मुख्यमंत्री बेलगाम न हो जाए इसके लिए राज्यपाल की जरूरत पड़ती है। कहने का अर्थ ये है कि राज्यपाल की शक्तियां (Powers of Governor) इतनी होती है कि वो मुख्यमंत्री को अनियंत्रित होने से रोक सकता है।
राज्यपाल राज्य के संवैधानिक प्रमुख के रूप में काम करते हैं और राज्य के भीतर संविधान को बनाए और बचाए रखने की ज़िम्मेदारी उठाते हैं।
इस लेख में हम राज्यपाल की शक्तियां एवं कार्य पर सरल और सहज चर्चा करेंगे एवं इसके विभिन्न महत्वपूर्ण पहलुओं को समझने की कोशिश करेंगे।
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राज्यपाल की शक्तियां एवं कार्य
राज्यपाल, राष्ट्रपति की तरह ही एक बॉडी है, इसीलिए इन दोनों में काफी कुछ समानताएं हैं। समानताएं इस सेंस में की जो काम राष्ट्रपति केन्द्रीय स्तर पर करता है कमोबेश वही काम राज्यपाल राज्य के स्तर पर करता है।
भारत संसदीय सरकार वाला एक संघीय देश है, जिसका अर्थ है कि केंद्र में संघीय सरकार है और राज्यों में चुनी हुई सरकारें हैं। प्रत्येक राज्य में एक राज्यपाल होता है जो राज्य का संवैधानिक प्रमुख होता है और राज्य स्तर पर भारत के राष्ट्रपति का प्रतिनिधित्व करता है।
राज्यपाल की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमंत्री की सलाह पर की जाती है। राज्यपाल का कार्यकाल पांच वर्ष का होता है, लेकिन राष्ट्रपति कार्यकाल पूरा होने से पहले राज्यपाल को पद से हटा सकता है।
राज्यपाल को राष्ट्रपति के अनुरूप ही कार्यकारी, विधायी, वित्तीय और न्यायिक शक्तियाँ प्राप्त होती हैं। हालांकि राष्ट्रपति की कुछ ऐसी शक्तियाँ है जो राज्यपाल को नहीं मिलती है जैसे कि – कूटनीतिक शक्तियाँ, सैन्य और आपातकालीन शक्तियाँ।
कुल मिलाकर कहें तो राज्यपाल के पास मुख्यतः चार प्रकार की शक्तियाँ होती है। आइये इसे एक-एक करके देखते हैं।
कार्यकारी शक्तियाँ (Executive Powers of Governor)
राज्यपाल की कार्यकारी शक्तियाँ इस प्रकार हैं –
1. राज्य सरकार के सभी कार्यकारी कार्य औपचारिक रूप से राज्यपाल के नाम पर होते हैं। यानी कि राज्यपाल, राज्य का संवैधानिक प्रमुख होता है। राज्यपाल की कार्यपालक शक्तियों का वर्णन अनुच्छेद 154 में किया गया है।
2. वह इस संबंध में नियम बना सकता है कि उसके नाम से किये गए कार्य, आदेश और अन्य प्रपत्र कैसे प्रमाणित होंगे।
3. वह राज्य सरकार के कार्य के लेन-देन की अधिक सुविधाजनक और उक्त कार्य के मंत्रियों में आवंटन हेतु नियम बना सकता है
4. वह मुख्यमंत्री एवं अन्य मंत्रियों सहित राज्य के महाधिवक्ता को भी नियुक्त करता है वे सब राज्यपाल के प्रसाद्पर्यंत पद धारण करते हैं।
5. वह राज्य निर्वाचन आयुक्त को नियुक्त करता है और उसकी सेवा शर्तें और कार्यावधि तय करता है। कुछ विशेष स्थितियों में राज्य निर्वाचन आयुक्त को उसी तरह हटाया जा सकता है जैसे उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को।
इस तरह से वह राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों को भी नियुक्त करता है लेकिन उसे सिर्फ राष्ट्रपति ही हटा सकता है, न कि राज्यपाल
6. वह मुख्यमंत्री से प्रशासनिक मामलों या किसी विधायी प्रस्ताव की जानकारी प्राप्त कर सकता है साथ ही यदि किसी मंत्री ने कोई निर्णय लिया हो और मंत्रिपरिषद ने उस पर संज्ञान न लिया हो तो राज्यपाल, मुख्यमंत्री से उस मामले पर विचार करने की मांग कर सकता है।
7. वह राष्ट्रपति से राज्य में संवैधानिक आपातकाल के लिए सिफ़रिश कर सकता है। राज्य में राष्ट्रपति शासन के दौरान उसकी कार्यकारी शक्तियों का विस्तार राष्ट्रपति के प्रतिनिधि के रूप में हो जाता है
8. वह राज्य के विश्वविद्यालयों का कुलाधिपति (Chancellor) होता है, वह राज्य के विश्वविद्यालयों के कुलपतियों (Vice chancellors) की नियुक्त करता है।
विधायी शक्तियाँ (Legislative Powers of Governor)
राज्यपाल, राज्य विधानसभा का अभिन्न अंग होता है। इस नाते उसकी निम्नलिखित विधायी शक्तियाँ एवं कार्य होते हैं –
1. वह राज्य विधान सभा के सत्र को आहूत या सत्रावसान और विघटित कर सकता है साथ ही वह विधानमंडल के प्रत्येक चुनाव के पश्चात पहले और प्रतिवर्ष के पहले सत्र को संबोधित कर सकता है
2. वह किसी सदन या विधानमंडल के सदनों को विचाराधीन विधेयकों या अन्य किसी मसले पर संदेश भेज सकता है
3. जब विधानसभा अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का पद खाली हो तो वह विधानसभा के किसी सदस्य को कार्यवाही सुनिश्चित करने के लिए नियुक्त कर सकता है
4. जिस राज्य में विधानपरिषद होता है, उस राज्य के विधानपरिषद के कुल सदस्यों के छठे भाग को वह नामित कर सकता है, जिन्हे साहित्य, विज्ञान, कला, सहकारिता आंदोलन और समाज सेवा का ज्ञान हो या इसका व्यावहारिक अनुभव हो
5. विधानसभा सदस्य की निरर्हता के मुद्दे पर निर्वाचन आयोग से विमर्श करने के बाद वह इसका निर्णय करता है।
6. जब भी राज्य विधानमंडल द्वारा पारित किसी विधेयक को राज्यपाल के पास भेजा जाता है तो वह-
(1) वह विधेयक को स्वीकार कर सकता है, या
(2) स्वीकृति के लिए उसे रोक सकता है, या
(3) विधेयक को (यदि यह धन-संबंधी विधेयक न हो) विधानमंडल के पास पुनर्विचार के लिए वापस कर सकता है। हालांकि अगर राज्य विधानमंडल द्वारा पुनः बिना परिवर्तन के विधेयक को पास कर दिया जाता है तो राज्यपाल को अपनी स्वीकृति देनी होती है और
(4) विधेयक को राष्ट्रपति के विचार के लिए सुरक्षित रख सकता है। एक ऐसे मामले में इसे सुरक्षित रखना अनिवार्य है, जहां राज्य विधानमंडल द्वारा पारित विधेयक उच्च न्यायालय की स्थिति को खतरे में डालता है।
इसके अलावा यदि निम्नलिखित परिस्थितियाँ हों तब भी राज्यपाल विधेयक को सुरक्षित रख सकता है जैसे कि – अगर कानून संविधान के उपबंधों के विरुद्ध हो, राज्य नीति के निदेशक तत्वों के विरुद्ध हो, देश के व्यापक हित के विरुद्ध हो आदि।
7. जब राज्य विधानमंडल का सत्र न चल रह तो वह औपचारिक रूप से अनुच्छेद 213 के तहत अध्यादेश की घोषणा कर सकता है।
इन विधेयकों की राज्य विधानमंडल से छह हफ्तों के भीतर स्वीकृति होनी आवश्यक है। वह किसी भी समय किसी अध्यादेश को समाप्त भी कर सकता है।
8. वह राज्य के लेखों से संबन्धित राज्य वित्त आयोग, राज्य लोकसभा आयोग और नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट को राज्य विधानसभा के सामने प्रस्तुत करता है।
वित्तीय शक्तियां (Financial Powers of Governor)
राज्यपाल की वित्तीय शक्तियाँ एवं कार्य इस प्रकार हैं –
1. वह सुनिश्चित करता है कि वार्षिक वित्तीय विवरण (जिसे कि बजट भी कहा जाता है) को राज्य विधानमंडल के सामने रखा जाये।
2. धन विधेयकों (Money bills) को राज्य विधानसभा में उसकी पूर्व सहमति के बाद ही प्रस्तुत किया जा सकता है।
3. बिना राज्यपाल के सहमति के किसी तरह के अनुदान की मांग नहीं की जा सकती।
4. पंचायतों एवं नगरपालिका की वित्तीय स्थिति की हर पाँच वर्ष समीक्षा के लिए वह वित्त आयोग का गठन करता है।
न्यायिक शक्तियाँ (Judicial Powers of Governor)
राज्यपाल की न्यायिक शक्तियाँ एवं कार्य इस प्रकार हैं –
1. राज्य के राज्यपाल को उस विषय संबंधी, जिस विषय पर उस राज्य की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार है, किसी विधि के विरुद्ध किसी अपराध के लिए दोषसिद्ध व्यक्ति के दंड को क्षमा, उसका प्रतिलंबन, विराम या परिहार (Avoidance) करने की शक्ति होती है। इस पर एक अलग से लेख उपलब्ध है आप ↗️उसे जरूर देखें।
2. राष्ट्रपति, राज्यपाल द्वारा संबन्धित राज्य के उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की नियुक्त के मामले में राज्यपाल से विचार कर सकता है।
3. वह राज्य न्यायालय के साथ विचार कर जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति, स्थानांतरण और प्रोन्नति कर सकता है।
4. वह राज्य न्यायिक आयोग से जुड़े लोगों की नियुक्त भी करता है (जिला न्यायाधीशों को छोड़कर) इन नियुक्तियों में वह राज्य उच्च न्यायालय और राज्य लोकसभा आयोग से विचार करता है।
समापन टिप्पणी
भारत में राज्यपाल देश की संघीय सरकार प्रणाली में एक महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। वे प्रधान मंत्री की सलाह पर भारत के राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किए जाते हैं और राज्य के संवैधानिक प्रमुख के रूप में कार्य करते हैं।
उनकी भूमिकाओं और जिम्मेदारियों को भारतीय संविधान द्वारा स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया है और वे केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के बीच एक कड़ी के रूप में कार्य करते हैं।
राज्यपाल की शक्तियों में मुख्यमंत्री और अन्य मंत्रियों को नियुक्त करना, राज्य विधानमंडल को बुलाना और सत्रावसान करना, राज्य विधानमंडल द्वारा पारित विधेयकों को स्वीकृति देना और विभिन्न संवैधानिक और वैधानिक निकायों में नियुक्तियां करना शामिल है।
कुल मिलाकर, भारत में राज्यपाल सरकार की देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था की अखंडता और कामकाज को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
उम्मीद है आपको राष्ट्रपति की शक्तियां एवं कार्य (Powers of Governor) समझ में आया होगा। संबन्धित अन्य लेखों को अवश्य पढ़ें और इस लेख को शेयर जरूर करें;
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