भारत में विभिन्न प्रकार के आयोग कार्यरत है, उनमें से सबसे महत्वपूर्ण आयोगों में से एक वित्त आयोग है, ऐसा क्यों है इसे आप आगे समझ जाएँगे।
इस लेख में हम वित्त आयोग (Finance Commission) पर सरल और सहज चर्चा करेंगे एवं इसके विभिन्न महत्वपूर्ण पहलुओं को समझने का प्रयास करेंगे। इस लेख को पढ़ने एवं समझने के बाद अभ्यास प्रश्न को जरूर हल करें एवं अपनी समझ को जाँचे।
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वित्त आयोग (Finance Commission)
भारत के संविधान में अनुच्छेद 280 के अंतर्गत अर्द्ध-न्यायिक निकाय के रूप में वित्त आयोग की व्यवस्था की गई है। जिसका मुख्य काम केंद्र और राज्यों के वित्तीय संसाधनों के प्रबंधन के तौर-तरीके और विभाजन योग्य संसाधनों का नियमन करने वाले सिद्धांतों को बताना है।
दूसरे शब्दों में कहें तो इसका मुख्य काम केंद्र एवं राज्य के मध्य पैसों का बंटवारा कैसे होगा इसी सिद्धान्त को बताना है। इसका गठन राष्ट्रपति द्वारा हर पांचवें वर्ष या आवश्यकतानुसार उससे पहले किया जाता है।
अनुच्छेद 280(1) में लिखा हुआ है कि राष्ट्रपति, इस संविधान के प्रारंभ से दो वर्ष के भीतर और तत्पश्चात प्रत्येक पांचवें वर्ष की समाप्ति पर या ऐसे पूर्वतर समय पर, जिसे राष्ट्रपति आवश्यक समझता है, आदेश द्वारा, वित्त आयोग का गठन करेगा।
ऐसा हुआ भी था, 22 नवम्बर 1951 को पहले वित्त आयोग का गठन किया गया था जिसकी अध्यक्षता श्री के सी नियोगी को सौंपा गया था। तब से लेकर आज तक 15 वित्त आयोग का गठन हो चुका है। 15वें वित्त आयोग वर्ष 2021 – 26 के लिए अपनी रिपोर्ट भी राष्ट्रपति को सौंप चुके हैं। अब तक के सारे वित्त आयोग के बारे में इस लिस्ट से जान सकते हैं;
अब तक गठित आयोग
आयोग | नियुक्ति | अध्यक्ष | कार्यकाल |
पहला | 1951 | K. C. Neogy | 1952–57 |
दूसरा | 1956 | K. Santhanam | 1957–62 |
तीसरा | 1960 | A. K. Chanda | 1962–66 |
चौथा | 1964 | P. V. Rajamannar | 1966–69 |
पांचवा | 1968 | Mahaveer Tyagi | 1969–74 |
छठा | 1972 | K. Brahmananda Reddy | 1974–79 |
सातवाँ | 1977 | J. M. Shelat | 1979–84 |
आठवाँ | 1983 | Y. B. Chavan | 1984–89 |
नौवां | 1987 | N. K. P. Salve | 1989–95 |
दसवां | 1992 | K. C. Pant | 1995–00 |
ग्यारहवां | 1998 | A. M. Khusro | 2000–05 |
बारहवां | 2002 | C. Rangarajan | 2005–10 |
तेरहवां | 2007 | Dr. Vijay L. Kelkar | 2010–15 |
चौदहवां | 2013 | Dr. Y. V Reddy | 2015–20 |
पंद्रहवां | 2017 | N. K. Singh | 2020–26 |
तो आइये समझते हैं वित्त आयोग की संरचना क्या है और वो करते क्या हैं, इसके अलावा हम 15वें वित्त आयोग जिसकी अध्यक्षता एन के सिंह कर रहे थे; के रिपोर्ट की कुछ खास बातों को भी जानेंगे।
वित्त आयोग की संरचना
अनुच्छेद 280(1) के अनुसार, वित्त आयोग में एक अध्यक्ष और चार अन्य सदस्य होते हैं, जिनकी नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
उनका कार्यकाल राष्ट्रपति के आदेश के आदेशानुसार तय होता है और उनकी पुनर्नियुक्ति भी हो सकती है।
अनुच्छेद 280(2) के अनुसार, संसद के पास ये अधिकार है कि वे इन सदस्यों की योग्यता और चयन विधि का निर्धारण करें। इसी के तहत संसद ने आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्यों की विशेष योग्यताओं का निर्धारण किया है, जो कि कुछ इस प्रकार है;
वित्त आयोग का अध्यक्ष सार्वजनिक मामलों का अनुभवी होना चाहिए और अन्य चार सदस्यों को निम्नलिखित में से चुना जाना चाहिए-
(1) किसी उच्च न्यायालय का न्यायाधीश या इस पद के लिए योग्य व्यक्ति,
(2) ऐसा व्यक्ति जिसे भारत के लेखा एवं वित्त मामलों का विशेष ज्ञान हो,
(3) ऐसा व्यक्ति, जिसे प्रशासन और वित्तीय मामलों का व्यापक अनुभव हो, और
(4) ऐसा व्यक्ति, जो अर्थशास्त्र का विशेष ज्ञाता हो।
वित्त आयोग का कार्य
अनुच्छेद 280(3) के तहत आयोग के कर्तव्यों को बताया गया है जिसके तहत वित्त आयोग, भारत के राष्ट्रपति को निम्नलिखित मामलों पर सिफ़ारिशें करता है;
(a) संघ और राज्यों के बीच करों के शुद्ध आगमों (Revenue) का वितरण और राज्यों के बीच ऐसे आगमों का आवंटन।
केंद्र और राज्य के मध्य करों का वितरण दो तरीके से होता है एक ऊर्ध्वाधर वितरण और दूसरा क्षैतिज वितरण। ऊर्ध्वाधर वितरण के तहत 14वें वित्त आयोग ने 42 प्रतिशत राज्यों को अंतरण की सिफ़ारिशें की थी। जिसे कि स्वीकार भी किया गया था।
लेकिन चूंकि 2019 में जम्मू और कश्मीर एवं लद्दाख को केंद्रशासित प्रदेश बनाया गया, ऐसे में जाहिर है कि केंद्र को ही इन दोनों केंद्रशासित प्रदेशों को मैनेज करना है। 15वें वित्त आयोग ने इसी तथ्य को ध्यान में रखकर राज्यों को की जाने वाली अंतरण को 41 प्रतिशत कर दिया।
क्षैतिज वितरण की बात करें तो इसका मतलब ये है कि राज्यों को जो 41 प्रतिशत मिला है उसमें से 1-1 राज्य को कितना मिलेगा।
ये काफी चुनौतीपूर्ण काम होता है क्योंकि कई राज्य इस बात को लेकर नाराज हो जाता है कि उसने जनसंख्या को कम किया है उसे उसके लिए वित्तीय प्रोत्साहन मिलने के बजाय हतोत्साहन ही मिलता है क्योंकि आमतौर पर अधिक जनसंख्या वाले राज्यों को अधिक हिस्सा मिल जाया करता है।
क्षैतिज बंटवारा न्यायोचित एवं युक्तिसंगत हो सके इसके लिए 15वें वित्त आयोग ने 6 मानदंडों को अपनाया, जबकि 14वें वित्त आयोग की बात करें तो उन्होने सिर्फ 4 मानदंडों को अपनाया था। आप नीचे के टेबल में इसे देख सकते हैं;
करों के क्षैतिज अंतरण के लिए 15वें वित्त_आयोग द्वारा सुझाये गए मानदंड
मानदंड | महत्व (प्रतिशत में) |
जनसंख्या | 15 |
क्षेत्र | 15 |
वन और पारिस्थितिकी | 10 |
आय अंतराल | 45 |
कर एवं राजकोषीय प्रयास | 2.5 |
जनसांख्यिकीय कार्यनिष्पादन | 12.5 |
कुल | 100 प्रतिशत |
करों के क्षैतिज अंतरण के लिए 14वें वित्त_आयोग द्वारा सुझाये गए मानदंड
मानदंड | महत्व (प्रतिशत में) |
जनसंख्या | 27.5 |
क्षेत्र | 15 |
वन क्षेत्र | 7.5 |
आय | 50 |
कुल | 100 प्रतिशत |
कुल मिलाकर दोनों टेबल के तुलनात्मक अध्ययन से ये पता चल जाता है कि किस तरह से 15वें वित_आयोग ने सभी राज्यों को खुश रखने की कोशिश की है।
(b) भारत की संचित निधि में से राज्यों के राजस्व मे सहायता अनुदान को शासित करने वाले सिद्धान्त।
सहायता अनुदान कुछ खास लक्ष्य को ध्यान में रखकर दी जाती है। ये भारत की संचित निधि से राज्यों को आयोग की अनुशंसा पर दी जाती है। 15वें वित्त आयोग ने मुख्य रूप से पाँच अनुदानों की सिफ़ारिश की हैं, जिसे कि आप नीचे की तालिका में देख सकते हैं –
क्र. सं. | अनुदान के घटक | 2021 -26 (करोड़ में) |
1. | राजस्व घाटा अनुदान | 294514 |
2. | स्थानीय सरकारों का अनुदान | 436361 |
3. | आपदा प्रबंधन अनुदान | 122601 |
4. | क्षेत्र विशेष से संबन्धित अनुदान | 129987 |
(I) | – स्वास्थ्य के लिए क्षेत्रीय अनुदान | 31755 |
(II) | – स्कूली शिक्षा | 4800 |
(III) | – उच्च शिक्षा | 6143 |
(IV) | – कृषि सुधारों पर अमल | 45000 |
(V) | – सड़कों का रखरखाव | 27539 |
(VI) | – न्यायपालिक | 10425 |
(VII) | – सांख्यिकी | 1175 |
(VIII) | – आकांक्षी जिले और ब्लॉक | 3150 |
5. | राज्य विशेष से संबन्धित | 49599 |
कुल | 1033062 |
(c) राज्य वित्त_आयोग द्वारा की गई सिफ़ारिशों के आधार पर राज्य में नगरपालिकाओं और पंचायतों के संसाधनों की अनुपूर्ति के लिए राज्य की संचित निधि के संवर्धन के लिए आवश्यक उपाय।
नोट – इस प्रावधान को 73वां और 74वां संविधान संशोधन के माध्यम से जोड़ा गया था। यहाँ से पढ़ें – 73वां संविधान संशोधन और 74वां संविधान संशोधन
हम जानते हैं कि अनुच्छेद 243 (I) के तहत राज्य वित्त आयोग की बात कही गई है जो कि राज्यपाल द्वारा नियुक्त किया जाता है।
ये आयोग मुख्य रूप से स्थानीय ग्रामीण शासन और स्थानीय शहरी शासन के वित्तीय अंतरण के बारे में राज्यपाल को सिफ़ारिश करता है। (बिलकुल केन्द्रीय वित्त आयोग के तरह ही)
इस प्रावधान के तहत केन्द्रीय वित्त आयोग, राज्य वित्त आयोग के सिफ़ारिशों के आधार पर, पंचायतों और नगरपालिकाओं के संसाधनों में वृद्धि करने के उद्देश्य से आवश्यक उपाय सुझाता है। वित्तीय संघवाद की स्थापना की दृष्टि से इस प्रावधान को अच्छा माना जाता है।
(d) राष्ट्रपति द्वारा आयोग को सुदृढ़ वित्त के हित में निर्दिष्ट किया गया कोई अन्य विषय।
जैसे कि 15वें वित्त आयोग को कुछ अतिरिक्त ज़िम्मेदारी सौंपी गई थी। उसे विशेष रूप से उपलब्ध करायी जाने वाली विभिन्न प्रकार की अनुदान सहायता देने के राजकोषीय सिद्धांतों की समीक्षा करने और उन पर टिप्पणी करने को कहा गया।
इसके अलावा आयोग को कार्य निष्पादन के आधार पर प्रोत्साहनों पर विचार करने को कहा गया ताकि राज्य और स्थानीय सरकारों को उनके प्रयासों के विभिन्न नीतिगत क्षेत्रों में समुचित स्तर पर मदद देकर प्रोत्साहित किया जा सके।
कुल मिलाकर इस तरह से आयोग अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति को सौंपता है, जो इसे संसद के दोनों सदनों में रखता है। रिपोर्ट के साथ उसका आकलन संबंधी ज्ञापन एवं इस संबंध मे उठाए जा सकने वाले कदमों के बारे में विवरण भी रखा जाता है।
आयोग से संबन्धित कुछ तथ्य
◾ आयोग की सिफ़ारिशों की प्रकृति सलाहकारी होती है और इनको मानने के लिए सरकार बाध्य नहीं होती। यह केंद्र सरकार पर निर्भर करता है कि राज्य सरकारों को दी जाने वाली सहायता के संबंध में आयोग की सिफ़ारिशों को वो लागू करता है कि नहीं।
इस संबंध में डॉ. पी वी राजमन्नार (चौथे वित्त आयोग के अध्यक्ष) ने ठीक ही कहा है कि, चूंकि वित्त आयोग एक संवैधानिक निकाय है, जो अर्द्ध-न्यायिक कार्य करता है। इसकी सलाह को भारत सरकार तब तक मानने के लिए बाध्य नहीं है, जब तक कि कोई बाध्यकारी कारण न हो।
◾ 15वें वित्त आयोग के लिए जनसंख्या का पैमाना 2011 वाला रखा गया है जबकि इससे पहले तक 1971 के जनसंख्या के आधार पर वित्तीय अंतरण की सिफ़ारिशें होती थी।
◾ वित्त आयोग धन अंतरण के लिए, अनुच्छेद 280 के साथ-साथ अनुच्छेद 270 और अनुच्छेद 275 का इस्तेमाल भी करती है। इन दोनों अनुच्छेदों को केंद्र-राज्य वित्तीय संबंध में अच्छे से समझाया गया है।
कुल मिलाकर यही है वित्त_आयोग और उसकी कार्यप्रणाली, उम्मीद है समझ में आया होगा। नीचे कुछ अन्य लेखों का लिंक दिया जा रहा है उसे भी जरूर पढ़ें।
Finance commission Practice quiz – upsc
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मूल संविधान भाग 12
योजना : वित्त आयोग (एन के सिंह)
राज्य वित्त आयोगों को क्षमतावान बनाया जाए
15वें वित्त आयोग की नज़र में
Finance Commission – Wikipedia