यह लेख Article 185 (अनुच्छेद 185) का यथारूप संकलन है। आप इस मूल अनुच्छेद का हिन्दी और इंग्लिश दोनों संस्करण पढ़ सकते हैं। आप इसे अच्छी तरह से समझ सके इसीलिए इसकी व्याख्या भी नीचे दी गई है आप उसे जरूर पढ़ें, और MCQs भी सॉल्व करें।
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📜 अनुच्छेद 185 (Article 185) – Original
भाग 6 “राज्य” [अध्याय 3 — राज्य का विधान मंडल] [राज्य के विधान मण्डल के अधिकारी] |
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185. जब सभापति या उपसभापति को पद से हटाने का कोई संकल्प विचाराधीन है तब उसका पीठासीन न होना — (1) विधान परिषद् की किसी बैठक में, जब सभापति को उसके पद से हटाने का कोई संकल्प विचाराधीन है तब सभापति, या जब उपसभापति को उसके पद से हटाने का कोई संकल्प विचाराधीन है तब उपसभापति, उपस्थित रहने पर भी पीठासीन नहीं होगा और अनुच्छेद 184 के खंड (2) के उपबंध ऐसी प्रत्येक बैठक के संबंध में वैसे ही लागू होंगे जैसे वे उस बैठक के संबंध में लागू होते हैं जिससे, यथास्थिति, सभापति या उपसभापति अनुपस्थित है। (2) जब सभापति को उसके पद से हटाने का कोई संकल्प विधान परिषद् में विचाराधीन है तब उसको विधान परिषद् में बोलने और उसकी कार्यवाहियों में अन्यथा भाग लेने का अधिकार होगा और वह अनुच्छेद 189 में किसी बात के होते हुए भी, ऐसे संकल्प पर या ऐसी कार्यवाहियों के दौरान किसी अन्य विषय पर प्रथमत: ही मत देने का हकदार होगा किंतु मत बराबर होने की दशा में मत देने का हकदार नहीं होगा। |
Part VI “State” [CHAPTER III — The State Legislature] [Officers of the State Legislature] |
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185. The Chairman or the Deputy Chairman not to preside while a resolution for his removal from office is under consideration—(1) At any sitting of the Legislative Council, while any resolution for the removal of the Chairman from his office is under consideration, the Chairman, or while any resolution for the removal of the Deputy Chairman from his office is under consideration, the Deputy Chairman, shall not, though he is present, preside, and the provisions of clause (2) of article 184 shall apply in relation to every such sitting as they apply in relation to a sitting from which the Chairman or, as the case may be, the Deputy Chairman is absent. (2) The Chairman shall have the right to speak in, and otherwise to take part in the proceedings of, the Legislative Council while any resolution for his removal from office is under consideration in the Council and shall, notwithstanding anything in article 189, be entitled to vote only in the first instance on such resolution or on any other matter during such proceedings but not in the case of an equality of votes. |
🔍 Article 185 Explanation in Hindi
भारतीय संविधान का भाग 6, अनुच्छेद 152 से लेकर अनुच्छेद 237 तक कुल 6 अध्यायों (Chapters) में विस्तारित है (जिसे कि आप नीचे टेबल में देख सकते हैं)।
Chapters | Title | Articles |
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I | साधारण (General) | Article 152 |
II | कार्यपालिका (The Executive) | Article 153 – 167 |
III | राज्य का विधान मंडल (The State Legislature) | Article 168 – 212 |
IV | राज्यपाल की विधायी शक्ति (Legislative Power of the Governor) | Article 213 |
V | राज्यों के उच्च न्यायालय (The High Courts in the States) | Article 214 – 232 |
VI | अधीनस्थ न्यायालय (Subordinate Courts) | Article 233 – 237 |
जैसा कि आप ऊपर देख सकते हैं, इस भाग के अध्याय 3 का नाम है “राज्य का विधान मंडल (The State Legislature)” और इसका विस्तार अनुच्छेद 158 से लेकर अनुच्छेद 212 तक है।
इस अध्याय को आठ उप-अध्यायों (sub-chapters) में बांटा गया है, जिसे कि आप नीचे चार्ट में देख सकते हैं;
Chapter 3 [Sub-Chapters] | Articles |
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साधारण (General) | Article 168 – 177 |
राज्य के विधान मण्डल के अधिकारी (Officers of the State Legislature) | Article 178 – 187 |
कार्य संचालन (Conduct of Business) | Article 188 – 189 |
सदस्यों की निरर्हताएं (Disqualifications of Members) | Article 190 – 193 |
राज्यों के विधान-मंडलों और उनके सदस्यों की शक्तियां, विशेषाधिकार और उन्मुक्तियां (Powers, privileges and immunities of State Legislatures and their members) | Article 194 – 195 |
विधायी प्रक्रिया (Legislative Procedure) | Article 196 – 201 |
वित्तीय विषयों के संबंध में प्रक्रिया (Procedure in respect of financial matters) | Article 202 – 207 |
साधारण प्रक्रिया (Procedure Generally) | Article 208 – 212 |
इस लेख में हम राज्य के विधान मण्डल के अधिकारी (Officers of the State Legislature) के तहत आने वाले अनुच्छेद 185 को समझने वाले हैं।
⚫ अनुच्छेद 92 – भारतीय संविधान |
| अनुच्छेद 185 – जब सभापति या उपसभापति को पद से हटाने का कोई संकल्प विचाराधीन है तब उसका पीठासीन न होना (The Chairman or the Deputy Chairman not to preside while a resolution for his removal from office is under consideration)
भारत एक संघीय व्यवस्था वाला देश है यानी कि यहाँ केंद्र सरकार की तरह राज्य सरकार भी होता है और जिस तरह से केंद्र में विधायिका (Legislature) होता है उसी तरह से राज्य का भी अपना एक विधायिका होता है।
◾ केन्द्रीय विधायिका (Central Legislature) को भारत की संसद (Parliament of India) कहा जाता है। यह एक द्विसदनीय विधायिका है, जिसका अर्थ है कि इसमें दो सदन हैं: लोकसभा (लोगों का सदन) और राज्यसभा (राज्यों की परिषद)। इसी तरह से राज्यों के लिए भी व्यवस्था की गई है।
अनुच्छेद 168(1) के तहत प्रत्येक राज्य के लिए एक विधानमंडल (Legislature) की व्यवस्था की गई है और यह विधानमंडल एकसदनीय (unicameral) या द्विसदनीय (bicameral) हो सकती है।
जिस तरह से अनुच्छेद 92 के तहत केंद्र में जब सभापति या उपसभापति को पद से हटाने का कोई संकल्प विचाराधीन है तब वह पीठासीन नहीं होता है, उसी तरह से अनुच्छेद 185 के तहत राज्यों में भी जब सभापति या उपसभापति को पद से हटाने का कोई संकल्प विचाराधीन है तब वह पीठासीन नहीं होता है;
अनुच्छेद 185 के दो खंड है;
अनुच्छेद 185 के खंड (1) के तहत कहा गया है कि विधान परिषद् की किसी बैठक में, जब सभापति को उसके पद से हटाने का कोई संकल्प विचाराधीन है तब सभापति, या जब उपसभापति को उसके पद से हटाने का कोई संकल्प विचाराधीन है तब उपसभापति, उपस्थित रहने पर भी पीठासीन नहीं होगा और अनुच्छेद 184 के खंड (2) के उपबंध ऐसी प्रत्येक बैठक के संबंध में वैसे ही लागू होंगे जैसे वे उस बैठक के संबंध में लागू होते हैं जिससे, यथास्थिति, सभापति या उपसभापति अनुपस्थित है।
यहाँ दो मुख्य बातें है;
पहली बात तो ये कि विधान परिषद की किसी बैठक में, जब सभापति को उसके पद से हटाने का संकल्प विचाराधीन है तब अध्यक्ष, वह पीठासीन (Presiding) नहीं होगा। यानि कि बैठक की अध्यक्षता नहीं करेगा, भले ही वह सदन में उपस्थित हों;
दूसरी बात ये कि विधान परिषद की किसी बैठक में, जब उपसभापति को उसके पद से हटाने का कोई संकल्प विचाराधीन है तब उपाध्यक्ष, पीठासीन नहीं होगा, भले ही वह सदन में उपस्थित हों।
यहाँ याद रखें कि अनुच्छेद 184 के खंड (2) के उपबंध ऐसी प्रत्येक बैठक के संबंध में वैसे ही लागू होंगे जैसे वे उस बैठक के संबंध में लागू होते हैं जिससे, अध्यक्ष या उपाध्यक्ष अनुपस्थित है। यानि कि उन्हे अनुपस्थित मान के चला जाएगा। और यदि किसी को उनकी ओर से बैठक को संबोधित करना है तो उस व्यक्ति का निर्णय भारतीय संविधान के अनुच्छेद 189 के खंड (2) में किए गए प्रावधानों के अनुसार किया जाएगा।
अनुच्छेद 185 के खंड (2) के तहत कहा गया है कि जब सभापति को उसके पद से हटाने का कोई संकल्प विधान परिषद् में विचाराधीन है तब उसको विधान परिषद् में बोलने और उसकी कार्यवाहियों में अन्यथा भाग लेने का अधिकार होगा और वह अनुच्छेद 189 में किसी बात के होते हुए भी, ऐसे संकल्प पर या ऐसी कार्यवाहियों के दौरान किसी अन्य विषय पर प्रथमत: ही मत देने का हकदार होगा किंतु मत बराबर होने की दशा में मत देने का हकदार नहीं होगा।
यहां पर दो बातें हैं;
पहली बात) भले ही विधान परिषद सभापति को उसके पद से हटाने का संकल्प लोक सभा में विचाराधीन है लेकिन फिर भी उसे सदन की कार्यवाहियों में भाग लेने का और बोलने का अधिकार होगा।
दरअसल भारतीय संविधान के अनुच्छेद 184 के खंड 2 में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि हालांकि विचाराधीन पद से हटाने के दौरान अध्यक्ष के पास कोई अधिकार नहीं होगा, फिर भी उसे कार्यवाही में बोलने का अधिकार है और वह कार्यवाही में भाग भी ले सकता है।
दूसरी बात) भारतीय संविधान के अनुच्छेद 189 में एक खंड है जो कहता है कि कार्यवाहक अध्यक्ष का मतदान पहली बार में नहीं होगा, लेकिन वोटों की समानता होने पर वह मतदान कर सकता है। लेकिन, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 185 का खंड 2 इस धारणा को उलट देता है और कहता है कि कार्यवाहक अध्यक्ष पहली बार में मतदान कर सकता है, लेकिन वोटों की समानता उत्पन्न होने की स्थिति में नहीं।
इस अनुच्छेद में अनुच्छेद 189 का जिक्र किया गया है । दरअसल अनुच्छेद 189 सदन में वोटिंग के बारे में है कि सदन में वोटिंग कैसे होगा। इसके बारे में विस्तार से जरूर पढ़ें;
तो यही है Article 185 , उम्मीद है आपको समझ में आया होगा। दूसरे अनुच्छेदों को समझने के लिए नीचे दिए गए लिंक का इस्तेमाल कर सकते हैं।
◾ राज्य विधानमंडल (State Legislature): गठन, कार्य, आदि ◾ भारतीय संसद (Indian Parliament): Overview |
सवाल-जवाब के लिए टेलीग्राम जॉइन करें; टेलीग्राम पर जाकर सर्च करे – @upscandpcsofficial
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अस्वीकरण – यहाँ प्रस्तुत अनुच्छेद और उसकी व्याख्या, मूल संविधान (उपलब्ध संस्करण), संविधान पर डी डी बसु की व्याख्या (मुख्य रूप से), प्रमुख पुस्तकें (एम. लक्ष्मीकान्त, सुभाष कश्यप, विद्युत चक्रवर्ती, प्रमोद अग्रवाल इत्यादि) एनसाइक्लोपीडिया, संबंधित मूल अधिनियम और संविधान के विभिन्न ज्ञाताओं (जिनके लेख समाचार पत्रों, पत्रिकाओं एवं इंटरनेट पर ऑडियो-विजुअल्स के रूप में उपलब्ध है) पर आधारित है। हमने बस इसे रोचक और आसानी से समझने योग्य बनाने का प्रयास किया है। |