यह लेख Article 189 (अनुच्छेद 189) का यथारूप संकलन है। आप इस मूल अनुच्छेद का हिन्दी और इंग्लिश दोनों संस्करण पढ़ सकते हैं। आप इसे अच्छी तरह से समझ सके इसीलिए इसकी व्याख्या भी नीचे दी गई है आप उसे जरूर पढ़ें, और MCQs भी सॉल्व करें।

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📜 अनुच्छेद189 (Article 189) – Original

भाग 6 “राज्य” [अध्याय 3 — राज्य का विधान मंडल] [कार्य संचालन]
189. सदनों में मतदान, रिक्तियों के होते हुए भी सदनों की कार्य करने की शक्ति और गणपूर्ति — (1) इस संविधान में यथा अन्यथा उपबंधित के सिवाय, किसी राज्य के विधान-मंडल के किसी सदन की बैठक में सभी प्रश्नों का अवधारण, अध्यक्ष या सभापति को अथवा उस रूप में कार्य करने वाले व्यक्ति को छोड़कर, उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों के बहुमत से किया जाएगा।

अध्यक्ष या सभापति, अथवा उस रूप में कार्य करने वाला व्यक्ति प्रथमत: मत नहीं देगा, किंतु मत बराबर होने की दशा में उसका निर्णायक मत होगा और वह उसका प्रयोग करेगा।

(2) राज्य के विधान-मंडल के किसी सदन की सदस्यता में कोई रिक्ति होने पर भी, उस सदन को कार्य करने की शक्ति होगी और यदि बाद में यह पता चलता है कि कोई व्यक्ति, जो ऐसा करने का हकदार नहीं था, कार्यवाहियों में उपस्थित रहा है या उसने मत दिया है या अन्यथा भाग लिया है तो भी राज्य के विधान-मंडल की कार्यवाही विधिमान्य होगी।

1[(3) जब तक राज्य का विधान-मंडल विधि द्वारा अन्यथा उपबंध न करे तब तक राज्य के विधान-मंडल के किसी सदन का अधिवेशन गठित करने के लिए गणपूर्ति दस सदस्य या सदन के सदस्यों की कुल संख्या का दसवां भाग, इसमें से जो भी अधिक हो, होगी।

(4) यदि राज्य की विधान सभा या विधान परिषद्‌ के अधिवेशन में किसी समय गणपूर्ति नहीं है तो अध्यक्ष या सभापति अथवा उस रूप में कार्य करने वाले व्यक्ति का यह कर्तव्य होगा कि वह सदन को स्थगित कर दे या अधिवेशन को तब तक के लिए निलंबित कर दे जब तक गणपूर्ति नहीं हो जाती है।]
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1. संविधान (बयालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1976 की धारा 31 द्वारा कतिपय शब्दों को “तारीख अधिसूचित नहीं की गई)” प्रतिस्थापित नहीं किया गया। इस संशोधन का संविधान (चवालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 45 द्वारा (20-6-1979 से) लोप कर दिया गया ।
अनुच्छेद 189 हिन्दी संस्करण

Part VI “State” [CHAPTER III — The State Legislature] [Conduct of Business]
189. Voting in Houses, power of Houses to act notwithstanding vacancies and quorum— (1) Save as otherwise provided in this Constitution, all questions at any sitting of a House of the Legislature of a State shall be determined by a majority of votes of the members present and voting, other than the Speaker or Chairman, or person acting as such.

The Speaker or Chairman, or person acting as such, shall not vote in the first instance, but shall have and exercise a casting vote in the case of an equality of votes.

(2) A House of the Legislature of a State shall have power to act notwithstanding any vacancy in the membership thereof, and any proceedings in the Legislature of a State shall be valid notwithstanding that it is discovered subsequently that some person who was not entitled so to do sat or voted or otherwise took part in the proceedings.
1[(3) Until the Legislature of the State by law otherwise provides, the quorum to constitute a meeting of a House of the Legislature of a State shall be ten members or one-tenth of the total number of members of the House, whichever is greater.

(4) If at any time during a meeting of the Legislative Assembly or the Legislative Council of a State there is no quorum, it shall be the duty of the Speaker or Chairman, or person acting as such, either to adjourn the House or
to suspend the meeting until there is a quorum.]
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1. Omitted by the Constitution (Forty-second Amendment) Act, 1976, s. 31 (date not notified). This amendment was omitted by the Constitution (Forty-fourth Amendment) Act, 1978, s. 45 (w.e.f. 20-6-1979).
Article 189 English Version

🔍 Article 189 Explanation in Hindi

भारतीय संविधान का भाग 6, अनुच्छेद 152 से लेकर अनुच्छेद 237 तक कुल 6 अध्यायों (Chapters) में विस्तारित है (जिसे कि आप नीचे टेबल में देख सकते हैं)।

ChaptersTitleArticles
Iसाधारण (General)Article 152
IIकार्यपालिका (The Executive)Article 153 – 167
IIIराज्य का विधान मंडल (The State Legislature)Article 168 – 212
IVराज्यपाल की विधायी शक्ति (Legislative Power of the Governor)Article 213
Vराज्यों के उच्च न्यायालय (The High Courts in the States)Article 214 – 232
VIअधीनस्थ न्यायालय (Subordinate Courts)Article 233 – 237
[Part 6 of the Constitution]

जैसा कि आप ऊपर देख सकते हैं, इस भाग के अध्याय 3 का नाम है “राज्य का विधान मंडल (The State Legislature)” और इसका विस्तार अनुच्छेद 158 से लेकर अनुच्छेद 212 तक है।

इस अध्याय को आठ उप-अध्यायों (sub-chapters) में बांटा गया है, जिसे कि आप नीचे चार्ट में देख सकते हैं;

Chapter 3 [Sub-Chapters]Articles
साधारण (General)Article 168 – 177
राज्य के विधान मण्डल के अधिकारी (Officers of the State Legislature)Article 178 – 187
कार्य संचालन (Conduct of Business)Article 188 – 189
सदस्यों की निरर्हताएं (Disqualifications of Members)Article 190 – 193
राज्यों के विधान-मंडलों और उनके सदस्यों की शक्तियां, विशेषाधिकार और उन्मुक्तियां (Powers, privileges and immunities of State Legislatures and their members)Article 194 – 195
विधायी प्रक्रिया (Legislative Procedure)Article 196 – 201
वित्तीय विषयों के संबंध में प्रक्रिया (Procedure in respect of financial matters)Article 202 – 207
साधारण प्रक्रिया (Procedure Generally)Article 208 – 212
[Part 6 of the Constitution]

इस लेख में हम कार्य संचालन (Conduct of Business) के तहत आने वाले Article 189 को समझने वाले हैं।

अनुच्छेद 100 – भारतीय संविधान
Closely Related to Article 189

| अनुच्छेद 189 – सदनों में मतदान, रिक्तियों के होते हुए भी सदनों की कार्य करने की शक्ति और गणपूर्ति (Voting in Houses, power of Houses to act notwithstanding vacancies and quorum)

भारत एक संघीय व्यवस्था वाला देश है यानी कि यहाँ केंद्र सरकार की तरह राज्य सरकार भी होता है और जिस तरह से केंद्र में विधायिका (Legislature) होता है उसी तरह से राज्य का भी अपना एक विधायिका होता है।

केन्द्रीय विधायिका (Central Legislature) को भारत की संसद (Parliament of India) कहा जाता है। यह एक द्विसदनीय विधायिका है, जिसका अर्थ है कि इसमें दो सदन हैं: लोकसभा (लोगों का सदन) और राज्यसभा (राज्यों की परिषद)। इसी तरह से राज्यों के लिए भी व्यवस्था की गई है।

अनुच्छेद 168(1) के तहत प्रत्येक राज्य के लिए एक विधानमंडल (Legislature) की व्यवस्था की गई है और यह विधानमंडल एकसदनीय (unicameral) या द्विसदनीय (bicameral) हो सकती है।

जिस तरह से अनुच्छेद 100 के तहत केंद्र में सदनों में मतदान, रिक्तियों के होते हुए भी सदनों की कार्य करने की शक्ति और गणपूर्ति के बारे में बताया गया है, उसी तरह से अनुच्छेद 189 के तहत राज्यों में सदनों में मतदान, रिक्तियों के होते हुए भी सदनों की कार्य करने की शक्ति और गणपूर्ति के बारे में बताया गया है;

अनुच्छेद 189 के तहत कुल 4 खंड आते हैं आइये इसे समझें;

अनुच्छेद 100(1)  के तहत कहा गया है कि इस संविधान में यथा अन्यथा उपबंधित के सिवाय, किसी राज्य के विधान-मंडल के किसी सदन की बैठक में सभी प्रश्नों का अवधारण, अध्यक्ष या सभापति को अथवा उस रूप में कार्य करने वाले व्यक्ति को छोड़कर, उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों के बहुमत से किया जाएगा।

यहाँ दो बातें हैं;

पहली बात तो ये कि संविधान में मतदान के बारे में और कहीं जो भी लिखा हुआ है उसके अलावा प्रत्येक सदन की बैठक में सभी प्रश्नों का अवधारण उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों के बहुमत से किया जाएगा।

लेकिन यहाँ याद रखिए कि इस तरह के मतदान में विधान सभा अध्यक्ष अथवा विधान परिषद सभापति के रूप में कार्य करने वाले व्यक्ति को शामिल नहीं किया जाएगा।

दूसरी बात ये कि विधान परिषद के सभापति या विधान सभा अध्यक्ष, के रूप में कार्य करने वाला व्यक्ति शुरू-शुरू में मत नहीं देगा (जैसा कि हमने ऊपर समझा), लेकिन मत बराबर होने की दशा में उसका मत निर्णायक होगा और तब वह अपने मत का प्रयोग कर सकेगा।

यहां यह याद रखिए कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 181 का खंड 2 इस धारणा को उलट देता है और कहता है कि कार्यवाहक अध्यक्ष पहली बार में मतदान कर सकता है, लेकिन वोटों की समानता उत्पन्न होने की स्थिति में नहीं।

अनुच्छेद 100(2) के तहत बताया गया है कि राज्य के विधान-मंडल के किसी सदन की सदस्यता में कोई रिक्ति होने पर भी, उस सदन को कार्य करने की शक्ति होगी और यदि बाद में यह पता चलता है कि कोई व्यक्ति, जो ऐसा करने का हकदार नहीं था, कार्यवाहियों में उपस्थित रहा है या उसने मत दिया है या अन्यथा भाग लिया है तो भी राज्य के विधान-मंडल की कार्यवाही विधिमान्य होगी।

यहाँ दो बाते हैं;

पहली बात तो ये कि विधान मंडल के किसी सदन में अगर कुछ सदस्य का स्थान रिक्त (vacant) भी है तब भी सदन अपना कार्य कर सकेगा।

कहने का अर्थ ये है कि कई बार किसी सदस्य को अयोग्य (disqualified) ठहरा दिया जाता है, और इस तरह से उसका पद रिक्त हो जाता है। इसी तरह से किसी सदस्य की मृत्यु हो सकती है तब भी सदन में रिक्ति आ जाती है।

ऐसी स्थिति में जरूरी नहीं है कि पहले उस सीट को भरा जाए उसके बाद विधान मंडल के सदन को संचालित किया जाए। यानि कि उस रिक्ति के साथ भी विधान मंडल अपना काम अच्छे से कर सकता है।

दूसरी बात ये है कि यदि बाद में यह पता चलता है कि कोई व्यक्ति, जो संसद के कार्यवाहियों में उपस्थित होने का हकदार नहीं था या मत देने का हकदार नहीं था लेकिन फिर भी उसने सदन की कार्यवाहियों में भाग लिया हो या फिर मत दिया हो तो भी विधान मंडल की कार्यवाही विधिमान्य होगी।

अनुच्छेद 100(3) के तहत यह व्यवस्था किया गया है कि जब तक राज्य का विधान-मंडल विधि द्वारा अन्यथा उपबंध न करे तब तक राज्य के विधान-मंडल के किसी सदन का अधिवेशन गठित करने के लिए गणपूर्ति दस सदस्य या सदन के सदस्यों की कुल संख्या का दसवां भाग, इसमें से जो भी अधिक हो, होगी।

भारतीय विधान मंडल में, एक कोरम कार्य संचालन और निर्णय लेने के लिए आवश्यक सदस्यों की न्यूनतम संख्या को संदर्भित करता है। कोरम को विधान सभा (निचले सदन) या विधान परिषद (उच्च सदन) में सदस्यों की कुल संख्या के दसवें हिस्से के रूप में परिभाषित किया गया है।

यदि किसी भी सदन की बैठक के दौरान किसी भी समय यह पाया जाता है कि उपस्थित सदस्यों की संख्या गणपूर्ति से कम है, तो पीठासीन अधिकारी को सदन को तब तक स्थगित करने की आवश्यकता होती है जब तक कि गणपूर्ति के लिए पर्याप्त संख्या में सदस्य उपस्थित न हों।

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि कोरम की आवश्यकता केवल बैठक की शुरुआत में और मतदान के दौरान होती है। एक बार कोरम पूरा हो जाने के बाद, यह आवश्यक नहीं है कि इसे पूरी बैठक के दौरान बनाए रखा जाए।

अनुच्छेद 100(4) के तहत यह व्यवस्था किया गया है कि यदि राज्य की विधान सभा या विधान परिषद्‌ के अधिवेशन में किसी समय गणपूर्ति नहीं है तो अध्यक्ष या सभापति अथवा उस रूप में कार्य करने वाले व्यक्ति का यह कर्तव्य होगा कि वह सदन को स्थगित कर दे या अधिवेशन को तब तक के लिए निलंबित कर दे जब तक गणपूर्ति नहीं हो जाती है।

इसे हमने ऊपर समझ लिया है कि यदि किसी भी सदन की बैठक के दौरान किसी भी समय यह पाया जाता है कि उपस्थित सदस्यों की संख्या गणपूर्ति से कम है, तो पीठासीन अधिकारी को सदन को तब तक स्थगित करने की आवश्यकता होती है जब तक कि गणपूर्ति के लिए पर्याप्त संख्या में सदस्य उपस्थित न हों।

तो यही है Article 189 , उम्मीद है आपको समझ में आया होगा। दूसरे अनुच्छेदों को समझने के लिए नीचे दिए गए लिंक का इस्तेमाल कर सकते हैं।

राज्य विधानमंडल (State Legislature): गठन, कार्य, आदि
भारतीय संसद (Indian Parliament): Overview
Must Read

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Chapter Wise Polity Quiz

विधानसभा और विधानपरिषद : अभ्यास प्रश्न

  1. Number of Questions – 8 
  2. Passing Marks – 75  %
  3. Time – 6 Minutes
  4. एक से अधिक विकल्प सही हो सकते हैं।

1 / 8

विधान सभा अध्यक्ष निम्न में से किसका अध्यक्ष होता है?

2 / 8

विधान सभा के अध्यक्ष को ध्यान में रखते हुए दिए गए कथनों में से सही कथन का चुनाव करें;

  1. विधानसभा के सदस्य अपने सदस्यों के बीच से ही अध्यक्ष का निर्वाचन करते है।
  2. विधानसभा अध्यक्ष वोटिंग प्रक्रिया में कभी भाग नहीं ले सकता है।
  3. अध्यक्ष कोरम की अनुपस्थिति में वह विधानसभा की बैठक को स्थगित या निलंबित कर सकता है।
  4. अध्यक्ष दसवीं अनुसूची के उपबंधों आधार पर किसी सदस्य की निरर्हता को लेकर उठे किसी विवाद पर फैसला देता है।

3 / 8

निम्न में से किन मामलों में विधान परिषद विधान सभा के बराबर होता है?

4 / 8

विधान परिषद के अध्यक्ष के संबंध में दिए गए कथनों में से सही कथन का चुनाव करें;

5 / 8

इनमें से कौन सा कथन राज्य विधान परिषद को राज्यसभा से अलग करता है?

6 / 8

विधानसभा के गठन के संबंध में दिए गए कथनों में से कौन सा कथन सही है?

7 / 8

दिए गए कथनों में से सही कथन का चुनाव करें;

  1. विधान परिषद कभी विघटित नहीं होता है।
  2. विधान परिषद प्रसिद्ध व्यक्तियों और विशेषज्ञों को प्रतिनिधित्व प्रदान करती है जो प्रत्यक्ष चुनाव का सामना नहीं कर पाते।
  3. विधानपरिषद वित्त विधेयक में न संशोधन और न ही इसे अस्वीकार कर सकती है।
  4. कोई विधेयक वित्त विधेयक है या नहीं, यह तय करने का अधिकार विधानसभा के अध्यक्ष को है।

8 / 8

राज्य विधानसभा के उपाध्यक्ष एवं विधान परिषद के उप-सभापति को ध्यान में रखकर दिए गए कथनों में से सही कथन का चुनाव करें;

  1. उपाध्यक्ष अपना इस्तीफ़ा अध्यक्ष को सौंपता है।
  2. उपाध्यक्ष, अध्यक्ष की अनुपस्थिति में अध्यक्ष की शक्तियों का उपभोग करता है।
  3. विधानसभा अध्यक्ष सदस्यों के बीच से एक पैनल का गठन करता है, उनमें से कोई एक अध्यक्ष की अनुपस्थिति में सभा की कार्यवाही सम्पन्न कराता है।
  4. विधान सभा चाहे तो बहुमत के आधार पर अध्यक्ष को हटाने का संकल्प पारित कर सकता है।

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मौलिक अधिकार बेसिक्स
भारत की न्यायिक व्यवस्था
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अस्वीकरण – यहाँ प्रस्तुत अनुच्छेद और उसकी व्याख्या, मूल संविधान (उपलब्ध संस्करण), संविधान पर डी डी बसु की व्याख्या (मुख्य रूप से), प्रमुख पुस्तकें (एम. लक्ष्मीकान्त, सुभाष कश्यप, विद्युत चक्रवर्ती, प्रमोद अग्रवाल इत्यादि) एनसाइक्लोपीडिया, संबंधित मूल अधिनियम और संविधान के विभिन्न ज्ञाताओं (जिनके लेख समाचार पत्रों, पत्रिकाओं एवं इंटरनेट पर ऑडियो-विजुअल्स के रूप में उपलब्ध है) पर आधारित है। हमने बस इसे रोचक और आसानी से समझने योग्य बनाने का प्रयास किया है।