किसी विधेयक, प्रस्ताव या संकल्प आदि को पारित करने से पहले उस पर संसद में मतदान कराया जाता है। उसी मतदान के आधार पर ये पता चलता है कि कोई चीज़ पारित हो रहा है या नहीं।
सबका मकसद तो एक ही होता है लेकिन इसके लिए मतदान की कई प्रक्रियाएँ अपनायी जाती है, जैसे कि ध्वनि मत, काउंटिंग आदि।
इस लेख में हम संसद में मतदान की प्रक्रिया पर सरल और सहज चर्चा करेंगे, एवं इसके विभिन्न महत्वपूर्ण पहलुओं को समझने की कोशिश करेंगे।

संसद में मतदान का मतलब
संसद में मतदान एक ऐसी प्रक्रिया होती है जो ये तय करती है कि कोई विधेयक, प्रस्ताव आदि पारित होगा या नहीं। नतीजे जो भी आए पर इससे एक बात तो पता चल ही जाता है कि संसद आखिर चाहती क्या है?
संसदीय लोकतंत्र में किसी मुद्दे को आम तौर पर मतदान से तय किया जाता है। सभी मुद्दों पर, किसी एक सदन में या दोनों सदनों की संयुक्त बैठक में उपस्थित सदस्यों के बहुमत से निर्णय लिया जाता है।
संविधान में उल्लिखित कुछ विशिष्ट मामलों, जैसे राष्ट्रपति के खिलाफ महाभियोग, संविधान संशोधन कार्यवाही, पीठासीन अधिकारियों को हटाना आदि में विशेष बहुमत की जरूरत होती है। [यहाँ से पढ़ें – बहुमत के कितने प्रकार?]
सदन का पीठासीन अधिकारी पहले प्रयास में मत नहीं देता है लेकिन मत बराबर होने की दशा में (यानी कि जब दोनों पक्षों का वोट समान हो जाये) वह मतदान कर सकता है। इसे निर्णायक वोट कहा जाता है।
Lok Sabha: Role, Structure, Functions | Hindi | English |
Rajya Sabha: Constitution, Powers | Hindi | English |
Parliamentary Motion | Hindi | English |
संसद में मतदान के प्रकार
सदन में मतदान के बारे में अनुच्छेद 100(1) और लोकसभा प्रक्रिया नियम 367, 367 ए, 367AA और 367B में वर्णित है। वहीं राज्यसभा की बात करें तो राज्यसभा प्रक्रिया से संबंधित नियम 252 से लेकर 254 तक में ‘मत विभाजन’ के चार अलग-अलग तरीकों का प्रावधान किया गया है।
इन तरीकों में ध्वनि मत, काउंटिंग, ऑटोमैटिक वोट रिकॉर्डर के जरिये मत विभाजन और लॉबी में जाकर पक्ष/विपक्ष के समर्थन में खड़े होना सम्मिलित हैं।
लोकसभा में मतदान के लिए अपनाई जाने वाली विभिन्न विधियाँ निम्नलिखित हैं:-
ध्वनि मत (Voice vote)
ध्वनि मत (Voice vote) – चर्चा के अंत में लोकसभाध्यक्ष प्रश्न पूछकर प्रस्ताव के बारे में सदस्यों की राय जानते है। वे कहते हैं – जो प्रस्ताव के पक्ष में है वे ‘आये’ (Aye) बोलें और जो प्रस्ताव के विरोध में हो ‘नो’ (No) बोलें।
इसके बाद लोकसभाध्यक्ष कहते है कि मैं समझता हूँ प्रस्ताव ‘अयेस’ (Ayes) के पक्ष में हैं। (यदि नोस (Noes) के पक्ष में होगा तो वे Ayes की जगह पर Noes बोलेंगे)।
यदि प्रश्न के बारे मे लोकसभाध्यक्ष के निर्णय को चुनौती नहीं दी जाती, तब वे दो बार बोलते हैं ‘अयेस हैब इट’ (Ayes have it) अथवा Noes जैसी भी स्थिति हो उसी अनुसार सदन के समक्ष प्रश्न का निश्चय हो जाएगा।
लेकिन यदि किसी प्रश्न को लेकर लोकसभाध्यक्ष के निर्णय को चुनौती दी जाती है, तब वह आदेश करेंगे कि लॉबी स्पष्ट हो जाये। और तीन मिनट और तीन सेकंड बीत जाने पर वह वही प्रश्न दोबारा पुछेंगे और फिर से घोषणा करेंगे कि उनकी राय में जीत Ayes की हुई है या Noes की।
यदि सभाध्यक्ष के द्वारा घोषित इस राय को फिर चुनौती मिलती है तब वह निर्देश देंगे कि मतों को स्वचालित वोट रिकार्डर से रिकॉर्ड किया जाए या Aye तथा No स्लिप का उपयोग किया जाये या फिर सदस्य लॉबी में चले जाये।
लॉबी वाली स्थिति
लॉबी वाली स्थिति – में स्पीकर “Ayes” के सदस्यों को दाईं लॉबी में जाने के लिए निर्देश देता है और “Noes” के सदस्यों को बाईं लॉबी में। वहाँ उनके वोट रिकॉर्ड किए जाते हैं। हालांकि स्वचालित वोट रिकॉर्डिंग मशीन की स्थापना के बाद से लॉबी में वोटों की रिकॉर्डिंग का तरीका पुराना हो गया है।
स्वचालित मत अभिलेखन (Automated vote recording)
स्वचालित मत अभिलेखन (Recording) प्रणाली के अंतर्गत प्रत्येक सदस्य अपने स्थान से इस प्रयोजन के लिए लगाए गए बटन को दबाकर अपना मत देता है। प्रत्येक सदस्य की सीट पर एक ही पुश बटन सेट लगा हुआ होता है। इसमें एक मार्गदर्शी बत्ती और तीन पुश बटन होते हैं।
‘हां’ के लिए हरे रंग का बटन और ‘ना’ के लिए लाल रंग का बटन होता है। और साथ ही काले रंग का बटन भी लगा होता है जिसका उपयोग मतदान के अप्रयोग के लिए होता है।
जब स्वचालित यंत्र खराब हो या स्थान या विभाजन संख्याएं आवंटित न की गई हों तो Aye तथा No स्लिप का उपयोग किया जाता है। सदस्यों को अपने मत रिकॉर्ड करने के लिए उनकी सीटों पर ‘हां’ पक्ष और ‘ना’ पक्ष की छपी हुई पर्चियां सप्लाई की जाती हैं। जो सदस्य मतदान का प्रयोग नहीं करना चाहते उनके लिए पीले रंग में छपी मतदान अप्रयोग लिखी पर्ची (स्लिप) होती है।
सदन में तैनात सक्षम अधिकारी, हां पक्ष, ना पक्ष और मतदान अप्रयोग की पर्चियों की छानबीन करता है और रिकॉर्ड मतों की गिनती (counting) करता है और फिर पीठासीन अधिकारी द्वारा परिणाम की घोषणा की जाती है।
यदि लोकसभाध्यक्ष कि राय में कि वोट का अनावश्यक दावा किया गया है वे सदस्यों से कह सकते है कि Aye और No वाले सदस्य अपने-अपने जगह पर खड़े हो जाये जब गिनती हो। तब वे सदन के निश्चय की घोषणा कर सकते है। इस मामले में मतदाताओं के नाम नहीं रिकर्ड किए जाते हैं।
कास्टिंग वोट:
पीठासीन अधिकारी को पहली बार में मतदान का अधिकार नहीं है, किंतु मतों की संख्या बराबर होने पर वह मत दे सकता है, जो निर्णायक हो सकता है।
तो कुल मिलाकर संसद में मतदान की प्रक्रिया कुछ इसी तरह से होती है। उम्मीद है समझ में आया होगा। अन्य लेखों के लिए नीचे लिंक पर क्लिक करें।
संसद में मतदान Practice quiz upsc
इसी विषय से जुड़े अन्य महत्वपूर्ण लेख
Original Constitution
Our Parliament – Subhash Kashyap
हमारी संसद – सुभाष कश्यप