यह लेख Article 183 (अनुच्छेद 183) का यथारूप संकलन है। आप इस मूल अनुच्छेद का हिन्दी और इंग्लिश दोनों संस्करण पढ़ सकते हैं। आप इसे अच्छी तरह से समझ सके इसीलिए इसकी व्याख्या भी नीचे दी गई है आप उसे जरूर पढ़ें, और MCQs भी सॉल्व करें।
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📜 अनुच्छेद 183 (Article 183) – Original
भाग 6 “राज्य” [अध्याय 3 — राज्य का विधान मंडल] [राज्य के विधान मण्डल के अधिकारी] |
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183. सभापति और उपसभापति का पद रिक्त होना, पदत्याग और पद से हटाया जाना — विधान परिषद् के सभापति या उपसभापति के रूप में पद धारण करने वाला सदस्य— (क) यदि विधान परिषद् का सदस्य नहीं रहता है तो अपना पद रिक्त कर देगा ; (ख) किसी भी समय, यदि वह सदस्य सभापति है तो उपसभाषति को संबोधित और यदि वह सदस्य उपसभापति है तो सभापति को संबोधित अपने हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा अपना पद त्याग सकेगा ; और (ग) विधान परिषद् के तत्कालीन समस्त सदस्यों के बहुमत से पारित संकल्प द्वारा अपने पद से हटाया जा सकेगा परंतु खंड (ग) के प्रयोजन के लिए कोई संकल्प तब तक प्रस्तावित नहीं किया जाएगा जब तक कि उस संकल्प को प्रस्तावित करने के आशय की कम से कम चौदह दिन की सूचना न दे दी गई हो। |
Part VI “State” [CHAPTER III — The State Legislature] [Officers of the State Legislature] |
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183. Vacation and resignation of, and removal from, the offices of Chairman and Deputy Chairman—A member holding office as Chairman or Deputy Chairman of a Legislative Council— (a) shall vacate his office if he ceases to be a member of the Council; (b) may at any time by writing under his hand addressed, if such member is the Chairman, to the Deputy Chairman, and if such member is the Deputy Chairman, to the Chairman, resign his office; and (c) may be removed from his office by a resolution of the Council passed by a majority of all the then members of the Council: Provided that no resolution for the purpose of clause (c) shall be moved unless at least fourteen days’ notice has been given of the intention to move the resolution. |
🔍 Article 183 Explanation in Hindi
भारतीय संविधान का भाग 6, अनुच्छेद 152 से लेकर अनुच्छेद 237 तक कुल 6 अध्यायों (Chapters) में विस्तारित है (जिसे कि आप नीचे टेबल में देख सकते हैं)।
Chapters | Title | Articles |
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I | साधारण (General) | Article 152 |
II | कार्यपालिका (The Executive) | Article 153 – 167 |
III | राज्य का विधान मंडल (The State Legislature) | Article 168 – 212 |
IV | राज्यपाल की विधायी शक्ति (Legislative Power of the Governor) | Article 213 |
V | राज्यों के उच्च न्यायालय (The High Courts in the States) | Article 214 – 232 |
VI | अधीनस्थ न्यायालय (Subordinate Courts) | Article 233 – 237 |
जैसा कि आप ऊपर देख सकते हैं, इस भाग के अध्याय 3 का नाम है “राज्य का विधान मंडल (The State Legislature)” और इसका विस्तार अनुच्छेद 158 से लेकर अनुच्छेद 212 तक है।
इस अध्याय को आठ उप-अध्यायों (sub-chapters) में बांटा गया है, जिसे कि आप नीचे चार्ट में देख सकते हैं;
Chapter 3 [Sub-Chapters] | Articles |
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साधारण (General) | Article 168 – 177 |
राज्य के विधान मण्डल के अधिकारी (Officers of the State Legislature) | Article 178 – 187 |
कार्य संचालन (Conduct of Business) | Article 188 – 189 |
सदस्यों की निरर्हताएं (Disqualifications of Members) | Article 190 – 193 |
राज्यों के विधान-मंडलों और उनके सदस्यों की शक्तियां, विशेषाधिकार और उन्मुक्तियां (Powers, privileges and immunities of State Legislatures and their members) | Article 194 – 195 |
विधायी प्रक्रिया (Legislative Procedure) | Article 196 – 201 |
वित्तीय विषयों के संबंध में प्रक्रिया (Procedure in respect of financial matters) | Article 202 – 207 |
साधारण प्रक्रिया (Procedure Generally) | Article 208 – 212 |
इस लेख में हम राज्य के विधान मण्डल के अधिकारी (Officers of the State Legislature) के तहत आने वाले अनुच्छेद 183 को समझने वाले हैं।
⚫ अनुच्छेद 90 – भारतीय संविधान |
| अनुच्छेद 183 – सभापति और उपसभापति का पद रिक्त होना, पदत्याग और पद से हटाया जाना (Vacation and resignation of, and removal from, the offices of Chairman and Deputy Chairman)
भारत एक संघीय व्यवस्था वाला देश है यानी कि यहाँ केंद्र सरकार की तरह राज्य सरकार भी होता है और जिस तरह से केंद्र में विधायिका (Legislature) होता है उसी तरह से राज्य का भी अपना एक विधायिका होता है।
◾ केन्द्रीय विधायिका (Central Legislature) को भारत की संसद (Parliament of India) कहा जाता है। यह एक द्विसदनीय विधायिका है, जिसका अर्थ है कि इसमें दो सदन हैं: लोकसभा (लोगों का सदन) और राज्यसभा (राज्यों की परिषद)। इसी तरह से राज्यों के लिए भी व्यवस्था की गई है।
अनुच्छेद 168(1) के तहत प्रत्येक राज्य के लिए एक विधानमंडल (Legislature) की व्यवस्था की गई है और यह विधानमंडल एकसदनीय (unicameral) या द्विसदनीय (bicameral) हो सकती है।
जिस तरह से अनुच्छेद 90 के तहत केंद्र में उपसभापति का पद रिक्त होना, पदत्याग और पद से हटाये जाने का वर्णन है उसी तरह से अनुच्छेद 183 के तहत राज्यों के लिए सभापति और उपसभापति का पद रिक्त होना, पदत्याग और पद से हटाये जाने का वर्णन है;
अनुच्छेद 182 के तहत विधान परिषद के सभापति एवं उपसभापति के संदर्भ में तीन बातें कही गई है – पद रिक्त होना (Vacancy), (1) पद त्याग करना (Resignation), और (3) पद से हटाया जाना (removal from office)।
(1) विधान परिषद् के सभापति या उपसभापति के रूप में पद धारण करने वाला सदस्य यदि विधान परिषद् का सदस्य नहीं रहता है तो अपना पद रिक्त कर देगा ;
यानि कि विधान परिषद का सभापति या उपसभापति बनने के लिए उस सदन का सदस्य होना जरूरी है। जैसे कि सभापति एवं उपसभापति की विधान परिषद की सदस्यता समाप्त होती है वैसे ही अध्यक्षता भी खत्म हो जाती है इस तरह से वो पद रिक्त हो जाता है (अगले चुनाव तक)।
(2) विधान परिषद् के सभापति या उपसभापति के रूप में पद धारण करने वाला सदस्य किसी भी समय, यदि वह सदस्य सभापति है तो उपसभापति को संबोधित और यदि वह सदस्य उपसभापति है तो सभापति को संबोधित अपने हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा अपना पद त्याग सकेगा; इसे त्यागपत्र (resignation) देना कहते हैं;
(3) विधान परिषद् के सभापति या उपसभापति के रूप में पद धारण करने वाला सदस्य विधान परिषद् के तत्कालीन समस्त सदस्यों के बहुमत से पारित संकल्प द्वारा अपने पद से हटाया जा सकेगा। इसे पद से हटाया जाना (Removal from the office) कहते हैं;
हालांकि हटाये जाने के लिए कोई संकल्प तब तक प्रस्तावित नहीं किया जाएगा जब तक कि उस संकल्प को प्रस्तावित करने के आशय की कम से कम चौदह दिन की सूचना न दे दी गई हो।
यहां कुछ बातें याद रखिए;
◼ केंद्र में उपराष्ट्रपति ही राज्यसभा का सभापति होता है, बस उपसभापति का चुनाव किया जाता है। जबकि राज्य में उपराज्यपाल जैसा कोई पद नहीं होता है। इसीलिए राज्य विधान परिषद में सभापति एवं उपसभापति दोनों को सदन से ही चुना जाता है।
◼ अनुच्छेद 90 के तहत केंद्र में सिर्फ उपसभापति (Deputy Chairman) पर ही यह नियम लागू होता है क्योंकि उसे ही सिर्फ सदन द्वारा चुना जाता है, सभापति तो उपराष्ट्रपति ही बन जाता है। जबकि राज्य के मामले में ऐसा नहीं होता है चूंकि यहां दोनों ही सदन का ही सदस्य होता है इसीलिए उपरोक्त नियम दोनों पर लागू होता है।
◼ सभापति की तरह ही उपसभापति भी सदन की कार्यवाही के दौरान पहले मत नहीं दे सकता लेकिन दोनों ओर से बराबर वोट पड़ने की स्थिति में वह अपना मत दे सकता है।
◼ सभापति की ही तरह जब उपसभापति को उसके पद से हटाने का प्रस्ताव विचारधीन हो या वोटिंग चल रहा हो तो वह सदन की कार्यवाही में पीठासीन नहीं होता, हालांकि वह सदन में उपस्थित हो सकता है, बोल भी सकता है।
◼ जब सभापति विधान परिषद की अध्यक्षता कर रहा होता है तब उपसभापति एक साधारण सदस्य की तरह होता है। वह बोल सकता है, कार्यवाही में भाग ले सकता है तथा मतदान कि स्थिति में मत भी दे सकता है।
तो यही है अनुच्छेद 183, उम्मीद है आपको समझ में आया होगा। दूसरे अनुच्छेदों को समझने के लिए नीचे दिए गए लिंक का इस्तेमाल कर सकते हैं।
◾ राज्य विधानमंडल (State Legislature): गठन, कार्य, आदि ◾ भारतीय संसद (Indian Parliament): Overview |
सवाल-जवाब के लिए टेलीग्राम जॉइन करें; टेलीग्राम पर जाकर सर्च करे – @upscandpcsofficial
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अस्वीकरण – यहाँ प्रस्तुत अनुच्छेद और उसकी व्याख्या, मूल संविधान (उपलब्ध संस्करण), संविधान पर डी डी बसु की व्याख्या (मुख्य रूप से), प्रमुख पुस्तकें (एम. लक्ष्मीकान्त, सुभाष कश्यप, विद्युत चक्रवर्ती, प्रमोद अग्रवाल इत्यादि) एनसाइक्लोपीडिया, संबंधित मूल अधिनियम और संविधान के विभिन्न ज्ञाताओं (जिनके लेख समाचार पत्रों, पत्रिकाओं एवं इंटरनेट पर ऑडियो-विजुअल्स के रूप में उपलब्ध है) पर आधारित है। हमने बस इसे रोचक और आसानी से समझने योग्य बनाने का प्रयास किया है। |