षिक रिपोर्ट राष्ट्रपति को प्रस्तुत करता है। राष्ट्रपति, इस रिपोर्ट को संबन्धित राज्यों के राज्यपालों को भी भेजता है। जो उसे राज्य के विधानमंडल के समक्ष रखवाता है।

5. अनुसूचित जातियों के संरक्षण, कल्याण और विकास और उन्नति के संबंध में ऐसे अन्य कार्यों का निर्वहन करना, जैसा कि राष्ट्रपति, संसद द्वारा बनाए गए किसी भी कानून के प्रावधानों के अधीन, नियम द्वारा निर्दिष्ट करें।

राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग की शक्तियाँ (powers of the commission):

अनुच्छेद 338 का 8वां क्लॉज़ आयोग के शक्तियों को व्याख्यायित करता है; जिसके अनुसार, जब आयोग किसी कार्य की जांच पड़ताल कर रहा हो या किसी शिकायत की जांच कर रहा हो तो, इसे दीवानी न्यायालय की शक्तियाँ प्राप्ति होंगी, अर्थात;

  1. भारत के किसी भी भाग से किसी व्यक्ति को समन करना और हाजिर कराना तथा शपथ पर उसकी परीक्षा करना;
  2. किसी दस्तावेज़ को प्रकट और पेश करने की अपेक्षा करना;
  3. शपथपत्रों पर साक्ष्य ग्रहण करना;
  4. किसी न्यायालय या कार्यालय से किसी लोक अभिलेख या उसकी प्रति की अपेक्षा करना;
  5. दस्तावेजों की परीक्षा के लिए कमीशन निकालना;
  6. कोई अन्य विषय जो राष्ट्रपति द्वारा, अवधारित किया जाए।

यहाँ ये याद रखिए कि अनुच्छेद 338(9) में लिखा हुआ है कि संघ और प्रत्येक राज्य सरकार अनुसूचित जातियों को प्रभावित करने वाले सभी महत्वपूर्ण नीतिगत विषयों पर आयोग से परामर्श करेगी।

अनुच्छेद 338 के तहत जितने भी निर्देश अनुसूचित जातियों के लिए है उसे आंग्ल-भारतीय समुदाय के प्रति भी निर्देश माना जाएगा।

कहने का अर्थ है कि यह आयोग आंग्ल भारतीय समुदाय के संबंध में भी उसी प्रकार कार्य करेगा, जिस प्रकर वह अनुसूचित जतियों के लिए करता है। दूसरे शब्दों में आंग्ल भारतीय समुदाय के संवैधानिक संरक्षण एवं अन्य विधिक संरक्षणों के संबंध में भी जांच कराएगा और इसके संबंध में राष्ट्रपति को रिपोर्ट प्रस्तुत करेगा।

| अनुसूचित जातियों के लिए संवैधानिक सुरक्षा उपाय (Constitutional safeguards for Scheduled Castes)

अनुसूचित जातियों के लिए संविधान में ऐसे ढेरों प्रावधान है जो कि उनके हितों की रक्षा बहुआयामी तरीके से करता है; यथा:

अनुच्छेद 15(4) :- इसके तहत अनुच्छेद 29(2) में लिखित बातों के बावजूद भी अनुसूचित जातियों के पक्ष में सकारात्मक कार्रवाई की जा सकती है।

अनुच्छेद 29:- इसके तहत अनुसूचित जाति को अपनी भाषा, संस्कृति या लिपि आदि को बनाए रखने का अधिकार मिलता है।

अनुच्छेद 46:– इसके तहत सरकार का ये कर्तव्य है कि वे अपनी नीति इस तरह से बनाए कि अनुसूचित जाति के शैक्षिक एवं आर्थिक हितों की संवृद्धि हो सके।

अनुच्छेद 350:- इसके तहत, अपने व्यथा के निवारण के लिए किसी व्यक्ति को, राज्य के किसी अधिकारी के पास, संघ में या राज्य में प्रयोग होने वाले किसी भी भाषा में अभ्यावेदन (representations) देने का अधिकार है।

अनुच्छेद 350 ‘क’ :- इसके तहत भाषायी अल्पसंख्यक अपने बच्चों को अपनी मातृभाषा में प्राथमिक शिक्षा दे सकता है। और ये राष्ट्रपति का कर्तव्य है कि इस तरह की व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए राज्य को निदेश दें।

अनुच्छेद 350 ‘ख’ :- इसके तहत भाषायी अल्पसंख्यकों के लिए एक राष्ट्रपति एक विशेष अधिकारी को नियुक्त करेगा, जो कि इनके रक्षोपायों से संबंधित विषयों का अन्वेषन करेगा और उसे राष्ट्रपति को सौंपेगा, ताकि राष्ट्रपति उसे संसद या राज्य विधानमंडल के समक्ष रखवा सके।

अनुच्छेद 23 :- यह अनुच्छेद मानव दुर्व्यापार (human trafficking) एवं बलात श्रम (Forced labor) से बचाता है।

अनुच्छेद 244 :- इसके तहत पाँचवी एवं छठी अनुसूची के जितने भी उपबंध है वो असम, मेघालय, त्रिपुरा एवं मिज़ोरम सहित देश के अन्य राज्यों के भी अनुसूचित जातियों के क्षेत्र के प्रशासन एवं नियंत्रण को लागू होंगे।

अनुच्छेद 275 :- यह अनुच्छेद संविधान की पांचवीं और छठी अनुसूची के तहत आने वाले निर्दिष्ट राज्यों को सहायता अनुदान देने की बात करता है।

अनुच्छेद 330 :- यह अनुच्छेद अनुसूचित जाति को लोकसभा में आरक्षण देता है।

अनुच्छेद 332 :- यह अनुच्छेद राज्य विधानसभाओं में अनुसूचित जाति को आरक्षण देता है।

अनुच्छेद 243 D एवं 243 T :- इन दोनों अनुच्छेदों के तहत क्रमशः पंचायतों एवं नगरपालिकाओं में अनुसूचित जाति के लिए सीटों के आरक्षण की व्यवस्था की गई है।

समापन टिप्पणी (Closing Remarks):

हमने ऊपर विस्तार से समझा कि अनुसूचित जाति कौन है, कैसे तय किया जाता है और यह व्यवस्था क्यों बनाई गई है। साथ ही हमने अनुसूचित जाति आयोग के विभिन्न आयामों को भी समझा। दशकों बाद अब हम देख सकते हैं कि अनुसूचित जातियां मुख्य धारा में लौट रही है, और सरकार की इसमें महती भूमिका रही है;

सकारात्मक कार्रवाई: सरकार ने अनुसूचित जातियों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार के लिए विभिन्न सकारात्मक कार्रवाई कार्यक्रम और योजनाएं लागू की हैं। इन कार्यक्रमों में छात्रवृत्ति, आवास योजनाएं, रोजगार के अवसर और कौशल विकास पहल शामिल हैं। आरक्षण भी इसी का ही एक विस्तार है;

आरक्षण: अनुसूचित जाति के लिए सबसे महत्वपूर्ण प्रावधानों में से एक आरक्षण प्रणाली है। संविधान विभिन्न क्षेत्रों में उनका प्रतिनिधित्व और भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए शैक्षणिक संस्थानों, सरकारी नौकरियों और विधायी निकायों (संसद और राज्य विधानमंडल) में आरक्षण प्रदान करता है। विस्तार से समझेंआरक्षण : आधारभूत समझ

अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम: एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989, एक विशिष्ट कानून है जिसका उद्देश्य अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के खिलाफ अत्याचार और हिंसा को रोकना है। इसमें ऐसे अपराध करने वालों के लिए सजा का प्रावधान है। इसके बारे में विस्तार से समझने के लिए पढ़ें – Article 17 of Indian Constitution

राजनीतिक प्रतिनिधित्व: भारत में अनुसूचित जातियों का महत्वपूर्ण राजनीतिक प्रतिनिधित्व है, और विधायी निकायों (राष्ट्रीय और राज्य दोनों स्तरों पर) में आरक्षित सीटों ने राजनीतिक प्रक्रिया में उनकी भागीदारी को सक्षम किया है।

हालांकि इन सब से बावजूद भी अभी भी कई चुनौतियाँ है;

चुनौतियाँ: कानूनी सुरक्षा और सकारात्मक कार्रवाई के बावजूद, अनुसूचित जाति को भेदभाव, गरीबी, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुंच और सामाजिक बहिष्कार से संबंधित चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। देश के कुछ हिस्सों में अभी भी जाति-आधारित भेदभाव और हिंसा की खबरें आती हैं।

सशक्तिकरण: वर्षों से, शिक्षा और जागरूकता कार्यक्रमों, भूमि सुधारों और आर्थिक विकास पहलों के माध्यम से अनुसूचित जातियों को सशक्त बनाने के प्रयास किए गए हैं। इन प्रयासों को और भी तेज करने की जरूरत है।

कुल मिलाकर सामाजिक न्याय और समानता की दिशा में भारत की यात्रा में अनुसूचित जातियाँ (SC) ध्यान का केंद्र बनी हुई हैं। बहुत कुछ किया गया है, बहुत कुछ किया जाना बांकी है।

अनुसूचित जातियों के मामले में आरक्षण किस तरह से काम करता है इसके लिए आप नीचे दिये गए लेख को पढ़ सकते हैं।

आरक्षण : आधारभूत समझ[1/4]
आरक्षण का संवैधानिक आधार[2/4]
आरक्षण का विकास क्रम[3/4]
आरक्षण के पीछे का गणित यानी कि रोस्टर सिस्टम[4/4]

तो कुल मिलाकर यही था राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (NCSC); उम्मीद है समझ में आया होगा। आरक्षण के संबंध में सम्पूर्ण जानकारी के लिए दिए गए लेख को अवश्य पढ़ें।

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राज्य लोक सेवा आयोग
केंद्रीय अन्वेषन ब्यूरो – CBI
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग
राज्य मानवाधिकार आयोग
केंद्रीय सतर्कता आयोग
केन्द्रीय सूचना आयोग
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक
वित्त आयोग | अनुच्छेद 280
राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग
राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग
Commissions in India
झंडे फहराने के सारे नियम-कानून
क्या आप खुद को शिक्षित मानते है?
भारत में आरक्षण [1/4]
आरक्षण का संवैधानिक आधार [2/4]
आरक्षण का विकास क्रम [3/4]
रोस्टर – आरक्षण के पीछे का गणित [4/4]
क्रीमी लेयर : पृष्ठभूमि, सिद्धांत, तथ्य…

References,
http://ncsc.nic.in/
https://en.wikipedia.org/wiki/National_Commission_for_Scheduled_Castes
https://legislative.gov.in/sites/default/files/COI.pdf
Constitution of India
Commentary on constitution (fundamental rights) – d d basu
https://en.wikipedia.org/wiki/Reservation_in_India
FAQs Related to Reservation
https://dopt.gov.in/sites/default/files/FAQ_SCST.pdf
https://ncst.gov.in/sites/default/files/documents/ncst_reports/first_annual_report_of_ncst/Part%20I%20-%20Ist%20Report%20NCST%20-%20Hindi3656828737.pdf
https://ncst.gov.in/sites/default/files/documents/ncst_reports/first_annual_report_of_ncst/PART%20I%20-%20Ist%20Report%20NCST%202004-20059484175791.pdf