विधानमंडल में विधायी प्रक्रिया संसद में कानून बनाने के ही समान है, लेकिन चूंकि विधानमंडल एक सदनीय भी हो सकता है और द्विसदनीय भी और कुछ क़ानूनों को पास होने के लिए राष्ट्रपति की स्वीकृति की भी जरूरत पड़ती है इसीलिए राज्य विधानमंडल के विधायी प्रक्रिया को उसी अनुरूप बनाया गया है।
इस लेख में हम विधानमंडल में विधायी प्रक्रिया (State Legislative Procedure) पर सरल और सहज चर्चा करेंगे। अच्छी तरह से समझने के लिए लेख को अंत तक जरूर पढ़ें। [संसद में कानून बनाने की पूरी प्रक्रिया]

विधानमंडलीय प्रक्रिया
सत्र आहूत करना – संसद की तरह राज्य विधानमंडल को भी वर्ष में कम से कम दो बार मिलना होता है और दो सत्रों बीच 6 माह से अधिक का समय नहीं होना चाहिए; इसका ख्याल रखना होता है इसीलिए राज्य विधानमंडल के प्रत्येक सदन को राज्यपाल समय-समय पर बैठक का बुलावा भेजता है। पहली बैठक से सत्र आरंभ हो जाता है।
स्थगन (adjournment) – बैठक को किसी समय विशेष के लिए स्थगित भी किया जा सकता है। यह समय घंटों, दिनों या हफ्तों का भी हो सकता है। ये समय, परिस्थिति और पीठासीन अधिकारी के निर्णय पर निर्भर करता है। अगर सत्र को अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दिया जाये तो इसका मतलब होता है चालू सत्र को अनिश्चित काल तक के लिए समाप्त कर देना।
सत्रावसान (prorogation) – पीठासीन अधिकारी कार्य सम्पन्न होने पर सत्र को अनिश्चित काल के लिए स्थगन की घोषणा करते है। इसके कुछ दिन बाद राष्ट्रपति सत्रावसान की अधिसूचना जारी करता है। हालांकि सत्र के बीच में भी राज्यपाल सत्रावसान की घोषणा कर सकता है। जहां स्थगन का मतलब होता है बैठक को कुछ समय के लिए टाल देना वहीं सत्रावसान सदन के सत्र को समाप्त करता है।
आइये अब जानते हैं कि किस तरह एक साधारण विधेयक कानून बन जाता है।
विधानमंडल में साधारण कानून बनाने की विधायी प्रक्रिया
एक साधारण विधेयक (Ordinary bill) विधानमंडल के किसी भी सदन में प्रारम्भ हो सकता है। ऐसा कोई भी विधेयक या तो मंत्री द्वारा या किसी अन्य सदस्य द्वारा पुर:स्थापित किया जाएगा। विधेयक प्रारम्भिक सदन में संसद की तरह ही तीन स्तरों से गुजरता है; 1. प्रथम पाठन 2. द्वितीय पाठन 3. तृतीय पाठन
तीनों चरणों से गुजरने के बाद किसी विधेयक को दूसरे सदन भेजा जाता है (यदि हो तो)। एक सदनीय व्यवस्था वाले विधानमंडल मे इसे पारित कर सीधे राज्यपाल की स्वीकृत के लिए भेजा जाता है। लेकिन द्विसदनीय व्यवस्था वाले विधानमंडल में दोनों सदनों से उसे पारित होना जरूरी होता है।
दूसरे सदन में भी विधेयक उन तीनों स्तरों के बाद पारित होता है, जिन्हे प्रथम पाठन, द्वितीय पाठन एवं तृतीय पाठन कहा जाता है।
जब कोई विधेयक विधानसभा से पारित होने के बाद विधान परिषद में भेजा जाता है, तो वहाँ तीन विकल्प होते हैं:
1. इसे उसी रूप में पारित कर दिया जाये
2. कुछ संशोधनों के बाद पारित कर विचारार्थ इसे विधानसभा को भेज दिया जाये 3. विधेयक को अस्वीकृत कर दिया जाये। 4. इस पर कोई कार्यवाही न की जाये और विधेयक को लंबित रखा जाये।
यदि परिषद बिना संशोधन के विधेयक को पारित कर दे या विधानसभा उसके संशोधनों को मान ले तो विधेयक दोनों सदनों द्वारा पारित माना जाता है। जिसे राज्यपाल के पास स्वीकृत के लिए भेजा जाता है।
इसके अतिरिक्त यदि विधानसभा परिषद के सुझावों को अस्वीकृत कर दे या परिषद ही विधेयक को अस्वीकृत कर दे या परिषद तीन महीने तक कोई कार्यवाही न करे, तब विधानसभा फिर से इसे पारित कर परिषद को भेज सकती है।
यदि परिषद दोबारा विधेयक को अस्वीकृत कर दे या उसे उन संशोधन के साथ पारित कर दे जो विधानसभा को अस्वीकार हो या एक माह के भीतर पास न करे तब इसे दोनों सदनों द्वार पारित माना जाता है क्योंकि विधानसभा ने इसे दूसरी बार पारित कर दिया।
इस तरह साधारण विधेयक पारित करने के संदर्भ में विधानसभा को विशेष शक्ति प्राप्त है। ज्यादा से ज्यादा परिषद एक विधेयक को चार माह के लिए रोक सकती है।
पहली बार में तीन माह के लिए और दूसरी बार में एक माह के लिए। संविधान में किसी विधेयक पर असहमति होने के मामले में दोनों सदनों की संयुक्त बैठक का प्रावधान नहीं रखा गया है।
दूसरी ओर, किसी साधारण विधेयक को पास कराने के लिए लोकसभा एवं राज्यसभा को संयुक्त बैठक का प्रावधान है। इसके अतिरिक्त यदि कोई विधेयक विधानपरिषद में निर्मित हो और उसे विधानसभा उसे अस्वीकृत कर दे तो विधेयक समाप्त हो जाता है।
इस प्रकार, विधानपरिषद को केंद्र में राज्यसभा को तुलना में कम अधिकार या महत्व दिया गया है।
राज्यपाल की स्वीकृति : विधानसभा या द्विसदनीय व्यवस्था में दोनों सदनों द्वारा पारित होने के बाद प्रत्येक विधेयक राज्यपाल के समक्ष स्वीकृत के लिए भेजा जाता है। राज्यपाल के पास चार विकल्प होते हैं:
1. वह विधेयक को स्वीकृत प्रदान कर दे
2. वह विधेयक को अपनी स्वीकृत देने से रोके रखें,
3. वह सदन या सदनों के पास विधेयक को पुनर्विचार के लिए भेज दे, और
4. वह राष्ट्रपति के विचारार्थ विधेयक को सुरक्षित रख ले।
यदि राज्यपाल विधेयक को स्वीकृति प्रदान कर दे तो विधेयक फिर अधिनियम बन जाएगा और यह संविधि की पुस्तक मे दर्ज हो जाता है।
यदि राज्यपाल विधेयक को रोक लेता है तो विधेयक समाप्त हो जाता है और अधिनियम नहीं बनता। यदि राज्यपाल विधेयक को पुनर्विचार के लिए भेजता है और दोबारा सदन या सदनों द्वारा इसे पारित कर दिया जाता है एवं पुनः राज्यपाल के पास स्वीकृति के लिए भेजा जाता है तो राज्यपाल को उसे मंजूरी देना अनिवार्य हो जाता है। इस तरह राज्यपाल के पास वैकल्पिक वीटो होता है। यदि स्थिति केन्द्रीय स्तर पर भी होता है।
राष्ट्रपति की स्वीकृत : यदि कोई विधेयक राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए सुरक्षित रखा जाता है तो राष्ट्रपति या तो अपनी स्वीकृति दे देते हैं, उसे रोक सकते है या विधानमंडल के सदन या सदनों को पुनर्विचार हेतु भेज सकते हैं।
6 माह के भीतर इस विधेयक पर पुनर्विचार आवश्यक है। यदि विधेयक को उसके मूल रूप में या संशोधित कर दोबारा राष्ट्रपति के पास भेजा तो संविधान में इस बात का उल्लेख नहीं है राष्ट्रपति इस विधेयक को मंजूरी दे या नहीं।
Lok Sabha: Role, Structure, Functions | Hindi | English |
Rajya Sabha: Constitution, Powers | Hindi | English |
Parliamentary Motion | Hindi | English |
धन विधेयक (Money Bill)
संविधान में राज्य विधानमंडल द्वारा धन विधेयक को पारित करने में विशेष प्रक्रिया निहित है। यह निम्नलिखित है:
धन विधेयक विधानपरिषद में पेश नहीं किया जा सकता। यह केवल विधानसभा में ही राज्यपाल की सिफ़ारिश के बाद पुर:स्थापित किया जा सकता है इस तरह का कोई भी विधेयक सरकारी विधेयक होता है और सिर्फ एक मंत्री द्वारा ही पुर:स्थापित किया जा सकता है।
विधानसभा द्वारा पारित होने के बाद एक धन विधेयक को विधानपरिषद को विचारार्थ भेजा जाता है। विधानपरिषद के साथ पास धन विधेयक के संबंधी में प्रतिबंधित शक्तियाँ है।
वह न तो उसे अस्वीकार कर सकती है, न ही इसमें संशोधन कर सकती है वह केवल सिफ़ारिश कर सकती है और 14 दिनों में विधेयक को लौटना भी होता है। विधानसभा उसके सुझावों को स्वीकार भी कर सकता है और अस्वीकार भी।
यदि विधानसभा किसी सिफ़ारिश को मान लेती है तो विधेयक पारित मान लिया जाता है। यदि वह कोई सिफ़ारिश नहीं मानती है तब भी इसे मूल रूप में दोनों सदनों द्वार पारित मान लिया जाता है।
यदि विधान परिषद 14 दिनों के भीतर विधानसभा को विधेयक न लौटाए तो इसे दोनों सदनों द्वारा पारित मान लिया जाता है। इस तरह एक धन विधेयक के मामले में विधान परिषद के मुक़ाबले विधानसभा को ज्यादा अधिकार प्राप्त है। विधान परिषद इस विधेयक को अधिकतम 14 दिन तक रोक सकती है।
अंततः जब एक धन विधेयक राज्यपाल के समक्ष पेश किया जाता है तब वह इस पर अपनी स्वीकृति दे सकता है, इसे रोक सकता है या राष्ट्रपति को स्वीकृति के लिए सुरक्षित रख सकता है लेकिन राज्य विधानमंडल के पास पुनर्विचार के लिए नहीं भेज सकता। समान्यतः राज्यपाल उस विधेयक को स्वीकृति दे ही देता है, जो उसकी पूर्व अनुमति के बाद लाया जाता है।
जब कि धन विधेयक राष्ट्रपति के विचारार्थ के लिए सुरक्षित रखा जाता है तो राष्ट्रपति या तो इसे स्वीकृति दे देता है या इसे रोक सकता है लेकिन इसे राज्य विधानमंडल के पास पुनर्विचार के लिए नहीं भेज सकता है। [धन विधेयक और वित्त विधेयक को समझें]
राज्य विधानमंडल और संसद के बीच विधायी प्रक्रिया में अंतर (सामान्य विधेयक के मामले में)
संसद की प्रक्रिया | राज्य विधानमंडल की प्रक्रिया |
यदि दूसरा सदन पहले सदन द्वारा पारित विधेयक को अस्वीकार कर दे या फिर कोई ऐसा संशोधन प्रस्तावित करे जो कि पहले सदन को मंजूर न हो या फिर दूसरा सदन उस विधेयक को 6 माह तक बिना कोई कार्रवाई किए अपने पास रखे तो ऐसी स्थिति को दोनों सदनों के बीच गतिरोध माना जाता है। इस स्थिति से निपटने के लिए राष्ट्रपति दोनों सदनों की संयुक्त बैठक बुला सकता है। | यदि दूसरा सदन पहले सदन द्वारा पारित विधेयक को अस्वीकार कर दे या फिर कोई ऐसा संशोधन प्रस्तावित करे जो कि पहले सदन को मंजूर न हो या फिर दूसरा सदन उस विधेयक को 3 माह तक बिना कोई कार्रवाई किए अपने पास रखे तो ऐसी स्थिति को गतिरोध माना जाता है। लेकिन खास बात ये है कि इस स्थिति से निपटने के लिए यहाँ दोनों सदनों की संयुक्त बैठक बुलाने की कोई व्यवस्था नहीं है। |
किन स्थितियों में विधेयक समाप्त हो जाता है और किन स्थितियों में नहीं?
एक स्थायी सदन के होने के नाते विधान परिषद कभी विघटित नहीं हो सकती। सिर्फ विधानसभा ही विघटित हो सकती है। सत्रावसान के विपरीत विघटन से वर्तमान सदन का कार्यकाल समाप्त हो जाता है और आम चुनाव के बाद नए सदन का गठन होता है। विधानसभा के विघटित होने पर विधेयकों के खारिज होने को हम इस प्रकार समझ सकते हैं।
1. विधानसभा में लंबित विधेयक समाप्त हो जाता है। (चाहे मूल रूप से यह विधानसभा द्वारा प्रारम्भ किया गया हो या फिर इसे विधान परिषद द्वारा भेजा गया हो
2. ऐसा विधेयक जो विधान परिषद में लंबित हो लेकिन विधानसभा द्वारा पारित हो, को खारिज नहीं किया जा सकता।
3. ऐसा विधेयक जो विधानसभा द्वारा पारित हो (एक सदनीय विधानमंडल वाले राज्य में) या दोनों सदनों द्वारा पारित हो लेकिन राज्यपाल या राष्ट्रपति की स्वीकृति के कारण रुका हुआ हो, को खारिज नहीं किया जा सकता।
4. ऐसा विधेयक जो विधानसभा द्वारा पारित हो लेकिन राष्ट्रपति द्वारा सदन के पास पुनर्विचार हेतु लौटाया गया हो को समाप्त नहीं किया जा सकता।
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