यह लेख Article 224A (अनुच्छेद 224A) का यथारूप संकलन है। आप इस मूल अनुच्छेद का हिन्दी और इंग्लिश दोनों संस्करण पढ़ सकते हैं। आप इसे अच्छी तरह से समझ सके इसीलिए इसकी व्याख्या भी नीचे दी गई है आप उसे जरूर पढ़ें, और MCQs भी सॉल्व करें।
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📜 अनुच्छेद 224A (Article 224A) – Original
भाग 6 “राज्य” [अध्याय 5 — राज्य का विधान मंडल] [राज्यों के उच्च न्यायालय] |
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1[224A. उच्च न्यायालयों की बैठकों में सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की नियुक्ति — इस अध्याय में किसी बात के होते हुए भी, 2[“राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग किसी राज्य के उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति द्वारा उसे किए गए किसी निर्देश पर, राष्ट्रपति की पूर्व सहमति से,] किसी व्यक्ति से, जो उस उच्च न्यायालय या किसी अन्य उच्च न्यायालय के न्यायाधीश का पद धारण कर चुका है, उस राज्य के उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में बैठने और कार्य करने का अनुरोध कर सकेगा और प्रत्येक ऐसा व्यक्ति, जिससे इस प्रकार अनुरोध किया जाता है, इस प्रकार बैठने और कार्य करने के दौरान ऐसे भत्तों का हकदार हाँगा जो राष्ट्रपति आदेश द्वारा अवधारित करे और उसको उस उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की सभी अधिकारिता, शक्तियां और विशेषाधिकार होंगे, किंतु उसे अन्यथा उस उच्च न्यायालय का न्यायाधीश नहीं समझा जाएगा; परंतु जब तक यथापूर्वोक्त व्यक्ति उस उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में बैठने और कार्य करने की सहमति नहीं दे देता है तब तक इस अनुच्छेद की कोई बात उससे ऐसा करने की अपेक्षा करने वाली नहीं समझी जाएगी।] ============== 1. संविधान (पंद्रहवां संशोधन) अधिनियम, 1963 की धारा 7 द्वारा अंतःस्थापित । 2. संविधान (निन्यानवेवां संशोधन) अधिनियम, 2014 की धारा 8 द्वारा (13-4-2015 से) “किसी राज्य के उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायमूर्ति, किसी भी समय, राष्ट्रपति की पूर्व सहमति से” के स्थान पर प्रतिस्थापित। यह संशोधन सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स आन रिकार्ड एसोसिएशन बनाम भारत संघ ए.आई.आर. 2016 एस.सी. 117 में उच्चतम न्यायालय के तारीख 16 अक्तूबर, 2015 के आदेश द्वारा अभिखंडित कर दिया गया है। |
Part VI “State” [CHAPTER V — The State Legislature] [The High Courts in the States] |
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1[224A. Appointment of retired Judges at sittings of High Courts— Notwithstanding anything in this Chapter, 2[the National Judicial Appointments Commission on a reference made to it by the Chief Justice of a High Court for any State, may with the previous consent of the President], request any person who has held the office of a Judge of that Court or of any other High Court to sit and act as a Judge of the High Court for that State, and every such person so requested shall, while so sitting and acting, be entitled to such allowances as the President may by order determine and have all the jurisdiction, powers and privileges of, but shall not otherwise be deemed to be, a Judge of that High Court: Provided that nothing in this article shall be deemed to require any such person as aforesaid to sit and act as a Judge of that High Court unless he consents so to do.] ======================= 1. . Ins. by s. 7, ibid. (w.e.f. 5-10-1963). 2. Subs. by the Constitution (Ninety-ninth Amendment) Act, 2014, s. 9, for “the Chief Justice of a High Court for any State may at any time, with the previous consent of the President” (w.e.f. 13-4-2015). This amendment has been struck down by the Supreme Court in the case of Supreme Court Advocates-on-Record Association and Another Vs. Union of India in its judgment dated 16-10-2015, AIR 2016 SC 117. |
🔍 Article 224A Explanation in Hindi
भारतीय संविधान का भाग 6, अनुच्छेद 152 से लेकर अनुच्छेद 237 तक कुल 6 अध्यायों (Chapters) में विस्तारित है (जिसे कि आप नीचे टेबल में देख सकते हैं)।
Chapters | Title | Articles |
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I | साधारण (General) | Article 152 |
II | कार्यपालिका (The Executive) | Article 153 – 167 |
III | राज्य का विधान मंडल (The State Legislature) | Article 168 – 212 |
IV | राज्यपाल की विधायी शक्ति (Legislative Power of the Governor) | Article 213 |
V | राज्यों के उच्च न्यायालय (The High Courts in the States) | Article 214 – 232 |
VI | अधीनस्थ न्यायालय (Subordinate Courts) | Article 233 – 237 |
जैसा कि आप ऊपर देख सकते हैं, इस भाग के अध्याय 5 का नाम है “राज्यों के उच्च न्यायालय (The High Courts in the States)” और इसका विस्तार अनुच्छेद 214 से लेकर 232 तक है। इस लेख में हम अनुच्छेद 224A को समझने वाले हैं;
⚫ अनुच्छेद 128 – भारतीय संविधान |
| अनुच्छेद 224A – उच्च न्यायालयों की बैठकों में सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की नियुक्ति (Appointment of retired Judges at sittings of High Courts)
न्याय (Justice) लोकतंत्र का एक आधारभूत स्तंभ है क्योंकि यह व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा करता है, कानून के शासन को बनाए रखता है, संघर्ष के समाधान की सुविधा देता है और निष्पक्षता और समानता को बढ़ावा देता है। यह लोकतांत्रिक संस्थानों को मजबूत करता है और समाज की समग्र भलाई और स्थिरता में योगदान देता है।
भारत में इसे सुनिश्चित करने के लिए संविधान द्वारा एकीकृत न्यायिक व्यवस्था (Integrated Judiciary System) की शुरुआत की गई है। इस व्यवस्था में उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) सबसे शीर्ष पर आता है, उसके बाद राज्यों उच्च न्यायालय (High Court) आता है और फिर उसके बाद जिलों का अधीनस्थ न्यायालय (Subordinate Court)।
संविधान का भाग 6, अध्याय V, राज्यों के उच्च न्यायालय की बात करता है। जिस तरह से अनुच्छेद 128 के तहत उच्चतम न्यायालय के बैठकों में सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की उपस्थिति का प्रावधान है उसी तरह से अनुच्छेद 224A के तहत उच्च न्यायालयों की बैठकों में सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की नियुक्ति का वर्णन है।
अनुच्छेद 224A मूल रूप से संविधान का भाग नहीं था बल्कि इसे संविधान (पंद्रहवां संशोधन) अधिनियम, 1963 से अंतःस्थापित (Insert) किया गया है।
अनुच्छेद 224A के तहत कहा गया है कि इस अध्याय में किसी बात के होते हुए भी, किसी राज्य के उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति, किसी भी समय, राष्ट्रपति की पूर्व सहमति से, किसी व्यक्ति से, जो उस उच्च न्यायालय या किसी अन्य उच्च न्यायालय के न्यायाधीश का पद धारण कर चुका है, उस राज्य के उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में बैठने और कार्य करने का अनुरोध कर सकेगा और प्रत्येक ऐसा व्यक्ति, जिससे इस प्रकार अनुरोध किया जाता है, इस प्रकार बैठने और कार्य करने के दौरान ऐसे भत्तों का हकदार हाँगा जो राष्ट्रपति आदेश द्वारा अवधारित करे और उसको उस उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की सभी अधिकारिता, शक्तियां और विशेषाधिकार होंगे, किंतु उसे अन्यथा उस उच्च न्यायालय का न्यायाधीश नहीं समझा जाएगा।
कहने का अर्थ है कि अनुच्छेद 224 (क) के तहत उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश, किसी भी समय उस उच्च न्यायालय अथवा किसी अन्य उच्च न्यायालय के सेवानिवृत न्यायाधीश को अस्थायी अवधि के लिए बतौर कार्यकारी न्यायाधीश काम करने के लिए कह सकते है।
हालांकि उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश ऐसा राष्ट्रपति की पूर्व संस्तुति एवं संबन्धित व्यक्ति (जिसे न्यायाधीश बनने को कहा जा रहा है) की मंजूरी के बाद ही कर सकता है।
अगर इस तरह से किसी सेवानिवृत व्यक्ति को न्यायाधीश बनाया जाता है तो ऐसे न्यायाधीश राष्ट्रपति द्वारा तय भत्तों का अधिकारी होता है। उसे उच्च न्यायालय के सभी न्यायिक क्षेत्र, शक्तियाँ एवं सुविधाएं और विशेषाधिकार प्राप्त होते हैं, लेकिन वह उस उच्च न्यायालय का न्यायाधीश नहीं माना जाता।
तो यही है अनुच्छेद 224A , उम्मीद है आपको समझ में आया होगा। दूसरे अनुच्छेदों को समझने के लिए नीचे दिए गए लिंक का इस्तेमाल कर सकते हैं।
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अस्वीकरण – यहाँ प्रस्तुत अनुच्छेद और उसकी व्याख्या, मूल संविधान (उपलब्ध संस्करण), संविधान पर डी डी बसु की व्याख्या (मुख्य रूप से), प्रमुख पुस्तकें (एम. लक्ष्मीकान्त, सुभाष कश्यप, विद्युत चक्रवर्ती, प्रमोद अग्रवाल इत्यादि) एनसाइक्लोपीडिया, संबंधित मूल अधिनियम और संविधान के विभिन्न ज्ञाताओं (जिनके लेख समाचार पत्रों, पत्रिकाओं एवं इंटरनेट पर ऑडियो-विजुअल्स के रूप में उपलब्ध है) पर आधारित है। हमने बस इसे रोचक और आसानी से समझने योग्य बनाने का प्रयास किया है। |