यह लेख Article 196 (अनुच्छेद 196) का यथारूप संकलन है। आप इस मूल अनुच्छेद का हिन्दी और इंग्लिश दोनों संस्करण पढ़ सकते हैं। आप इसे अच्छी तरह से समझ सके इसीलिए इसकी व्याख्या भी नीचे दी गई है आप उसे जरूर पढ़ें, और MCQs भी सॉल्व करें।

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📜 अनुच्छेद 196 (Article 196) – Original

भाग 6 “राज्य” [अध्याय 3 — राज्य का विधान मंडल] [विधायी प्रक्रिया]
196. विधेयकों के पुरःस्थापन और पारित किए जाने के संबंध में उपबंध — (1) धन विधेयकों और अन्य वित्त विधेयकों के संबंध में अनुच्छेद 198 और अनुच्छेद 207 के उपबंधों के अधीन रहते हुए, कोई विधेयक विधान परिषद्‌ वाले राज्य के विधान-मंडल के किसी भी सदन में आरंभ हो सकेगा।

(2) अनुच्छेद 197 और अनुच्छेद 198 के उपबंधों के अधीन रहते हुए, कोई विधेयक विधान परिषद्‌ वाले राज्य के विधान-मंडल के सदनों द्वारा तब तक पारित किया गया नहीं समझा जाएगा जब तक संशोधन के बिना या केवल ऐसे संशोधनों सहित, जिन पर दोनों सदन सहमत हो गए हैं, उस पर दोनों सदन सहमत नहीं हो जाते हैं ।

(3) किसी राज्य के विधान-मंडल में लंबित विधेयक उसके सदन या सदनों के सत्रावसान के कारण व्यपगत नहीं होगा।

(4) किसी राज्य की विधान परिषद्‌ में लंबित विधेयक, जिसको विधान सभा ने पारित नहीं किया है, विधान सभा के विघटन पर व्यपगत नहीं होगा।

(5) कोई विधेयक, जो किसी राज्य की विधान सभा में लंबित है या जो विधान सभा द्वारा पारित कर दिया गया है और विधान परिषद्‌ में लंबित है, विधान सभा के विघटन पर व्यपगत हो जाएगा।
अनुच्छेद 196 हिन्दी संस्करण

Part VI “State” [CHAPTER III — The State Legislature] [Legislative Procedure]
196. Provisions as to introduction and passing of Bills— (1) Subject to the provisions of articles 198 and 207 with respect to Money Bills and other financial Bills, a Bill may originate in either House of the Legislature of a State which has a Legislative Council.

(2) Subject to the provisions of articles 197 and 198, a Bill shall not be deemed to have been passed by the Houses of the Legislature of a State having a Legislative Council unless it has been agreed to by both Houses, either without amendment or with such amendments only as are agreed to by both Houses.

(3) A Bill pending in the Legislature of a State shall not lapse by reason of the prorogation of the House or Houses thereof.

(4) A Bill pending in the Legislative Council of a State which has not been passed by the Legislative Assembly shall not lapse on a dissolution of the Assembly.

(5) A Bill which is pending in the Legislative Assembly of a State, or which having been passed by the Legislative Assembly is pending in the Legislative Council, shall lapse on a dissolution of the Assembly.
Article 196 English Version

🔍 Article 196 Explanation in Hindi

भारतीय संविधान का भाग 6, अनुच्छेद 152 से लेकर अनुच्छेद 237 तक कुल 6 अध्यायों (Chapters) में विस्तारित है (जिसे कि आप नीचे टेबल में देख सकते हैं)।

ChaptersTitleArticles
Iसाधारण (General)Article 152
IIकार्यपालिका (The Executive)Article 153 – 167
IIIराज्य का विधान मंडल (The State Legislature)Article 168 – 212
IVराज्यपाल की विधायी शक्ति (Legislative Power of the Governor)Article 213
Vराज्यों के उच्च न्यायालय (The High Courts in the States)Article 214 – 232
VIअधीनस्थ न्यायालय (Subordinate Courts)Article 233 – 237
[Part 6 of the Constitution]

जैसा कि आप ऊपर देख सकते हैं, इस भाग के अध्याय 3 का नाम है “राज्य का विधान मंडल (The State Legislature)” और इसका विस्तार अनुच्छेद 158 से लेकर अनुच्छेद 212 तक है।

इस अध्याय को आठ उप-अध्यायों (sub-chapters) में बांटा गया है, जिसे कि आप नीचे चार्ट में देख सकते हैं;

Chapter 3 [Sub-Chapters]Articles
साधारण (General)Article 168 – 177
राज्य के विधान मण्डल के अधिकारी (Officers of the State Legislature)Article 178 – 187
कार्य संचालन (Conduct of Business)Article 188 – 189
सदस्यों की निरर्हताएं (Disqualifications of Members)Article 190 – 193
राज्यों के विधान-मंडलों और उनके सदस्यों की शक्तियां, विशेषाधिकार और उन्मुक्तियां (Powers, privileges and immunities of State Legislatures and their members)Article 194 – 195
विधायी प्रक्रिया (Legislative Procedure)Article 196 – 201
वित्तीय विषयों के संबंध में प्रक्रिया (Procedure in respect of financial matters)Article 202 – 207
साधारण प्रक्रिया (Procedure Generally)Article 208 – 212
[Part 6 of the Constitution]

इस लेख में हम विधायी प्रक्रिया (Legislative Procedure) के तहत आने वाले अनुच्छेद 196 को समझने वाले हैं।

अनुच्छेद 107 – भारतीय संविधान
Closely Related to Article 196

| अनुच्छेद 196 – विधेयकों के पुरःस्थापन और पारित किए जाने के संबंध में उपबंध (Provisions as to introduction and passing of Bills)

भारत एक संघीय व्यवस्था वाला देश है यानी कि यहाँ केंद्र सरकार की तरह राज्य सरकार भी होता है और जिस तरह से केंद्र में विधायिका (Legislature) होता है उसी तरह से राज्य का भी अपना एक विधायिका होता है।

केन्द्रीय विधायिका (Central Legislature) को भारत की संसद (Parliament of India) कहा जाता है। यह एक द्विसदनीय विधायिका है, जिसका अर्थ है कि इसमें दो सदन हैं: लोकसभा (लोगों का सदन) और राज्यसभा (राज्यों की परिषद)। इसी तरह से राज्यों के लिए भी व्यवस्था की गई है।

अनुच्छेद 168(1) के तहत प्रत्येक राज्य के लिए एक विधानमंडल (Legislature) की व्यवस्था की गई है और यह विधानमंडल एकसदनीय (unicameral) या द्विसदनीय (bicameral) हो सकती है।

जिस तरह से अनुच्छेद 107 के तहत केंद्र में विधेयकों के पुरःस्थापन और पारित किए जाने के संबंध में उपबंध के बारे में बताया गया है, उसी तरह से अनुच्छेद 196 के तहत राज्यों में विधेयकों के पुरःस्थापन और पारित किए जाने के संबंध में उपबंध के बारे में बताया गया है;

इस अनुच्छेद के तहत कुल चार खंड है;

Article 196(1) Explanation

अनुच्छेद 196(1) के अनुसार धन विधेयकों और अन्य वित्त विधेयकों के संबंध में अनुच्छेद 198 और अनुच्छेद 207 के उपबंधों के अधीन रहते हुए, कोई विधेयक विधान परिषद्‌ वाले राज्य के विधान-मंडल के किसी भी सदन में आरंभ हो सकेगा।

दूसरे शब्दों में कहें तो किसी विधेयक (Bill) को विधानमंडल के किसी भी सदन में पुरःस्थापित (introduced) किया जा सकता है। लेकिन धन विधेयकों और अन्य वित्त विधेयकों के संबंध में अनुच्छेद 198 और अनुच्छेद 207 के उपबंधों के अधीन रहते हुए।

दरअसल विधेयक सामान्यतः 4 प्रकार के होते हैं; (1) धन विधेयक (Money Bill), (2) वित्त विधेयक (Finance Bill), (3) साधारण विधेयक (Ordinary Bill) और संविधान संशोधन विधेयक (Constitutional Amendment Bill)।

इसमें से साधारण विधेयक को विधानमंडल (विधान सभा और विधान परिषद) के किसी भी सदन में पुरःस्थापित (introduce) किया जा सकता है। लेकिन धन विधेयक और वित्त विधेयक के मामलों में नियम थोड़ा सा अलग है। और इसीलिए इसे अनुच्छेद 198 और अनुच्छेद 207 के उपबंधों के अधीन रखा गया है। जहां तक बात है संविधान संशोधन विधेयक की तो विधानमंडल संविधान में संशोधन नहीं कर सकता है यह काम सिर्फ संसद ही कर सकता है।

अनुच्छेद 198 में बताया गया है कि धन विधेयक को विधान परिषद में पेश नहीं किया जा सकता है। यानि कि धन विधेयक को सिर्फ विधान सभा में पेश किया जा सकता है।

अनुच्छेद 207 में वित्त विधेयक (finance bill) के बारे में विशेष उपबंध किया गया है।

[अच्छे से समझने के लिए संबन्धित अनुच्छेदों (अनुच्छेद 110, 117 और धन विधेयक और वित्त विधेयक को पढ़ें ]

Article 196(2) Explanation

अनुच्छेद 196(2) के तहत कहा गया है कि अनुच्छेद 197 और अनुच्छेद 198 के उपबंधों के अधीन रहते हुए, कोई विधेयक विधान परिषद्‌ वाले राज्य के विधान-मंडल के सदनों द्वारा तब तक पारित किया गया नहीं समझा जाएगा जब तक संशोधन के बिना या केवल ऐसे संशोधनों सहित, जिन पर दोनों सदन सहमत हो गए हैं, उस पर दोनों सदन सहमत नहीं हो जाते हैं ।

सामान्य विधेयकों के लिए व्यवस्था यही है कि एक सदन में विधेयक को प्रस्तुत किया जाता है और वहाँ पर जरूरी बहस और काट-छांट के बाद पास कर दिया जाता है। फिर उसे दूसरे सदन को भेज दिया जाता है।

अगर सिर्फ एक ही सदन है (जो कि अधिकतर राज्यों में है) तो फिर सीधे राज्यपाल के पास स्वीकृति के लिए भेजा जाता है लेकिन अगर विधान परिषद भी है तो फिर यह कुछ-कुछ संसद की भांति ही काम करता है लेकिन अनुच्छेद 197 और अनुच्छेद 198 के अधीन रहकर।

दरअसल जहां दो सदन होता है वहां दूसरे सदन के पास चार विकल्प होता है;

(1) वह विधेयक को उसी रूप में पारित कर प्रथम सदन को भेज सकता है जैसा कि वो पहले था;
(2) वह विधेयक को संशोधन के साथ पारित करके प्रथन सदन को पुनः विचारार्थ भेज सकता है
(3) वह विधेयक को अस्वीकार कर सकता है, और
(4) वह विधेयक पर किसी भी प्रकार की कार्यवाही न करके उसे लंबित कर सकता है।

चूंकि राज्यों में यह प्रावधान अनुच्छेद 197 और अनुच्छेद 198 के अधीन काम करता है इसीलिए ये कुछ इस तरह से काम करता है;

⬛ यदि दूसरा सदन किसी प्रकार के संशोधन के साथ विधेयक को पारित कर देता है और प्रथम सदन उन संशोधनों को स्वीकार कर लेता है तो विधेयक दोनों सदनों द्वारा पारित समझा जाता है तथा इसे राज्यपाल की स्वीकृति के लिए भेज दिया जाता है।

इसके अतिरिक्त यदि विधानसभा परिषद के सुझावों को अस्वीकृत कर दे या परिषद ही विधेयक को अस्वीकृत कर दे या परिषद तीन महीने तक कोई कार्यवाही न करे, तब विधानसभा फिर से इसे पारित कर परिषद को भेज सकती है।

यदि परिषद दोबारा विधेयक को अस्वीकृत कर दे या उसे उन संशोधन के साथ पारित कर दे जो विधानसभा को अस्वीकार हो या एक माह के भीतर पास न करे तब इसे दोनों सदनों द्वार पारित माना जाता है क्योंकि विधानसभा ने इसे दूसरी बार पारित कर दिया।

इस तरह साधारण विधेयक पारित करने के संदर्भ में विधानसभा को विशेष शक्ति प्राप्त है। ज्यादा से ज्यादा परिषद एक विधेयक को चार माह के लिए रोक सकती है।

पहली बार में तीन माह के लिए और दूसरी बार में एक माह के लिए। संविधान में किसी विधेयक पर असहमति होने के मामले में दोनों सदनों की संयुक्त बैठक का प्रावधान नहीं रखा गया है।

◾ लेकिन धन विधेयकों के मामले में ऐसा नहीं होता है क्योंकि पहली बात तो इसे अनुच्छेद 198 के अनुसार, सिर्फ विधान सभा में पेश किया जा सकता है। और दूसरी बात ये कि जब इस विधेयक को विधान परिषद को भेजा जाता है तो विधान परिषद को 14 दिनों के भीतर अपनी सिफारिशों के साथ या बिना किसी विधेयक को विधान सभा में वापस करना होता है। नहीं तो वह विधेयक स्वतः ही विधान परिषद से पारित मानी जाती है।

कुल मिलाकर यहाँ बात ये है कि किसी विधेयक को तब तक दोनों सदनों से पारित नहीं समझा जाएगा जब तक कि दोनों सदन उस विधेयक पर सहमत न हो। भले ही सहमति उस विधेयक में संशोधन के साथ आए या संशोधन के बिना।

Article 196(3) Explanation

अनुच्छेद 196(3) के तहत यह कहा गया है कि किसी राज्य के विधान-मंडल में लंबित विधेयक उसके सदन या सदनों के सत्रावसान के कारण व्यपगत (Lapse) नहीं होगा।

सत्रावसान (Prorogation) का मतलब होता है उस सत्र की समाप्ति। इसीलिए अगर कोई विधेयक सत्र के समाप्ति के कारण लंबित हो गया हो तो वह समाप्त (lapse) नहीं होता है। यानि कि फिर दूसरे सत्र में उस पर आगे की कार्यवाही शुरू की जा सकती है।

Article 196(4) Explanation

अनुच्छेद 196(4) के तहत कहा गया है कि किसी राज्य की विधान परिषद्‌ में लंबित विधेयक, जिसको विधान सभा ने पारित नहीं किया है, विधान सभा के विघटन (dissolution) पर व्यपगत (Lapse) नहीं होगा।

अगर कोई विधेयक विधान परिषद में पेश किया गया है और वहाँ वह लंबित है पर इसी दौरान विधान सभा भंग (Dissolve) हो जाता है तो भी वह विधेयक समाप्त (lapse) नहीं होगा। ऐसा इसीलिए क्योंकि विधान परिषद कभी न खत्म होने वाली सदन है।

Article 196(5) Explanation

अनुच्छेद 196(5) के तहत व्यवस्था है कि कोई विधेयक, जो किसी राज्य की विधान सभा में लंबित है या जो विधान सभा द्वारा पारित कर दिया गया है और विधान परिषद्‌ में लंबित है, विधान सभा के विघटन पर व्यपगत हो जाएगा।

यहाँ दो बातें हैं;

पहली बात तो ये कि अगर कोई विधेयक विधान सभा में लंबित है तो विधान सभा के विघटन पर वह विधेयक समाप्त हो जाएगा।

दूसरी बात ये कि अगर कोई विधेयक विधान सभा द्वारा पारित कर दिया गया हो और विधान परिषद में लंबित हो तो भी वह विधेयक लोक सभा के विघटन पर समाप्त हो जाएगा।

तो यही है अनुच्छेद 196, उम्मीद है आपको समझ में आया होगा। दूसरे अनुच्छेदों को समझने के लिए नीचे दिए गए लिंक का इस्तेमाल कर सकते हैं।

राज्य विधानमंडल (State Legislature): गठन, कार्य, आदि
भारतीय संसद (Indian Parliament): Overview
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Chapter Wise Polity Quiz

विधानमंडल में विधायी प्रक्रिया अभ्यास प्रश्न

  1. Number of Questions – 5 
  2. Passing Marks – 80 %
  3. Time – 4 Minutes
  4. एक से अधिक विकल्प सही हो सकते हैं।

1 / 5

दिए गए कथनों में से सही कथन का चुनाव करें;

  1. धन विधेयक विधानपरिषद में पेश नहीं किया जा सकता।
  2. राज्यपाल धन विधेयक को सिर्फ एक बार पुनर्विचार के लिए सदन को वापस भेज सकता है।
  3. ऐसा विधेयक जो विधान परिषद में लंबित हो लेकिन विधानसभा द्वारा पारित हो, को खारिज नहीं किया जा सकता।
  4. ऐसा विधेयक जो विधानसभा द्वारा पारित हो लेकिन राष्ट्रपति द्वारा सदन के पास पुनर्विचार हेतु लौटाया गया हो को समाप्त नहीं किया जा सकता।

2 / 5

विधनमंडलीय प्रक्रिया के संबंध में दिए गए कथनों में से सही कथन का चुनाव करें;

  1. दो सत्रों के बीच 8 माह से अधिक का समय नहीं होना चाहिए।
  2. विधानसभा अध्यक्ष बैठक को किसी समय विशेष के लिए स्थगित कर सकता है।
  3. संसद की तरह राज्य विधानमंडल को भी वर्ष में कम से कम दो बार मिलना होता है।
  4. सत्र के बीच में सत्रावसान की घोषणा नहीं की जा सकती है।

3 / 5

जब कोई विधेयक विधानसभा से पारित होने के बाद विधान परिषद में भेजा जाता है तो परिषद इनमें से क्या नहीं कर सकता है?

  1. कुछ संशोधनों के बाद पारित कर परिषद विचारार्थ इसे विधानसभा को भेज सकता है।
  2. परिषद इस पर बिना किसी कारवाई के लंबित रख सकता है।
  3. परिषद तीन बार तक विधेयक को अस्वीकृत कर सकता है।
  4. परिषद विधेयक को ज्यादा से ज्यादा 6 महीने तक रोक के रख सकता है।

4 / 5

दिए गए कथनों में से सही कथन का चुनाव करें;

  1. विधानमंडल के मामले में दोनों सदनों की संयुक्त बैठक की व्यवस्था नहीं है।
  2. यदि कोई विधेयक विधानपरिषद में निर्मित हो और उसे विधानसभा उसे अस्वीकृत कर दे तो विधेयक समाप्त हो जाता है।
  3. ज्यादा से ज्यादा परिषद एक विधेयक को चार माह के लिए रोक सकती है।
  4. विधानपरिषद को केंद्र में राज्यसभा को तुलना में कम अधिकार या महत्व दिया गया है।

5 / 5

विधानसभा में साधारण कानून बनाने की प्रक्रिया के संबंध में दिए गए कथनों में से सही कथन का चुनाव करें;

  1. विधेयक प्रारम्भिक सदन में संसद के विपरीत सिर्फ दो स्तरों से गुजरता है;. प्रथम पाठन एवं द्वितीय पाठन।
  2. दोनों स्तरों से गुजरने के बाद उस विधेयक को दूसरे सदन में भेज दिया जाता है।
  3. दूसरे सदन में उस विधेयक को तीन स्तरों से गुजरना होता है।
  4. एक सदनीय व्यवस्था वाले विधानमंडल में विधेयक पारित कर सीधे राज्यपाल के पास भेज दिया जाता है।

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अस्वीकरण – यहाँ प्रस्तुत अनुच्छेद और उसकी व्याख्या, मूल संविधान (उपलब्ध संस्करण), संविधान पर डी डी बसु की व्याख्या (मुख्य रूप से), प्रमुख पुस्तकें (एम. लक्ष्मीकान्त, सुभाष कश्यप, विद्युत चक्रवर्ती, प्रमोद अग्रवाल इत्यादि) एनसाइक्लोपीडिया, संबंधित मूल अधिनियम और संविधान के विभिन्न ज्ञाताओं (जिनके लेख समाचार पत्रों, पत्रिकाओं एवं इंटरनेट पर ऑडियो-विजुअल्स के रूप में उपलब्ध है) पर आधारित है। हमने बस इसे रोचक और आसानी से समझने योग्य बनाने का प्रयास किया है।