इस लेख में हम म्यूचुअल फ़ंड के प्रकार एवं उसकी विशेषताओं पर चर्चा करेंगे एवं इसके विभिन्न महत्वपूर्ण पहलुओं को समझेंगे।

भारतीय पूंजी बाज़ार में म्यूचुअल फ़ंड काफी लोकप्रिय रहा है क्योंकि इसमें निवेश करने के लिए शेयर मार्केट के क्षेत्र में निपुण होना जरूरी नहीं होता है।

नोट – अगर आप शेयर मार्केट के बेसिक्स को ज़ीरो लेवल से समझना चाहते हैं तो आपको पार्ट 1 से शुरुआत करनी चाहिए।

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| म्यूचुअल फ़ंड क्या है?

म्यूचुअल फ़ंड एक ऐसा फ़ंड है जिसका निर्माण तब होता है जब बड़ी संख्या में निवेशक अपना धन इसमें लगाते हैं और उस पूरे धन को किसी प्रबंधन कंपनी द्वारा शेयर, बॉन्ड या अन्य प्रतिभूतियों में निवेश किया जाता है।

इससे जो फायदा होता है उसे उसी अनुपात में सभी निवेशकों में बांट दिया जाता हैं जिस अनुपात में उन लोगों ने पैसा लगाया था।

जैसे कि मान लीजिये किसी एक शेयर का दाम 10,000 रुपए है। कुछ लोग है जो इसे खरीदना चाहते है लेकिन किसी के पास भी 10,000 रुपए नहीं है और अगर है भी तो लगाना नहीं चाहते हैं क्योंकि घाटा लगने का डर सता रहा है।

तो आखिरकार 10 लोगों ने मिलकर एक-एक हज़ार रुपया दे दिया और उस शेयर को खरीद लिया। अब मान लेते हैं कुछ समय बाद उस शेयर का मूल्य 15,000 रुपए हो जाता है तो उसी अनुपात में सारे पैसे उन दसों में बंट जाएगा यानी कि पंद्रह-पंद्रह सौ रुपए।

[विस्तार से समझने के लिए म्यूचुअल फ़ंड : क्या, कब, क्यों और कैसे? पढ़ें]

| म्यूचुअल फ़ंड के प्रकार

जोखिम के आधार पर, निवेश के आधार पर या संरचना आदि के आधार पर म्यूचुअल फ़ंड के कई प्रकार होते हैं। आइये सभी महत्वपूर्ण प्रकारों को समझते हैं;

| इक्विटी स्कीम (Equity scheme)

इस स्कीम की खास बात ये है कि इस स्कीम की कम से कम 65% संपत्ति इक्विटी और इक्विटी से संबंधित इंस्ट्रूमेंट्स में निवेश करना होता है। शेयर मार्केट वाले लेख में हमने समझा था कि इक्विटि में निवेश जोख़िम भरा होता है।

इसीलिए ये फंड तुलनात्मक रूप से उच्च जोखिम वाले होते हैं। यह योजना उन निवेशकों के लिए अनुकूल है जो उच्च जोख़िम डाइजैस्ट कर सकता है। निवेश में शामिल जोखिम के स्तर के आधार पर, भारत में म्यूचुअल फंड के प्रकार निम्नलिखित हैं:-

| जोखिम के आधार पर म्यूचुअल फंड के प्रकार

उच्च जोखिम वाले फंड (High risk fund) – जैसा कि हमने अभी ऊपर ही पढ़ा है किसी निवेश का जितना बड़ा भाग इक्विटि में निवेश किया जाएगा जोख़िम का स्तर उतना ही बढ़ता जाएगा। जोख़िम ज्यादा है तो रिटर्न भी सबसे ज्यादा इसी से मिलता है।

इसमें 20 से 25% तक रिटर्न देखने को भी मिल जाता है। इन फंडों को सक्रिय रूप से प्रबंधन की आवश्यकता होती है क्योंकि ये बाजार के उतार-चढ़ाव पर निर्भर होता हैं।

जैसे कि – ICICI Prudential Technology Fund, Aditya Birla Sun Life India NextGen Fund, SBI Banking and Financial services Fund इत्यादि।

मध्यम जोखिम वाले फंड (Medium risk funds) – जाहिर है इसमें इक्विटि वाले हिस्से में कम और डेट फंड वाले हिस्से में ज्यादा निवेश किया जाता है। ताकि अगर इक्विटि वाले हिस्से में अगर घाटा भी लग जाये तो उसकी क्षतिपूर्ति डेट फ़ंड से किया जा सके। आमतौर पर इसका औसत रिटर्न 9-12% के बीच होता है।

ये उन निवेशकों के लिए अच्छा हैं जिनके पास बहुत अधिक जोखिम वाली भूख नहीं है और स्थिर रिटर्न चाहते हैं। जैसे- SBI Magnum Constant Maturity Fund, SBI Magnum Medium Duration Fund आदि।

कम जोखिम वाले फंड (Low risk fund) – यदि बाज़ार में कोई संकट आ जाये और बाज़ार अस्थिर हो जाये तो ऐसी स्थिति में पैसे को एक खास सुरक्षित माध्यम से इन्वेस्ट किया जाता है जैसे कि आर्बिट्राज फंड (Arbitrage fund)।

ये भी एक प्रकार का म्यूचुअल फ़ंड है लेकिन ये ज्यादा रिटर्न के चक्कर में न पड़कर बहुत ही कम रिटर्न पर काम करता है। जैसे कि मान लीजिये यदि बाजार स्टॉक में तेजी है तो नकदी बाजार से स्टॉक खरीदकर उसी समय वायदा बाजार (Futures Market) पर इसके लिए एक अनुबंध बेच देते हैं। इसको हाइब्रिड स्कीम के अंतर्गत रखा जाता है।

मार्केट अगर नॉर्मल काम करता रहता है तो फिर ये ठीक से काम नहीं करता है लेकिन मार्केट में जैसे ही उतार-चढ़ाव आता है उसी बीच में यह तरीका काम करता है।

जैसे मान लीजिये स्टॉक मार्केट में किसी शेयर का मूल्य 500 रुपया है और उसी समय डेरिवेटिव्स मार्केट में किसी कारण से उसका मूल्य 505 रुपया हो जाये तो इसी समय उस स्टॉक को शेयर मार्केट से खरीद कर डेरिवेटिव्स मार्केट में बेच दिया जाता है। इससे रिटर्न तो बहुत ही कम मिलता है लेकिन इसमें जोख़िम नहीं होता है।

आमतौर पर इसमें 5 से 6% तक सालाना रिटर्न मिलता है। इस प्रकार के निवेश एक अल्पकालिक वित्तीय लक्ष्य को पूरा करने में मदद करता है। जैसे कि – Aditya Birla Sun Life Liquid Fund, SBI Magnum Ultra Short Duration Fund आदि।

| डेट स्कीम (Debt scheme)

जिस तरह इक्विटि स्कीम में निवेश का बहुत बड़ा हिस्सा इक्विटि या शेयर में निवेश करना होता है उसी प्रकार डेट स्कीम में निवेश का बहुत बड़ा हिस्सा फ़िक्स्ड इनकम इंस्ट्रूमेंट्स में निवेश करना होता है, जैसे कि सरकार और कॉरपोरेट द्वारा जारी बॉन्ड, डेट सिक्योरिटीज और मनी मार्केट इंस्ट्रूमेंट्स आदि।

चूंकि इन फंड्स में फिक्स्ड रेट ऑफ इंटरेस्ट होता है, इसीलिए इसमें जोख़िम बहुत ही कम होता है। जो जोख़िम नहीं लेना चाहते उसके लिए ये बढ़िया विकल्प है। जैसे कि – SBI Magnum Constant Maturity Fund Regular Growth, ICICI Prudential Constant Maturity Gilt Growth आदि।

| हाइब्रिड स्कीम (Hybrid scheme)

इसे हाइब्रिड स्कीम इसीलिए कहा जाता है क्योंकि आमतौर पर इसमें इक्विटी और डेट इंस्ट्रूमेंट्स के बीच वितरण 40:60 के अनुपात में होता है। हालांकि अनुपात जरूरत के अनुसार बदल भी सकता है।

इन योजनाओं का उद्देश्य विकास और नियमित आय दोनों प्रदान करना है। मध्यम वृद्धि की तलाश कर रहे निवेशकों के लिए यह एक बढ़िया विकल्प है। जैसे कि – ICICI Prudential Regular Saving Fund, Kotak Debt Hybrid आदि।

| संरचना के आधार पर म्यूचुअल फंड के प्रकार

ओपन-एंडेड फंड्स (Open-ended funds) इस प्रकार के फंड्स निरंतर आधार पर सदस्यता और पुनर्खरीद के लिए उपलब्ध होता हैं। इसका मतलब ये हुआ कि इस प्रकार की स्कीम कोई फ़िक्स्ड ड्यूरेशन के साथ लॉंच नहीं होता है इसीलिए इसमें कभी भी इन्वेस्ट किया जा सकता है।

इसकी दूसरी खासियत ये है कि इससे आप कभी भी बाहर आ सकते हैं क्योंकि इसकी कोई निश्चित परिपक्वता अवधि (Maturity period) नहीं होता है। इसका NAV डेली बेसिस पर तय होता है और इन्वेस्टर उसी NAV पर यूनिट खरीद और बेच सकता है।

इसकी एक और बड़ी खासियत ये है कि इसके पिछले प्रदर्शन को ट्रैक किया जा सकता है जो निवेशक को सही निर्णय लेने में मदद करता है।

SIP यानी कि systematic investment plan, STP यानी कि Systematic Transfer Plan, SWP यानी कि Systematic Withdrawal Plan आदि इसी के तहत आते हैं।

क्लोज-एंडेड फंड्स (Close-ended funds) –इस प्रकार की स्कीम फ़िक्स्ड ड्यूरेशन के साथ लॉंच होता है जैसे कि 3, 5 या 7 साल। इसीलिए जब तक वो अवधि पूरी नहीं हो जाती इससे एक्ज़िट नहीं किया जा सकता। चूंकि इसमें से कभी भी एक्ज़िट नहीं किया जा सकता इसीलिए इसकी NAV भी डेली बेसिस पर तय नहीं होता है।

इसमें इन्वेस्ट भी तभी किया जा सकता है जब तक उसमें इन्वेस्ट करने की अवधि बची हो। यानी कि इसमें जब मन करे तब इन्वेस्ट नहीं किया जा सकता।

कुछ विशेष स्थितियों में इसके यूनिट का स्टॉक एक्सचेंज में कारोबार होता है। इसमें पिछले प्रदर्शन को ट्रैक की सुविधा नहीं होती इसीलिए निवेशक को निर्णय लेने में थोरी कठिनाई हो सकती है।

इसकी खासियत ये है ये स्कीम को स्थिरता प्रदान करता है और यह पोर्टफोलियो प्रबंधकों को एक स्थिर परिसंपत्ति आधार बनाने और सही निवेश रणनीति तैयार करने की अनुमति देता है।

इंटरवल फंड्स (Interval Funds)यह एक हाइब्रिड फंड है जिसमें ओपन एंडेड और क्लोज एंडेड फंड दोनों की विशेषताएं होती हैं। फंड हाउस के विवेक के अनुसार इन फंडों को केवल विशिष्ट अंतराल पर खरीदा या बेचा जा सकता है। बाकी समय फंड बंद रहता है।

| निवेश के आधार पर म्यूचुअल फंड के प्रकार

निवेश रणनीति के आधार पर भारत में म्यूचुअल फंड के प्रकार निम्नलिखित हैं:

ग्रोथ फंड (Growth fund): ये हाइ रिस्क इक्विटि फ़ंड है जो जिसमें निवेश के पैसे का एक बड़ा हिस्सा शेयरों में लगा दिया जाता है। यह उन निवेशकों के लिए एक अच्छा है जिसके पास एक्सट्रा धन है और वो इस पैसे को 5 – 10 साल के लिए इन्वेस्ट कर सकने में सक्षम हैं।

इनकम फंड्स (Income funds): यह एक प्रकार का डेट फ़ंड है जो सरकारी बांड्स, डिपॉजिट्स के सर्टिफिकेट्स और सिक्योरिटीज आदि में पैसा लगाती है। इसीलिए इसमें जोखिम कम होता है।

लिक्विड फंड्स (Liquid funds): ये भी एक प्रकार का डेट फ़ंड है। जो कि शॉर्ट-टर्म फिक्स्ड-इंटरेस्ट जनरेटिंग मनी मार्केट इंस्ट्रूमेंट्स और डेट इंस्ट्रूमेंट्स में निवेश करती है, जिसका कार्यकाल 91 दिनों तक का होता है।

निवेशक केवल 10 लाख रुपये तक का निवेश कर सकता है और रिटर्न की गारंटी नहीं होती है क्योंकि फंड का प्रदर्शन इस बात पर निर्भर करता है कि बाजार फिक्स्ड डिपॉजिट के विपरीत कैसा प्रदर्शन करता है जो बाजार पर निर्भर नहीं है।

टैक्स सेविंग फंड (Tax saving fund): इक्विटी लिंक्ड सेविंग स्कीम (ELSS) सबसे लोकप्रिय टैक्स सेविंग स्कीमों में से एक है। इन फंडों की लॉक-इन अवधि 3 साल है। यह रिटर्न की अच्छी दर भी प्रदान करता है और यह टैक्स से फ्री होता है।

एग्रेसिव ग्रोथ फंड्स (Aggressive growth funds): इस फ़ंड को उन कंपनियों में निवेश किया जाता है जिनमें उच्च विकास क्षमता होती है, खासकर के नई कंपनियों में। परिणामस्वरूप, ये फंड औसत से ज्यादा रिटर्न हासिल करने में कामयाब होते हैं जब बाजार बढ़ रहे होते हैं। लेकिन अगर कंपनी अपेक्षानुसार नहीं बढ़ी तो घाटा तय है।

फिक्स्ड मैच्योरिटी फंड (Fixed Maturity Fund): जैसा कि नाम से पता चलता है, यह स्कीम परिपक्वता अवधि के लिए निवेश करती है। निवेश मुख्य रूप से बॉन्ड, प्रतिभूतियों, मुद्रा बाजार आदि में होता है। परिपक्वता अवधि 1 महीने से 5 साल के बीच होती है।

पेंशन फंड (pension funds): ये फंड सेवानिवृत्ति के लिए एक कोष बनाने की अनुमति देता है। भारत में कुछ सामान्य पेंशन योजनाएं यूनिट-लिंक्ड हैं जो इक्विटी और डेट इंस्ट्रूमेंट्स दोनों में निवेश करती हैं। सरकार भी कई प्रकार की पेंशन फ़ंड योजनाएँ चलाती है।

| भारत में विशेष प्रकार के म्युचुअल फंड

गिल्ट फंड (Gilt fund) ये फंड विशेष रूप से सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश करते हैं। इन निवेशों से डिफ़ॉल्ट का कोई खतरा नहीं होता है।

सूचकांक निधि (Index fund) ये एक निष्क्रिय (passive) रूप से प्रबंधित फ़ंड है। यानी कि इसे अन्य फंडों की तरह एक्टिव रूप से मैनेज नहीं किया जाता है। इसीलिए उसका वो खर्च बच जाता है। ये फंड किसी विशेष इंडेक्स जैसे सेंसेक्स, निफ्टी, आदि के पोर्टफोलियो की नकल करते हैं और एक ही वेटेज में सिक्योरिटीज में निवेश करती हैं।

जैसे कि सेंसेक्स की बात करें तो वहाँ 30 कंपनियाँ होती है जिसमें से रिलायंस के पास 12.78% का, एचडीएफ़सी के पास 12.25% का और इसी तरह से अन्य 28 कंपनियों का वेटेज बंटा हुआ है।

तो इंडेक्स फ़ंड के अंतर्गत जितना इन्वेस्ट किया जाएगा उसका 12.78% रिलायंस में, 12.25% एचडीएफ़सी में और इसी तरह से अन्य 28 कंपनियों में निवेश हो जाएगा। जितना रिटर्न वो इंडेक्स देगा उतना ही रिटर्न इंडेक्स फ़ंड के जरिये निवेशकों में बाँट दिया जाएगा।

निधियों का कोष (Fund of funds) इसका कॉन्सेप्ट ये है कि म्यूचुअल फ़ंड के पैसे को सीधे इक्विटि या डेट में निवेश न करके पहले इसे फिर से किसी और म्यूचुअल फ़ंड में ही निवेश कर दिया जाता है और फिर वहाँ से ये इक्विटि या डेट में निवेश किया जाता है। इससे ये और डाइवर्सिफाइड हो जाता है इसे ही Fund of funds (FoF) स्कीम कहा जाता है।

इंटरनेशनल फंड्स (International funds) इस प्रकार के इक्विटि म्युचुअल फंड में निवेशकों द्वारा अपने निवेश को भारत के बाहर सूचीबद्ध कंपनियों के शेयरों में निवेश किया जाता है। इससे होता ये है कि जब भारतीय शेयर बाजार अच्छा प्रदर्शन नहीं भी करता है तो भी बहुत ज्यादा लॉस की संभावना नहीं होती है।

अगर कोई निवेशक चाहे तो एक हाइब्रिड रणनीति का भी उपयोग कर सकता है (जैसे, राष्ट्रीय इक्विटी में 60% और विदेशी फंड में शेष)।

कमोडिटी-केंद्रित स्टॉक फंड (Commodity-focused stock fund) यह म्यूचुअल फंड के प्रकारों में से एक है जो निवेशक अपने पोर्टफोलियो में विविधता लाने की कोशिश कर रहे हैं और जो पर्याप्त जोखिम उठा सकते है उसके लिए एक बढ़िया विकल्प है।

जैसा कि नाम से स्पष्ट है ये कमोडिटी में निवेश करता है। हालांकि, रिटर्न नियमित नहीं होता हैं और यह स्टॉक कंपनी के प्रदर्शन या स्वयं कमोडिटी प्रदर्शन पर आधारित होता हैं। सोना एकमात्र कमोडिटी है जहां म्यूचुअल फंड सीधे निवेश कर सकते हैं।

कुल मिलाकर यही है म्यूचुअल फ़ंड के प्रकार, उम्मीद है समझ में आया होगा। बेहतर समझ के लिए संबंधित अन्य लेखों को अवश्य पढ़ें, लिंक नीचे दिया हुआ है।

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