यह लेख अनुच्छेद 101 (Article 101) का यथारूप संकलन है। आप इसका हिन्दी और इंग्लिश दोनों अनुवाद पढ़ सकते हैं। आप इसे अच्छी तरह से समझ सके इसीलिए इसकी व्याख्या भी नीचे दी गई है आप उसे जरूर पढ़ें।

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Article 101

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📜 अनुच्छेद 101 (Article 101) – Original

सदस्यों की निर्हताएं
101. स्थानों का रिक्त होना — (1) कोई व्यक्ति संसद्‌ के दोनों सदनों का सदस्य नहीं होगा और जो व्यक्ति दोनों सदनों का सदस्य चुन लिया जाता है उसके एक या दूसरे सदन के स्थान को रिक्त करने के लिए संसद्‌ विधि द्वारा उपबंध करेगी।

(2) कोई व्यक्ति संसद्‌ और किसी 1*** राज्य के विधान-मंडल के किसी सदन, दोनों का सदस्य नहीं होगा और यदि कोई व्यक्ति संसद्‌ और 2[किसी राज्य] के विधान- मंडल के किसी सदन, दोनों का सदस्य चुन लिया जाता है तो ऐसी अवधि की समाप्ति के पश्चात्‌ जो राष्ट्रपति द्वारा बनाए गए नियमों3 में विनिर्दिष्ट की जाए, संसद्‌ में ऐसे व्यक्ति का स्थान रिक्त हो जाएगा यदि उसने राज्य के विधान-मंडल में अपने स्थान को पहले ही नहीं त्याग दिया है।

(3) यदि संसद्‌ के किसी सदन का सदस्य —
(क) 4[अनुच्छेद 102 के खंड (1) या खंड (2)] में वर्णित किसी निर्हता से ग्रस्त हो जाता है, या
5[(ख) यथास्थिति, सभापति या अध्यक्ष को संबोधित अपने हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा अपने स्थान का त्याग कर देता है और उसका त्यागपत्र,
यथास्थिति, सभापति या अध्यक्ष द्वारा स्वीकार कर लिया जाता है,]
तो ऐसा होने पर उसका स्थान रिक्त हो जाएगा :

6[परन्तु उपखंड (ख) में निर्दिष्ट त्यागपत्र की दशा में, यदि प्राप्त जानकारी से या अन्यथा और ऐसी जांच करने के पश्चात्‌, जो वह ठीक समझे, यथास्थिति, सभापति या अध्यक्ष का यह समाधान हो जाता है कि ऐसा त्यागपत्र स्वैच्छिक या असली नहीं है तो वह ऐसे त्यागपत्र को स्वीकर नहीं करेगा।]

(4) यदि संसद्‌ के किसी सदन का कोई सदस्य साठ दिन की अवधि तक सदन की अनुज्ञा के बिना उसके सभी अधिवेशनों से अनुपस्थित रहता है तो सदन उसके स्थान को रिक्त घोषित कर सकेगा:

परन्तु साठ दिन की उक्त अवधि की संगणना करने में किसी ऐसी अवधि को हिसाब में नहीं लिया जाएगा जिसके दौरान सदन सत्रावसित या निरंतर चार से अधिक दिनों के लिए स्थगित रहता है।
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1. संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “पहली अनुसूची के भाग क या भाग ख में विनिर्दिष्ट” शब्दों और अक्षरों का (1-11-1956 से) लोप किया गया।
2. संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “ऐसे किसी राज्य” के स्थान पर प्रतिस्थापित।
3. देखिए, विधि मंत्रालय की अधिसूचना संख्या एफ.46/50-सी, तारीख 26 जनवरी, 1950, भारत का राजपत्र, असाधारण, पृष्ठ 678 में प्रकाशित समसामयिक सदस्यता प्रतिबंध नियम, 1950।
4. संविधान (बावनवाँ संशोधन) अधिनियम, 1985 की धारा 2 द्वारा (1-3-1985 से) “अनुच्छेद 102 के खंड (1)” के स्थान पर प्रतिस्थापित।
5. संविधान (तैंतीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1974 की धारा 2 द्वारा (19-5-1974 से) प्रतिस्थापित।
6. संविधान (तैंतीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1974 की धारा 2 द्वारा (19-5-1974 से) अंतःस्थापित।
—-अनुच्छेद 101 —-

Disqualifications of Members
101. Vacation of seats.— (1) No person shall be a member of both Houses of Parliament and provision shall be made by Parliament by law for the vacation by a person who is chosen a member of both Houses of his seat in one House or the other.

(2) No person shall be a member both of Parliament and of a House of the Legislature of a State 1***, and if a person is chosen a member both of Parliament and of a House of the Legislature of 2[a State], then, at the expiration of such period as may be specified in rules3 made by the President, that person’s seat in Parliament shall become vacant, unless he has previously resigned his seat in the Legislature of the State.

(3) If a member of either House of Parliament —
(a) becomes subject to any of the disqualifications mentioned in 4[clause (1) or clause (2) of article 102], or
5[(b) resigns his seat by writing under his hand addressed to the Chairman or the Speaker, as the case may be, and his resignation is accepted by the Chairman or the Speaker, as the case may be,] his seat shall thereupon become vacant:

6[Provided that in the case of any resignation referred to in sub-clause (b), if from information received or otherwise and after making such inquiry as he thinks fit, the Chairman or the Speaker, as the case may be, is satisfied that such resignation is not voluntary or genuine, he shall not accept such resignation.]

(4) If for a period of sixty days a member of either House of Parliament is without permission of the House absent from all meetings thereof, the House may declare his seat vacant:
Provided that in computing the said period of sixty days no account shall be taken of any period during which the House is prorogued or is adjourned for more than four consecutive days.
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1. The words and letters “specified in Part A or Part B of the First Schedule” omitted by the Constitution (Seventh Amendment) Act, 1956, s. 29 and Sch. (w.e.f. 1-11-1956).
2. Subs. by s. 29 and Sch., ibid., for “such a State” (w.e.f. 1-11-1956).
3. See the Prohibition of Simultaneous Membership Rules, 1950, published with the Ministry of Law, notification No. F. 46/50-C, dated the 26th January, 1950, Gazette of India, Extraordinary, P. 678.
4. Subs. by the Constitution (Fifty-second Amendment) Act, 1985, s. 2, for “clause (1) of article 102” (w.e.f. 1-3-1985).
5. Subs. by the Constitution (Thirty-third Amendment) Act, 1974, s. 2 (w.e.f. 19-5-1974).
6. Ins. by s.2, ibid. (w.e.f. 19-5-1974).
Article 101

🔍 Article 101 Explanation in Hindi

अनुच्छेद 52 से लेकर 151 तक भारतीय संविधान के भाग 5 के तहत आता है। भाग 5 को 5 अध्यायों में बांटा गया है। इसी का दूसरा अध्याय है – संसद (Parliament)

संसद के तहत अनुच्छेद 79 से लेकर 122 तक आते हैं। और इस भाग के अंतर्गत संघ के संसद की चर्चा की गई है। जिसके तहत राष्ट्रपति (President), लोकसभा (Lok Sabha), एवं राज्यसभा (Rajya Sabha) आते हैं।

तो इस अध्याय के तहत आने वाले अनुच्छेदों में हम संसद (Parliament) को विस्तार से समझने वाले हैं। यहाँ यह याद रखिए कि संविधान के भाग 5 को संघ या The Union के नाम से भी जाना जाता है।

कुल मिलाकर संविधान के भाग 5 के अध्याय II अंतर्गत अनुच्छेद 79 से लेकर अनुच्छेद 122 तक आता है। इस लेख में हम अनुच्छेद 101 (Article 101) को समझने वाले हैं;

अनुच्छेद-39 – भारतीय संविधान
अनुच्छेद-21 – भारतीय संविधान
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| अनुच्छेद 101 – स्थानों का रिक्त होना

अनुच्छेद 79 के तहत, देश के सर्वोच्च प्रतिनिधि संस्था के रूप में संसद की व्यवस्था की गई है। संसद तीन घटकों से मिलकर बना है; राष्ट्रपति (President), लोकसभा (Lok Sabha) और राज्यसभा (Rajya Sabha)।

लोकसभा में कुल 543 निर्वाचित सीटें हैं, प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र से एक सांसद चुना जाता है। सांसद सीधे चुनाव प्रक्रिया के माध्यम से अपने संबंधित निर्वाचन क्षेत्रों के लोगों द्वारा चुने जाते हैं।

लोकसभा के अलावा, भारत में संसद का दूसरा सदन भी है, जिसे राज्य सभा या राज्यों की परिषद के रूप में जाना जाता है। राज्यसभा के सदस्य सीधे निर्वाचित नहीं होते हैं बल्कि सरकार और राज्य विधानसभाओं की सिफारिश पर भारत के राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किए जाते हैं।

अभी फिलहाल 245 सीटें राज्यसभा में प्रभाव में है जिसमें से 233 सदस्यों को चुनने के लिए चुनाव होते हैं जबकि 12 सदस्यों को राष्ट्रपति मनोनीत करते हैं।

कुल मिलाकर अभी लोक सभा और राज्य सभा में 788 सदस्य है। और इन्ही सदस्यों की निर्हताओं (Disqualification) से उत्पन्न हुई रिक्ति के बारे में अनुच्छेद 101 बात करता है।

अनुच्छेद 101 में बताया गया है कि किन स्थितियों में सदन के सदस्यों का स्थान रिक्त हो सकता है। इस अनुच्छेद के 4 खंड है। आइये इसे समझते हैं;

अनुच्छेद-12 – भारतीय संविधान

दोहरी सदस्यता के आधार पर सदन में स्थान रिक्त होना

अनुच्छेद 101(1) के तहत यह बताया गया है कि एक ही व्यक्ति एक साथ संसद्‌ के दोनों सदनों का सदस्य नहीं होगा। लेकिन अगर कोई व्यक्ति दोनों सदनों का सदस्य चुन लिया जाता है तो किसी एक सदन में उसके स्थान को रिक्त करने के लिए संसद्‌ विधि द्वारा उपबंध करेगी।

कहने का अर्थ है कि संविधान दोहरी सदस्यता को मान्यता नहीं देता है। इस दोहरी सदस्यता (Dual Membership) के संबंध में संबंधित प्रावधान, लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 में वर्णित है। जैसे कि;

(1) यदि कोई व्यक्ति संसद के दोनों सदनों में चुन लिया जाता है तो उसे 10 दिनों के भीतर यह बताना होगा कि उस किस सदन में रहना है। सूचना न देने पर, राज्यसभा में उसकी सीट खाली हो जाएगी।

(2) अगर किसी सदन के सदस्य को दूसरे सदन का सदस्य भी चुन लिया जाता है तो पहले वाले सदन में उसका पद रिक्त हो जाता है।

(3) अगर कोई व्यक्ति एक ही सदन में दो सीटों पर चुना जाता है, तो उसे स्वेच्छा से किसी एक सीट को खाली करना पड़ेगा अन्यथा, दोनों सीटें रिक्त हो जाती है। ऐसा इसीलिए होता है क्योंकि कई बार कोई प्रत्याशी दो जगह से चुनाव लड़ लेता है।

इसे ही दोहरी सदस्यता के आधार पर सदन में स्थान रिक्त होना कहते हैं।

अनुच्छेद 101(2) के तहत यह व्यवस्था है कि कोई व्यक्ति संसद और किसी राज्य के विधान-मंडल के किसी सदन, दोनों का सदस्य नहीं होगा और यदि कोई व्यक्ति संसद्‌ और किसी राज्य के विधान- मंडल के किसी सदन, दोनों का सदस्य चुन लिया जाता है तो ऐसी अवधि की समाप्ति के पश्चात्‌ जो राष्ट्रपति द्वारा बनाए गए नियमों में विनिर्दिष्ट की जाए, संसद्‌ में ऐसे व्यक्ति का स्थान रिक्त हो जाएगा यदि उसने राज्य के विधान-मंडल में अपने स्थान को पहले ही नहीं त्याग दिया है।

यहाँ दो बातें हैं;

पहली बात तो ये कि एक ही व्यक्ति संसद के किसी सदन का और राज्य विधानमंडल का सदस्य नहीं हो सकता है।

दूसरी बात ये है कि अगर वो दोनों जगहों पर सदस्य चुन लिए जाते हैं तो उसके पास दो विकल्प है; या तो वे राज्य के विधान-मंडल में अपना स्थान त्याग दे और नहीं तो संसद में उस व्यक्ति का स्थान रिक्त हो जाएगा (उस अवधि के समाप्ति पर जो कि राष्ट्रपति द्वारा बनाए गए नियमों में विनिर्दिष्ट किया जाए)।

अभी के लिए व्यवस्था यह है कि अगर कोई व्यक्ति दोनों जगह निर्वाचित हो जाता है तो उसे 14 दिनों के अंदर राज्य के विधानमंडल की सीट को खाली करना होता है अगर नहीं करता है तो संसद में उसकी सदस्यता समाप्त हो जाती है।

पदत्याग (Resignation) के आधार पर सदन में स्थान रिक्त होना

अनुच्छेद 101(3) के तहत यह व्यवस्था किया गया है कि यदि संसद्‌ के किसी सदन का सदस्य — (क) अनुच्छेद 102 के खंड (1) या खंड (2)] में वर्णित किसी निर्हता से ग्रस्त हो जाता है, या (ख) यथास्थिति, सभापति या अध्यक्ष को संबोधित अपने हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा अपने स्थान का त्याग कर देता है और उसका त्यागपत्र, यथास्थिति, सभापति या अध्यक्ष द्वारा स्वीकार कर लिया जाता है, तो ऐसा होने पर उसका स्थान रिक्त हो जाएगा:

यहाँ दो बाते हैं;

पहली बात तो ये कि अगर अनुच्छेद 101(1) और (2) के तहत कोई व्यक्ति अयोग्य ठहराया जाता है तो फिर उसका स्थान सदन में रिक्त हो जाएगा। क्योंकि कोई व्यक्ति एक ही साथ दो सदनों का सदस्य नहीं हो सकता है, भले ही एक सदन राज्य विधान मंडल ही क्यों न हों।

और दूसरी बात ये है कि अगर वो व्यक्ति खुद ही लोक सभा अध्यक्ष या राज्यसभा सभापति को हस्ताक्षर सहित अपना त्यागपत्र दे देता है और उसके त्यागपत्र को अगर अध्यक्ष या सभापति (जैसी भी स्थिति हो) द्वारा स्वीकार कर लिया जाता है तो भी सदन में उसका स्थान रिक्त हो जाएगा।

इसे ही पदत्याग (Resignation) के आधार पर सदन में स्थान रिक्त होना कहते हैं।

हालांकि यहाँ पर यह याद रखिए कि अगर कोई व्यक्ति लोक सभा अध्यक्ष या राज्य सभा सभापति को अपना त्यागपत्र सौंपता है तो अध्यक्ष (Speaker) या सभापति (Chairman) उस त्यागपत्र की जांच करेगा और अगर वो इसे सही पाता है तो त्यागपत्र स्वीकार कर लेगा।

लेकिन अगर अध्यक्ष या सभापति को अगर लगता है कि यह त्यागपत्र स्वैच्छिक या असली नहीं है तो वह ऐसे त्यागपत्र को स्वीकर नहीं करेगा।

कुल मिलाकर यहाँ कहने की बात ये है कि यह लोक सभा अध्यक्ष और राज्य सभा सभापति पर निर्भर करता है कि वह किसी व्यक्ति का त्यागपत्र स्वीकार करता है कि नहीं। और जब तक वे स्वीकार नहीं करेंगे तब तक कोई व्यक्ति सदन को छोड़ के नहीं जा सकता।

अनुपस्थिति (Absence) के आधार पर सदन में स्थान रिक्त होना

अनुच्छेद 101(4) के तहत बताया गया है कि यदि संसद्‌ के किसी सदन का कोई सदस्य साठ दिन की अवधि तक सदन की अनुज्ञा के बिना उसके सभी अधिवेशनों से अनुपस्थित रहता है तो सदन उसके स्थान को रिक्त घोषित कर सकेगा:

यदि कोई सदस्य सदन की अनुमति के बिना 60 दिन की अवधि से अधिक समय के लिए सदन की सभी बैठकों में अनुपस्थित रहता है तो सदन उसका पद रिक्त घोषित कर सकता है।

(यहाँ पर एक बात याद रखिए कि इन 60 दिनों की अवधि की गणना में, सदन के स्थगन या सत्रावसान की लगातार चार दिनों से अधिक अवधि, को शामिल नहीं किया जाता है।)

इसे ही अनुपस्थिति (Absence) के आधार पर सदन में स्थान रिक्त होना कहते हैं।

तो यही है अनुच्छेद 101 (Article 101), उम्मीद है आपको समझ में आया होगा। दूसरे अनुच्छेदों को समझने के लिए नीचे दिए गए लिंक का इस्तेमाल कर सकते हैं।

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संसद की बेसिक्स
मौलिक अधिकार बेसिक्स
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FAQ. अनुच्छेद 101 (Article 101) क्या है?

लोक सभा और राज्य सभा में 788 सदस्य है। और इन्ही सदस्यों की निर्हताओं (Disqualification) के बारे में अनुच्छेद 101 बात करता है।
Article 101 में बताया गया है कि किन स्थितियों में सदन के सदस्यों का स्थान रिक्त हो सकता है।
विस्तार से समझने के लिए लेख पढ़ें;

अस्वीकरण – यहाँ प्रस्तुत अनुच्छेद और उसकी व्याख्या, मूल संविधान (नवीनतम संस्करण), संविधान पर डी डी बसु की व्याख्या (मुख्य रूप से), एनसाइक्लोपीडिया, संबंधित मूल अधिनियम और संविधान के विभिन्न ज्ञाताओं (जिनके लेख समाचार पत्रों, पत्रिकाओं एवं इंटरनेट पर ऑडियो-विजुअल्स के रूप में उपलब्ध है) पर आधारित है। हमने बस इसे रोचक और आसानी से समझने योग्य बनाने का प्रयास किया है।