यह लेख Article 197 (अनुच्छेद 197) का यथारूप संकलन है। आप इस मूल अनुच्छेद का हिन्दी और इंग्लिश दोनों संस्करण पढ़ सकते हैं। आप इसे अच्छी तरह से समझ सके इसीलिए इसकी व्याख्या भी नीचे दी गई है आप उसे जरूर पढ़ें, और MCQs भी सॉल्व करें।

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📜 अनुच्छेद 197 (Article 197) – Original

भाग 6 “राज्य” [अध्याय 3 — राज्य का विधान मंडल] [विधायी प्रक्रिया]
197. धन विधेयकों से भिन्‍न विधेयकों के बारे में विधान परिषद्‌ की शक्तियों पर निर्बंधन —(1) यदि विधान परिषद्‌ वाले राज्य की विधान सभा द्वारा किसी विधेयक के पारित किए जाने और विधान परिषद्‌ को पारेषित किए जाने के पश्चात्‌
(क) विधान परिषद्‌ द्वारा विधेयक अस्वीकार कर दिया जाता है, या
(ख) विधान परिषद्‌ के समक्ष विधेयक रखे जाने की तारीख से, उसके द्वारा विधेयक पारित किए बिना, तीन मास से अधिक बीत गए हैं, या
(ग) विधान परिषद्‌ द्वारा विधेयक ऐसे संशोधनों सहित पारित किया जाता है जिनसे विधान सभा सहमत नहीं होती है,
तो विधान सभा विधेयक को, अपनी प्रक्रिया का विनियमन करने वाले नियमों के अधीन रहते हुए, उसी या किसी पश्चातवर्ती सत्र में ऐसे संशोधनों सहित या उसके बिना, यदि कोई हो, जो विधान परिषद्‌ ने किए हैं, सुझाए हैं या जिनसे विधान परिषद्‌ सहमत है, पुनःपारित कर सकेगी और तब इस प्रकार पारित विधेयक को विधान परिषद्‌ को पारेषित कर सकेगी।

(2) यदि विधान सभा द्वारा विधेयक इस प्रकार दुबारा पारित कर दिए जाने और विधान परिषद्‌ को पारेषित किए जाने के पश्चात्‌

(क) विधान परिषद्‌ द्वारा विधेयक अस्वीकार कर दिया जाता है, या
(ख) विधान परिषद्‌ के समक्ष विधेयक रखे जाने की तारीख से, उसके द्वारा विधेयक पारित किए बिना, एक मास से अधिक बीत गया है, या
(ग) विधान परिषद्‌ द्वारा विधेयक ऐसे संशोधनों सहित पारित किया जाता है जिनसे विधान सभा सहमत नहीं होती है,
तो विधेयक राज्य के विधान-मंडल के सदनों द्वारा ऐसे संशोधनों सहित, यदि कोई हों, जो विधान परिषद्‌ ने किए हैं या सुझाए हैं और जिनसे विधान सभा सहमत है, उस रूप में पारित किया गया समझा जाएगा जिसमें वह विधान सभा द्वारा दुबारा पारित किया गया था।

(3) इस अनुच्छेद की कोई बात धन विधेयक को लागू नहीं होगी।
अनुच्छेद 197 हिन्दी संस्करण

Part VI “State” [CHAPTER III — The State Legislature] [Legislative Procedure]
197. Provisions as to introduction and passing of Bills— (1) If after a Bill has been passed by the Legislative Assembly of a State having a Legislative Council and transmitted to the Legislative Council—
(a) the Bill is rejected by the Council; or
(b) more than three months elapse from the date on which the Bill is laid before the Council without the Bill being passed by it; or
(c) the Bill is passed by the Council with amendments to which the Legislative Assembly does not agree;
the Legislative Assembly may, subject to the rules regulating its procedure, pass the Bill again in the same or in any subsequent session with or without such amendments, if any, as have been made, suggested or agreed to by the Legislative Council and then transmit the Bill as so passed to the Legislative Council.

(2) If after a Bill has been so passed for the second time by the Legislative Assembly and transmitted to the Legislative Council—
(a) the Bill is rejected by the Council; or
(b) more than one month elapses from the date on which the Bill is laid before the Council without the Bill being passed by it; or
(c) the Bill is passed by the Council with amendments to which the Legislative Assembly does not agree;
the Bill shall be deemed to have been passed by the Houses of the Legislature of the State in the form in which it was passed by the Legislative Assembly for the second time with such amendments, if any, as have been made or suggested by the Legislative Council and agreed to by the Legislative Assembly.
(3) Nothing in this article shall apply to a Money Bill.
Article 197 English Version

🔍 Article 197 Explanation in Hindi

भारतीय संविधान का भाग 6, अनुच्छेद 152 से लेकर अनुच्छेद 237 तक कुल 6 अध्यायों (Chapters) में विस्तारित है (जिसे कि आप नीचे टेबल में देख सकते हैं)।

ChaptersTitleArticles
Iसाधारण (General)Article 152
IIकार्यपालिका (The Executive)Article 153 – 167
IIIराज्य का विधान मंडल (The State Legislature)Article 168 – 212
IVराज्यपाल की विधायी शक्ति (Legislative Power of the Governor)Article 213
Vराज्यों के उच्च न्यायालय (The High Courts in the States)Article 214 – 232
VIअधीनस्थ न्यायालय (Subordinate Courts)Article 233 – 237
[Part 6 of the Constitution]

जैसा कि आप ऊपर देख सकते हैं, इस भाग के अध्याय 3 का नाम है “राज्य का विधान मंडल (The State Legislature)” और इसका विस्तार अनुच्छेद 158 से लेकर अनुच्छेद 212 तक है।

इस अध्याय को आठ उप-अध्यायों (sub-chapters) में बांटा गया है, जिसे कि आप नीचे चार्ट में देख सकते हैं;

Chapter 3 [Sub-Chapters]Articles
साधारण (General)Article 168 – 177
राज्य के विधान मण्डल के अधिकारी (Officers of the State Legislature)Article 178 – 187
कार्य संचालन (Conduct of Business)Article 188 – 189
सदस्यों की निरर्हताएं (Disqualifications of Members)Article 190 – 193
राज्यों के विधान-मंडलों और उनके सदस्यों की शक्तियां, विशेषाधिकार और उन्मुक्तियां (Powers, privileges and immunities of State Legislatures and their members)Article 194 – 195
विधायी प्रक्रिया (Legislative Procedure)Article 196 – 201
वित्तीय विषयों के संबंध में प्रक्रिया (Procedure in respect of financial matters)Article 202 – 207
साधारण प्रक्रिया (Procedure Generally)Article 208 – 212
[Part 6 of the Constitution]

इस लेख में हम विधायी प्रक्रिया (Legislative Procedure) के तहत आने वाले अनुच्छेद 197 को समझने वाले हैं।

अनुच्छेद 107 – भारतीय संविधान
Closely Related to Article 197

| अनुच्छेद 197 – धन विधेयकों से भिन्‍न विधेयकों के बारे में विधान परिषद्‌ की शक्तियों पर निर्बंधन (Provisions as to introduction and passing of Bills)

भारत एक संघीय व्यवस्था वाला देश है यानी कि यहाँ केंद्र सरकार की तरह राज्य सरकार भी होता है और जिस तरह से केंद्र में विधायिका (Legislature) होता है उसी तरह से राज्य का भी अपना एक विधायिका होता है।

केन्द्रीय विधायिका (Central Legislature) को भारत की संसद (Parliament of India) कहा जाता है। यह एक द्विसदनीय विधायिका है, जिसका अर्थ है कि इसमें दो सदन हैं: लोकसभा (लोगों का सदन) और राज्यसभा (राज्यों की परिषद)। इसी तरह से राज्यों के लिए भी व्यवस्था की गई है।

अनुच्छेद 168(1) के तहत प्रत्येक राज्य के लिए एक विधानमंडल (Legislature) की व्यवस्था की गई है और यह विधानमंडल एकसदनीय (unicameral) या द्विसदनीय (bicameral) हो सकती है।

अनुच्छेद 197, अनुच्छेद 196 के साथ ही पढ़ा जाता है क्योंकि दोनों एक-दूसरे के माध्यम से लागू होते हैं। इसीलिए पहले वाले को अवश्य समझ लें; अनुच्छेद 197 के तहत कुल तीन खंड है;

अनुच्छेद 197 के खंड (1) के तहत कहा गया है कि यदि विधान परिषद्‌ वाले राज्य की विधान सभा द्वारा किसी विधेयक के पारित किए जाने और विधान परिषद्‌ को भेजे जाने के पश्चात्‌ अगर निम्न में तीन चीज़ें होती है तो फिर विधान सभा विधेयक को, अपनी प्रक्रिया का विनियमन करने वाले नियमों के अधीन रहते हुए, उसी या किसी पश्चातवर्ती सत्र में ऐसे संशोधनों सहित या उसके बिना, यदि कोई हो, जो विधान परिषद्‌ ने किए हैं, सुझाए हैं या जिनसे विधान परिषद्‌ सहमत है, पुनःपारित कर सकेगी और तब इस प्रकार पारित विधेयक को विधान परिषद्‌ को भेज सकेगी;

(क) विधान परिषद्‌ द्वारा विधेयक अस्वीकार कर दिया जाता है, या
(ख) विधान परिषद्‌ के समक्ष विधेयक रखे जाने की तारीख से, उसके द्वारा विधेयक पारित किए बिना, तीन मास से अधिक बीत गए हैं, या
(ग) विधान परिषद्‌ द्वारा विधेयक ऐसे संशोधनों सहित पारित किया जाता है जिनसे विधान सभा सहमत नहीं होती है,

कहने का अर्थ ये है कि यदि विधान परिषद बिना संशोधन के विधेयक को पारित कर दे या विधानसभा उसके संशोधनों को मान ले तो विधेयक दोनों सदनों द्वारा पारित माना जाता है। जिसे राज्यपाल के पास स्वीकृत के लिए भेजा जाता है।

लेकिन इसके अतिरिक्त यदि विधानसभा, विधान परिषद के सुझावों को अस्वीकृत कर दे या विधान परिषद ही विधेयक को अस्वीकृत कर दे या परिषद तीन महीने तक कोई कार्यवाही न करे, तब विधानसभा फिर से इसे पारित कर परिषद को भेज सकती है। (यही इस खंड में कहा गया है)

अनुच्छेद 197 का खंड (2) इसी को और आगे बढ़ाता है और कहता है कि विधान सभा द्वारा दोबारा पारित कर भेजे गए विधेयक को यदि विधान परिषद दोबारा अस्वीकृत कर दे, या उसे उन संशोधन के साथ पारित कर दे जो विधानसभा को अस्वीकार हो, या एक माह के भीतर पास न करे तब इसे दोनों सदनों द्वार पारित माना जाता है क्योंकि विधानसभा ने इसे दूसरी बार पारित कर दिया।

इस तरह साधारण विधेयक पारित करने के संदर्भ में विधानसभा को विशेष शक्ति प्राप्त है। ज्यादा से ज्यादा परिषद एक विधेयक को चार माह के लिए रोक सकती है।

पहली बार में तीन माह के लिए और दूसरी बार में एक माह के लिए। संविधान में किसी विधेयक पर असहमति होने के मामले में दोनों सदनों की संयुक्त बैठक का प्रावधान नहीं रखा गया है।

कुल मिलाकर अनुच्छेद 197 का खंड (1) और (2) यही कहता है।

अनुच्छेद 197 का खंड (3) कहता है कि इस अनुच्छेद की कोई बात धन विधेयक (Money bill) को लागू नहीं होगी। ऐसा इसीलिए क्योंकि अनुच्छेद 198 के तहत धन विधेयक को केवल विधान सभा में ही पेश किया जा सकता है। और जब विधान सभा से पारित होने के बाद इसे विधान परिषद भेजा जाता है तो  विधान परिषद को 14 दिनों के भीतर अपनी सिफारिशों के साथ या बिना किसी सिफ़ारिश के विधेयक को विधान सभा में वापस करना होता है। नहीं तो वह विधेयक स्वतः ही विधान परिषद से पारित मानी जाती है।

तो यही है Article 197, उम्मीद है आपको समझ में आया होगा। दूसरे अनुच्छेदों को समझने के लिए नीचे दिए गए लिंक का इस्तेमाल कर सकते हैं।

राज्य विधानमंडल (State Legislature): गठन, कार्य, आदि
भारतीय संसद (Indian Parliament): Overview
Must Read

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Chapter Wise Polity Quiz

विधानमंडल में विधायी प्रक्रिया अभ्यास प्रश्न

  1. Number of Questions – 5 
  2. Passing Marks – 80 %
  3. Time – 4 Minutes
  4. एक से अधिक विकल्प सही हो सकते हैं।

1 / 5

दिए गए कथनों में से सही कथन का चुनाव करें;

  1. विधानमंडल के मामले में दोनों सदनों की संयुक्त बैठक की व्यवस्था नहीं है।
  2. यदि कोई विधेयक विधानपरिषद में निर्मित हो और उसे विधानसभा उसे अस्वीकृत कर दे तो विधेयक समाप्त हो जाता है।
  3. ज्यादा से ज्यादा परिषद एक विधेयक को चार माह के लिए रोक सकती है।
  4. विधानपरिषद को केंद्र में राज्यसभा को तुलना में कम अधिकार या महत्व दिया गया है।

2 / 5

दिए गए कथनों में से सही कथन का चुनाव करें;

  1. धन विधेयक विधानपरिषद में पेश नहीं किया जा सकता।
  2. राज्यपाल धन विधेयक को सिर्फ एक बार पुनर्विचार के लिए सदन को वापस भेज सकता है।
  3. ऐसा विधेयक जो विधान परिषद में लंबित हो लेकिन विधानसभा द्वारा पारित हो, को खारिज नहीं किया जा सकता।
  4. ऐसा विधेयक जो विधानसभा द्वारा पारित हो लेकिन राष्ट्रपति द्वारा सदन के पास पुनर्विचार हेतु लौटाया गया हो को समाप्त नहीं किया जा सकता।

3 / 5

जब कोई विधेयक विधानसभा से पारित होने के बाद विधान परिषद में भेजा जाता है तो परिषद इनमें से क्या नहीं कर सकता है?

  1. कुछ संशोधनों के बाद पारित कर परिषद विचारार्थ इसे विधानसभा को भेज सकता है।
  2. परिषद इस पर बिना किसी कारवाई के लंबित रख सकता है।
  3. परिषद तीन बार तक विधेयक को अस्वीकृत कर सकता है।
  4. परिषद विधेयक को ज्यादा से ज्यादा 6 महीने तक रोक के रख सकता है।

4 / 5

विधनमंडलीय प्रक्रिया के संबंध में दिए गए कथनों में से सही कथन का चुनाव करें;

  1. दो सत्रों के बीच 8 माह से अधिक का समय नहीं होना चाहिए।
  2. विधानसभा अध्यक्ष बैठक को किसी समय विशेष के लिए स्थगित कर सकता है।
  3. संसद की तरह राज्य विधानमंडल को भी वर्ष में कम से कम दो बार मिलना होता है।
  4. सत्र के बीच में सत्रावसान की घोषणा नहीं की जा सकती है।

5 / 5

विधानसभा में साधारण कानून बनाने की प्रक्रिया के संबंध में दिए गए कथनों में से सही कथन का चुनाव करें;

  1. विधेयक प्रारम्भिक सदन में संसद के विपरीत सिर्फ दो स्तरों से गुजरता है;. प्रथम पाठन एवं द्वितीय पाठन।
  2. दोनों स्तरों से गुजरने के बाद उस विधेयक को दूसरे सदन में भेज दिया जाता है।
  3. दूसरे सदन में उस विधेयक को तीन स्तरों से गुजरना होता है।
  4. एक सदनीय व्यवस्था वाले विधानमंडल में विधेयक पारित कर सीधे राज्यपाल के पास भेज दिया जाता है।

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अस्वीकरण – यहाँ प्रस्तुत अनुच्छेद और उसकी व्याख्या, मूल संविधान (उपलब्ध संस्करण), संविधान पर डी डी बसु की व्याख्या (मुख्य रूप से), प्रमुख पुस्तकें (एम. लक्ष्मीकान्त, सुभाष कश्यप, विद्युत चक्रवर्ती, प्रमोद अग्रवाल इत्यादि) एनसाइक्लोपीडिया, संबंधित मूल अधिनियम और संविधान के विभिन्न ज्ञाताओं (जिनके लेख समाचार पत्रों, पत्रिकाओं एवं इंटरनेट पर ऑडियो-विजुअल्स के रूप में उपलब्ध है) पर आधारित है। हमने बस इसे रोचक और आसानी से समझने योग्य बनाने का प्रयास किया है।