यह लेख Article 190 (अनुच्छेद 190) का यथारूप संकलन है। आप इस मूल अनुच्छेद का हिन्दी और इंग्लिश दोनों संस्करण पढ़ सकते हैं। आप इसे अच्छी तरह से समझ सके इसीलिए इसकी व्याख्या भी नीचे दी गई है आप उसे जरूर पढ़ें, और MCQs भी सॉल्व करें।

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📜 अनुच्छेद 190 (Article 190) – Original

भाग 6 “राज्य” [अध्याय 3 — राज्य का विधान मंडल] [सदस्यों की निरर्हताएं]
190. स्थानों का रिक्त होना — (1) कोई व्यक्ति राज्य के विधान-मंडल के दोनों सदनों का सदस्य नहीं होगा और जो व्यक्ति दोनों सदनों का सदस्य चुन लिया जाता है उसके एक या दूसरे सदन के स्थान को रिक्त करने के लिए उस राज्य का विधान-मंडल विधि द्वारा उपबंध करेगा।

(2) कोई व्यक्ति पहली अनुसूची में विनिर्दिष्ट दो या अधिक राज्यों के विधान- मंडलों का सदस्य नहीं होगा और यदि कोई व्यक्ति दो या अधिक ऐसे राज्यों के विधान- मंडलों का सदस्य चुन लिया जाता है तो ऐसी अवधि की समाप्ति के पश्चात्‌ जो राष्ट्रपति द्वारा बनाए गए नियमों1 में विनिर्दिष्ट की जाए, ऐसे सभी राज्यों के विधान-मंडलों में ऐसे व्यक्ति का स्थान रिक्त हो जाएगा यदि उसने एक राज्य को छोड़कर अन्य राज्यों के विधान-मंडलों में अपने स्थान को पहले ही नहीं त्याग दिया है।

(3) यदि राज्य के विधान-मंडल के किसी सदन का सदस्य
(क) 2[अनुच्छेद 191 के खंड (2)] में वर्णित किसी निरर्हता से ग्रस्त हो जाता है, या
3[(ख) यथास्थिति, अध्यक्ष या सभापति को संबोधित अपने हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा अपने स्थान का त्याग कर देता है और उसका त्यागपत्र,
यथास्थिति, अध्यक्ष या सभापति द्वारा स्वीकार कर लिया जाता है,]
तो ऐसा होने पर उसका स्थान रिक्त हो जाएगा:

4[परंतु उपखंड (ख) में निर्दिष्ट त्यागपत्र की दशा में, यदि प्रास जानकारी से या अन्यथा और ऐसी जांच करने के पश्चात, जो वह ठीक समझे, यथास्थिति, अध्यक्ष या सभापति का यह समाधान हो जाता है कि ऐसा त्यागपत्र स्वैच्छिक या असली नहीं है तो वह ऐसे त्यागपत्र को स्वीकार नहीं करेगा।]

(4) यदि किसी राज्य के विधान-मंडल के किसी सदन का सदस्य साठ दिन की अवधि तक सदन की अनुज्ञा के बिना उसके सभी अधिवेशनों से अनुपस्थित रहता है तो सदन उसके स्थान को रिक्त घोषित कर सकेगा।

परंतु साठ दिन की उक्त अवधि की संगणना करने में किसी ऐसी अवधि को हिसाब में नहीं लिया जाएगा जिसके दौरान सदन सत्रावसित या निरंतर चार से अधिक दिनों के लिए स्थगित रहता है।
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1. देखिए विधि मंत्रालय की अधिसूचना सं. एफ0 46/50-सी, दिनांक 26 जनवरी, 1950, भारत का राजपत्र, असाधारण, पृष्ठ 678 में प्रकाशित समसामयिक सदस्यता प्रतिषेध नियम, 1950।
2. संविधान (बावनवां संशोधन) अधिनियम, 1985 की धारा 4 द्वारा (1-3-1985 से) “अनुच्छेद 9 के खंड (1)” के स्थान पर प्रतिस्थापित।
3. संविधान (तैंतीसवां संशोधन) अधिनियम, 1974 की धारा 4 द्वारा (19-5-1974 से) के स्थान पर प्रतिस्थापित।
4. संविधान (तैतीसवां संशोधन) अधिनियम, 1974 की धारा 3 द्वारा (19-5-1974 से) अंतःस्थापित।
अनुच्छेद 190 हिन्दी संस्करण

Part VI “State” [CHAPTER III — The State Legislature] [Disqualifications of Members]
190. Vacation of seats— (1) No person shall be a member of both Houses of the Legislature of a State and provision shall be made by the Legislature of the State by law for the vacation by a person who is chosen a
member of both Houses of his seat in one house or the other.

(2) No person shall be a member of the Legislatures of two or more States specified in the First Schedule and if a person is chosen a member of the Legislatures of two or more such States, then, at the expiration of such period
as may be specified in rules1 made by the President, that person’s seat in the Legislatures of all such States shall become vacant, unless he has previously resigned his seat in the Legislatures of all but one of the States.

(3) If a member of a House of the Legislature of a State—
(a) becomes subject to any of the disqualifications mentioned in 2[clause (1) or clause (2) of article 191]; or
3[(b) resigns his seat by writing under his hand addressed to the speaker or the Chairman, as the case may be, and his resignation is accepted by the Speaker or the Chairman, as the case may be,]
his seat shall thereupon become vacant:

4[Provided that in the case of any resignation referred to in sub-clause (b), if from information received or otherwise and after making such inquiry as he thinks fit, the Speaker or the Chairman, as the case may be, is satisfied that such resignation is not voluntary or genuine, he shall not accept such resignation.]

(4) If for a period of sixty days a member of a House of the Legislature of a State is without permission of the House absent from all meetings thereof, the House may declare his seat vacant:

Provided that in computing the said period of sixty days no account shall be taken of any period during which the House is prorogued or is adjourned for more than four consecutive days.
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1. See the Prohibition of Simultaneous Membership Rules, 1950 published by the Ministry of Law Notification number F. 46/50-C, dated the 26th January, 1950, Gazette of India, Extraordinary, p. 678.
2. Subs. by the Constitution (Fifty-second Amendment) Act, 1985, s. 4, for “clause (1) of article 191” (w.e.f. 1-3-1985).
3. Subs. by the Constitution (Thirty-third Amendment) Act, 1974, s. 3 (w.e.f. 19-5-1974).
4. Ins. by s. 3, ibid. (w.e.f. 19-5-1974).
Article 190 English Version

🔍 Article 190 Explanation in Hindi

भारतीय संविधान का भाग 6, अनुच्छेद 152 से लेकर अनुच्छेद 237 तक कुल 6 अध्यायों (Chapters) में विस्तारित है (जिसे कि आप नीचे टेबल में देख सकते हैं)।

ChaptersTitleArticles
Iसाधारण (General)Article 152
IIकार्यपालिका (The Executive)Article 153 – 167
IIIराज्य का विधान मंडल (The State Legislature)Article 168 – 212
IVराज्यपाल की विधायी शक्ति (Legislative Power of the Governor)Article 213
Vराज्यों के उच्च न्यायालय (The High Courts in the States)Article 214 – 232
VIअधीनस्थ न्यायालय (Subordinate Courts)Article 233 – 237
[Part 6 of the Constitution]

जैसा कि आप ऊपर देख सकते हैं, इस भाग के अध्याय 3 का नाम है “राज्य का विधान मंडल (The State Legislature)” और इसका विस्तार अनुच्छेद 158 से लेकर अनुच्छेद 212 तक है।

इस अध्याय को आठ उप-अध्यायों (sub-chapters) में बांटा गया है, जिसे कि आप नीचे चार्ट में देख सकते हैं;

Chapter 3 [Sub-Chapters]Articles
साधारण (General)Article 168 – 177
राज्य के विधान मण्डल के अधिकारी (Officers of the State Legislature)Article 178 – 187
कार्य संचालन (Conduct of Business)Article 188 – 189
सदस्यों की निरर्हताएं (Disqualifications of Members)Article 190 – 193
राज्यों के विधान-मंडलों और उनके सदस्यों की शक्तियां, विशेषाधिकार और उन्मुक्तियां (Powers, privileges and immunities of State Legislatures and their members)Article 194 – 195
विधायी प्रक्रिया (Legislative Procedure)Article 196 – 201
वित्तीय विषयों के संबंध में प्रक्रिया (Procedure in respect of financial matters)Article 202 – 207
साधारण प्रक्रिया (Procedure Generally)Article 208 – 212
[Part 6 of the Constitution]

इस लेख में हम सदस्यों की निरर्हताएं (Disqualifications of Members) के तहत आने वाले अनुच्छेद 190 को समझने वाले हैं।

अनुच्छेद 101 – भारतीय संविधान
Closely Related to Article 190

| Article 190 – स्थानों का रिक्त होना (Vacation of seats)

भारत एक संघीय व्यवस्था वाला देश है यानी कि यहाँ केंद्र सरकार की तरह राज्य सरकार भी होता है और जिस तरह से केंद्र में विधायिका (Legislature) होता है उसी तरह से राज्य का भी अपना एक विधायिका होता है।

केन्द्रीय विधायिका (Central Legislature) को भारत की संसद (Parliament of India) कहा जाता है। यह एक द्विसदनीय विधायिका है, जिसका अर्थ है कि इसमें दो सदन हैं: लोकसभा (लोगों का सदन) और राज्यसभा (राज्यों की परिषद)। इसी तरह से राज्यों के लिए भी व्यवस्था की गई है।

अनुच्छेद 168(1) के तहत प्रत्येक राज्य के लिए एक विधानमंडल (Legislature) की व्यवस्था की गई है और यह विधानमंडल एकसदनीय (unicameral) या द्विसदनीय (bicameral) हो सकती है।

जिस तरह से अनुच्छेद 101 के तहत केंद्र में सदनों में मतदान, रिक्तियों के होते हुए भी सदनों की कार्य करने की शक्ति और गणपूर्ति के बारे में बताया गया है, उसी तरह से अनुच्छेद 189 के तहत राज्यों में सदनों में मतदान, रिक्तियों के होते हुए भी सदनों की कार्य करने की शक्ति और गणपूर्ति के बारे में बताया गया है;

अनुच्छेद 190 के तहत कुल 4 खंड आते हैं;

दोहरी सदस्यता (Dual Membership) के आधार पर सदन में स्थान रिक्त होना;

अनुच्छेद 190(1) के तहत बताया गया है कि कोई व्यक्ति राज्य के विधान-मंडल के दोनों सदनों का सदस्य नहीं होगा और जो व्यक्ति दोनों सदनों का सदस्य चुन लिया जाता है उसके एक या दूसरे सदन के स्थान को रिक्त करने के लिए उस राज्य का विधान-मंडल विधि द्वारा उपबंध करेगा।

एक ही व्यक्ति एक साथ विधानमंडल के दोनों सदनों का सदस्य नहीं होगा। लेकिन अगर कोई व्यक्ति दोनों सदनों का सदस्य चुन लिया जाता है तो किसी एक सदन में उसके स्थान को रिक्त करने के लिए विधानमंडल विधि द्वारा उपबंध करेगी।

कहने का अर्थ है कि संविधान दोहरी सदस्यता को मान्यता नहीं देता है। इसे ही दोहरी सदस्यता के आधार पर सदन में स्थान रिक्त होना कहते हैं।

अनुच्छेद 190(2) के तहत यह व्यवस्था है कि कोई व्यक्ति पहली अनुसूची में विनिर्दिष्ट दो या अधिक राज्यों के विधान-मंडलों का सदस्य नहीं होगा और यदि कोई व्यक्ति दो या अधिक ऐसे राज्यों के विधान-मंडलों का सदस्य चुन लिया जाता है तो ऐसी अवधि की समाप्ति के पश्चात्‌ जो राष्ट्रपति द्वारा बनाए गए नियमों में विनिर्दिष्ट की जाए, ऐसे सभी राज्यों के विधान-मंडलों में ऐसे व्यक्ति का स्थान रिक्त हो जाएगा यदि उसने एक राज्य को छोड़कर अन्य राज्यों के विधान-मंडलों में अपने स्थान को पहले ही नहीं त्याग दिया है।

यहाँ दो बातें हैं;

पहली बात तो ये कि एक ही व्यक्ति एक से अधिक राज्य विधानमंडल का सदस्य नहीं हो सकता है।

दूसरी बात ये है कि अगर वो दोनों जगहों पर सदस्य चुन लिए जाते हैं तो उसे एक सीट को खाली करना पड़ेगा नहीं तो राष्ट्रपति द्वारा बनाए गए नियम के अनुसार एक निश्चित अवधि के बाद ऐसे सभी राज्यों के विधान-मंडलों में ऐसे व्यक्ति का स्थान रिक्त हो जाएगा यदि उसने एक राज्य को छोड़कर अन्य राज्यों के विधान-मंडलों में अपने स्थान को पहले ही नहीं त्याग दिया है।

पदत्याग (Resignation) के आधार पर सदन में स्थान रिक्त होना

अनुच्छेद 190(3) के तहत यह व्यवस्था किया गया है कि यदि विधानमंडल के किसी सदन का सदस्य —
(क) अनुच्छेद 191 के खंड (2)] में वर्णित किसी निरर्हता (Disqualification) से ग्रस्त हो जाता है, या
(ख) यथास्थिति, सभापति या अध्यक्ष को संबोधित अपने हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा अपने स्थान का त्याग कर देता है और उसका त्यागपत्र, यथास्थिति, सभापति या अध्यक्ष द्वारा स्वीकार कर लिया जाता है, तो ऐसा होने पर उसका स्थान रिक्त हो जाएगा:

यहाँ दो बाते हैं;

पहली बात तो ये कि अगर अनुच्छेद 191 (2) के तहत कोई व्यक्ति अयोग्य ठहराया जाता है तो फिर उसका स्थान सदन में रिक्त हो जाएगा। क्योंकि दल-बदल के आधार पर अयोग्य ठहराये गए व्यक्ति सदन का सदस्य नहीं हो सकता है।

और दूसरी बात ये है कि अगर वो व्यक्ति खुद ही विधान सभा अध्यक्ष या विधान परिषद सभापति को हस्ताक्षर सहित अपना त्यागपत्र दे देता है और उसके त्यागपत्र को अगर अध्यक्ष या सभापति (जैसी भी स्थिति हो) द्वारा स्वीकार कर लिया जाता है तो भी सदन में उसका स्थान रिक्त हो जाएगा।

इसे ही पदत्याग (Resignation) के आधार पर सदन में स्थान रिक्त होना कहते हैं।

हालांकि यहाँ पर यह याद रखिए कि अगर कोई व्यक्ति विधान सभा अध्यक्ष या विधान परिषद सभापति को अपना त्यागपत्र सौंपता है तो अध्यक्ष (Speaker) या सभापति (Chairman) उस त्यागपत्र की जांच करेगा और अगर वो इसे सही पाता है तो त्यागपत्र स्वीकार कर लेगा।

लेकिन अगर अध्यक्ष या सभापति को अगर लगता है कि यह त्यागपत्र स्वैच्छिक या असली नहीं है तो वह ऐसे त्यागपत्र को स्वीकर नहीं करेगा।

अनुपस्थिति (Absence) के आधार पर सदन में स्थान रिक्त होना

अनुच्छेद 190(4) के तहत बताया गया है कि यदि किसी राज्य के विधान-मंडल के किसी सदन का सदस्य साठ दिन की अवधि तक सदन की अनुज्ञा के बिना उसके सभी अधिवेशनों से अनुपस्थित रहता है तो सदन उसके स्थान को रिक्त घोषित कर सकेगा।

यदि कोई सदस्य सदन की अनुमति के बिना 60 दिन की अवधि से अधिक समय के लिए सदन की सभी बैठकों में अनुपस्थित रहता है तो सदन उसका पद रिक्त घोषित कर सकता है।

(यहाँ पर एक बात याद रखिए कि इन 60 दिनों की अवधि की गणना में, सदन के स्थगन या सत्रावसान की लगातार चार दिनों से अधिक अवधि, को शामिल नहीं किया जाता है।)

इसे ही अनुपस्थिति (Absence) के आधार पर सदन में स्थान रिक्त होना कहते हैं।

तो यही है Article 190, उम्मीद है आपको समझ में आया होगा। दूसरे अनुच्छेदों को समझने के लिए नीचे दिए गए लिंक का इस्तेमाल कर सकते हैं।

राज्य विधानमंडल (State Legislature): गठन, कार्य, आदि
भारतीय संसद (Indian Parliament): Overview
Must Read

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Chapter Wise Polity Quiz

राज्य विधानमंडल: अभ्यास प्रश्न

  1. Number of Questions – 8 
  2. Passing Marks – 75  %
  3. Time – 6 Minutes
  4. एक से अधिक विकल्प सही हो सकते हैं।

1 / 8

निम्न में से किन मामलों में विधानमंडल का सदस्य पद छोड़ता है या उसे छोड़ना पड़ता है?

  1. जब कोई सदस्य अपना त्यागपत्र दे देता हो।
  2. जब कोई सदस्य बिना पूर्व अनुमति के 45 दिनों तक बैठकों से अनुपस्थित रहता हो।
  3. यदि न्यायालय द्वारा उसके निर्वाचन को अमान्य ठहरा दिया जाये।
  4. यदि वह किसी राज्य का राज्यपाल निर्वाचित हो जाये।

2 / 8

विधानमंडल के मामले में कोरम यानी कि गणपूर्ति का पैमाना क्या है?

3 / 8

राज्य विधानमंडल संविधान के किस भाग से संबंधित है?

4 / 8

निम्न में किस राज्य में विधान परिषद नहीं है?

5 / 8

दिए गए कथनों में से सही कथन का चुनाव करें;

  1. सदन के सदस्यों के कम से कम दसवें भाग के बराबर सदस्य उपस्थित नहीं रहने पर सदन नहीं चल सकता है।
  2. महाधिवक्ता विधानमंडल के किसी भी सदन के कार्यवाही में हिस्सा ले सकता है।
  3. राज्य विधानमंडल के सदस्यों को सदन चलने के 40 दिन पहले और 40 दिन बाद तक गिरफ्तार नहीं किया जा सकता।
  4. सदन के सदस्य कुछ महत्वपूर्ण मामलों में गुप्त बैठक कर सकते हैं।

6 / 8

राज्य विधानमंडल में किन स्थितियों में किसी व्यक्ति को सदस्य नहीं बनाया जा सकता है?

  1. यदि वह व्यक्ति विकृत चित्त का हो।
  2. वह चुनाव में किसी प्रकार के भ्रष्ट आचरण अथवा चुनावी अपराध का दोषी नहीं पाया गया हो।
  3. उसे किसी अपराध में 3 महीने या उससे अधिक की सजा मिली हो।
  4. उसे अश्लीलता, दहेज आदि जैसे सामाजिक अपराधों में संलिप्त पाया गया हो।

7 / 8

राज्य विधानमंडल के संबंध में दिए गए कथनों में से सही कथन का चुनाव करें;

8 / 8

राज्य विधानमंडल के सदस्यता के संबंध में दिए गए कथनों में से सही कथन का चुनाव करें;

  1. राज्य विधानमंडल में सदस्यता पाने के लिए किसी व्यक्ति का भारत में रहना जरूरी होता है।
  2. राज्य विधानमंडल की सदस्यता पाने के लिए किसी व्यक्ति की कम से कम 21 वर्ष उम्र होनी चाहिए।
  3. अनुसूचित जाति के व्यक्ति उसी क्षेत्र से विधानमंडल में जा सकते हैं जो उसके लिए आरक्षित है।
  4. विधान परिषद की सदस्यता के लिए कम से कम 30 वर्ष की आयु होनी चाहिए।

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अनुच्छेद 191 – भारतीय संविधान
अनुच्छेद 189 – भारतीय संविधान
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संसद की बेसिक्स
मौलिक अधिकार बेसिक्स
भारत की न्यायिक व्यवस्था
भारत की कार्यपालिका
Important Pages of Compilation
अस्वीकरण – यहाँ प्रस्तुत अनुच्छेद और उसकी व्याख्या, मूल संविधान (उपलब्ध संस्करण), संविधान पर डी डी बसु की व्याख्या (मुख्य रूप से), प्रमुख पुस्तकें (एम. लक्ष्मीकान्त, सुभाष कश्यप, विद्युत चक्रवर्ती, प्रमोद अग्रवाल इत्यादि) एनसाइक्लोपीडिया, संबंधित मूल अधिनियम और संविधान के विभिन्न ज्ञाताओं (जिनके लेख समाचार पत्रों, पत्रिकाओं एवं इंटरनेट पर ऑडियो-विजुअल्स के रूप में उपलब्ध है) पर आधारित है। हमने बस इसे रोचक और आसानी से समझने योग्य बनाने का प्रयास किया है।