यह लेख Article 194 (अनुच्छेद 194) का यथारूप संकलन है। आप इस मूल अनुच्छेद का हिन्दी और इंग्लिश दोनों संस्करण पढ़ सकते हैं। आप इसे अच्छी तरह से समझ सके इसीलिए इसकी व्याख्या भी नीचे दी गई है आप उसे जरूर पढ़ें, और MCQs भी सॉल्व करें।
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📜 अनुच्छेद 194 (Article 194) – Original
भाग 6 “राज्य” [अध्याय 3 — राज्य का विधान मंडल] [राज्यों के विधान-मंडलों और उनके सदस्यों की शक्तियां, विशेषाधिकार और उन्मुक्तियां] |
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194. विधान-मंडलों के सदनों की तथा उनके सदस्यों और समितियों की शक्तियां, विशेषाधिकार, आदि — (1) इस संविधान के उपबंधों के और विधान-मंडल की प्रक्रिया का विनियमन करने वाले नियमों और स्थायी आदेशों के अधीन रहते हुए, प्रत्येक राज्य के विधान-मंडल में वाक्-स्वातंत्र्य होगा। (2) राज्य के विधान-मंडल में या उसकी किसी समिति में विधान-मंडल के किसी सदस्य द्वारा कही गई किसी बात या दिए गए किसी मत के संबंध में उसके विरुद्ध किसी न्यायालय में कोई कार्यवाही नहीं की जाएगी और किसी व्यक्ति के विरुद्ध ऐसे विधान-मंडल के किसी सदन के प्राधिकार द्वारा या उसके अधीन किसी प्रतिवेदन पत्र, मतों या कार्यवाहियों के प्रकाशन के संबंध में इस प्रकार की कोई कार्यवाही नहीं की जाएगी। 1[(3) अन्य बातों में राज्य के विधान-मंडल के किसी सदन की और ऐसे विधान-मंडल के किसी सदन के सदस्यों और समितियों की शक्तियां, विशेषाधिकार और उन्मुक्तियां ऐसी होंगी जो वह विधान-मंडल, समय-समय पर, विधि द्वारा परिनिश्चित करे और जब तक वे इस प्रकार परिनिश्चित नहीं की जाती हैं तब तक 2[वही होंगी जो संविधान (चवालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 26 के प्रवृत्त होने से ठीक पहले उस सदन की और उसके सदस्यों और समितियों की थीं।] (4) जिन व्यक्तियों को इस संविधान के आधार पर राज्य के विधान-मंडल के किसी सदन या उसकी किसी समिति में बोलने का और उसकी कार्यवाहियों में अन्यथा भाग लेने का अधिकार है, उनके संबंध में खंड (1), खंड (2) और खंड (3) के उपबंध उसी प्रकार लागू होंगे जिस प्रकार वे उस विधान-मंडल के सदस्यों के संबंध में लागू होते हैं। ============ 1. संविधान (बयालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1976 की धारा 34 द्वारा (20-6-1979 से) निम्नलिखित रूप में पढे जाने के लिए प्रतिस्थापित किया गया :- “(3) अन्य बातों में किसी राज्य के विधान-मंडल के किसी सदन की और ऐसे विधान-मंडल के किसी सदन के सदस्यों और समितियों की शक्तियाँ, विशेषाधिकार और उन्मुक्तियां वे होगी, जो संविधान (बयालीसवाँ संशोधन) अधिनियम 1976 की धारा 34 के प्रारम्भ पर थी और जो लोक सभा द्वारा ऐसे सदन और उसके सदस्यों और समितियों के लिए व्यक्त की जाएं, जहां ऐसा सदन विधान सभा है और राज्य सभा द्वारा ऐसे सदन और उसके सदस्यों और समितियों के लिए व्यक्त की जाएं, जहां ऐसा सदन विधान परिषद है।” इस संशोधन का संविधान (चवालीसवाँ संशोधन) अधिनियम 1978 की धारा 45 द्वारा (19-6-1979 से) लोप कर दिया गया। 2. संविधान (चवालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1978 का धारा 26 द्वारा (20-6-1979 से) कतिपय शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित। |
Part VI “State” [CHAPTER III — The State Legislature] [Powers, privileges and immunities of State Legislatures and their members] |
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194. Penalty for sitting and voting before making oath or affirmation under article 188 or when not qualified or when disqualified—(1) Subject to the provisions of this Constitution and to the rules and standing orders regulating the procedure of the Legislature, there shall be freedom of speech in the Legislature of every State. (2) No member of the Legislature of a State shall be liable to any proceedings in any court in respect of anything said or any vote given by him in the Legislature or any committee thereof, and no person shall be so liable in respect of the publication by or under the authority of a House of such a Legislature of any report, paper, votes or proceedings. 1[(3) In other respects, the powers, privileges and immunities of a House of the Legislature of a State, and of the members and the committees of a House of such Legislature, shall be such as may from time to time be defined by the Legislature by law, and, until so defined, 2[shall be those of that House and of its members and committees immediately before the coming into force of section 26 of the Constitution (Forty-fourth Amendment) Act, 1978]. (4) The provisions of clauses (1), (2) and (3) shall apply in relation to persons who by virtue of this Constitution have the right to speak in, and otherwise to take part in the proceedings of, a House of the Legislature of a State or any committee thereof as they apply in relation to members of that Legislature. ==================== 1. Subs. by the Constitution (Forty-second Amendment) Act, 1976, s. 34 to read as follows. : “(3) In other respects, the powers, privileges and immunities of a House of the Legislature of a State, and of the members and the committees of a House of such Legislature, shall be those of that House, and of its members and Committees, at the commencement of section 34 of the Constitution (Forty-second Amendment) Act, 1976, and as may be evolved by such House of the House of the People, and of its members and committees where such House is the Legislative Assembly and in accordance with those of the Council of States, and of its members and committees where such House is the Legislative Council.” (date not notified). This amendment was omitted by the Constitution (Forty-fourth Amendment) Act, 1978, s. 45 (w.e.f. 19-6-1979).” 2. Subs. by the Constitution (Forty-fourth Amendment) Act, 1978, s. 26, for certain words (w.e.f. 20-6-1979). |
🔍 Article 194 Explanation in Hindi
भारतीय संविधान का भाग 6, अनुच्छेद 152 से लेकर अनुच्छेद 237 तक कुल 6 अध्यायों (Chapters) में विस्तारित है (जिसे कि आप नीचे टेबल में देख सकते हैं)।
Chapters | Title | Articles |
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I | साधारण (General) | Article 152 |
II | कार्यपालिका (The Executive) | Article 153 – 167 |
III | राज्य का विधान मंडल (The State Legislature) | Article 168 – 212 |
IV | राज्यपाल की विधायी शक्ति (Legislative Power of the Governor) | Article 213 |
V | राज्यों के उच्च न्यायालय (The High Courts in the States) | Article 214 – 232 |
VI | अधीनस्थ न्यायालय (Subordinate Courts) | Article 233 – 237 |
जैसा कि आप ऊपर देख सकते हैं, इस भाग के अध्याय 3 का नाम है “राज्य का विधान मंडल (The State Legislature)” और इसका विस्तार अनुच्छेद 158 से लेकर अनुच्छेद 212 तक है।
इस अध्याय को आठ उप-अध्यायों (sub-chapters) में बांटा गया है, जिसे कि आप नीचे चार्ट में देख सकते हैं;
Chapter 3 [Sub-Chapters] | Articles |
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साधारण (General) | Article 168 – 177 |
राज्य के विधान मण्डल के अधिकारी (Officers of the State Legislature) | Article 178 – 187 |
कार्य संचालन (Conduct of Business) | Article 188 – 189 |
सदस्यों की निरर्हताएं (Disqualifications of Members) | Article 190 – 193 |
राज्यों के विधान-मंडलों और उनके सदस्यों की शक्तियां, विशेषाधिकार और उन्मुक्तियां (Powers, privileges and immunities of State Legislatures and their members) | Article 194 – 195 |
विधायी प्रक्रिया (Legislative Procedure) | Article 196 – 201 |
वित्तीय विषयों के संबंध में प्रक्रिया (Procedure in respect of financial matters) | Article 202 – 207 |
साधारण प्रक्रिया (Procedure Generally) | Article 208 – 212 |
इस लेख में हम राज्यों के विधान-मंडलों और उनके सदस्यों की शक्तियां, विशेषाधिकार और उन्मुक्तियां (Powers, privileges and immunities of State Legislatures and their members) के तहत आने वाले अनुच्छेद 194 को समझने वाले हैं।
⚫ अनुच्छेद 105 – भारतीय संविधान |
| अनुच्छेद 194 – विधान-मंडलों के सदनों की तथा उनके सदस्यों और समितियों की शक्तियां, विशेषाधिकार, आदि (Penalty for sitting and voting before making oath or affirmation under article 188 or when not qualified or when disqualified)
भारत एक संघीय व्यवस्था वाला देश है यानी कि यहाँ केंद्र सरकार की तरह राज्य सरकार भी होता है और जिस तरह से केंद्र में विधायिका (Legislature) होता है उसी तरह से राज्य का भी अपना एक विधायिका होता है।
◾ केन्द्रीय विधायिका (Central Legislature) को भारत की संसद (Parliament of India) कहा जाता है। यह एक द्विसदनीय विधायिका है, जिसका अर्थ है कि इसमें दो सदन हैं: लोकसभा (लोगों का सदन) और राज्यसभा (राज्यों की परिषद)। इसी तरह से राज्यों के लिए भी व्यवस्था की गई है।
अनुच्छेद 168(1) के तहत प्रत्येक राज्य के लिए एक विधानमंडल (Legislature) की व्यवस्था की गई है और यह विधानमंडल एकसदनीय (unicameral) या द्विसदनीय (bicameral) हो सकती है।
जिस तरह से अनुच्छेद 105 के तहत केंद्र में संसद के सदनों की तथा उनके सदस्यों और समितियों की शक्तियां, विशेषाधिकार, आदि के बारे में बताया गया है, उसी तरह से अनुच्छेद 194 के तहत राज्यों में विधान-मंडलों के सदनों की तथा उनके सदस्यों और समितियों की शक्तियां, विशेषाधिकार, आदि के बारे में बताया गया है;
अनुच्छेद 194 के तहत 4 खंड आते हैं;
Article 194(1) की व्याख्या :-
अनुच्छेद 194(1) के तहत कहा गया है कि इस संविधान के उपबंधों के और विधान-मंडल की प्रक्रिया का विनियमन करने वाले नियमों और स्थायी आदेशों के अधीन रहते हुए, प्रत्येक राज्य के विधान-मंडल में वाक्-स्वातंत्र्य (Freedom of Speech) होगा।
बोलने की स्वतंत्रता लोकतांत्रिक शासन का एक अनिवार्य पहलू है। भारत का संविधान अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत भारत के नागरिकों को भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को मौलिक अधिकार के रूप में गारंटी देता है।
विधान मण्डल के सदस्यों (विधायकों) को भी इसी तरह से सदन के नियमों और विनियमों के अधीन विधानमंडल में स्वतंत्र रूप से बोलने का अधिकार है। बोलने की यह स्वतंत्रता विधायकों के लिए अपने घटकों के हितों का प्रभावी ढंग से प्रतिनिधित्व करने और सरकार को जवाबदेह ठहराने के लिए महत्वपूर्ण है।
कुल मिलाकर कहने का अर्थ है कि भारतीय विधानमंडल में, विधायक बिना किसी डर या प्रतिशोध के अपने विचार, राय और आलोचना अभिव्यक्त कर सकते हैं।
◾ हालाँकि, बोलने की यह स्वतंत्रता पूर्ण (Absolute) नहीं है बल्कि इस संविधान के उपबंधों और विधानमंडल की प्रक्रिया का विनियमन करने वाले नियमों और स्थायी आदेशों के अधीन है।
लेकिन यहाँ यह याद रखिए कि संसद या विधानमंडल में बोलने की आजादी अनुच्छेद 19(1) के अंतर्गत मिली बोलने की आजादी से थोड़ा अलग है।
कहने का अर्थ ये ही कि जिन बातों को बोलने पर एक आम व्यक्ति के विरुद्ध अनुच्छेद 19(2) के तहत कार्यवाही की जा सकती है वही बात अगर संसद सदस्य किसी सदन या संसदीय समिति में बोले तो उसके विरुद्ध कोई कार्यवाही नहीं की जा सकती है।
कुल मिलाकर सदन में या विधानमंडल की समितियों में सदस्यों को पूरी आजादी होती है कि वे जो चाहे कहें या बोलें, शर्त केवल इतनी होती है उन्हे सदन के आंतरिक अनुशासन में रहना होता है।
विधायकों के आचरण को विनियमित करने और सदन के सुचारू कामकाज को सुनिश्चित करने के लिए विधानमंडल के अपने नियम और प्रक्रियाएं होती हैं।
ये नियम विधायकों को संसद में बोलते समय पालन करने के लिए दिशा-निर्देश प्रदान करते हैं, जैसे कि मर्यादा बनाए रखना, असंसदीय भाषा के उपयोग से बचना और निराधार आरोप लगाने से बचना।
अब सवाल ये आता है कि विधानमंडल में बोलने की कितनी स्वतंत्रता है, इसका जवाब हमने इसी अनुच्छेद के अगले खंड में मिल जाता है।
Article 194(2) की व्याख्या :-
अनुच्छेद 194(2) के तहत यह व्यवस्था किया गया है कि राज्य के विधान-मंडल में या उसकी किसी समिति में विधान-मंडल के किसी सदस्य द्वारा कही गई किसी बात या दिए गए किसी मत के संबंध में उसके विरुद्ध किसी न्यायालय में कोई कार्यवाही नहीं की जाएगी और किसी व्यक्ति के विरुद्ध ऐसे विधान-मंडल के किसी सदन के प्राधिकार द्वारा या उसके अधीन किसी प्रतिवेदन पत्र, मतों या कार्यवाहियों के प्रकाशन के संबंध में इस प्रकार की कोई कार्यवाही नहीं की जाएगी।
यहाँ दो बातें हैं;
पहली बात तो ये कि किसी सदस्य द्वारा विधानमंडल या उसकी किसी समिति में दिये गए भाषण या किसी मत के लिए, न्यायालय में उस पर कोई कार्यवाही नहीं की जा सकती। इसे व्यक्तिगत विशेषाधिकार (Personal privilege) के अंतर्गत रखा जाता है।
व्यक्तिगत विशेषाधिकारों (Personal privilege) से संबन्धित कुछ विशेषाधिकार इस प्रकार है:-
1. कोई सदस्य दिए गए स्थितियों में गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है;
- जब सदन में बैठक चल रहा हो जिसका वो सदस्य है;
- विधानमंडलीय समिति का बैठक चल रहा हो जिसका वो सदस्य है;
यहाँ याद रखने वाली बात है कि यह अधिकार केवल नागरिक (civil) मुकदमों में लागू होता है, आपराधिक (Criminal) तथा प्रतिबंधात्मक निषेध (restrictive prohibition) मामलों में नहीं।
हालांकि अगर किसी सदस्य की गिरफ्तारी, नजरबंदी या कारावास की स्थिति हो तो सक्षम प्राधिकारी द्वारा सदन के अध्यक्ष को इस बारे में सूचित करना आवश्यक होता है, नहीं तो इसे विशेषाधिकार हनन (breach of privilege) माना जा सकता है।
दूसरी बात ये कि इसे अपनी रिपोर्ट, वाद-विवाद और कार्यवाही को प्रकाशित करने तथा अन्यों को इसे प्रकाशित न करने देने का अधिकार है।
विधानमंडलीय विशेषाधिकार और प्रेस की स्वतंत्रता (Legislative privilege and freedom of the press):
प्रेस को विधानमंडल का विस्तार माना जाता है क्योंकि प्रेस ही संसदीय विधान या चर्चाओं को जनता तक पहुंचाता है। अनुच्छेद 19(1)(क) के तहत प्रेस की स्वतंत्रता सुनिश्चित है।
◾ अनुच्छेद 194(2) के तहत विधानमंडल के प्रत्येक सदन की कार्यवाहियों के प्रकाशन से संबंधित सभी व्यक्तियों को किसी न्यायालय में कार्यवाही से पूर्ण उन्मुक्ति (immunity) प्रदान की गई है यदि ऐसा प्रकाशन सदन द्वारा सदन के प्राधिकार से किया जाय।
लेकिन यही उन्मुक्ति विधनमंडलीय कार्यवाहियों की रिपोर्ट समाचारपत्रों में प्रकाशित करने के मामले में प्रदान नहीं की गई है, जब तक कि किसी सदन द्वारा ऐसे प्रकाशन के लिए स्पष्टतः प्राधिकृत न किया गया हो।
कुल मिलाकर कहने का अर्थ ये है कि विधानमंडल को अपनी रिपोर्ट, वाद-विवाद और कार्यवाही को प्रकाशित करने तथा अन्यों को इसे प्रकाशित न करने देने का अधिकार है।
ऐसी व्यवस्था इसीलिए की गई ताकि सदन अपने वाद-विवाद एवं कार्यवाहियों के प्रकाशन पर नियंत्रण रख सके और यदि आवश्यक हो तो उल्लंघन करने वाले को दंड भी दे सके।
◾ हालांकि आमतौर पर सदन की कार्यवाहियों की रिपोर्ट प्रकाशित करने पर को प्रतिबंध नहीं लगाया जाता है। इसकी एक वजह 44वां संविधान संशोधन अधिनियम 1978 है। जिसके तहत संविधान में एक नया अनुच्छेद 361क को डाला गया।
इसी के तहत यह व्यवस्था की गई कि सदन की पूर्व अनुमति बिना प्रेस (मीडिया) संसद की कार्यवाही की सही रिपोर्ट का प्रकाशन कर सकता है। लेकिन शर्त ये है कि यह रिपोर्ट दुर्भावना से या जानबूझकर गलत साक्ष्य पेश कर प्रकाशित नहीं किया जाना चाहिए।
◾ यदि कोई रिपोर्ट दुर्भावना से की गई हो या फिर किन्ही भाषणों को जान-बूझकर गलत रूप दिया गया हो या साक्ष्य छिपाया गया हो तो इसे विशेषाधिकार भंग या सदन की अवमानना माना जा सकता है। और इसके लिए दोषी व्यक्ति को दंड भी दिया जा सकता है।
◾ यदि प्रेस द्वारा किसी समिति के रिपोर्ट को सदन में पेश होने से पहले ही मीडिया में प्रकाशित कर दिया जाता है तो इसे भी विशेषाधिकार का हनन माना जा सकता है।
◾ इसके अलावा प्रेस सदन के किसी गुप्त बैठक को भी प्रकाशित नहीं कर सकता है तब तक, जब तक सदन द्वारा उसे अगोपनीय (non confidential) करार नहीं दिया जाता है।
नोट – साल 1956 में संसदीय कार्यवाही (प्रकाशन का संरक्षण) अधिनियम बनाया गया था जिसके तहत तहत यह व्यवस्था किया गया था कि किसी भी सत्य या निर्दोष प्रकाशन के लिए किसी भी व्यक्ति को सजा नहीं दी जा सकती, तब तक जब तक कि यह साबित न हो जाए कि प्रकाशन द्वेषपूर्ण इरादे से किया गया था। लेकिन बाद में 1975 में आपातकाल के समय इस अधिनियम को समाप्त कर दिया गया था। इसीलिए आपातकाल समाप्त होने के बाद अनुच्छेद 361क के तहत वही व्यवस्था कर दी गई।
Article 194(3) की व्याख्या :-
अनुच्छेद 194(3) के तहत यह व्यवस्था किया गया है कि अन्य बातों में राज्य के विधान-मंडल के किसी सदन की और ऐसे विधान-मंडल के किसी सदन के सदस्यों और समितियों की शक्तियां, विशेषाधिकार और उन्मुक्तियां ऐसी होंगी जो वह विधान-मंडल, समय-समय पर, विधि द्वारा परिनिश्चित करे और जब तक वे इस प्रकार परिनिश्चित नहीं की जाती हैं तब तक वही होंगी जो संविधान (चवालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 26 के प्रवृत्त होने से ठीक पहले उस सदन की और उसके सदस्यों और समितियों की थीं।
यहाँ दो बातें हैं;
पहली बात तो ये कि अनुच्छेद194(1) और 194(2) में कही गई बातों के अतिरिक्त अन्य बातों में विधानमंडल के प्रत्येक सदन की और प्रत्येक सदन के सदस्यों और समितियों की शक्तियां, विशेषाधिकार (privilege) और उन्मुक्तियां (immunity) ऐसी होंगी जो विधानमंडल, समय-समय पर, विधि द्वारा सुनिश्चित करे;
और दूसरी बात ये है कि जब तक विधि द्वारा इस प्रकार उपरोक्त चीज़ें सुनिश्चित नहीं की जाती हैं तब तक विशेषाधिकार और उन्मुक्तियाँ वही होंगी जो संविधान (चवालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 26 के प्रवृत्त होने से ठीक पहले उस सदन की और उसके सदस्यों और समितियों की थीं।
कुल मिलाकर अनुच्छेद 194(3) विशेषाधिकारों को संहिताबद्ध करने से संबंधित है। संविधान के अनुच्छेद 194(3) के तहत यह व्यवस्था किया गया है कि संविधान में उल्लिखित विशेषाधिकारों के अलावा, विधानमंडल विधि द्वारा अपने विशेषाधिकारों को, समय-समय पर परिभाषित कर सकता है।
Article 194(4) की व्याख्या :-
अनुच्छेद 194(4) के तहत यह व्यवस्था किया गया है कि जिन व्यक्तियों को इस संविधान के आधार पर राज्य के विधान-मंडल के किसी सदन या उसकी किसी समिति में बोलने का और उसकी कार्यवाहियों में अन्यथा भाग लेने का अधिकार है, उनके संबंध में खंड (1), खंड (2) और खंड (3) के उपबंध उसी प्रकार लागू होंगे जिस प्रकार वे उस विधान-मंडल के सदस्यों के संबंध में लागू होते हैं।
संविधान ने कुछ प्रकार के लोगों को संसद की कार्यवाहियों में भाग लेने और बोलने का अधिकार दिया है। अनुच्छेद 177 के तहत मंत्रियों और महाधिवक्ता को यह अधिकार मिला है कि वह संसद के किसी भी सदन में बोल सकता है। तो इनके ऊपर भी अनुच्छेद 194(1), (2) और (3) खंड लागू होते हैं। यानि कि इनको भी अनुच्छेद 194 के तहत मिलने वाले विशेषाधिकार का लाभ मिलेगा।
| इसे विस्तार से समझने के लिए पढ़ें; संसदीय विशेषाधिकार: अर्थ, वर्गीकरण, विभिन्न पहलू एवं उदाहरण
उत्तर प्रदेश के विधान सभा द्वारा विशेषाधिकार हनन पर दंड देने का ताजा मामला
उत्तर प्रदेश विधानसभा ने 3 मार्च 2023 को एक सेवानिवृत्त भारतीय प्रशासनिक सेवा अधिकारी और पांच पुलिसकर्मियों को विशेषाधिकार हनन के लिए दंडित किया। दंड के रूप में एक दिन की कैद की सजा सुनाई गई।
इसके लिए विधानसभा को अनुच्छेद 194(3) के तहत एक न्यायालय में बदल दिया गया। यूनाइटेड न्यूज ऑफ इंडिया के मुताबिक, यूपी विधानसभा के इतिहास में यह दूसरा उदाहरण है, जहां उसने अदालत के तौर पर काम किया और सजा का आदेश दिया. इससे पहले ऐसी घटना साल 1964 में हुई थी।
इसके लिए हमें अनुच्छेद 194 देखना होगा। क्योंकि जो विशेषाधिकार से संबन्धित अधिकार संसद को अनुच्छेद 105 के तहत मिलता है वही अधिकार राज्य विधान मंडल को अनुच्छेद 194 के तहत मिलता है।
अनुच्छेद 194, राज्यों के विधान मण्डल और उसके सदस्यों की शक्तियाँ एवं विशेषाधिकार के बारे में है।
- अनुच्छेद 194(1) के तहत यह बताया गया है कि प्रत्येक राज्य के विधानमंडल में फ्रीडम ऑफ स्पीच होगा।
- अनुच्छेद 194(2) में पहले वाले को ही और विस्तारित करके बताया गया है कि राज्य विधानमंडल में विधायकों द्वारा कही गई किसी बात को लेकर उस विधायक के विरुद्ध किसी न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती है।
तो ये जो दो बातें है वो संविधान में लिख दिया गया है लेकिन इसके अलावा अन्य बातों के लिए क्या नियम होंगे इसके लिए अनुच्छेद 194(3) में बताया गया है कि विधान-मंडल के किसी सदन के सदस्य और समितियों की शक्तियाँ, विशेषाधिकार और उन्मुक्तियाँ ऐसी होंगी जो वह विधान-मंडल, समय-समय पर, विधि द्वारा परिनिश्चित करें।
यानि कि विधानमंडल के किसी समिति की शक्तियों एवं विशेषाधिकार को स्वयं विधानमंडल तय कर सकता है। और अनुच्छेद के इसी प्रावधान का इस्तेमाल करके उत्तर प्रदेश के विधानमंडल को एक न्यायालय में बदल दिया गया।
पूरी घटनाक्रम
दरअसल हुआ ये था कि 15 सितंबर 2004 को तत्कालीन विधायक और अब एमएलसी सलिल विश्नोई ने कानपुर में बिजली आपूर्ति को लेकर धरना-प्रदर्शन किया था.
जब विश्नोई एक जुलूस में जिलाधिकारी को ज्ञापन देने जा रहे थे तो पुलिस द्वारा उनका अपमान किया गया, गाली दी गई और लाठीचार्ज किया गया। लाठीचार्ज में विश्नोई के दाहिने पैर में फ्रैक्चर हो गया।
चूंकि विश्नोई का विरोध शांतिपूर्ण था और साथ ही वह विधायक (MLA) भी था। तथा उन्होंने ऐसा कोई काम नहीं किया जिसके लिए उसे पीटा जाए इसीलिए इस घटना को सदन का विशेषाधिकार भंग होना समझा गया।
चूंकि इसे एक गंभीर किस्म का मामला समझा गया इसीलिए सदन ने खुद इसपर निर्णय लेने के बजाय एक विशेषाधिकार समिति का गठन कर दिया।
28 जुलाई 2005 को सदन की विशेषाधिकार समिति ने सभी पुलिसकर्मियों को दोषी पाया और उन्होंने सिफारिश की कि उन्हें दंडित किया जाना चाहिए।
इस संबंध में महाधिवक्ता (Advocate General) से भी सलाह ली गई जिन्होंने सिफारिश की कि दोषियों को जेल भेजा जाना चाहिए।
उन्होंने प्रस्ताव दिया कि संविधान के अनुच्छेद 194 के तहत राज्य विधानमंडल को दोषियों को दंडित करने का अधिकार है और सदन को अदालत में बदलने का प्रस्ताव रखा जिसे ध्वनि मत से पारित कर दिया गया।
विशेषाधिकार समिति ने 27 फरवरी 2023 को हुई अपनी बैठक में भी दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई की अनुशंसा की थी और उसी के अनुरूप सदन की कार्यवाही को अदालत में बदला गया और पांचों व्यक्तियों को 1 दिन के लिए कैद की सजा सुनाई गई।
ये अपने आप में एक दिलचस्प घटना बन गई क्योंकि विधानमंडल एक न्यायालय में परिवर्तित हो गया था। द हिन्दू के अनुसार विधान सभा में ऐसी ही कवायद मार्च 1989 में हुई थी, जब राज्य के तराई विकास जनजाति निगम के एक अधिकारी शंकर दत्त ओझा को एक विधायक के साथ दुर्व्यवहार करने के आरोप में विधान सभा में बुलाया गया था।
तो यही है Article 194, उम्मीद है आपको समझ में आया होगा। दूसरे अनुच्छेदों को समझने के लिए नीचे दिए गए लिंक का इस्तेमाल कर सकते हैं।
◾ राज्य विधानमंडल (State Legislature): गठन, कार्य, आदि ◾ भारतीय संसद (Indian Parliament): Overview |
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⚫ अनुच्छेद 193 – भारतीय संविधान |
⚫ भारतीय संविधान ⚫ संसद की बेसिक्स ⚫ मौलिक अधिकार बेसिक्स ⚫ भारत की न्यायिक व्यवस्था ⚫ भारत की कार्यपालिका |
अस्वीकरण – यहाँ प्रस्तुत अनुच्छेद और उसकी व्याख्या, मूल संविधान (उपलब्ध संस्करण), संविधान पर डी डी बसु की व्याख्या (मुख्य रूप से), प्रमुख पुस्तकें (एम. लक्ष्मीकान्त, सुभाष कश्यप, विद्युत चक्रवर्ती, प्रमोद अग्रवाल इत्यादि) एनसाइक्लोपीडिया, संबंधित मूल अधिनियम और संविधान के विभिन्न ज्ञाताओं (जिनके लेख समाचार पत्रों, पत्रिकाओं एवं इंटरनेट पर ऑडियो-विजुअल्स के रूप में उपलब्ध है) पर आधारित है। हमने बस इसे रोचक और आसानी से समझने योग्य बनाने का प्रयास किया है। |