यह लेख Article 169 (अनुच्छेद 169) का यथारूप संकलन है। आप इस मूल अनुच्छेद का हिन्दी और इंग्लिश दोनों संस्करण पढ़ सकते हैं। आप इसे अच्छी तरह से समझ सके इसीलिए इसकी व्याख्या भी नीचे दी गई है आप उसे जरूर पढ़ें, और MCQs भी सॉल्व करें।
अनुच्छेद 169(1) के तहत, संसद चाहे तो विधि बनाकर जिस राज्य में विधान-परिषद नहीं है उस राज्य में विधान परिषद का निर्माण कर सकती है और जिस राज्य में विधान-परिषद है उस राज्य में विधान-परिषद को समाप्त कर सकती है।
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📜 अनुच्छेद 169 (Article 169) – Original
भाग 6 “राज्य” [अध्याय 3 — राज्य का विधान मंडल] [साधारण] |
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169. राज्यों में विधान परिषदों का उत्सादन या सृजन — (1) अनुच्छेद 168 में किसी बात के होते हुए भी, संसद् विधि द्वारा किसी विधान परिषद् वाले राज्य में विधान परिषद् के उत्सादन के लिए या ऐसे राज्य में, जिसमें विधान परिषद् नहीं है, विधान परिषद् के सृजन के लिए उपबंध कर सकेगी, यदि उस राज्य की विधान सभा ने इस आशय का संकल्प विधान सभा की कुल सदस्य संख्या के बहुमत द्वारा तथा उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों की संख्या के कम से कम दो-तिहाई बहुमत द्वारा पारित कर दिया है। (2) खंड (1) में विनिर्दिष्ट किसी विधि में इस संविधान के संशोधन के लिए ऐसे उपबंध अंतर्विष्ट होंगे जो उस विधि के उपबंधों को प्रभावी करने के लिए आवश्यक हों तथा ऐसे अनुपूरक, आनुषंगिक और पारिणामिक उपबंध भी अंतर्विष्ट हो सकेंगे जिन्हें संसद् आवश्यक समझे। (3) पूर्वोक्त प्रकार की कोई विधि अनुच्छेद 368 के प्रयोजनों के लिए इस संविधान का संशोधन नहीं समझी जाएगी। |
Part VI “State” [CHAPTER III — THE State Legislature] [General] |
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169. Abolition or creation of Legislative Councils in States. — (1) Notwithstanding anything in article 168, Parliament may by law provide for the abolition of the Legislative Council of a State having such a Council or for the creation of such a Council in a State having no such Council, if the Legislative Assembly of the State passes a resolution to that effect by a majority of the total membership of the Assembly and by a majority of not less than two-thirds of the members of the Assembly present and voting. (2) Any law referred to in clause (1) shall contain such provisions for the amendment of this Constitution as may be necessary to give effect to the provisions of the law and may also contain such supplemental, incidental and consequential provisions as Parliament may deem necessary. (3) No such law as aforesaid shall be deemed to be an amendment of this Constitution for the purposes of article 368. |
🔍 Article 169 Explanation in Hindi
भारतीय संविधान का भाग 6, अनुच्छेद 152 से लेकर अनुच्छेद 237 तक कुल 6 अध्यायों (Chapters) में विस्तारित है (जिसे कि आप नीचे टेबल में देख सकते हैं)।
Chapters | Title | Articles |
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I | साधारण (General) | Article 152 |
II | कार्यपालिका (The Executive) | Article 153 – 167 |
III | राज्य का विधान मंडल (The State Legislature) | Article 168 – 212 |
IV | राज्यपाल की विधायी शक्ति (Legislative Power of the Governor) | Article 213 |
V | राज्यों के उच्च न्यायालय (The High Courts in the States) | Article 214 – 232 |
VI | अधीनस्थ न्यायालय (Subordinate Courts) | Article 233 – 237 |
जैसा कि आप ऊपर देख सकते हैं, इस भाग के अध्याय 3 का नाम है “राज्य का विधान मंडल (The State Legislature)” और इसका विस्तार अनुच्छेद 158 से लेकर अनुच्छेद 212 तक है।
इस अध्याय को आठ उप-अध्यायों (sub-chapters) में बांटा गया है, जिसे कि आप नीचे चार्ट में देख सकते हैं;
Chapter 3 [Sub-Chapters] | Articles |
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साधारण (General) | Article 168 – 177 |
राज्य के विधान मण्डल के अधिकारी (Officers of the State Legislature) | Article 178 – 187 |
कार्य संचालन (Conduct of Business) | Article 188 – 189 |
सदस्यों की निरर्हताएं (Disqualifications of Members) | Article 190 – 193 |
राज्यों के विधान-मंडलों और उनके सदस्यों की शक्तियां, विशेषाधिकार और उन्मुक्तियां (Powers, privileges and immunities of State Legislatures and their members) | Article 194 – 195 |
विधायी प्रक्रिया (Legislative Procedure) | Article 196 – 201 |
वित्तीय विषयों के संबंध में प्रक्रिया (Procedure in respect of financial matters) | Article 202 – 207 |
साधारण प्रक्रिया (Procedure Generally) | Article 208 – 212 |
इस लेख में हम साधारण (General) के तहत आने वाले अनुच्छेद 169 को समझने वाले हैं।
⚫ अनुच्छेद 79 – भारतीय संविधान |
| अनुच्छेद 169 – राज्यों में विधान परिषदों का उत्सादन या सृजन (Abolition or creation of Legislative Councils in States)
जैसा कि हम जानते हैं कि भारत एक संघीय व्यवस्था वाला देश है यानी कि यहाँ केंद्र सरकार की तरह राज्य सरकार भी होता है और जिस तरह से केंद्र में विधायिका (Legislature) होता है उसी तरह से राज्य का भी अपना एक विधायिका होता है।
◾ केन्द्रीय विधायिका (Central Legislature) को भारत की संसद (Parliament of India) कहा जाता है। यह एक द्विसदनीय विधायिका है, जिसका अर्थ है कि इसमें दो सदन हैं: लोकसभा (लोगों का सदन) और राज्यसभा (राज्यों की परिषद)। इसी तरह से राज्यों के लिए भी व्यवस्था की गई है।
अनुच्छेद 168(1) के तहत प्रत्येक राज्य के लिए एक विधानमंडल (Legislature) की व्यवस्था की गई है और यह विधानमंडल एकसदनीय (unicameral) या द्विसदनीय (bicameral) हो सकती है।
अभी की बात करें तो 6 राज्यों में द्विसदनीय विधानमंडल हैं, या छह राज्य है – Andhra Pradesh, Bihar, Karnataka, Maharashtra, Telangana, और Uttar Pradesh।
इन राज्यों में ऊपरी सदन को विधान परिषद (Legislative Council) और निचले सदन को विधान सभा (Assembly) कहा जाता है। अनुच्छेद 169 इसी विधान-परिषद को बनाने और खत्म करने के बारे में है। इस अनुच्छेद के तीन खंड है;
अनुच्छेद 169(1) के तहत कहा गया है कि भले ही अनुच्छेद 168 में कुछ भी लिखा हो, संसद चाहे तो विधि बनाकर जिस राज्य में विधान-परिषद नहीं है उस राज्य में विधान परिषद का निर्माण कर सकती है और जिस राज्य में विधान-परिषद है उस राज्य में विधान-परिषद को समाप्त कर सकती है।
हालांकि यह काम संसद तभी कर सकती है जब संबंधित राज्य अपने विधानसभा में एक संकल्प पारित करे और यह संकल्प कुल सदस्यों का बहुमत और उपस्थित और मतदान में भाग लेने वाले सदस्यों का दो-तिहाई से पारित होना चाहिए।
कुल मिलाकर अनुच्छेद 169(1) के तहत चार बातें हैं, जिसे आपको याद रखना है;
पहला) किसी राज्य में विधान-परिषद का निर्माण कर सकती है।
दूसरा) किसी राज्य से विधान-परिषद को समाप्त कर सकती है।
तीसरा) संसद ऐसा तभी कर सकती है जब वह राज्य ऐसा करने को कहे; और,
चौथा) राज्य ऐसा तभी कह सकती है जब उसने विधानसभा में इस संकल्प को दो-तिहाई बहुमत से पारित किया हो।
अनुच्छेद 169(2) के तहत कहा गया है कि खंड (1) में विनिर्दिष्ट किसी विधि में इस संविधान के संशोधन के लिए ऐसे उपबंध अंतर्विष्ट होंगे जो उस विधि के उपबंधों को प्रभावी करने के लिए आवश्यक हों तथा ऐसे अनुपूरक, आनुषंगिक और पारिणामिक उपबंध भी अंतर्विष्ट हो सकेंगे जिन्हें संसद् आवश्यक समझे।
इसका मतलब यह है कि अनुच्छेद 169 के खंड (1) के तहत जो विधान-परिषद बनाने और मिटाने की शक्ति संसद को दी गई है उसके लिए संसद जो विधि बनाएगा उस विधि में इस संविधान के संशोधन के प्रावधान शामिल होने चाहिए जो उस विधि के प्रावधानों को प्रभावी बनाने के लिए आवश्यक हो सकते हैं।
और यदि इसकी आवश्यकता पड़ती है तो संसद अनुपूरक (Supplementary), आनुषंगिक (incidental और पारिणामिक (Consequential) प्रावधान भी इसमें शामिल कर सकता है लेकिन इस संविधान में संशोधन के प्रावधान खंड (1) की आवश्यकताओं के अनुसार होने चाहिए।
अनुपूरक (Supplementary) मतलब: किसी चीज़ को सुधारने या पूरा करने के लिए उसमें जोड़े जाने वाले कुछ चीज़ें। आनुषंगिक (incidental) मतलब: अपेक्षाकृत अधिक महत्वपूर्ण वस्तु के अंश के रूप में घटित कुछ चीज़ें। पारिणामिक (Consequential) मतलब: घटना विशेष के प्रत्यक्ष परिणामस्वरूप चीज़ें। |
अनुच्छेद 169(3) के तहत कहा गया है कि पूर्वोक्त प्रकार की कोई विधि अनुच्छेद 368 के प्रयोजनों के लिए इस संविधान का संशोधन नहीं समझी जाएगी।
जैसा कि हमने अनुच्छेद 169 के खंड (1) और (2) के तहत समझा कि विधान-परिषद को बनाने या मिटाने के लिए संसद द्वारा बनाए गए विधि में संविधान संशोधन के उपबंध शामिल हो सकते हैं; लेकिन अनुच्छेद 169 के खंड (3) के तहत कहा गया है कि इस तरह से जो भी संशोधन होगा उसे अनुच्छेद 368 के तहत संविधान संशोधन नहीं समझा जाएगा।
अगर आपको अनुच्छेद 4 याद हो तो उसमें भी कुछ ऐसा ही लिखा हुआ है कि अनुच्छेद 2 और 3 के तहत जो भी परिवर्तन किए जाएंगे वे सभी संविधान के अनुच्छेद 368 के तहत संशोधन नहीं माना जाएगा।
दरअसल अनुच्छेद 368 संविधान में संशोधन के लिए है, अगर अनुच्छेद 368 के तहत किसी प्रकार का संशोधन संविधान में किया जाता है तो उसके लिए विशेष बहुमत (special majority) की जरूरत पड़ती है।
लेकिन अनुच्छेद 169(3) में लिखा हुआ है कि इस अनुच्छेद के तहत किया गया परिवर्तन अनुच्छेद 368 के तहत संविधान संशोधन नहीं माना जाएगा। इसका मतलब ये हुआ कि इस तरह का कानून सामान्य बहुमत (Simple majority) और साधारण विधायी प्रक्रिया से पारित किया जा सकता है।
Q. क्या अनुच्छेद 169 का कभी इस्तेमाल हुआ है?
उत्तर: हां; आंध्र प्रदेश के विधान परिषद (LC) को साल 1985 में खत्म कर दिया गया था लेकिन उसे फिर से 2007 में पुनः बहाल कर दिया गया। इसी तरह से तमिलनाडु में भी पहले विधान परिषद हुआ करता था लेकिन साल 1986 में इसे खत्म कर दिया गया।
साल 2020 में आंध्र प्रदेश विधानसभा ने विधान परिषद को खत्म करने का प्रस्ताव पारित किया. और संसद के पास मंजूरी के लिए भेजा गया जो कि अभी भी pending है।
अभी छह राज्यों में विधान परिषद (Legislative Council) हैं, ये राज्य हैं; Andhra Pradesh, Telangana, Uttar Pradesh, Bihar, Maharashtra, Karnataka.
तो यही है अनुच्छेद 169, उम्मीद है आपको समझ में आया होगा। दूसरे अनुच्छेदों को समझने के लिए नीचे दिए गए लिंक का इस्तेमाल कर सकते हैं।
◾ राज्य विधानमंडल (State Legislature): गठन, कार्य, आदि ◾ भारतीय संसद (Indian Parliament): Overview |
सवाल-जवाब के लिए टेलीग्राम जॉइन करें; टेलीग्राम पर जाकर सर्च करे – @upscandpcsofficial
Related MCQs with Explanation
Question 1:
Which Article of the Indian Constitution deals with the creation or abolition of Legislative Councils in States?
A) Article 170
B) Article 171
C) Article 169
D) Article 172
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Question 2:
Under what circumstances can a Legislative Council in a State be abolished?
A) By a two-thirds majority of the State Legislative Assembly
B) By a simple majority of the State Legislative Assembly
C) By a presidential order
D) By a referendum of the state’s citizens
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Question 3:
Which of the following States in India currently has a Legislative Council?
A) Bihar
B) Punjab
C) Kerala
D) Tamil Nadu
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Question 4:
What is the maximum term of a member of a Legislative Council in a State?
A) 4 years
B) 5 years
C) 6 years
D) 7 years
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Question 5:
Which of the following statements about Article 169 is true?
A) Article 169 can be amended only by a special majority of Parliament.
B) Article 169 can be amended by a simple majority of Parliament.
C) Article 169 can be amended only by a special majority of the State Legislature.
D) Article 169 cannot be amended.
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⚫ अनुच्छेद 170 – भारतीय संविधान |
⚫ अनुच्छेद 168 – भारतीय संविधान |
⚫ भारतीय संविधान ⚫ संसद की बेसिक्स ⚫ मौलिक अधिकार बेसिक्स ⚫ भारत की न्यायिक व्यवस्था ⚫ भारत की कार्यपालिका |
अस्वीकरण – यहाँ प्रस्तुत अनुच्छेद और उसकी व्याख्या, मूल संविधान (उपलब्ध संस्करण), संविधान पर डी डी बसु की व्याख्या (मुख्य रूप से), प्रमुख पुस्तकें (एम. लक्ष्मीकान्त, सुभाष कश्यप, विद्युत चक्रवर्ती, प्रमोद अग्रवाल इत्यादि) एनसाइक्लोपीडिया, संबंधित मूल अधिनियम और संविधान के विभिन्न ज्ञाताओं (जिनके लेख समाचार पत्रों, पत्रिकाओं एवं इंटरनेट पर ऑडियो-विजुअल्स के रूप में उपलब्ध है) पर आधारित है। हमने बस इसे रोचक और आसानी से समझने योग्य बनाने का प्रयास किया है। |