यह लेख Article 235 (अनुच्छेद 235) का यथारूप संकलन है। आप इस मूल अनुच्छेद का हिन्दी और इंग्लिश दोनों संस्करण पढ़ सकते हैं। आप इसे अच्छी तरह से समझ सके इसीलिए इसकी व्याख्या भी नीचे दी गई है आप उसे जरूर पढ़ें, और MCQs भी सॉल्व करें।
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📜 अनुच्छेद 235 (Article 235) – Original
भाग 6 “राज्य” [अध्याय 6 — अधीनस्थ न्यायालय] |
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235. अधीनस्थ न्यायालयों पर नियंत्रण— जिला न्यायालयों और उनके अधीनस्थ न्यायालयों का नियंत्रण, जिसके अंतर्गत राज्य की न्यायिक सेवा के व्यक्तियों और जिला न्यायाधीश के पद से अवर किसी पद को धारण करने वाले व्यक्तियों की पदस्थापना, प्रोन्नति और उनको छुट्टी देना है, उच्च न्यायालय में निहित होगा, किंतु इस अनुच्छेद की किसी बात का यह अर्थ नहीं लगाया जाएगा कि वह ऐसे किसी व्यक्ति से उसके अपील के अधिकार को छीनती है जो उसकी सेवा की शर्तों का विनियमन करने वाली विधि के अधीन उसे है या उच्च न्यायालय को इस बात के लिए प्राधिकृत करती है कि वह उससे ऐसी विधि के अधीन विहित उसकी सेवा की शर्तों के अनुसार व्यवहार न करके अन्यथा व्यवहार करे। |
Part VI “State” [CHAPTER VI — Subordinate Courts] |
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235. Control over subordinate courts.— The control over district courts and courts subordinate thereto including the posting and promotion of, and the grant of leave to, persons belonging to the judicial service of a State and holding any post inferior to the post of district judge shall be vested in the High Court, but nothing in this article shall be construed as taking away from any such person any right of appeal which he may have under the law regulating the conditions of his service or as authorising the High Court to deal with him otherwise than in accordance with the conditions of his service prescribed under such law. |
🔍 Article 235 Explanation in Hindi
भारतीय संविधान का भाग 6, अनुच्छेद 152 से लेकर अनुच्छेद 237 तक कुल 6 अध्यायों (Chapters) में विस्तारित है (जिसे कि आप नीचे टेबल में देख सकते हैं)।
Chapters | Title | Articles |
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I | साधारण (General) | Article 152 |
II | कार्यपालिका (The Executive) | Article 153 – 167 |
III | राज्य का विधान मंडल (The State Legislature) | Article 168 – 212 |
IV | राज्यपाल की विधायी शक्ति (Legislative Power of the Governor) | Article 213 |
V | राज्यों के उच्च न्यायालय (The High Courts in the States) | Article 214 – 232 |
VI | अधीनस्थ न्यायालय (Subordinate Courts) | Article 233 – 237 |
जैसा कि आप ऊपर देख सकते हैं, इस भाग के अध्याय 6 का नाम है “अधीनस्थ न्यायालय (Subordinate Courts)” और इसका विस्तार अनुच्छेद 233 से लेकर 237 तक है। इस लेख में हम अनुच्छेद 235 को समझने वाले हैं;
⚫ अनुच्छेद 233A – भारतीय संविधान |
| अनुच्छेद 235 – अधीनस्थ न्यायालयों पर नियंत्रण (Control over subordinate courts)
न्याय (Justice) लोकतंत्र का एक आधारभूत स्तंभ है क्योंकि यह व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा करता है, कानून के शासन को बनाए रखता है, संघर्ष के समाधान की सुविधा देता है और निष्पक्षता और समानता को बढ़ावा देता है। यह लोकतांत्रिक संस्थानों को मजबूत करता है और समाज की समग्र भलाई और स्थिरता में योगदान देता है।
भारत में इसे सुनिश्चित करने के लिए संविधान द्वारा एकीकृत न्यायिक व्यवस्था (Integrated Judiciary System) की शुरुआत की गई है। इस व्यवस्था में उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) सबसे शीर्ष पर आता है, उसके बाद राज्यों उच्च न्यायालय (High Court) आता है और फिर उसके बाद जिलों का अधीनस्थ न्यायालय (Subordinate Court)।
संविधान का भाग 6, अध्याय VI, राज्यों के अधीनस्थ न्यायालय (Subordinate Courts) की बात करता है। अनुच्छेद 235 के तहत अधीनस्थ न्यायालयों पर नियंत्रण (Control over subordinate courts) के बारे में बताया गया है।
अनुच्छेद 235 के तहत कहा गया है कि जिला न्यायालयों और उनके अधीनस्थ न्यायालयों का नियंत्रण, जिसके अंतर्गत राज्य की न्यायिक सेवा के व्यक्तियों और जिला न्यायाधीश के पद से अवर किसी पद को धारण करने वाले व्यक्तियों की पदस्थापना, प्रोन्नति और उनको छुट्टी देना है, उच्च न्यायालय में निहित होगा, किंतु इस अनुच्छेद की किसी बात का यह अर्थ नहीं लगाया जाएगा कि वह ऐसे किसी व्यक्ति से उसके अपील के अधिकार को छीनती है जो उसकी सेवा की शर्तों का विनियमन करने वाली विधि के अधीन उसे है या उच्च न्यायालय को इस बात के लिए प्राधिकृत करती है कि वह उससे ऐसी विधि के अधीन विहित उसकी सेवा की शर्तों के अनुसार व्यवहार न करके अन्यथा व्यवहार करे।
इस अनुच्छेद के तहत यह बताया गया है कि जिला न्यायालयों एवं उनके अधीनस्थ न्यायालयों की न्यायिक सेवा के व्यक्तियों और इसके अवर (यानि कि निचला, कनिष्ठ या छोटा) किसी पद को धारण करने वाले व्यक्तियों की पदस्थपना (Posting), प्रोन्नति (Promotion) और छुट्टी से संबंधित मामलों का नियंत्रण उच्च न्यायालय में निहित होगा।
लेकिन नियंत्रण करने की यह जो शक्ति उच्च न्यायालय में निहित है वो कुछ शर्तों के अधीन है, जो कि कुछ इस प्रकार है;
पहला) इस अनुच्छेद के तहत जो उच्च न्यायालय को शक्ति मिली है इसका यह मतलब नहीं है कि वह किसी व्यक्ति से उसके अपील के अधिकार को छीन लें; वह अपील का अधिकार जो कि उसे उसकी सेवा की शर्तों का विनियमन करने वाली विधि (Law)* के द्वारा उसे मिली है।
यानि कि उच्च न्यायालय भी खुद को इस तरह के मामलों में विधि से ऊपर नहीं समझ सकता है।
दूसरी बात) इस अनुच्छेद के तहत जो उच्च न्यायालय को शक्ति मिली है यह शक्ति उच्च न्यायालय को इस बात के लिए प्राधिकृत नहीं करती है कि वह इस संबंध में बनी हुई किसी विधि* के अधीन बताई गई सेवा की शर्तों के अनुसार व्यवहार न करके अन्यथा व्यवहार करे।
तो यही है अनुच्छेद 235 , उम्मीद है आपको समझ में आया होगा। दूसरे अनुच्छेदों को समझने के लिए नीचे दिए गए लिंक का इस्तेमाल कर सकते हैं।
सवाल-जवाब के लिए टेलीग्राम जॉइन करें; टेलीग्राम पर जाकर सर्च करे – @upscandpcsofficial
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अस्वीकरण – यहाँ प्रस्तुत अनुच्छेद और उसकी व्याख्या, मूल संविधान (उपलब्ध संस्करण), संविधान पर डी डी बसु की व्याख्या (मुख्य रूप से), प्रमुख पुस्तकें (एम. लक्ष्मीकान्त, सुभाष कश्यप, विद्युत चक्रवर्ती, प्रमोद अग्रवाल इत्यादि) एनसाइक्लोपीडिया, संबंधित मूल अधिनियम और संविधान के विभिन्न ज्ञाताओं (जिनके लेख समाचार पत्रों, पत्रिकाओं एवं इंटरनेट पर ऑडियो-विजुअल्स के रूप में उपलब्ध है) पर आधारित है। हमने बस इसे रोचक और आसानी से समझने योग्य बनाने का प्रयास किया है। |